November 29, 2023

सामाजिक उद्यमी कैसे बनें?

सामाजिक उद्यमी बनने के लिए आपको किन कौशलों की जरूरत है, वे कौन सी चुनौतियां है जिनका सामना आपको करना पड़ सकता है और वे कौन से पहलू हैं जहां आपको मदद की जरूरत पड़ती है।
7 मिनट लंबा लेख

सामाजिक उद्यमिता को कई बार समाजसेवा भर से जोड़कर देखा जाता है लेकिन यह इतने तक ही सीमित नहीं है। इसकी आधिकारिक परिभाषा के मुताबिक़, किसी सामाजिक, सांस्कृतिक और पर्यावरण से जुड़े मुद्दों पर विकास, फंडिंग, ज़मीनी समाधान को लेकर काम करना सामाजिक उद्यमिता कहलाता है। सरल शब्दों में, सामाजिक उद्यमिता से मतलब, उस उपक्रम से है जो आर्थिक लाभ की बजाय किसी सामाजिक भलाई को हासिल करने के उद्देश्य से किया जाता है। उदाहरणों से समझने के लिए विकास सेक्टर में ग़रीबी, बेरोज़गारी, लैंगिक असमानता और पर्यावरण से जुड़े मुद्दों पर हो रहे कामकाज पर गौर किया जा सकता है। ये मुद्दे आमतौर पर किशोरों और युवाओं को अधिक प्रभावित करते हैं, इसलिए इनसे जुड़ी परियोजनाओं का प्रभाव (इम्पैक्ट) अनंत संभावनाओं वाला होता है।

सामाजिक उद्यमिता की ज़रूरत पर गौर करें तो बात यहां से शुरू की जा सकती है कि आज के समय में भारतीय युवा कई तरह के अलगाव झेलता है। मुख्यधारा से यह अलगाव आर्थिक, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक स्तर पर हो सकता है। इसके अलावा, बढ़ती बेरोज़गारी ने पहले से ही हाशिये पर खड़े तबकों के युवा को और अधिक दरकिनार कर दिए जाते हैं। नीति निर्माता भी युवाओं को उपभोक्ता या कामगार की सीमित आर्थिक भूमिकाओं में ही देखते रहे हैं। ऐसे में सामाजिक उद्यमिता के जरिए, न केवल भारतीय युवाओं को देश और दुनिया के विकास का हिस्सा बनाया जा सकता है बल्कि एक नागरिक के तौर पर भी उनमें अधिक आत्मविश्वास पैदा किया जा सकता है।

लेकिन, अगर कोई आम युवा सामाजिक उद्यमी बनना चाहे तो इसके लिए उसे कुछ कुशलताओं, समझ और साधनों की जरूरत पड़ती है। इसी विषय पर वार्तालीप कोअलिशन का काम रहा है। वार्तालीप, अलग-अलग सेक्टर में काम करने वाले संगठनों का एक समूह है जो कि युवा केंद्रित  विकास पर काम करता है। इसके द्वारा संचालित कार्यक्रम चेंजलूम्स, अनगिनत युवा मंचों की एक ऐसी साझी पहल है जो सामाजिक उद्यमियों का सहयोग करने और उद्यमिता से जुड़ा एक तंत्र विकसित करने पर काम कर रही है।

कुछ साल पहले आई, वर्ल्ड इकनॉमिक फ़ोरम की एक रिपोर्ट के मुताबिक 38.3% सामाजिक उद्यम एक साल से कम समय में, लगभग आधे यानी 45.2% सामाजिक उद्यम एक से तीन साल में और 8.7% उद्यम चार से छह साल में बंद हो जाते हैं। केवल 5.2% उद्यम 10 साल से अधिक समय तक, बतौर एक संस्था अपना अस्तित्व बनाए रख पाते हैं। सामाजिक उद्यमियों की असफलताओं का कारण गिनवाते हुए मुख्य रूप से जो चार बातें कही जाती हैं, वे हैं –  उद्देश्य का स्पष्ट न होना, ज़रूरी कुशलताओं का अभाव, बदलते समाज और बाज़ार की समझ न होना और सही मूल्यांकन और बेहतरी के प्रयासों का अभाव।

