May 22, 2024

सामाजिक संस्थाएं युवाओं का सहयोग कैसे कर सकती हैं?

पर्यावरण और नागरिक समाधान लाने वाले उद्देश्यों से युवाओं को जोड़े रखने के प्रयास करते हुए उनकी बदलती ज़रूरतों के साथ तालमेल रखना महत्वपूर्ण है।
7 मिनट लंबा लेख

जीवन के अलग-अलग दौर में युवाओं की प्रेरणा भी अलग-अलग तरह की होती है। यह उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थितियों, उनके स्थान, उम्र और साथियों के हिसाब से हमेशा बदलती रहती है।

जब साल 2013 में रीप बेनिफिट की शुरूआत हुई तो हमारा अनुमान था कि युवा अपने समुदाय की समस्याओं के बारे में जानते हैं। लेकिन शायद उन्हें ये समझने में दिक्कत होती है कि अपने ज्ञान और समझ से समस्याओं का समाधान कैसे निकाले जाएं। या फिर, वे समुदाय पर कम और लंबे समय तक के लिए असर डालने वाले प्रयास लगातार कैसे करते रह सकते हैं? इन बातों को ध्यान में रखते हुए, हमने 12-18 साल आयुसमूह के युवाओं के साथ मिलकर ‘सॉल्व निंजा कम्युनिटीज’ विकसित करनी शुरू कीं। इनका उद्देश्य उस इलाक़े के स्थानीय पर्यावरण और नागरिक मुद्दों के हल खोजने के लिए युवाओं को प्रोत्साहित करना था। इन समुदायों को युवा ख़ुद संगठित करते हैं और इनके तरीक़े लचीले और परिवर्तनशील होते हैं जिससे वे अपनी समस्याओं और उनके समाधानों की पहचान करने की ज़िम्मेदारी समझ सकें।

इन समुदायों को चलाते हुए, अपनी ग़लतियों से हमने सीखा कि युवाओं को उनके उद्देश्य में उत्साह के साथ लगाए रखने का मतलब उनकी बदलती ज़रूरतों के साथ तालमेल बिठाना है। समाजसेवी संस्थाएं युवाओं के साथ सार्थक रूप से जुड़ने के लिए उनकी ज़रूरतों पर कैसे गौर कर सकती हैं, यह आलेख इसी पर बात करता है।

1. युवाओं को समर्थन देने के लिए एक जगह बनाएं

साल 2015 में अपने पायलट प्रोजेक्ट के दौरान हम एक छोटा संगठन थे। उस समय 15 युवा हमसे जुड़े और हमने उन्हें व्यक्तिगत सहयोग दिया। इस दौरान, वे हमसे पूछते थे कि वे समुदाय की समस्याओं को कैसे पहचान सकते हैं और उनका समाधान कैसे किया जाना चाहिए।

फेसबुक बैनर_आईडीआर हिन्दी

एक इंटर्न, श्रिया शंकर, जब नौंवी कक्षा में पढ़ रही थीं तब से हमसे जुड़ी हैं। जब वे कॉलेज पहुंचीं तो उन्होंने अपने इलाक़े में जल प्रदूषण से जुड़े मसलों का हल करने के लिए एक प्रोजेक्ट शुरू किया – ख़ासतौर पर जलस्रोतों में गणेश मूर्ति विसर्जन के कारण होने वाले प्रदूषण को लेकर। उन्होंने अपने समुदाय में इको-फ्रेंडली गणेश मूर्तियों के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया। बाद में, श्रिया की रुचि शिक्षा की तरफ़ हो गई, उन्होंने अनाथालयों में पिछड़े तबके के बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया। अपने काम से मिली सीख से, श्रिया ने 2021 में शिक्षा से जुड़ी अपनी उद्यमिता यात्रा शुरू की। अब वे हमसे संस्था चलाने, रणनीति और फंडरेजिंग से जुड़े सवाल पूछती हैं – हम उनका संपर्क इन्क्यूबेटरों से करवाते हैं जिससे उन्हें अपनी संस्था चलाने से संबंधित जरूरी जानकारी और मार्गदर्शन मिल सके।

