January 18, 2023

भारत और अफ़्रीका में कैसे समाजसेवी संगठन समुदाय संचालित परिवर्तन को बढ़ावा दे रहे हैं

वैश्विक समाजसेवी संस्था, ब्रिजस्पैन द्वारा जारी एक रिपोर्ट का सारांश जिसमें समुदाय संचालित परिवर्तन (कम्युनिटी ड्रिवेन चेंज) के कुछ सफल उदाहरणों पर बात की गई है।
9 मिनट लंबा लेख

मुंबई में रहने वाले हुसैन खान एक मुस्लिम धार्मिक विद्वान और समाजसेवी हैं। क़रीब एक दशक पहले तक वे महिला मंडल फेडरेशन (एमएमएफ) के मुखर आलोचक थे। एमएमएफ एक ग़ैर-सरकारी संगठन है जो महिलाओं के लिए काम करता है और बीते बीस सालों से इसे वैश्विक प्रतिष्ठा प्राप्त समाजसेवी संस्था ‘कोरो’ का समर्थन हासिल है। एक समय हुसैन ने अनौपचारिक बस्तियों में रहने वाली महिलाओं की मदद करने के एमएमएफ के प्रयासों पर सवाल उठाया था। वे आशंकित थे कि कोई संस्था इन पिछड़ी महिलाओं को अपने समुदाय के नेतृत्व के लिए किस तरह प्रशिक्षित कर सकती है। दिलचस्प यह था कि एमएमएफ खान को एक विरोधी की तरह नहीं देख रहा था, इसका विश्वास था कि वे एक दिन अच्छे सहयोगी बन सकते हैं और समय बीतने के साथ ऐसा हुआ भी।

आज हुसैन खान के सहयोग की बदौलत ही मदरसे (स्कूल) में एमएमएफ की बैठकें आयोजित की जाती हैं। यह महत्वपूर्ण इसलिए है क्योंकि परंपरागत रूप से महिलाओं को मदरसे से अलग रखा जाता है। खान ने ‘क़ुरान और संविधान’ शीर्षक से एक पाठ्यक्रम भी विकसित किया है जो समुदाय के सदस्यों को उनके संवैधानिक अधिकारों के बारे में बताता है। साथ ही, उन्हें उनके ज़रूरतमंद पड़ोसियों की मदद करने की उनकी नैतिक जिम्मेदारियों की याद भी दिलाता है।

खान का हृदय परिवर्तन कैसे हुआ?

एमएमएफ समेत कोरो ने तीन साल तक खान के साथ शहरी अनौपचारिक बस्तियों में रहने वाली महिलाओं की चुनौतियों को लेकर संवाद किया। कई बैठकों में हुई इस बातचीत में घरेलू हिंसा और शिक्षा तक कम पहुंच जैसे चुनौतीपूर्ण मुद्दे शामिल थे। कोरो इन बैठकों में शामिल होने के लिए अच्छी स्थिति में था क्योंकि इनका नेतृत्व आमतौर पर दलित1 और मुस्लिम समुदाय के लोग करते हैं। ये खुद उन समुदायों का हिस्सा होते हैं जिनके लिए काम करते हैं। बाद में, खान को कोरो की समता फैलोशिप में चुना गया जो एक साल का प्रशिक्षण कार्यक्रम था। यहां उन्होंने न केवल भारतीय संविधान के मूल्यों को समझा बल्कि सामुदायिक नेतृत्व और अभियानों को बनाने-चलाने का कौशल भी हासिल किया।

यह कोई संयोग नहीं है कि खान अब उसी ज़मीनी समूह के साथ काम करते हैं जिसका पहले उन्होंने विरोध किया था। यह कोरो के उस मूल नज़रिए से हासिल हुई उपलब्धि है जिसके मुताबिक समुदाय संचालित परिवर्तन (कम्यूनिटी ड्रिवेन चेंज) लाने के लिए, लोग जहां हों वहीं उनसे मिलना चाहिए और उनका भरोसा जीतना चाहिए। यह विचार कहता है कि दलित, मुसलमान और हमेशा से हाशिए पर रह गए ऐसे समुदायों के सदस्यों में उनकी ‘आंतरिक शक्ति’ को जगाना ही कोरो का उद्देश्य है। इससे वे खुद अपने अधिकारों की बात कर सकते हैं और जीवन में समान मौके और तरक्की हासिल कर सकते हैं।

