March 8, 2023

समाजसेवी संस्थाओं में नेतृत्व बदलने की प्रक्रिया क्या और कैसी होनी चाहिए?

सहज नेतृत्व परिवर्तन एक संभव लेकिन कठिन काम है, संगठनात्मक परिवर्तन की प्रक्रिया से जुड़े कुछ सुझाव यहां दिए जा रहे हैं जो इसे सरल बनाते हैं।
8 मिनट लंबा लेख

साल 1999 में मल्लिका दत्त ने ब्रेकथ्रू की अवधारणा बनाई और इसकी स्थापना की। इसके लिए सत्रह साल बाद हम स्कोल अवार्ड जीते और उसी साल मल्लिका ने संगठन के सीईओ पद से इस्तीफ़ा देने का फ़ैसला भी किया।

जब मल्लिका ने यह फ़ैसला लिया तब हम न्यूयॉर्क और दिल्ली दो जगहों पर काम कर रहे थे। एक नया सीईओ खोजने के लिए ब्रेकथ्रू के बोर्ड के सदस्यों और वरिष्ठ प्रबंधन की एक टीम गठित की गई। प्रक्रिया में हमारा मार्गदर्शन करने के लिए एक बाहरी फैसिलिटेटर को काम पर रखा गया था। हालांकि, तमाम चर्चाओं और प्रक्रियाओं के बावजूद, हम नहीं जानते थे कि नेतृत्व परिवर्तन क्या होता है और ना ही हम इससे जुड़ी अराजक स्थिति के लिए तैयार थे।

ब्रेकथ्रू की नेतृत्व संरचना में भारत और अमेरिका, दोनों ही देशों में एक-एक निदेशक होने के साथ एक अध्यक्ष और एक सीईओ भी होता है। मैं 2010 से ब्रेकथ्रू के साथ थी। पहले एक सलाहकार के रूप में और फिर 2014 से एक स्थायी कर्मचारी के तौर पर संसाधन जुटाने की इकाई स्थापित करने के लिए काम कर रही थी। इसलिए मैं संगठन की गतिशीलता और कार्यप्रणाली से परिचित थी। चूंकि दोनों ही देशों के तत्कालीन निदेशकों को सीईओ बनने में रूचि नहीं थी, इसलिए मैंने पद के लिए आवेदन करने का फैसला किया। पूरी प्रक्रिया में लगभग एक साल लग गया, और जब तक मुझे यह ज़िम्मेदारी दी गई, तब तक मल्लिका का ट्रांजिशन पीरियड खत्म हो चुका था और वे पूरी तरह से पद छोड़ चुकी थीं। हालांकि वे सवालों के जवाब देने के लिए उपलब्ध थीं, लेकिन आख़िर में मुझे इस परिवर्तन को अपने दम पर ही झेलना था।

करो या मरो वाली स्थिति थी

पदभार ग्रहण करने के बाद मुझे पता चला कि पिछले साल हमारे अमेरिकी कार्यक्रम का प्रदर्शन कुछ अच्छा नहीं था, और हम इसका विस्तार करने में सक्षम नहीं थे। इस बीच, भारत विकास के एक जरूरी मोड़ पर था। जब मैं इस स्थिति से निपटने की कोशिश में ही लगी थी कि तभी दोनों देशों के निदेशकों ने इस्तीफ़ा दे दिया। इसका सीधा अर्थ था कि मुझे एक ही समय में तीनों के काम का भार सम्भालना था। काम और संगठन की अधिक से अधिक जानकारी और अनुभव के बाद भी मैं दो स्थानों और तीन पदों को संभालने की जिम्मेदारी के लिए तैयार नहीं हो सकी। मैं लम्बे समय तक इम्पोस्टर सिंड्रोम की शिकार रही और कई बार इस्तीफ़ा देने के बारे में भी सोचा।