युवाओं को सलाह और मार्गदर्शन की ज़रूरत सिर्फ़ समुदाय चलाने से संबंधित नहीं है। वे एक ऐसी जगह चाहते हैं जहां वे अपने भविष्य को लेकर अपनी भावनाओं, चिंताओं और डरों पर भी हमसे और एक-दूसरे से बातचीत कर सकें।

जैसे-जैसे समुदाय बड़ा होता जाता है, युवाओं के लिए वह जगह कम होती जाती है जिसमें वे अपने विचार साझा कर सकें।

इस तरह के छोटे समूहों को व्यक्तिगत सहायता देना आसान होता है। लेकिन जब कोई संगठन बड़ा हो जाता है तो व्यक्तिगत संबंध बनाए रख पाना मुश्किल हो सकता है। जैसे-जैसे हमारा समुदाय बड़ा होता जाता है, युवाओं के लिए वह जगह कम होती जाती है जिसमें वे अपने विचार साझा कर सकें, यह बता सकें कि वे कैसे समय से गुजर रहे हैं और सहयोग मांग सकें। ऐसे में अकेलापन लग सकता है और वे इस बात को लेकर भ्रमित हो सकते हैं कि उन्हें अपनी समस्याओं को लेकर किससे बात करनी चाहिए। अपने एक जैसे अनुभवों को साझा करना, युवाओं को यह एहसास दिलाता है कि वे एक समुदाय का हिस्सा हैं।

हमने ‘अड्डा’ का विचार उनके सामने रखा जो ऐसी सभाएं हैं जहां युवा इकट्ठा हो सकते हैं। ये अड्डे उनके लिए मेंटरशिप और सीखने की जगहें हैं। ये औपचारिक और अनौपचारिक, और ऑनलाइन और ऑफ़लाइन दोनों हैं। एक उदाहरण से देखें तों हमने तीन पॉलिसी संबंधित अड्डे जालंधर, पंजाब में किए थे जहां युवाओं को अपने इलाक़े में लागू नीतियों की खूबियों-खामियों पर चर्चा करनी थी। समुदाय की एक सदस्य, सिमरन ने हमसे कहा कि वे इसमें भाग लेने से घबरा रहीं हैं कि अगर उन्हें इस मुद्दे के बारे में पर्याप्त जानकारी नहीं हुई तो क्या होगा? वे अपने ज्ञान को लेकर हिचक रहीं थीं और आत्मविश्वास में कमी का सामना कर रही थीं। लेकिन जब उन्होंने अपने साथियों को भाग लेते देखा और महसूस किया कि यहां पर कोई उनका आकलन नहीं कर रहा है तो उनका आत्मविश्वास लौट आया। उन्होंने अपना संवाद कौशल बेहतर किया और जालंधर के अपने समुदाय का नेतृत्व किया। ऐसी जगहें युवाओं को भीतरी समझ हासिल करने और ज्ञान साझा करने में मदद करती हैं।

हमने ख़ुद युवाओं से आंकड़े इकट्ठा किए हैं कि वे किस तरह के अड्डों में रुचि रखते हैं। वे मानसिक स्वास्थ्य, अपनी स्थानीय संस्कृति और कई तरह की गतिविधियों से जुड़ी बातचीत करते हैं। आपस में स्थानीय स्तर पर, अपने जैसे लोगों से कहानियां साझा करने से वे एक दूसरे पर अधिक भरोसा कर पाते हैं।

खिड़की को खोलती एक लड़की_युवा समुदाय
युवा एक ऐसी जगह चाहते हैं जहां वे अपने भविष्य को लेकर अपनी भावनाओं, चिंताओं और डरों पर भी हमसे और एक-दूसरे से बातचीत कर सकें। | चित्र साभार: कैटन2011 / सीसी बीवाय

2. नियंत्रण संतुलन बनाकर युवाओं के साथ काम करें

हमारी अपेक्षा थी कि एक बार स्थानीय युवा समुदाय बन जाए तो युवा ख़ुद संगठित होंगे और अपने समूहों का नेतृत्व करेंगे। लेकिन वे अपने साथियों के प्रभावित करने, साथ लाने और उनका नेतृत्व करने में कठिनताओं का सामना कर रहे थे। समस्या इस बात से और जटिल बन गई कि हमें जो उनसे उम्मीदें थीं, उनके बारे में हमने उन्हें नहीं बताया था। इससे वे इस को लेकर भ्रमित हो गए कि उन्हें क्या करना चाहिए।