Hindi Facebook ad banner for Hindi website

अगर आप एक नए सामाजिक उद्यमी हैं और इन नतीजों से बचना चाहते हैं, या फिर, अगर आप एक युवा हैं और करियर के तौर पर सामाजिक उद्यमिता में रुचि रखते हैं तो नीचे दी गई बातों पर गौर कर सकते हैं –

सामाजिक उद्यमिता के लिए जरूरी कौशल

1. किसी उद्देश्य के लिए लगातार प्रेरणा हासिल कर पाना

सामाजिक उद्यमी बनने के लिए युवाओं में सबसे जरूरी चीज उनके अंदर अपने उद्देश्य के लिए जुनून का होना है। उनमें बदलाव लाने की ज़िद होनी चाहिए। हमने देखा है जब कोई युवा इसकी शुरूआत करता है तो शुरू में तो वह बहुत जोश के साथ काम करता है। लेकिन समय के साथ यह जोश कम होता है जाता है। शुरूआती दौर में संस्था से जुड़ने वालों के साथ भी ऐसा हो सकता है। इंदौर में हद-अनहद संस्था की शुरूआत में हमने यह अनुभव किया संस्था से जुड़े वॉलंटीयर, जिन्हें हम सेकंड लाइन ऑफ लीडरशिप की तरह भी देख रहे थे, धीरे-धीरे अपनी रुचि खोने लगे। ऐसे में आप अपनी प्रेरणा बनाए रख सकें यह भी लीडर्स के लिए एक जरूरी कुशलता बन जाती है।

बतौर सामाजिक उद्यमी हममें एक ऐसी जगह बनाने का हुनर होना चाहिए जहां पर युवा कुछ सीख सके। इस मंच पर हमें उनके लिए इस तरह के मौके तैयार करने की ज़रूरत होती है जहां वे प्रयोग कर सकें और असफल भी हो सकें। इसके साथ ही, इस पूरी प्रक्रिया के दौरान उन्हें लगातार समर्थन देने की क्षमता भी हममें होनी चाहिए। यह प्रक्रिया तय करना और इसे बड़े पैमाने पर कर पाना बहुत ज़रूरी है।

किसी बिज़नेस आइडिया की तरह मुद्दों की पहचान करने और उन पर काम किए जाने की जरूरत है। | चित्र साभार: शिल्पा झवर

2. समस्या को गहराई से समझना और उसके नए हल निकालना

आप जिस भी मुद्दे को लेकर काम करना चाह रहे हैं, उसके बारे में गहराई से जानना जरूरी है। हमें समस्या की जड़ों और उसे बनाए रखने वाले कारकों पर अधिक ध्यान देने की जरूरत होती है।

किसी संस्था के सफल संचालन के लिए इसे पहली शर्त माना जाना चाहिए। इसके लिए लोगों या समुदाय के साथ लगातार संवाद करने की कुशलता होना बहुत काम आता है। आपके उद्देश्यों का स्पष्ट होना और इस पर लगातार बात होते रहना, आपको नए समाधानों की दिशा में ले जाता है। कई बार व्यक्तिगत या सामाजिक व्यवहार में परिवर्तन की वजह, हमारे उन प्रयासों से एकदम अलग हो सकती है जिन्हें हम एकमात्र समाधान मानकर कर रहे होते हैं।