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हर नेता अपने कार्यकाल में एक मिसाल कायम करता है—उनकी अपनी एक आवाज होती है और काम करने का एक तरीका होता है जिससे संगठन परिचित होता है। ब्रेकथ्रू इंडिया की पिछली कंट्री डायरेक्टर 13 साल से कंपनी के साथ जुड़ी थीं। मैं व्यवस्था में अंदर आकर उनका बनाया सब कुछ नष्ट नहीं कर सकती थी। इसलिए यह स्वाभाविक था कि मुझे ब्रेकथ्रू को अलग तरीके से सफलतापूर्वक चलाने की अपनी क्षमता पर संदेह था।

इसके अलावा, मेरा सबसे बड़ा डर भारत में वरिष्ठ प्रबंधन टीम में मेरे दोस्तों और साथियों का होना था जिनकी अब मैं बॉस बन चुकी थी। सौभाग्य से, इन सबको लेकर मुझे लंबे समय तक चिंता नहीं करनी पड़ी, क्योंकि उन सभी ने पूरे मन से मुझे अपने लीडर के रूप में स्वीकार कर लिया था। साझा नेतृत्व में मेरे विश्वास के साथ उनके रवैये ने मुझे भारत में एक सहज पदक्रम बनाने में मदद की, जिससे यह परिवर्तन कम तनावपूर्ण हो गया।

हालांकि, अमेरिका की कहानी एकदम अलग थी। वहां की कार्य संस्कृति, धन की आवश्यकताएं और बोर्ड की व्यस्तता सबकुछ पूरी तरह भारत से अलग था। भारत में फंडर्स को फंडिंग देने के लिए प्रस्तावों, रिपोर्टों और परिणामों की आवश्यकता होती है। लेकिन अमेरिका में यह अलग तरह से किया जाता है। फोन कॉल पर प्रस्तावों को फिर से नया किया जाता है और यह प्रक्रिया भारत के लिए बिल्कुल नई है। अमेरिका में बोर्ड भी बहुत गहरा शामिल था और निर्देशात्मक भूमिका निभा रहा था। यह भारतीय इकाई में बोर्ड के स्वतंत्र संबंध से बिल्कुल अलग था।

मैंने अमेरिकी कार्यक्रम के बारे में विस्तार से जानने के लिए कई महीने का समय लगाया। मैंने रिलेशनशिप बिल्डिंग, संस्कृति को समझकर काम करने और बोर्ड की इच्छाओं के बारे में जाना। दरअसल शुरू में मैंने अमेरिकी कार्यक्रम को बंद करने और इसे भारत के लिए फंडरेजिंग कार्यालय में बदलने पर विचार किया था। लेकिन बोर्ड की सोच मेरी सोच से भिन्न थी और इसलिए मैंने उनके नजरिए को समझने में समय लगाया।

पीले बोर्ड पर पिन और प्लास्टिक चिप्स-लीडरशिप एनजीओ
नेतृत्व परिवर्तन कभी सीधा या सरल नहीं होता। | चित्र साभार: रॉपिक्सेल्स

परिवर्तन को सफल बनाना

नेतृत्व परिवर्तन कभी सीधा या सरल नहीं होता। ब्रेकथ्रू में कार्यभार संभालने की प्रक्रिया से मिले अनुभव ने मुझे कुछ मूल्यवान सबक सिखाए।

1. अपने साथियों के साथ और संगठन में विश्वास बनाएं

मल्लिका साझा नेतृत्व, एक दृष्टिकोण और आचार-व्यवहार में विश्वास करती थीं और मैं भी इन चीजों को जारी रखना चाहती थी। साझा नेतृत्व संगठन में अन्य नेताओं को विशेषज्ञता के अपने क्षेत्रों में काम करने की स्वतंत्रता देकर, उन्हें उनके कार्यों के लिए जवाबदेह ठहराते हुए विश्वास की नींव रखने पर जोर देता है। यह मुश्किल हो सकता है, खासकर वरिष्ठ लोगों के लिए जो लंबे समय से संगठन के साथ हैं और जिनकी अपनी व्यक्तिगत शैली और तरीके हैं। लेकिन हमने कर दिखाया। एक-दूसरे में विश्वास पैदा करने और अपने कार्य क्षेत्रों में विश्वसनीय सहयोगियों के रूप में देखे जाने के लिए हमें सचेत प्रयास करना पड़ा जिसमें बहुत अधिक मेहनत और समय दोनों ही लगा।

अपनी तरफ से मैंने प्रत्येक वरिष्ठ सहयोगी के साथ अलग-अलग तरह से संवाद किया और उनके साथ व्यक्तिगत संबंध विकसित किया। हमने खुली संस्कृति को प्रोत्साहित करने का काम किया जहां टीम, ईमानदार प्रतिक्रिया देने में सहज महसूस करे, भले ही वह नकारात्मक ही क्यों न हो। हमने ‘दि फाइव फेल्यर्स ऑफ ए डिसफंक्शनल टीम’ नाम की एक गतिविधि भी शुरू की। साथ में, हमने अपनी मौजूदा कमियों को ढूंढा और विकास की सम्भावनाओं की पहचान की। इसमें भरोसे की कमी और जवाबदेही की पहचान मुख्य मुद्दे के रूप में सामने आए जिन्हें हमने हल करने का काम किया। मुझे सबसे पहले अपनी कमजोरियों के प्रति ईमानदार होना था, अपनी कमियों को स्वीकार करना था और सुधार के क्षेत्रों पर प्रतिक्रिया मांगनी थी ताकि मेरी टीम को मुझ पर विश्वास हो सके। इसके लिए मैंने टीम के भीतर ही एक समीक्षा व्यवस्था बना दी जहां टीम के सदस्य अपनी प्रतिक्रियाएं दे सकते थे जो सीधा बोर्ड के पास जाती थी और उसके बाद मेरे पास पहुंचती थी। इससे उन में इस बात का विश्वास पैदा हुआ कि मैं आलोचना सुनना चाहती हूं और अपनी कमियों पर काम करना चाहती हूं।

2. अपनी ताक़त और कमियों को स्वीकार करें

अपने पूर्ववर्ती से अपनी तुलना करना स्वाभाविक है। सिर्फ आप ही नहीं, पूरी संस्था और बाहरी लोग भी ऐसा करते हैं। इसलिए ऐसे समय में अपनी ताकत और कमजोरियों को पहचानना जरूरी है। मुझे पता था कि एक नेता और संस्थापक के रूप में मल्लिका ने क्या किया था। वे एक दूरदर्शी और मानव अधिकारों के लिए लड़ने वाली नेता होने के साथ ही एक बेहतरीन सार्वजनिक वक्ता भी थीं। मेरे पास विकास सेक्टर का 25 वर्षों से अधिक का अनुभव था लेकिन इस स्तर पर पहुंचने के बाद, अनुभव और विशेषज्ञता का कुछ ख़ास महत्व नहीं रह जाता है। स्थिति कुछ भी हो तुलना होती ही है। इसलिए आपसे पहले जो नेता था उसकी नक़ल करने की बजाय अपनी ताक़तों को पहचानना चाहिए और उससे काम लेना चाहिए। उदाहरण के लिए, मेरे पास सार्वजनिक तौर पर बोलने का बहुत अधिक अनुभव नहीं था, लेकिन मैं एक टीम को बेहतर तरीक़े से चला सकती हूं और अपने साथ काम कर रहे उस टीम के सदस्यों से सर्वश्रेष्ठ काम करवा सकती हूं। इससे मुझे उन क्षेत्रों की भरपाई करने में मदद मिली जिनमें मैं कमजोर थी – मैंने ऐसे लोगों को नियुक्त किया जिनसे मैं सीख सकती थी और जो उन कामों को सम्भाल सकते थे जिनके बारे में मुझे ज्ञान नहीं था।

इसी प्रकार, तकनीकी पहलू पर, मुझे रिसर्च, मॉनिटरिंग और मूल्यांकन की बहुत अच्छी समझ नहीं थी और न ही मैं संस्कृति परिवर्तन के लिए मीडिया के बारे में कुछ ख़ास जानती थी। इसके लिए भी मैंने इस क्षेत्र के विशेषज्ञों को नियुक्त किया और उनसे सीखा। इससे पूरे संगठन को उस प्रकार का ज्ञान हासिल करने में मदद मिली जिसकी कमी थी।