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इस तरह के ज़मीनी और समुदाय-संचालित परिवर्तन कैसे होते हैं, यह समझने के लिए ब्रिजस्पैन ग्रुप की टीम ने ग्लोबल साउथ में कोरो और तीन अन्य गैर-सरकारी संगठनों पर शोध और उनका इंटरव्यू करने में कई महीने बिताए। ये तीन एनजीओ – मुंबई स्थित ‘यूथ फॉर यूनिटी एंड वॉलंटरी एक्शन’ (युवा – YUVA), केन्या की ‘शाइनिंग होप’ (SHOFCO) और दक्षिण अफ्रीका के गक्बेर्हा (पहले पोर्ट एलिजाबेथ) टाउनशिप में काम कर रही संस्था ‘उबुंटू पाथवेज’ (Ubuntu Pathways) थे।

हमारे शोध ने पुष्टि की कि समुदाय द्वारा संचालित परिवर्तन लाना चुनौतीपूर्ण है। लिंग, जाति, वर्ग और धर्म से संबंधित, कई स्तरों पर चलने वाली पॉवर डायनेमिक्स अक्सर इस तरह के बदलावों की बड़ी बाधा बनती है। लेकिन हमने यह भी जाना कि इसके बावजूद चार गैर-सरकारी संगठनों ने इन चुनौतियों का सफलता से मुकाबला किया है। ये सामुदायिक समूहों को उनके खुद के समाधान निकालने के लिए तैयार करने में एक सहयोगी भूमिका निभाते हैं। इन संगठनों की सफलता इस बात में है कि वे लंबे समय से ऐसा कर पा रहे हैं।

साड़ी पहने तीन महिलाएं मुस्कुरा रही हैं और एक दूसरे से बात कर रही हैं-NGO
समुदायसंचालित संगठन मानते हैं कि सभी लोगों को सम्मान के साथ और बिना किसी भेदभाव के जीने का अधिकार है। | चित्र साभार: फ़्लिकर

अनगिनत गैर-सरकारी संगठनों पर ध्यान केंद्रित करने की बजाय हमने अपना ध्यान कुछ चुनिंदा संगठनों पर लगाया। इसी कारण जब समुदाय के सदस्य, अपने लिए बदलावों का नेतृत्व करने की दिशा में कदम उठा रहे थे। तब हम उनके साथ किए जा रहे काम को क़रीब से देख पा रहे थे। हमें प्रमुखता से जो बात समझ में आई वह यह थी कि समुदाय संचालित संगठन एक ही तरह से सोचते हैं। विशेष रूप से, हमने पांच पारस्परिक रूप से मजबूत मानसिकताओं की पहचान की है जो इन संगठनों को, समुदाय के सदस्यों की प्राथमिकताओं और उनके अनुभवों के आसपास अपनी दिशा तय करने में मदद करती हैं ।

स्थानीय-संपत्ति मानसिकता (लोकल-असेट्स माइंडसेट): समुदायसंचालित संगठन जानते हैं किगरीबसमुदायों के पास संपत्तियों का खजाना है। चारों संगठन यह स्वीकार करते हैं कि समुदाय के सदस्यों के पास किसी भी बाहरी समूह की तुलना में, अपनी चुनौतियों से बेहतर तरीके से निपटने के साधन होते हैं। इन साधनों में स्थानीय ज्ञान, कौशल, अनुभव, प्रेरणा और संबंधों के रूप में सामाजिक और मानवीय पूंजी की उपलब्धता शामिल है।

गरिमा मानसिकता (डिग्निटी माइंडसेट): समुदायसंचालित संगठन मानते हैं कि सभी लोगों को सम्मान के साथ और बिना किसी भेदभाव के जीने का अधिकार है, ताकि वे अपनी क्षमताओं का पूरा इस्तेमाल कर सकें। इस कारण वे ‘हाशिए पर’ या ‘कमजोर’ माने जाने वाले लोगों को दरकिनार कर दिए जाने की सोच का विरोध कर सकते हैं।