असम में फार्म टू फ़ूड फाउंडेशन के सह-संस्थापक दीप ज्योति सोनू ब्रह्मा का कामकाज इसका एक उदाहरण है। दीपज्योति बताते हैं कि ‘जब तक युवा समस्या को ठीक तरह नहीं समझता है, वह उसके हल का हिस्सा नहीं बनता है। बदलाव की ज़िम्मेदारी में भागीदार नहीं बनता है। ऐसा होने तक उनमें किसी तरह का मानसिक बदलाव लाना संभव नहीं है। अपने फाउंडेशन में हम बच्चों के साथ काम करते हैं। बच्चे अपने स्कूल में न्यूट्रीशन गार्डन बनाते हैं। पढ़ाई में जहां वे इसे साइंस-मैथ्स लैब की तरह इस्तेमाल करते हैं। वहीं जलवायु परिवर्तन, आर्थिक गतिविधियों की समझ और उनका आत्मविश्वास बढ़ाने का काम भी इससे हुआ है। अब ये बच्चे कहीं भी रहेंगे, हमेशा खेती से जुड़े रहेंगे।’

दीप ज्योति आगे जोड़ते हैं कि ‘इसका एक दिलचस्प नतीजा यह रहा कि बच्चों में ओनरशिप का भाव आया। एक बच्ची सिर्फ इसलिए करेला खाने लगी क्योंकि वह उसे उगा रही थी। समस्या को पूरी तरह से समझने पर ही, सही और नई तरह के समाधान निकल पाते हैं।’

3. आपसी सहयोग

एक सामाजिक उद्यमी के तौर पर आपको लोगों को साथ लाने की ज़रूरत होती है। यह प्रयास दो स्तरों पर किया जा सकता है, एक समुदाय के स्तर पर और दूसरा संस्थाओं के स्तर पर। समुदाय के स्तर पर बात करें तो ज़्यादातर लोग, ख़ासकर युवा अपने एक सीमित दायरे में रहते हैं और उनका विमर्श भी उसी में सीमित होता है। लोगों को उनके वर्ग, समुदाय, आर्थिक-शैक्षणिक स्तर से परे एक ऐसे मंच पर लाने की ज़रूरत होती है जहां वे खुलकर बात कर सकें। सामाजिक उद्यमियों का काम यह मंच तैयार करना है।

समुदाय के स्तर पर आपसी सहयोग का एक उदाहरण यह हो सकता है कि विशेष समुदाय के बच्चों का, किसी यूनिवर्सिटी-कॉलेज के छात्रों के साथ संवाद संभव करवाना। यह दो दुनियाओं को एक साथ लाने जैसा हो सकता है। ऐसा करते हुए, हमारे लीडर्स इस बात पर भी ज़ोर देते हैं कि कार्यक्रम के दौरान वे आपस में कितना सीख रहे हैं। यानी, अपने साथियों को देखकर सीखने की प्रक्रिया (पीयर लर्निंग) चल रही है या नहीं। बतौर लीडर आपको सुनिश्चित करना होगा कि यह सीखना-सिखाना दो लोगों और दो संस्थाओं दोनों के स्तर पर चलते रहना चाहिए।

जानकारी युवाओं के पास है, उन्हें उस जानकारी के सही इस्तेमाल के बारे में बताना है।

सोशल मीडिया पर हर किसी ने अपने इकोचैंबर बना लिए हैं। आज युवाओं को गाइड की जरूरत है, और तकनीक को इस्तेमाल करते हुए आपको उन्हें रास्ता दिखाना है। जानकारी उनके पास है, उन्हें उस जानकारी के सही इस्तेमाल के बारे में बताना है। यही सहयोग युवा को चाहिए। एक सामाजिक उद्यमी के तौर पर आप खुद को बेहतर बनाने के लिए कौन सी जानकारी हासिल कर रहे हैं, वह कितनी विश्वसनीय है और उसका स्रोत क्या है, इस पर भी आपका ध्यान हमेशा होना चाहिए। इसके लिए अपने जैसी अन्य संस्थाओं से जुड़ना और चर्चा करना, आपसी सहयोग का बेहतरीन तरीक़ा है।

