July 22, 2024

फोटो निबंध: कैसे औद्योगीकरण ने एन्नोर को तबाही की तरफ़ धकेल दिया है

कभी उपजाऊ आर्द्रभूमि रहा एन्नोर अब भीषण पर्यावरण संकट का सामना कर रहा है जिसने लोगों के स्वास्थ्य और आजीविका को बुरी तरह प्रभावित किया है।
10 मिनट लंबा लेख

चेन्नई के उत्तरी भाग में स्थित एन्नोर एक उपजाऊ, खारे जल वाली आर्द्रभूमि है, जिसके चारों ओर बड़े-बड़े दलदली जंगल (मैंग्रोव) हैं। कोसास्थलैयार नदी, एन्नोर नदी और बंगाल की खाड़ी से घिरा यह इलाका विभिन्न प्रकार की पक्षी प्रजातियों को आश्रय देता है। पहले, एन्नोर की ज़मीन में नमक की खानें हुआ करती थीं और यहां पर खेती भी की जाती थी। लेकिन अब यह हरा-भरा इलाका यहां के लोगों के रहने लायक नहीं रह गया है। 1960 के दशक में तमिलनाडु सरकार ने एन्नोर-मनाली क्षेत्र को पेट्रोकेमिकल और कोयला आधारित उद्योगों वाले क्षेत्र के रूप में वर्गीकृत करने की पहल की थी। अब ​​यह क्षेत्र 30 से अधिक लाल श्रेणी के उद्योगों का घर है।

एन्नोर के ज़्यादातर निवासी, ख़ासतौर पर वे जो कामकाजी तबके से आते हैं या अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदायों से संबंधित हैं, आजीविका के लिए कोसास्थलैयार नदी और बंगाल की खाड़ी में मछली पकड़ने पर निर्भर हैं। इनमें समुदायों में इरुलर जनजाति और सेमदादावर मछुआरा समुदाय भी शामिल हैं। लेकिन उत्तरी चेन्नई थर्मल पावर स्टेशन, एन्नोर थर्मल पावर स्टेशन, चेन्नई पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड और अदानी बंदरगाहों जैसे आस-पास के उद्योगों से होने वाला उत्सर्जन और कचरा, पर्यावरण को ख़राब करता है। ये हवा और पानी को प्रदूषित करते हैं और लोगों के स्वास्थ्य और आजीविका को प्रभावित करते हैं।

किनारे लगे बहुत सारे नाव_समुद्री जीवन
एन्नोर में मछली पकड़ना आय का मुख्य स्रोत है। आस-पास के ज़्यादातर गांव अपनी आजीविका के लिए कोसस्थलैयार नदी और बंगाल की खाड़ी में मछली पकड़ने पर निर्भर हैं।

एन्नोर में तबाही का एक मुख्य कारण उत्तरी चेन्नई थर्मल पावर स्टेशन (एनसीटीपीएस) है। इसे 1994 में तमिलनाडु जनरेशन एंड डिस्ट्रीब्यूशन कॉर्पोरेशन लिमिटेड (टीएएनजीईडीसीओ) द्वारा स्थापित किया गया था। बिजली उत्पादन के लिए बना एनसीटीपीएस, इस प्रक्रिया के दौरान यह कोसास्थलैयार नदी में भारी मात्रा में गर्म पानी छोड़ता है, जिससे समुद्री जीवन नष्ट हो जाता है और मछुआरा समुदायों पर गंभीर प्रभाव पड़ता है। इस प्लांट की पाइपलाइन में फ्लाई ऐश पायी जाती है और नज़दीकी जलस्रोतों में छोड़ी जाती है, जिन्हें ऐश पॉन्ड कहा जाता है। फ़्लाई ऐश, वह राख है जो कोयले के जलने से उत्पन्न होती है और इसमें जहरीले रसायन होते हैं।