दीर्घकालिक मानसिकता (लॉन्गटर्म माइंडसेट): समुदायसंचालित संगठन जटिल, विकट चुनौतियों का सामना करने के लिए धैर्य और दृढ़ता दिखाते हैं। वे जानते हैं कि बचपन में गुणवत्तापूर्ण प्रारंभिक शिक्षा तक पहुंच की कमी और समुदाय से निकाले जाने (एविक्शन) के खतरे जैसे मुद्दे व्यवस्था से जुड़े हैं और इनमें तत्काल सुधार नहीं लाया जा सकता है।

परिवर्तनीय मानसिकता (फ्लेक्सिबिलिटी माइंडसेट): समुदायसंचालित संगठनों का मानना है कि जब समुदाय के सदस्य उनको एक बेहतर राह दिखाएं तो उन्हें पहले से निर्धारित तरीकों को बदलने की ज़रूरत होती है। जब कोविड-19 महामारी जैसा कोई संकट सामने आता है तो वे समुदाय के नेतृत्व और सहयोग के साथ नई सेवा या रणनीति के लिए तत्पर होते हैं।

‘स्केलिंग-इन’ मानसिकता: समुदाय संचालित संगठन आमतौर पर लोगों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए व्यापक प्रयासों की बजाय गहराई तक जाने के बारे में सोचते हैं। वे ज्यादा से ज्यादा लोगो तक पहुंचने के लिए भौगोलिक फैलाव से ज्यादा जरूरी, कुछ विशिष्ट समुदायों में व्यक्ति विशेष की समग्र प्रगति को मानते हैं।

इसके अलावा हमने ख़ासतौर पर रणनीति संबंधी उस बदलाव को भी समझा जिसके मुताबिक फ़ोकस सोच-विचार करने से हटकर काम करने पर जाने लगा था। सभी गैर-सरकारी संगठन, समुदाय संचालित परिवर्तन का सहयोग करने के लिए पांच परस्पर संबंधित मार्गों के संयोजन का अनुसरण करते हैं। सामाजिक प्रभावों को आगे बढ़ाने के लिए कार्यक्रम संबंधी (प्रोग्रामेटिक) नजरिए वाले गैर-सरकारी संगठन भी बदलावों को सुनिश्चित करने के लिए इन मार्गों का अनुसरण करते हैं। लेकिन, हमने जिन समुदाय-संचालित संगठनों का अध्ययन किया, वे इन मार्गों का अनुसरण करने के लिए मानसिकता का ही इस्तेमाल करते हैं।

समुदायों को उनके अधिकारों और पात्रताओं के प्रति जागरूक करना। विभिन्न नजरियों को इस्तेमाल करते हुए गैर-सरकारी संगठन शहरी अनौपचारिक बस्तियों में रहने वाले लोगों को, उनके अधिकारों और उनके लिए उपलब्ध सेवाओं को बेहतर ढंग से समझने में सहायता प्रदान करते हैं। इससे वे अपनी मांग रखने के लिए बेहतर ढंग से तैयार होंगे और बदलाव की बात खुद कर सकेंगे।

एक साझा एजेंडे के लिए समुदायों को जुटाना/साथ लाना। गैर-सरकारी संगठनों के पास स्थानीय लोगों के साथ अच्छे से घुलमिल जाने की मानसिकता होती है। इसी से वे समुदायों को संगठित करते हैं और लोगों के सामूहिक प्रयासों को एक साझा लक्ष्य की ओर और उसे हासिल करने के लिए जरूरी मुद्दों की ओर ले जाते हैं।

लोगों के कौशल और क्षमताओं को विकसित करना। गैर-सरकारी संगठन लोगों को तकनीकी कौशल और व्यवहार से संबंधित क्षमताओं को विकसित करने में मदद करते हैं। इन क्षमताओं में आत्म-जागरूकता, मूल्यों को साधना, सोशल चेंज प्रोजेक्ट्स को डिजाइन करना, उन्हें लागू करना और सरकार की जवाबदेही सुनिश्चित करना शामिल है।

सम्पूर्ण समाधान को बढ़ावा देना। गैर-सरकारी संगठन परामर्श, तकनीकी सहायता और स्टेक-होल्डर नेटवर्क की उपलब्धता प्रदान कर, समुदाय के नेताओं की सामाजिक परिवर्तन पहलों का सहयोग करते हैं। कुछ मामलों में वे समुदाय के सदस्यों के साथ मिलकर समाधान तैयार करते हैं।

शोधकार्य करना और परिवर्तन की हिमायत करना। अपने गहन सामुदायिक काम से समृद्ध शोध कर, गैर-सरकारी संगठन समुदाय के सदस्यों को नीतिगत परिवर्तनों के लिए अतिरिक्त साधन प्रदान करते हैं। लेख और शोधपत्र सामूहिक, क्रॉस-सेक्टर कार्रवाई के लिए सामग्री तैयार करने में भी मदद करते हैं।

जैसा कि हम इस रिपोर्ट में बता रहे हैं, पिछले एक दशक में सामाजिक क्षेत्र में यह मान्यता बढ़ी है कि समुदाय संचालित परिवर्तन लंबे समय तक टिकने वाले प्रभावों की संभावना को बढ़ाता है। इससे समुदाय स्वामित्व की भावना महसूस करता है। अब सवाल है कि अन्य गैर-सरकारी संगठन और फंडर्स, समुदाय संचालित परिवर्तन को किस तरह अपना सकते हैं? और, उन मानसिकताओं और मार्गों तक पहुंच सकते हैं जो उनके लिए सबसे मुफ़ीद हो सकते हैं?

हम इस रिपोर्ट का अंत कुछ प्रश्नों से कर रहे हैं। इनका उद्देश्य आपके संगठन की मानसिकता का विश्लेषण करने में; समुदाय संचालित परिवर्तन करने वालों और उनके समुदाय के नेताओं के साथ जुड़ने में; और लोगों को उनके मनचाहे बदलाव हासिल करने में काम आने वाले तरीक़ों को अपनाने में, सहायता करना है।

आप की बारी

हमने जिन गैर-सरकारी संगठनों के साथ काम किया है, वे और अन्य कारकों (ऐक्टर्स) की बढ़ती संख्या, यह मानती है कि जब समुदाय के सदस्य साथ विकास करते हैं और सामने आने वाली चुनौतियों के समाधान की जिम्मेदारी खुद पर लेते हैं, तो उनके पास टिकाऊ नतीजे हासिल करते रहने का एक बेहतर मौका होता है।

हम संगठनों को समुदाय-संचालित परिवर्तन के बारे में भी जानने के लिए प्रोत्साहित करते हैं।

इसका मतलब यह नहीं है कि अन्य संगठनों को कम-संसाधन वाले समुदायों के साथ काम करने के अपने स्थापित नज़रिए को त्याग देना चाहिए और तुरंत समुदाय-संचालित परिवर्तन को ही अपना लेना चाहिए। लेकिन हम संगठनों को समुदाय-संचालित परिवर्तन के बारे में भी जानने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। साथ ही साथ, ये नज़रिया उनके मनचाहे सामाजिक नतीजों को किस तरह से बढ़ा सकता है और बनाए रख सकता है, यह सोचने के लिए भी प्रोत्साहित करते हैं।

इसलिए अगर आप एक गैर-सरकारी संगठन नेता या फंडर हैं तो आप किस तरह शुरूआत कर सकते हैं? इसके लिए, एक तीन हिस्सों वाली प्रक्रिया पर विचार करें जहां आप अपने संगठन की मानसिकता को परखते हैं; समुदाय केंद्रित साथियों और समुदाय के नेताओं के साथ जुड़ते हैं; और समुदाय-संचालित परिवर्तन की ओर ले जाने वाले तरीकों को अपनाते हैं।

आत्मचिंतन (रिफ्लेक्ट) करें: आप खुद अपनी रणनीतियों और कार्यक्रमों की समीक्षा कर सकते हैं। आप इस बारे में सोच सकते हैं कि क्या आप अपने काम में समुदाय-संचालित मानसिकता ला रहे हैं – और क्या इससे अधिक और बेहतर काम करने के मौके उपलब्ध हैं।

क्या आप समुदाय के सदस्यों के ज्ञान का पूरी तरह से उपयोग कर रहे हैं जो खुद उनकी चुनौतियों के सबसे करीब हैं? क्या आप समुदाय के फीडबैक के मुताबिक न केवल रणनीति या कार्यशैली बदलने को तैयार रहते हैं, बल्कि कुछ बेहतर डिजाइन करने के लिए समुदाय के सदस्यों के साथ काम भी करना चाहते हैं?

जुड़ाव बनाएं (कनेक्ट करें): एक बार जब आप समुदाय संचालित परिवर्तन प्रयास को लागू करने की क्षमता का आकलन कर लेते हैं, तो सहयोगियों – यानी, वे लोग जो सामुदायिक हितों को आगे रखते हों (अन्य संगठनों या फंडर्स) – से जुड़ने में समझदारी हैं। ये साथी अपने नज़रिए को कैसे विकसित कर रहे हैं, इनकी कौन सी बातें अनुकूल हैं और कौन सी नहीं, इन्होंने क्या सीखा और ये क्या लाभ उठा रहे हैं, यह समझना हमारा उद्देश्य है।

और फिर, समुदाय के सदस्यों के साथ जो संबंध बनता है वह सबसे अधिक मायने रखता है। इस जुड़ाव की शुरूआत (या इसे जारी रखने) के लिए, उनसे उनकी आकांक्षाओं के बारे में पूछें: अपने और अपने बच्चों के लिए उनके सपने क्या हैं? जब वे अपनी आकांक्षाओं को पूरा करने की कोशिश में रहते हैं और अपने चाहे गए परिवर्तन खुद ला रहे होते हैं, तब आप उनके रास्ते में आए बिना सबसे अच्छी तरह से उनका साथ कैसे दे सकते हैं? वे कौन-सी ऐसी बाधाएं और कठिनाइयां हैं जिनका वे समाधान करना चाहते हैं?

स्थापित करें (एम्बेड करें): एक तय समय के बाद आत्म-चिंतन और जुड़ाव की यह प्रक्रिया सार्थक काम में बदलती दिखाई देनी चाहिए। जैसा कि कहा गया है, ‘काम करके खुद को नई तरह की सोच में ढालने की तुलना में, नई सोच से नई तरह के कामों को करना अधिक आसान हैं।’2 जब आप समुदाय-संचालित परिवर्तन के लिए एक या अधिक रास्तों पर जाते हैं – जैसे कि एक साझा एजेंडा के इर्द-गिर्द समुदायों को जुटाना या मूल स्तर से समाधान हासिल करने पर जोर देना – तब कुछ खास बातें हैं जिन्हें आप अपने काम में शामिल (या एम्बेड) कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, आप अपने अधिकांश कर्मचारियों का चयन समुदाय के भीतर से ही कर सकते हैं: इस रिपोर्ट में शामिल सभी चार गैर-सरकारी संगठन अपने अधिकांश कर्मचारियों और नेताओं को उन्हीं समुदायों से भर्ती करते हैं, जिनके लिए वे काम करते हैं। समुदाय के भीतर से लिए गए लोगों के पास उनके अनुभव, सामाजिक पूंजी, भरोसेमंद रिश्ते और विश्वसनीयता जैसी अमूल्य संपत्तियां होती हैं।