4. अनिश्चितता से निपटना

अनिश्चितताओं से निपटने की क्षमता किसी भी तरह के उद्यमी की सबसे बड़ी खूबी होती है। स्वाभाविक है कि यह सामाजिक उद्यम की शुरूआत में हासिल की जाने वाली कुशलता नहीं हो सकती है और समय के साथ आपको इसे विकसित करना होगा। कई सर्वे बताते हैं कि लीडरशिप की क्षमता का आकलन पहले जहां रणनीति बनाने, योजना तैयार करने और उसे लागू करने को लेकर होता था, अब इसकी जगह लचीलेपन ने ली है। यानी बदलती हुई परिस्थितियों में कैसे तत्काल फैसले लेकर अधिकतम परिणाम हासिल किए जा सकते हैं, इससे लीडर की क्षमता तय होती है। फिर चाहे वह कोविड-19 महामारी, वैश्विक मंदी के चलते आया बदलाव हो या सरकारी नीतियों के बदल जाने से उपजी परिस्थितियां।

5. शक्ति असंतुलन पर काम करना

बतौर एक युवा लीडर आपको शक्ति असंतुलन की समझ होनी चाहिए। यह असंतुलन शिक्षा, लिंग, जाति-समुदाय, गांव-शहर किसी भी स्तर पर हो सकता है। इस असंतुलन के होने की जानकारी होना या समुदाय तक पहुंचाना, इसे कम करने की दिशा में पहला कदम हो सकता है। लखनऊ में यह एक सोच फाउंडेशन के फ़ाउंडर और कन्वीनर मोहम्मद ज़ीशान अंसतुलन को समझने और उसकी वजहों को स्वीकार करने पर जोर देते हैं। वे कहते हैं कि ‘हमारे कार्यक्रम के चार हिस्से हैं। सोच, समझ, संवाद और समावेश। युवाओं की सोच को जानना, उसे समझने की कोशिश करना, उनसे लगातार संवाद करना और उन्हें स्वीकार करना। हम यूथ अड्डा करते हैं लोगों से तमाम विषयों पर चर्चा करते हैं। ऐसी जगहों पर ही हमें पिछड़े समुदायों के युवा लीडर्स मिलते हैं जो समय के साथ अपने समुदाय के पॉइंट पर्सन बन जाते हैं। आगे चलकर वे किसी खास मुद्दे को लेकर काम करते हैं और सशक्तीकरण करते हैं। ऐसे लोगों को ताकतवर बनाकर, उनका हाथ थामे रहकर हम शक्ति असंतुलन को कम कर सकते हैं।’

सामाजिक उद्यमियों के सामने आने वाले चुनौतियां

1. इकोसिस्टम का न होना

सिनर्जी संस्थान के सह-संस्थापक अजय पंडित बताते हैं कि ‘युवा उद्यमियों के सामने पहली चुनौती अपनी संभावनाओं को पहचानना होता है। इस के बाद उन्हें अपने परिजनों को भी इसके लिए राज़ी करना पड़ता है। ग्रामीण इलाक़ों में युवाओं के साथ यह कर पाना खासतौर पर मुश्किल होता है। परिवार के विरोध के अलावा, खुद अपने कम्फ़र्ट ज़ोन से बाहर आना उनके लिए बहुत चुनौतीपूर्ण होता है। यहीं पर हमें सामाजिक उद्यमिता से जुड़े इकोसिस्टम की जरूरत होती है। संस्थाएं जो अपने आप में मज़बूत हों और युवाओं को भी मज़बूत बनाएं।’ इस तरह युवा सामाजिक उद्यमियों को इकोसिस्टम की अनुपस्थिति से उपजी असुविधाओं को झेलते हुए, यह इकोसिस्टम बनाने की दिशा में बढ़ना होता है।