हालांकि टीएएनजीईडीसीओ पहले ही एनटीपीसीएस को दूसरे और तीसरे चरण में ले जा रहा है। लेकिन फिर भी यहां 1994 में पहले चरण के दौरान बिछाई गई पाइपलाइनों को भी नहीं बदला गया है। फ्लाई ऐश पानी में घुलकर पुरानी पाइपलाइनों से होकर कोसास्थलैयार नदी में रिसती है और नदी के क्षरण का प्रमुख कारण बनती है। केवल एनसीटीपीएस ही नहीं बल्कि 1970 के दशक की शुरूआत में स्थापित एन्नोर थर्मल पावर स्टेशन (ईटीपीएस) भी प्रतिदिन 2,500 टन फ्लाई ऐश उत्सर्जित करता है। परिणामस्वरूप, इलाक़े में मछलियां और झींगे बेस्वाद हो गए हैं। यहां तक कि उनका रंग भी भूरा हो गया है। एन्नोर में 8,000 से ज़्यादा नियमित मछुआरे और इरुलर जनजाति के 1,000 सदस्य हैं। इनकी आजीविका पूरी तरह से मछली पकड़ने पर निर्भर है और उनके लिए यह एक भयानक स्थिति है।

फेसबुक बैनर_आईडीआर हिन्दी
हाथों मे झींगा_समुद्री जीवन
कोसस्थलैयार नदी में हाथ से एकत्रित झींगे को थामे एक आदिवासी महिला। ईटीपीएस द्वारा छोड़ी गई फ्लाई ऐश के कारण होने वाले प्रदूषण के कारण झींगे भूरे रंग के दिखाई देते हैं।

फ्लाई ऐश न केवल जल प्रदूषण का कारण बनती है, बल्कि वायु प्रदूषण में भी योगदान देती है। राख मिली हवा के कारण क्षेत्र के निवासियों को कई तरह के स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इससे कैंसर और तपेदिक जैसी बीमारियां और त्वचा और श्वसन संबंधी कई बीमारियां होने की संभावना बढ़ जाती है।

झींगा पकड़ती महिलाएं__समुद्री जीवन
दो आदिवासी महिलाएं, गोविंथम्मल और उनकी सहेली, कोसस्थलैयार नदी में हाथ से झींगा पकड़ रही हैं।

एन्नोर में मछुआरों द्वारा पकड़ी गई मछलियां उनकी आजीविका के लिए पर्याप्त हुआ करती थीं। अब, ज़्यादातर प्रजातियों के लुप्त हो जाने से जलीय खाद्य श्रृंखला पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है, जिससे इलाक़े में उपज के लिए उपलब्ध संसाधन कम हो रहे हैं। नतीजतन, मछुआरों को ठेके पर मिलने वाले, सीमित दैनिक मजदूरी वाले काम खोजने पड़ रहे हैं। जैसे कारखानों में माली, चौकीदार या सुपरवाइजर की नौकरी वगैरह। मछली पकड़ने के लिए उपयुक्त उपकरणों की कमी के कारण जनजातीय समुदायों को अतिरिक्त समस्याओं का सामना करना पड़ता है। वे आमतौर पर झींगा पकड़ने के लिए अपने हाथों का इस्तेमाल करते हैं और इसके चलते लगातार प्रदूषण के संपर्क में रहते हैं। चूंकि वे पीढ़ियों से यह काम करते आ रहे हैं इसलिए उनके लिए अपने पारंपरिक काम को छोड़ना मुश्किल है।

तरल का रिसाव_समुद्री जीवन
टूटी हुई पाइपलाइनों के कारण तरल राख दिन में कई बार आवासीय क्षेत्र और कोसास्थलैयार नदी में रिसती है।

अपनी आजीविका और स्वास्थ्य पर खतरे के कारण एन्नोर क्षेत्र में रहने वाले कई लोग यहां से चले गए हैं। सेप्पकम और कुरुवीमेदु जैसे कुछ गांव, जिन्हें सरकार द्वारा अभी तक विस्थापित नहीं किया गया है, विनाश के कगार पर हैं। सेप्पकम की निवासी महेश्वरी कहती हैं, “इस इलाके में हर किसी को स्वास्थ्य संबंधी समस्या है लेकिन हमारे यहां कोई अस्पताल नहीं है। ज़्यादातर बच्चों के पैरों में त्वचा का संक्रमण है क्योंकि वे फ्लाई-ऐश की धूल से सनी सड़क पर खेलते हैं। हमारे घर और पर्यावरण राख की धूल से भरे हुए हैं और इसी में हम हर समय सांस लेते हैं। औद्योगिक विकास से पहले हमें अच्छी गुणवत्ता वाला भूजल मिलता था। अब भूजल के खारा और जहरीला हो जाने के बाद हमें पीने का पानी ख़रीदना पड़ता है। हमारे गांव की हालत दिन-ब-दिन खराब होती जा रही है।”