इससे निपटने के लिए, हमने सिस्टम को केंद्रीकृत कर दिया – यानी हमने एक ढांचा और कुछ नियम तय कर दिए जो बताते थे कि समुदाय के सदस्यों और उनके लीडर्स को क्या करना है। हमने स्पष्ट किया कि समुदाय कब मिलेंगे, वे एक-दूसरे से कितना जुड़ेंगे और समुदाय से जुड़ने वालों को कुछ व्यक्तिगत गतिविधियां करनी होंगी – और यह सबकुछ ढेर सारी जवाबदेही के साथ आया था। लेकिन इस तरीक़े की भी अपनी कमियां थीं। इससे कुछ नया होने और रचनात्मकता के लिए बहुत कम जगह बची और, समुदाय और लीडर्स हम पर अधिक निर्भर हो गए।

लेकिन यह बहुत समय तक नहीं चल सका। इससे हमने सीखा कि अगर हम चाहते हैं कि युवा अपने समुदाय का नेतृत्व करें तो बहुत अधिक नियंत्रण या बिल्कुल भी नियंत्रण न होने की स्थितियों से काम नहीं चलेगा। यहां पर एक संतुलन होना चाहिए – इसके लिए शुरूआत के कुछ तरीके और प्रक्रियाएं निर्धारित हो सकते हैं और उसके बाद, जब उन्हें ज़रूरत हो वे अपने मेंटर्स से बात कर सकते हैं। इससे लचीलेपन और बदलाव की गुंजाइश बनती है जिससे लीडर्स अपने फ़ैसले ले सकते हैं। इसीलिए समुदाय से जुड़ाव के जो हमारे दिशानिर्देश थे, हमने उन्हें ख़त्म कर दिया है। अब युवा ख़ुद चुन सकते हैं कि वे किसी समाधान पर व्यक्तिगत रूप से काम करना चाहते हैं या समुदाय के साथ। चुनने की स्वतंत्रता उन्हें रचनात्मक होने और भागीदारी करने के लिए प्रेरित करती है।

3. युवाओं की पृष्ठभूमि पर गौर करें

सबसे पहले यह समझना ज़रूरी है कि जो समाधान पंजाब में कारगर हो, वह बंगलौर में उतना सटीक न बैठे। पंजाब के एक युवा, रवि को पौधे लगाने का बहुत शौक़ है क्योंकि उनके राज्य में ना के बराबर जंगल रह गए हैं। लेकिन यह मुद्दा बंगलौर के लिए उतना प्रासंगिक नहीं रह जाता है, इसलिए वहां के युवा इस तरह के किसी समाधान में उतनी रुचि नहीं लेंगे।

इसी तरह, अगर ग्रामीण पंजाब की लड़कियां मेंटरशिप के लिए आवेदन करती हैं तो उनके लिए अंग्रेज़ी बोलने वाले पुरुष मेंटर की बजाय, एक पंजाबी बोलने वाली महिला मेंटर नियुक्त की जानी चाहिए। युवाओं की उम्र, लिंग, स्थान और सामाजिक-आर्थिक स्थितियों पर गौर करना ज़रूरी है।

इस बात की पुष्टि तब हो गई जब हमने आंकड़े इकट्ठा करने के लिए चैटबॉट्स का इस्तेमाल करना चाहा। युवाओं को चैटबॉट पर अपने कामकाज की जानकारी अपडेट करनी होती थी। हमारे साथ काम करने वाले ज्यादातर युवा टियर-2 और टियर-3 शहरों से आते थे। उन्हें चैटबॉट का इस्तेमाल करने में दिक़्क़त हो रही थी – उन्हें चैटबॉट पर प्रभाव (इम्पैक्ट) से जुड़ी, कितने लोगों से वे मिले, उसे प्रमाणित करने वाली तस्वीरें जैसी जानकारियां दर्ज करनी होती थीं। ऐसे माध्यम से नियमित रुप से रिपोर्टिंग करने की आदत डालना मुश्किल था। हमने देश के 14 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में जिन युवाओं के साथ काम किया, इससे उनकी विविधताओं का दर्ज कर पाना संभव नहीं हो पा रहा था।

अब हम अपने चैटबॉट विभिन्न क्षेत्रीय भाषाओं में चलाते हैं जिसमें उनकी भौगोलिक स्थिति दर्ज होती है और इससे उन्हें अपने साथियों से संपर्क करने में मदद मिलती है। इस पर जानकारी लेने-देने के साथ बातचीत भी की जा सकती है। वॉइस मैसेज भेजने की सुविधा होने के चलते यह अधिक सुलभ हो गया है। हम समुदाय द्वारा किए गए कामों को नियमित रूप से साझा करते हैं और उनकी तारीफ़ करते हैं। इससे युवाओं को प्रोत्साहन मिलता और वे अपनी गतिविधियों और सफलता की कहानियां हम तक पहुंचाने में सक्रियता दिखाते हैं।

4. तारीफ और प्रोत्साहन बहुत ज़रूरी है

सामुदायिक भागीदारी बेहतर बनाने के लिए प्रोत्साहन देना कोई नई बात नहीं है। लेकिन युवाओं को उनका काम बेहतर बनाने के लिए सही तरह का प्रोत्साहन दिए जाने की ज़रूरत होती है। यह मान लेना आसान लगता है कि आर्थिक प्रोत्साहन सही तरीक़ा है लेकिन यह बात हर जगह लागू नहीं होती है।

युवा आमतौर पर चार वजहों से समुदायों का हिस्सा बनते हैं – अपने इलाक़े में लोगों के साथ भावनात्मक जुड़ाव बनाने के लिए, भविष्य में काम आने वाले कौशल सीखने के लिए, आर्थिक फ़ायदे के लिए, और समुदाय में बदलाव लाने के लिए। हमें कार्यक्रम या समुदाय में शामिल होने की उनकी वजहों को सफल करना होगा, ऐसा होना उनके लिए साथ काम करते रहने के लिए एक प्रोत्साहन बन जाता है।

उदाहरण के लिए, हमने जो अड्डे शुरू किए हैं, वे युवाओं के लिए भावनात्मक जुड़ाव बनाने और कौशल हासिल करने में मदद करने वाले मेंटर खोजने के स्थान हैं। हम आर्थिक प्रोत्साहन, प्रमाणपत्र, छात्रवृत्ति की जानकारी वग़ैरह भी देते हैं। लेकिन समस्याओं को हल करने की ख़ुशी मनाना, उसे अन्य समुदायों से साझा करना उन्हें समुदाय के लिए बेहतर करने का सबसे अधिक उत्साह देता है। इस तरह सराहा जाना ही उन्हें अपने महत्वपूर्ण होने का एहसास करवाता है। इन सभी तरीक़ों मिलाजुला रूप युवाओं को भागीदारी के लिए प्रेरित रखता है।

5. बहुत अधिकप्रेरणाथकान में बदल सकती है

एक मौक़ा ऐसा भी आया, जब युवाओं की जवाबदेही के लिए हमारा उनपर दबाव बहुत अधिक हो गया क्योंकि उनका समाधानों तक पहुंचना, हमारी सफलता का मानक बन गया था। हमने कार्यक्रमों में लेवल शामिल किए जिससे युवाओं को और अधिक समस्याओं को हल करने के लिए प्रेरित किया जा सके। प्रत्येक लेवल पर दस समस्याएं थी और अगले लेवल पर पर जाने के लिए उन्हें कम से कम पांच का समाधान करना था। लेकिन जल्दी ही समुदायों ने पूछना शुरू कर दिया, ‘लेवल्स को पूरा करने के बाद क्या होता है?’ या ‘इससे हमें क्या फ़ायदा होता है?’

