वैश्विक क्रेडिट रेटिंग और शोध फर्म, मूडीज ने जून 2024 में, चेतावनी दी थी कि भारत में पानी की बढ़ती कमी उसके आर्थिक विकास के लिए खतरा बन सकती है। हमारे यहां जल संकट से जुड़े कई जोखिम हैं, जो खेती और उद्योग को प्रभावित कर सकते हैं, और इसके सामाजिक परिणाम भी गंभीर हो सकते हैं। भारत दुनिया का 25 प्रतिशत से अधिक भूजल निकालता है, जो खेती और पेयजल की जरूरतों को पूरा करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। पिछले कुछ सालों में, इस पानी के बहुत ज्यादा दोहन के कारण लगभग 60 प्रतिशत भारतीय जिलों को पानी की कमी और पानी की गुणवत्ता से जुड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।
जलवायु परिवर्तन का पानी पर बड़ा असर पड़ता है और जलवायु परिवर्तन आमतौर पर पानी की कमी या अधिकता की वजह से ही दिखाई देता है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने 5 जून, 2024 को विश्व पर्यावरण दिवस पर अपने भाषण में ‘हर जगह एक साथ’ जलवायु कार्रवाई किए जाने की जरूरत पर जोर दिया। भारत की जल सुरक्षा में सुधार के लिए बड़े पैमाने पर भागीदारी की जरुरत होगी।
जमीनी कार्रवाई में तेजी के लिए सहयोग
सहयोग, औपचारिक या अनौपचारिक, कानूनी रूप से बाध्यकारी या गैर-बाध्यकारी आदि, अलग-—अलग हितधारकों और कार्यकर्ताओं को एक साथ लाता है। उदाहरण के लिए, सतत विकास लक्ष्य, (SDGs) 2030 पर वैश्विक संकल्प एक गैर बाध्यकारी कानूनी समझौता है, जिसे अंतरराष्ट्रीय समर्थन और लोकप्रियता मिली है। वहीं स्थानीय स्तर पर, स्थानीय समूहों की ओर से आपदा प्रबंधन के लिए राहत कार्य की दिशा में प्रयास एक अस्थायी अनौपचारिक सहयोग का एक उदाहरण है।
एचयूएफ (हिंदुस्तान यूनिलीवर फ़ाउंडेशन ) इस बात के लिए प्रतिबद्ध है कि पानी की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सहयोग ही एकमात्र स्पष्ट और तत्काल की जरूरत है।
उद्देश्य, सिद्धांतों, लक्ष्यों और भूमिकाओं पर स्पष्टता
पानी की सुरक्षा पर समग्र और संदर्भ आधारित सहयोगात्मक कार्यवाही के लिए उद्देश्य और सिद्धांत का साफ होना जरूरी है। हम ऐसे कार्यक्रमों को मिलकर बनाते हैं, जिनके लिए अनेक हितधारकों को एक लंबे समय तक मिलकर काम करना हो। सभी कार्यक्रमों में हितधारक की प्रेरणा और ताकत पर आधारित एक साफ लक्ष्य होना चाहिए। जब लक्ष्य पारदर्शी और मापने लायक होते हैं, तो उनके चारों ओर कार्यान्वयन करने वाले डिज़ाइन तैयार हो सकते हैं और मुश्किल बदलाव आसान हो जाते हैं। इसमें कोई दो मत नहीं कि सामुहिक ताकत व्यक्तिगत ताकतों से कहीं ज्यादा प्रभावी होती है। यह बात कई बार हमारी प्रोत्साहित की गई साझेदारियों के जरिए साबित भी हो चुकी है। आइए जानते हैं यह कैसे हुआ:-
1. समुदाय संचालित परिवर्तन
हमारी सहयोगी संस्था स्वयं शिक्षण प्रयोग (एसएसपी), महाराष्ट्र के उस्मानाबाद में किसानों के बीच जल वायु परिवर्तन को सहन करने वाले एक एकड़ मॉडल को बढ़ावा देने के लिए एक ‘सखी कैडर’ चला रहे हैं। यह महिला ग्राम प्रतिनिधियों का एक नेटवर्क है। इन सखियों का मुख्य काम है किसानों को जलवायु-संवेदनशील खेती के बारे में जागरूक करना और उन्हें स्थायी खेती अपनाने के लिए प्रेरित करना। ज़मीनी प्रतिनिधि होने के नाते, इन सखियों के पास किसानों के साथ एक मजबूत नेटवर्क तो होता ही है, साथ में उनका भरोसा भी होता है। इस वजह से वे स्थानीय पानी के बुनियादी ढांचे से जुड़ी मांगों को जमा करती हैं और फिर स्थानीय पंचायतों के साथ इस बारे में संवाद शुरू करती हैं। इसके अलावा, वे बीजों और इनपुट के लिए बैकवर्ड लिंकेज और बाजारों के लिए फॉरवर्ड लिंकेज को बढ़ावा देते हैं। यही कारण है कि सखियों ने अपने गांवों को बदलने का बीड़ा उठाया है। अपनी अभी तक की समझ के आधार पर वे काफी संख्या में हितधारकों के साथ बातचीत का क्रम बनाएं रखती हैं। उनके सहयोग और जुड़ाव ने सूखाग्रस्त मराठवाड़ा क्षेत्र में एक लाख परिवारों के जीवन को बदल दिया है।
यह बदलाव सिर्फ़ इसलिए संभव हो पाया क्योंकि एसएसपी ने सखियों को स्थानीय सहयोगी के तौर पर तैयार किया। वे क्षेत्र की महिला किसानों की आवाज़ बनी। साथ ही, सीमित संसाधन होने के बावजूद पंचायतों, बाज़ारों, जानकारों और सरकारी संस्थानों से ना केवल जुड़ने की कोशिश की बल्कि उन्हें प्रभावित भी किया।
2. क्षमता के अंतर को कम करना
अलग-अलग योग्यता वाले कई हितधारकों का सहयोग कार्यक्रमों को लंबे समय तक प्रभावी बनाएं रखने के लिए जरूरी है। जैसे एचयूएफ ने एक तरह का सहयोगात्मक संघ बनाया है। इसमें भागीदार के तौर पर अंतर्राष्ट्रीय परियोजना ट्रस्ट केंद्र (सीआईपीटी) पंजाब, किसान सहकारी समितियां, पंजाब कृषि विश्वविद्यालय (पीएयू) के अकादमिक विशेषज्ञ और सरकार सभी शामिल हैं। इस संघ का उद्देश्य पंजाब के लिए ऐसे जल-संवेदनशील कृषि मॉडल को बढ़ावा देना है जो वहां की विशेष परिस्थितियों के अनुकूल हों।
हर सहयोगी की एक अहम भूमिका होती है। हर सहकारी समिति अपने किसान समूहों का मार्गदर्शन करती है और ऋण सहायता मुहैया करवाती है। विशेषज्ञ किसानों को नए उपकरणों और खेती के तरीके बताकर मदद करते हैं। जैसे कि मिट्टी की नमी सेंसर का इस्तेमाल, वैकल्पिक पानी देना और सुखाना (एडब्लूडी), और चावल की सीधी बुआई (डीएसआर)। ये तरीके खासकर तब महत्वपूर्ण होते हैं जब ज़मीन का पानी खेती में ज्यादा उपयोग होने के कारण घट रहा होता है। जैसे ही ये जल-संवेदनशील कृषि मॉडल विकसित होते हैं, स्थानीय सरकार उनका समर्थन करती है ताकि इन प्रथाओं को ज्यादा से ज्यादा लोग अपनाएं। इस सहयोगात्मक दृष्टिकोण से पंजाब के 12 जिलों में जल-संवेदनशील खेती के मॉडल को बढ़ावा मिल रहा है।
मुख्य हितधारकों के बीच सहयोग से स्थानीय पानी की समस्याओं को महत्वपूर्ण बना गया है। जो एक बड़ा सामूहिक प्रभाव पैदा कर रहा है।
3. समूहों के बीच की अलगाव की दीवारों को तोड़ना
पानी एक ऐसा विषय है जिसे अलग-अलग सरकारी विभागों के बीच बांटा गया है, और हर विभाग की अपनी जिम्मेदारियां और बजट आवंटन होते हैं। चुनौती की गंभीरता को देखते हुए, व्यवस्थागत बदलाव की जरुरत है। समय की मांग है कि इन सभी विभागों को बड़े पैमाने पर योजना और क्रियान्वयन के लिए एक साथ लाया जाए।
एचयूएफ के साथी संगठन प्रदान ने पश्चिम बंगाल सरकार के साथ मिलकर कार्यक्रम उषर्मुक्ति के तहत इस क्षेत्र की सात लुप्त होती नदियों को पुनर्जीवित करने का कार्यक्रम शुरू किया है। यह कार्यक्रम 54 ब्लॉकों में 1,900 से ज्यादा जलग्रहण क्षेत्रों में फैला हुआ है, जिसमें 7,000 से ज्यादा गांव, 14 लाख हेक्टेयर क्षेत्र और पांच लाख परिवार शामिल हैं।
भले ही बड़े सरकारी कार्यक्रम विभिन्न विभागों में बंटे हों, लेकिन एक स्पष्ट और साझा दृष्टिकोण के साथ वे भी परिवर्तनकारी प्रभाव दे सकते हैं।
इस कार्यक्रम को सात स्थानीय गैर-लाभकारी संगठनों और राज्य महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) की मदद से लागू किया गया। प्रदान ने एक औपचारिक कार्यक्रम प्रबंधन इकाई (पीएमयू) की स्थापना की जिससे समुदाय, गैर-लाभकारी साझेदार, पंचायतों, और राज्य विभागों के बीच समन्वय सुनिश्चित किया जा सके।
योजना और कार्यान्वयन में कोई बाधा न आए इसलिए पीएमयू ने प्रमुख सरकारी प्रतिनिधियों से स्वीकृतियां, फंड की रिलीज, संकलन, और सरकारी आदेशों की प्रक्रिया को तय करने के लिए संपर्क किया। कार्यक्रम का एक महत्वपूर्ण पहलू यह था कि इसे राज्य के दूसरे ब्लॉक में भी दोहराया जाए ताकि योजना, कार्यान्वयन, और सरकारी सहभागिता को बढ़ाया जा सके।
भले ही बड़े सरकारी कार्यक्रम विभिन्न विभागों में बंटे हों, लेकिन एक स्पष्ट और साझा दृष्टिकोण के साथ वे भी परिवर्तनकारी प्रभाव दे सकते हैं। उषर्मुक्ति की सफलता सहयोग की शक्ति का एक प्रमाण है।
समूह के पारस्परिक संबंधों को समझना
हितधारकों के बीच सहयोग को बनाए रखना चुनौतीपूर्ण हो सकता है। पारस्परिक संबंधों या यूं कहें कि समूह संबंधों पर शोध करने वाले ब्रूस टक्मन ने यह दिखाया कि समूह गठन, तूफान, मानदंड और प्रदर्शन के अहम चरणों से गुजरते हैं। कोई भी सहयोगात्मक पहल संघर्ष और समस्याओं से गुजरने के बाद ही एक सामान्य स्थिति में आकर प्रभावी योगदान देती है।
जैसे-जैसे पारस्परिक संबंध बढ़ते हैं , सक्षम नेता सामने आते हैं जो सहयोग को सफल बनाने में मदद करते हैं। आपस में सफल सहयोग स्थापित करना जटिल प्रक्रिया है और इसमें समय लगता है। हर हितधारकों की अलग-अलग इच्छाएं हो सकती हैं जो कभी-कभी टकराती है। एक सहयोगात्मक प्रयास को स्थिर होने में कई महीने या यहां तक कि सालों का समय लग सकते हैं। मजबूत सहयोग उन संगठनों की पहचान होती है जो धैर्यपूर्वक और मिलकर काम करते हैं, ताकि वे एक साझा लक्ष्य को पा सकें।
उद्देश्य-प्रेरित सहयोग: समय की मांग
सहयोग की पहेली को पूरा करने में विज्ञान और कला दोनों ही अहम भूमिका निभाते हैं। वैसे सहयोग की प्रक्रिया मुश्किल होती है क्योंकि इसमें मानव व्यवहार और कई रुचियां शामिल होती हैं। सहयोगात्मक संघ अपने आप नहीं बनता, बल्कि इसे सावधानीपूर्वक योजना, डिज़ाइन, और देखरेख की जरुरत होती है। सहयोग को सफल बनाने के लिए विशेष कौशल और विशेषज्ञता चाहिए। सहयोग की कला और विज्ञान को कार्यक्रम प्रणाली की मुख्यधारा में लाना अहम है ताकि फंडर्स अपने कार्यक्रमों को एक बड़े साझा उद्देश्य की ओर ले जाने में अग्रणी भूमिका निभाएं।
इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ें।
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