पैर पर एलर्जी के निशान_समुद्री जीवन
ईटीपीएस राख तालाब के निकट होने के कारण, सेप्पकम गांव में बाहर खेलने वाले अधिकतर बच्चे त्वचा संबंधी एलर्जी से पीड़ित होते हैं।

मनाली, उत्तरी चेन्नई का वह भाग जो शहर का अंदरूनी हिस्सा है और यहां से निकलने वाला अपशिष्ट और नालियां भी बकिंघम नहर से एन्नोर तक पहुंचते हैं। सार्वजनिक क्षेत्र की रिफाइनिंग कंपनी चेन्नई पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड (सीपीसीएल) प्रतिदिन मनाली से बकिंघम नहर में तेल छोड़ती है। 4 दिसंबर, 2023 को, सीपीसीएल न मिचाउंग चक्रवात के दौरान बकिंघम नहर में अनुमानित 24,000 लीटर कच्चा तेल पंप किया। नहर से कच्चा तेल बंगाल की खाड़ी, जैव विविधता से भरपूर एन्नोर खाड़ी और कोसस्थलैयार नदी में फैल गया। इससे आसपास के पर्यावरण को नुकसान पहुंचा और इलाक़े का पानी मछली पकड़ने लायक़ नहीं रह गया। बाढ़ के कारण तेल का रिसाव एन्नोर के निवासियों के घरों तक पहुंचा जिससे उनका रहना मुश्किल हो गया। 

पर्यावरण के जानकार नित्यानंद जयरामन का कहना है कि “2017 में एन्नोर समुद्र में इसी तरह का तेल रिसाव हुआ था। पहले हम सफाई के लिए बाल्टी का इस्तेमाल करते थे, इस बार हमें बाथरूम मग का इस्तेमाल करना पड़ा। कुछ भी नहीं बदला है – स्थिति पहले जैसी ही निराशाजनक है।” चेन्नई को एक आधुनिक महानगर के रूप में जाना जाता है, इसके बावजूद सरकार ने उत्तरी चेन्नई के लोगों को तेल रिसाव को साफ करने के लिए आधुनिक तकनीक या संसाधन उपलब्ध नहीं कराए हैं।

पानी में तरल रिसाव_समुद्री जीवन
एन्नोर मैंग्रोव में प्रतिदिन होने वाले तेल रिसाव का एक हिस्सा कोसास्थलैयार नदी में फैल जाता है और उसे प्रदूषित करता है।

तेल रिसाव के तुरंत बाद, 2,301 मछुआरा परिवार प्रभावित हुए तथा 787 नावें नष्ट हो गईं। मछुआरों ने नदी और मुहाने पर मछलियों की मौत होने और कई पशु-पक्षियों के प्रभावित होने की बात भी कही है। जब मछली पकड़ने के अवसर नहीं मिलते तो इन समुदायों को अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। वे कहते हैं कि 12,500 रुपये का प्रस्तावित मुआवजा अपर्याप्त है। जहरीले तेल और उसकी गंध के कारण, रिसाव के नज़दीक बसे गांवों के निवासी विभिन्न शारीरिक समस्याओं जैसे चक्कर आना, त्वचा और आंखों में जलन आदि से पीड़ित हो रहे हैं। 

हालांकि अधिकारियों ने बाद में नदी में तैरते तेल को साफ कर दिया लेकिन तब तक नदी का तल पूरी तरह से बर्बाद हो चुका था और पानी में उच्च घनत्व वाले तेल कण अभी भी मौजूद हैं। तेल रिसाव का प्रभाव 20 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ था जिसमें तिरुवोटियूर, नेट्टुकुप्पम और एन्नोर कुप्पम जैसे कई आवासीय क्षेत्र भी शामिल थे। अब कोई भी एन्नोर की मछली नहीं खाना चाहता है, यहां तक कि स्थानीय लोग भी नहीं, क्योंकि हर मछली में तैलीय गंध होती है। कुछ लोग 1,000 रुपये की मछली का स्टॉक मात्र 100 रुपये में खरीदना चाहते हैं।