एक बार, आठवीं कक्षा के एक छात्र ने हमसे पूछा कि ‘हमसे पर्यावरण को बचाने, जानवरों की देखभाल करने, अपने बड़े-बुजुर्गों का ख़्याल रखने और जाने क्या-क्या करने की उम्मीद की जाती है। हम ये सारे कामों में अच्छा कैसे कर सकते हैं?’ हमने महसूस किया कि एक व्यवस्था के तौर पर, विकास सेक्टर में युवाओं पर जानकारियों को बोझ लाद देने का चलन है और फिर उनसे अपेक्षा की जाती है कि वे इन सभी बातों को अपने जीवन में शामिल करें।

आंकड़ों की बजाय सफलता की कहानियों को महत्व देना, जवाबदेही तय करने के लिहाज़ से बहुत ज़रूरी है।

अब हमने लेवल व्यवस्था ख़त्म कर दी है और इसकी बजाय युवाओं को महीने में 5-6 गतिविधियां करने को कहा है। यह काम या गतिविधि क्या होगी, यह उन पर निर्भर करता है और अगर वे इसमें भाग नहीं ले पाते हैं तो हम उन्हें अलग नहीं करते हैं।

आंकड़ों की बजाय सफलता की कहानियों को महत्व देना, जवाबदेही तय करने के लिहाज़ से बहुत ज़रूरी है। जब कोई शहर, जैसे जालंधर, अच्छा प्रदर्शन करता है – हम इसकी ख़ुशी मनाते हैं और सबको बताते हैं कि कैसे 200 लोगों के एक समुदाय ने 600 घंटों के बराबर मेहनत लेने वाले किसी मुद्दे को हल किया है। इससे दूसरे शहरों को भी प्रोत्साहन मिलता है। ऐसे में जालंधर जो कर रहा है, अमृतसर भी उसे अपनाता है। स्वस्थ प्रतिस्पर्धा और सहयोग से वे अपने आप को इस बात के लिए जवाबदेह तय करते हैं कि अगर सामने वाले ने ऐसा किया है तो हमें भी करना चाहिए।

युवाओं के साथ काम करने वाले संगठनों के लिए, सबसे ज़रूरी यह है कि वे उनकी ज़रूरतों को पहचानते रहे और उसके मुताबिक़ व्यवहार करते रहें। युवाओं को लगना चाहिए कि वे जिस कार्यक्रम या समुदाय का हिस्सा हैं, उससे वे कुछ सीख रहे हैं। ज़्यादातर लोग अपने व्यक्तिगत कौशल विकसित करने के लिए, कुछ समुदाय की भावना खोजने के लिए, और कुछ अपने समुदाय की बेहतरी के लिए समुदायों का हिस्सा बनते हैं। उन पर कोई उद्देश्य थोप देना आसान होता है क्योंकि मानक, कार्यक्रम या फंडर्स यही चाहते हैं। युवाओं को जोड़े रखने के लिए, हमने पहले उनके सीखने को वरीयता देनी होगी और फिर उनके सीखने को उद्देश्य से जोड़ना होगा।

इस आलेख को अंग्रेज़ी में पढ़ें

अधिक जानें

  • जानें एक युवा समाजिक उद्यमी कैसे बन सकता है?
  • जानें क्यों बतौर मतदाता भी आपको पर्यावरण और युवाओं के बारे में सोचना चाहिए।

लेखक के बारे में
नवनीत कौर-Image
नवनीत कौर

रीप बेनिफिट के साथ बतौर ‘सॉल्व निंजा’ अपनी यात्रा शुरू करने वाली नवनीत कौर अब उत्तर भारत में संस्था के कार्यक्रम चलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। युवाओं के साथ मिलकर ज़मीनी आंदोलन चलाने वाली नवनीत अब तक 40 से ज़्यादा युवा संचालित समुदाय तैयार कर चुकी हैं। उनके काम को पंजाब विधानसभा अध्यक्ष द्वारा भी सराहा गया है।

कुलदीप दंतेवाडिया-Image
कुलदीप दंतेवाडिया

कुलदीप दंतेवाडिया, रीप बेनिफिट के सह-संस्थापक और सीईओ हैं। इनके नेतृत्व में रीप बेनिफिट ने पर्यावरण शिक्षा और समाधान से जुड़ी कई पहलें शुरू की हैं। अपने कार्यक्रमों के जरिए किशोरों और युवाओं के साथ मिलकर समस्याओं के समाधान खोजने में इन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। कुलदीप अशोका लीड चेंजमेकर, एमआईटी ग्लोबल स्टार्टअप वीकेंड, चेंजलूम फ़ेलोशिप जैसे अनगिनत सम्मान हासिल कर चुके हैं।

टिप्पणी

गोपनीयता बनाए रखने के लिए आपके ईमेल का पता सार्वजनिक नहीं किया जाएगा। आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *