राजस्थान के दक्षिणी हिस्से में बसे राजसमंद जिले में कुछ महिलाएं अपने अलग अंदाज में महिला अधिकारों एवं महिलाओं के साथ हुए अत्याचारों पर काम कर रही हैं।यहां की महिलाएं अपनी नारी अदालत चलाती हैं। इस नारी अदालत में वे महिलाओं के साथ होने वाले अत्याचारों जैसे बलात्कार, महिला परित्याग, दहेज, नाता प्रथा, डायन प्रताड़ना वगैरह जैसी कई समस्याओं से जुड़े मामलों को अपने तरीक़े से सुलझाती हैं।
एक सदस्य अपने शब्दों में, नारी अदालत चलाने का कारण बताते हुए कहती हैं कि ‘गरीब महिला के पास वकील करने के लिए पैसे नहीं होते हैं, तारीख पर तारीख आती है और सामने वाला अगर ज्यादा पैसे वाला हो तो उनके लिए न्याय कभी होता ही नहीं।’ ऐसे मुद्दों को सुलझाने के लिए नारी अदालत का गठन हुआ।
वास्तव में, नारी अदालत एक दबाव समूह के रूप में काम करती है। जब कोई महिला अपना केस लेकर आती है तो वे अपने रिकार्ड में केस दर्ज करते हैं। दोनों पक्षों को अपनी बात रखने के लिए उन्हें निश्चित तारीख पर अपने ऑफिस में बुलाकर उन्हें सुनते हैं और मामले को आपसी समझाइश से सुलझाने का प्रयास करते हैं।
कई बार वे पीड़ित को न्याय दिलाने के लिए दूसरे पक्ष पर जबरदस्त दबाव बनाते हैं और पीड़ित के लिए त्वरित सुनवाई और न्याय सुनिश्चित करते हैं। अब तक यह नारी अदालत ज़िले भर के 2000 से अधिक मामले सुलझा चुकी है। उन्हें अब अन्य जिले एवं राज्यों से आने वाले मामले भी मिलने लगे हैं।
लेकिन नारी अदालत के अपनी ऐसी पहचान बना पाना आसान नहीं था। शुरुआत में उन्हें अपने परिवार तक का विरोध झेलना पड़ा था, इलाके के लोगों से अभद्र शब्द भी सुनने पड़े, लेकिन आज वे ही लोग उनके जज्बे को सलाम करते हैं।
पहले जहां ये महिलाएं अपने घर में भी नहीं बोलती थीं, आज लगातार प्रशिक्षण के बाद कहती हैं कि ‘कई मामलों में पुलिसवालों तक पर दबाव डालना पड़ता है। उनको हम कहती हैं कि ये थाने-चौकी तो हमारे पीहर हैं।’
इन स्थानीय महिलाओं ने न केवल अपने घूंघट और घरों से बाहर निकलकर अपनी पहचान बनाई है। बल्कि, एक ऐसा मंच बनाया है जहां आसान और त्वरित न्याय मिलने के चलते अनगिनत महिलाओं के जीवन में भी रोशनी आ रही है।
शकुंतला पामेचा राजसमंद महिला मंच की निदेशक हैं। उन्होंने साल 2000 में नारी अदालत की शुरुआत की थी। उनके इस मंच से विभिन्न जाति की महिलाएं जुड़ी हैं जो कई अलग-अलग गांवों से आती हैं।
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