इकट्ठा हुआ रिसाव_समुद्री जीवन
सीपीसीएल से तेल रिसाव के परिणामस्वरूप कोसास्थलैयार नदी के अधिकांश मैंग्रोव नष्ट हो गए।

प्रदूषणकारी उद्योगों के कारण होने वाले तेल रिसाव के अलावा, समुद्री जीवन को नुकसान पहुंचाने का एक और महत्वपूर्ण स्रोत एन्नोर में कामराजर और अदानी बंदरगाहों की मौजूदगी है। ये बंदरगाह नदी तल से कीचड़ हटाते हैं जो जहाजों के प्रवेश को सुविधाजनक बनाने के लिए एक प्राकृतिक अवरोध के रूप में कार्य करता है। इससे समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र बाधित होता है। 

कट्टुपल्ली गांव के निवासी मूर्ति बताते हैं कि समुद्र की सतह पर मौजूद मिट्टी मछलियों के प्रजनन और उपज के लिए कितनी महत्वपूर्ण है। वे कहते हैं कि “30 से 35 साल पहले, हमें समुद्र में कई तरह की मछलियां मिलती थीं जिनमें वंजारम, मावलासी, सेरा, ब्लैक वावल और पारा शामिल थीं।” आजकल कामराजर और अदानी बंदरगाहों द्वारा समुद्र की मिट्टी को खोदने का असर समुद्री मछली पकड़ने पर पड़ता है। इस मिट्टी का उपयोग विभिन्न स्थानों- कट्टुपल्ली, कोडापाटू, कालांजी, लाकपाट और कोइराडी में टीले बनाने के लिए किया जाता है । यह टीले समुद्र में लगभग छह किलोमीटर तक फैले हुए हैं। लेकिन अब इस खुदाई के कारण, न तो मिट्टी बची है और न ही समुद्री संसाधन।

अदानी बंदरगाहों में से एक का विस्तार पर्यावरणीय परिणामों से जुड़े सवालों के कारण रोक दिया गया था। इसका कारण था कि एन्नोर चेन्नई के बाकी हिस्सों के लिए बाढ़ अवरोधक के रूप में कार्य करता है। बंदरगाह का विस्तार करने से प्रकृति, मैंग्रोव, बैकवाटर और तटीय क्षेत्र नष्ट हो सकते हैं जिससे पूरा चेन्नई प्रभावित हो सकता है।

पैरों पर लगा रसायन_समुद्री जीवन
तेल रिसाव के बाद, कोसस्थलैयार नदी को मछुआरों ने बिना किसी सुरक्षा उपाय के साफ किया। तेल में मौजूद ज़हरीले रसायनों ने उनकी त्वचा को बुरी तरह प्रभावित किया।

एन्नोर में एक और प्रदूषण फैलाने वाला कारक कोरोमंडल फैक्ट्री है। इसकी समुद्री पाइपलाइन से 26 दिसंबर, 2023 को अमोनिया गैस का रिसाव हुआ था। 27 दिसंबर, 2023 से लेकर 100 दिनों से ज़्यादा समय तक लोगों ने फैक्ट्री को बंद करने के लिए विरोध प्रदर्शन किया। तमिलनाडु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (टीएनपीसीबी) ने कोरोमंडल फैक्ट्री पर पर्यावरण क्षतिपूर्ति के लिए 5.92 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया है।

विरोध-प्रदर्शन करती महिलायें _समुद्री जीवन
कोरोमंडल फैक्ट्री के सामने विरोध प्रदर्शन कर इसे बंद करने की मांग करते हुए लगभग 12 गांवों के लोग एकजुट हुए।

एन्नोर के प्रभावित क्षेत्र की रहने वाली विमला कहती हैं कि “हम इस कंपनी के बंद होने के बाद ही चैन से रह पाएंगे। अब हम हमेशा अमोनिया के डर में रहते हैं। रिसाव छोटा था लेकिन अगर यह 15 मिनट से ज़्यादा समय तक होता तो आज हम ज़िंदा नहीं होते।” लेकिन, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल की दक्षिणी बेंच के फ़ैसले ने कोरोमंडल इंटरनेशनल लिमिटेड को अमोनिया अपतटीय पाइपलाइन गतिविधि को फिर से शुरू करने की अनुमति दे दी थी। यह फ़ैसला कोरोमंडल इंटरनेशनल लिमिटेड को तमिलनाडु समुद्री बोर्ड और भारतीय शिपिंग रजिस्टर से मंज़ूरी मिलने के बाद, टीएनपीसीबी और औद्योगिक सुरक्षा और स्वास्थ्य निदेशालय से अनापत्ति प्रमाण पत्र प्राप्त कर लेने के बाद दिया गया था।

इस फ़ैसले के बाद, अधिकारियों ने विरोध प्रदर्शनों को पूरी तरह से रोक दिया।

दो धावक_समुद्री जीवन
बर्मा के मैदान में फुटबॉल खिलाड़ी अभ्यास कर रहे हैं। प्रदूषण के कारण खिलाड़ियों को सांस लेने में दिक्कत हो रही है और उनका स्टैमिना भी कम हो रहा है।

एन्नोर में लोगों, भूमि और जल निकायों के प्रति उद्योगों की लापरवाही, मौजूदा समस्याओं और क्षेत्र के क्रमिक विनाश का मूल कारण है। यहां के निवासी एन्नोर को बचाने के लिए जल्द से जल्द उपाय करने की मांग कर रहे हैं। वे लाल श्रेणी के उद्योगों से पर्यावरण कानूनों का पालन करने, विस्तार परियोजनाओं और नए निर्माण को रोकने की मांग करते हैं। इन उद्योगों द्वारा अपशिष्ट निपटान स्थल के रूप में उपयोग की जाने वाली कोसस्थलैयार नदी उनकी चिंताओं का केंद्र बिंदु है। सरकार जहां नदी को पुनर्जीवित करने के प्रयास कर रही है, स्थानीय लोग इस बात पर जोर देते हैं कि उनकी विशेषज्ञता और ज़रूरतों, विशेष रूप से पारंपरिक ज्ञान वाले मछुआरों की ज़रूरतों पर विचार किया जाना चाहिए। इसके अलावा, जो लोग पर्यावरणीय में गिरावट के कारण पारंपरिक आजीविका खो चुके हैं, वे जीवित रहने के लिए सरकार द्वारा प्रदान की जाने वाली नौकरियों की मांग कर रहे हैं।

लेख में इस्तेमाल सभी तस्वीरें लेखकों द्वारा ली गई हैं।

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अधिक जानें 

  • एन्नोर पर्यावरण संकट के बारे में गीत पोरोमबोके सुनें (सामान्य संसाधन)।
  • एन्नोर के लोगों द्वारा पर्यावरण-पुनर्स्थापन के लिए तैयार की गई योजना के बारे में पढ़ें।
  • जानें कि पश्चिम बंगाल के मछुआरे खेती की ओर क्यों रुख कर रहे हैं।

लेखक के बारे में
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नूरन्निशा

नूरन्निशा उत्तरी चेन्नई की एक फ़ोटोग्राफ़र हैं और वंचित समुदायों के मुद्दों पर बात करने के लिए फ़ोटोग्राफ़ी का इस्तेमाल करती हैं। वे वर्तमान में लोयोला कॉलेज से डिजिटल पत्रकारिता में स्नातक की डिग्री हासिल कर रही हैं। नूरन्निशा चेन्नई क्लाइमेट एक्शन ग्रुप के साथ स्वयंसेवक के रूप में काम करती हैं।

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हाइरुन्निशा

हाइरुन्निशा उत्तरी चेन्नई के सरकारी मॉडल स्कूल में फोटोग्राफी प्रशिक्षक के रूप में काम करती हैं। यहां वे पिछले एक साल से पलानी स्टूडियो के जरिए वंचित समुदायों के छात्रों को सशक्त बना रही हैं। उन्होंने तमिल पत्रिका विकटन के लिए एक छात्र रिपोर्टर और फ़ोटोग्राफ़र के रूप में भी काम किया है। इसके अतिरिक्त, हाइरुन्निशा एक यूआई/यूएक्स डिज़ाइनर हैं और चेन्नई की हालिया ख़बरों को दर्ज करती हैं। वे पिछले तीन वर्षों से चेन्नई क्लाइमेट एक्शन ग्रुप के साथ स्वयंसेवा कर रही हैं। वे लोयोला कॉलेज से डिजिटल पत्रकारिता में स्नातक की डिग्री हासिल कर रही हैं।

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