नीति निर्माताओं से आपको जहां पर सबसे अधिक सहयोग की जरूरत है, वह यही मोर्चा है। हमें युवा नेतृत्व और भागीदारी को सुनिश्चित करने के एक देशव्यापी इकोसिस्टम बनाने की जरूरत है। इसमें सरकारें युवाओं को ज़मीनी शिक्षा और संसाधनों तक पहुंच मुहैया करवा सकें तो कमाल हो सकता है।

2. सामाजिक धारणा

मोहम्मद ज़ीशान कहते हैं कि ‘सामाजिक उद्यमिता को किसी स्वयंसेवी कार्यक्रम की तरह देखा जाता है। यह कुछ हद तक सही होने के बाद भी बहुत अलग है। किसी बिज़नेस आइडिया की तरह मुद्दों की पहचान करने और उन पर काम किए जाने की जरूरत है। फिर उस पर अभियान बनाने और चलाने की प्रक्रियाओं बात होनी चाहिए। हमें यह समझने-समझाने की जरूरत है कि यह सिर्फ एनजीओ का काम नहीं है।’ समाजिक उद्यमिता को समाजसेवा या परोपकार के काम से अलग करके देखे जाने की जरूरत है। इसके लिए नीतिगत सहयोग और सामाजिक जागरुकता दोनों की जरूरत है।

3. अकेलापन

सामाजिक उद्यमियों के सामने आने वाली एक व्यक्तिगत चुनौती है, अकेलापन। किसी भी अन्य क्षेत्र के लीडर की तरह सामाजिक उद्यमियों को भी लगातार मानसिक दबाव, शारीरिक थकान और असंतुलित जीवनशैली का सामना करना पड़ता है। एक आंकड़े के मुताबिक 70 प्रतिशत से अधिक सामाजिक लीडर यह महसूस करते हैं कि उन्हें उनके काम का पर्याप्त भुगतान नहीं मिल रहा है। आपको ऐसा मंच और माहौल तैयार करने की भी जरूरत होगी जहां आप अपनी तरह के अन्य लोग जो इस क्षेत्र में काम कर रहे हैं, उनके साथ मिलकर एक समुदाय बनाएं। अपनी चुनौतियां, सीख, नवाचार उनसे साझा करके समाधान निकालने की कोशिश करें।

इस आलेख को तैयार करने में वार्तालीप कोअलिशन के सदस्यों – अजय पंडित, दीप ज्योति सोनू ब्रह्मा और मोहम्मद ज़ीशान ने सहयोग दिया है।

अधिक जानें

  • युवा सामाजिक उद्यमियों के लिए हर साल आने वाले कुछ फ़ेलोशिप कार्यक्रमों के बारे में जानें
  • जानें दिल्ली के सरकारी स्कूलों में हुए उद्यमिता शिक्षा प्रयोग से क्या पता चलता है?

लेखक के बारे में
शिल्पा झवर-Image
शिल्पा झवर

शिल्पा झवर एक सामाजिक उद्यमी हैं। उन्हें समुदाय और संगठनात्मक विकास, ख़ासकर युवा विकास सेक्टर में, से जुड़े काम करने का दो दशकों का अनुभव है। वर्तमान में शिल्पा ‘कम्युटिनी द यूथ कलेक्टिव’ और ‘वार्तालीप कोअलिशन’ के साथ युवा मुद्दों पर संवाद खड़ा करने में सहयोग कर रही हैं। वे मध्य प्रदेश में शिक्षा और युवा विकास पर काम कर रही संस्था हद-अनहद की सह-संस्थापक हैं। उन्होंने अगली पीढ़ी को नेतृत्व सौंपने से पहले आठ वर्षों तक हद-अनहद का नेतृत्व किया। इससे पहले वे कई प्रमुख सामाजिक संस्थाओं अलग-अलग लीडरशिप भूमिकाएं निभा चुकी हैं।

टिप्पणी

गोपनीयता बनाए रखने के लिए आपके ईमेल का पता सार्वजनिक नहीं किया जाएगा। आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *