सायरा बानो दिल्ली में भलस्वा लैंडफिल के पास रहती हैं। यह शहर की दूसरी सबसे बड़ी डंपिंग साइट है। सायरा कचरा बीनने का काम करती हैं जिसका मतलब है कि वे एक अनौपचारिक श्रमिक हैं। वे और उनके आस-पड़ोस के कई परिवार अपनी आजीविका के लिए भलस्वा में आने वाले कचरे को छांटने और बेचने का काम करते हैं। ये लोग देश की कचरा रिसाइकिलिंग की अनौपचारिक प्रक्रिया का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं।
सायरा बानो के घर के आसपास प्लास्टिक रैपर और रबर चप्पलों के ढेर देखे जा सकते हैं। वे कहती हैं कि ‘पहले हम सर्दियों में इन्हें जलाकर आग सेंकते थे या फिर इनसे निपटने के लिए इन्हें यूं ही बाक़ी कचरे के साथ जला देते थे। लेकिन जागरूकता अभियान में हमें यह बताया गया कि प्लास्टिक को जलाने से हमारे स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है क्योंकि हम फिर उसी हवा में सांस लेते हैं। लेकिन हम इन रैपरों को बेच नहीं सकते हैं और अब जला भी नहीं सकते हैं। हम सड़क पर झाड़ू लगाकर इन्हें किनारे एक जगह पर इकट्ठा कर देते हैं।’ जिस प्लास्टिक से चिप्स के रैपर बनते हैं, उस तरह के प्लास्टिक को रिसाइकल करना कठिन होता है क्योंकि यह कई परतों वाला प्लास्टिक (मल्टीलेयर प्लास्टिक) होता है और इनमें खाने-पीने की चीजों के टुक्ड़े भी रह जाते हैं। इसके अलावा, ये प्रसंस्करण मशीनरी को बाधित भी करते हैं और इसलिए इस प्रकार के प्लास्टिक के रिसाइकिल प्रक्रिया महंगी पड़ती है।
मल्टीलेयर प्लास्टिक को विघटित होने (गलने) में काफी समय लगता है और इनसे निकलने वाले रंग पानी में दुर्गंध पैदा करते हैं। सायरा बानो कहती हैं, “यह कचरा हमारी नालियों को रोक कर रहा है और आखिर में नदियों और समुद्रों तक पहुंचकर उन्हें भी प्रदूषित कर रहा है।” लेकिन साथ ही, सायरा बानो एक समाधान भी सुझाती हैं। वे कहती हैं कि ‘इन रैपरों में अपने उत्पाद बेचने वाली कंपनियों को इनकी रिसाइकिलिंग की जम्मेदारी भी उठानी चाहिए। उन्हें लोगों से बात करनी चाहिए और इसका समाधान निकालना चाहिए।’
जैसा कि आईडीआर को बताया गया।
सायरा बानो सफाई सेना की सदस्य हैं जो दिल्ली में अनौपचारिक कचरा श्रमिकों का संघ है।
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