फंडर्स भी अपनी कार्यप्रणाली में आधुनिकता या सुधार लाने की कोशिश कर सकते हैं।

एक गैर-सरकारी संगठन संचालक के रूप में, आपको समुदाय-संचालित परिवर्तन के दृष्टिकोण को स्थापित करने के लिए, अपने फंडर्स के साथ बातचीत करने की जरुरत भी पड़ सकती है। यह संवाद इस बात के साथ शुरू हो सकता है कि आपके अपने संगठन की मानसिकता और कामकाज के तरीकों में बदलाव, आपके मिशन को कैसे आगे बढ़ाएगा। दूसरी तरफ, फंडर्स भी अपनी कार्यप्रणाली में आधुनिकता या सुधार लाने की कोशिश कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, सेक्टर के निर्धारित मापक (सेक्टर मेट्रिक्स जैसे वितरित भोजन, स्वास्थ्य परिणाम, हिंसा में कमी) पर केंद्रित एमएलई प्रणाली (मॉनिटरिंग लर्निंग इवॉल्यूशन यानी काम के आकलन और उससे सीखने की कार्यप्रणाली) में मानव केंद्रित मापक (ह्यूमन सेंट्रिक इंडीकेटर्स जैसे गरिमा और आत्मविश्वास) को शामिल करने की ज़रूरत हो सकती है। समुदाय-संचालित परिवर्तन के प्रभाव को सही मायने में जानने के लिए ऐसा करना जरुरी है। समुदाय-संचालित दृष्टिकोणों में बदलाव एक जटिल लेकिन महत्त्वपूर्ण काम है। फंडर्स द्वारा बिना शर्त दिया गया अनुदान (अनरेस्ट्रिक्टेड फंडिंग) या फ्लेक्सिबल कोर फंडिंग, जो भी एनजीओ को इस्तेमाल में अधिक स्वतंत्रता प्रदान करे, इस के लिए अधिक लाभदायक होगी।

फुटनोट:

  1. द क्विंटकी इस रिपोर्ट के मुताबिक अनुसूचित जाति, हिंदू जाति व्यवस्था के ढांचे (फ्रेमवर्क) के भीतर वह उप-समुदाय है जिन्होंने ऐतिहासिक रूप से अपने कथित ‘निम्न सामाजिक स्तर’ के कारण भारत में अभाव, उत्पीड़न और चरम सामाजिक अलगाव का सामना किया है।
  2. इस उद्धरण को हैबिटेट फॉर ह्यूमैनिटी इंटरनेशनल के सह-संस्थापक मिलार्ड फुलर समेत कई लोगों ने इस्तेमाल किया हैं।

लेखक इस लेख के अनुवाद में सहयोग के लिए अलीना मुसन्ना, अमृता दातला, रिधिमा खुराना, रोहन अग्रवाल और शशांक रस्तोगी को धन्यवाद देना चाहते हैं।

लेखक के बारे में
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प्रीता वेंकटाचलम

प्रीता वेंकटाचलम द ब्रिजस्पैन ग्रुप में पार्टनर और सह-प्रमुख (एशिया और अफ्रीका) हैं। उन्होंने वैश्विक विकास के अवसरों की एक विस्तृत श्रृंखला पर फ़िलैन्थ्रॉपी, दाताओं, सरकारों, स्वयंसेवी संस्थाओं और एशिया और अफ्रीका में निजी क्षेत्र के लिए सलाहकार के रूप में काम किया है। ब्रिजस्पैन से पहले, प्रीता ने डालबर्ग के नई दिल्ली कार्यालय की स्थापना की और उसका नेतृत्व किया। उन्होंने लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से डेवलपमेंट मैनेजमेंट में एमए और आईआईएम बैंगलोर से एमबीए किया है।

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केशव कनोरिया

केशव कनोरिया द ब्रिजस्पैन ग्रुप के मुंबई ऑफ़िस में प्रिंसिपल हैं। वे डलबर्ग, द बॉस्टन कंसल्टिंग ग्रुप्स सोशल इम्पैक्ट प्रैक्टिस और अर्न्स्ट एंड यंग में रणनीति परामर्श का एक दशक से अधिक का अनुभव रखते हैं। कनोरिया ने शिक्षा, पोषण, स्वच्छता, कृषि और समावेशी विकास के विषयों पर फ़ाउंडेशनों, द्विपक्षीय एजेंसियों, सरकारों, कॉरपोरेट्स और समाजसेवी संस्थाओं को सलाह देने का काम भी किया है।  

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