यदि आपको अपनी कमियों को स्वीकार करने में डर लगता है तब आप बाहरी सहायता नहीं लेंगे जो कि आगे चलकर बहुत काम आता है। इसका संबंध आपके पास पहले से मौजूद ज्ञान और उन चीजों के बीच की कमी को पाटने से भी है जिनके बारे में आप नहीं जानते हैं। उदाहरण के लिए, एक सीईओ के रूप में फंडरेजिंग मेरी मुख्य ज़िम्मेदारी है। मेरे पास संस्थागत फंड इकट्ठा करने का अनुभव था लेकिन खुदरा और सीएसआर फंडरेजिंग के बारे में मैं जरा भी नहीं जानती थी। हमने ऐसे कामों के लिए भी विशेषज्ञों की मदद ली जिन्हें करने में मैं सक्षम थी। ऐसा करने से हमने उनसे बहुत कुछ नया सीखा और नई जानकारियां हासिल कीं।

3. पहचानें कि कब कदम पीछे हटाना है

मेरी सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक ब्रेकथ्रू के यूएस और भारत संचालन को एक साथ संतुलित करना था। इनके टाइम ज़ोन्स, लोकेशन्स और संस्कृति बिल्कुल विपरीत थे। दुनिया के विपरीत किनारों पर दो पूर्णकालिक नौकरियों को संभालना, और लगातार यात्रा के साथ घर और परिवार से दूर रहना आसान नहीं है और मैं किसी और को ऐसा करने की सलाह भी नहीं देती हूं।

पीछे देखने से अब समझ में आता है कि यह सब कुछ सम्भालना कितना मुश्किल था और मैं नेतृत्व परिवर्तन का प्रयास कर रहे किसी व्यक्ति को सलाह दूंगी कि अपनी सीमाएं बनाए और कामकाज और व्यक्तिगत जीवन के बीच संतुलन स्थापित करने का प्रयास करते रहें। एक बार में ही बहुत काम करने से मौजूदा संदेह और बढ़ जाते हैं।

हालांकि हम अमेरिकी कार्यक्रम के लिए कुछ अनुदान जुटाने और इसे लागू करने में कामयाब रहे। लेकिन हमें भारत में एफसीआरए कानूनों में संशोधन के रूप में और अमेरिका में कामकाज का प्रबंधन करने के लिए सही तरह के नेतृत्व को चुनने में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। अगस्त 2019 में जिस व्यक्ति को हमने कार्यक्रम का नेतृत्व करने के लिए नियुक्त किया था उसने एक दूसरे संगठन से प्रस्ताव मिलने के कारण हमें छोड़ दिया। उस समय प्रबंधन की प्रगति कुछ समय के लिए धीमी पड़ गई। समय की कमी होने के कारण मैं अधीर होने लगी। नतीजतन मेरा ध्यान न तो अमेरिका में लग पा रहा था और न ही भारत में। इन सबके कारण मेरे अंदर अपने और अपने काम के प्रति असंतोष की भावना लगातार बढ़ रही थी। आखिरकार मैंने अमेरिका के कंट्री डायरेक्टर के पद से इस्तीफ़ा दे दिया। इस फ़ैसले के पीछे एक जुड़ा हुआ दूसरा कारण यह भी था कि कोविड-19 के कारण मैं अब अमेरिका की यात्रा नहीं कर सकती थी।

4. आवश्यकता पड़ने पर सहायता मांगे

परिवर्तन के दौरान मुझे विभिन्न स्रोतों से सहयोग प्राप्त करने का सौभाग्य मिला। इनमें से प्रमुख तीन इस प्रकार हैं:

  • नैरोबी में स्थित एक नेतृत्व कोच जिसके साथ मैंने 12 सत्र किए। इन सत्रों के दौरान मैंने सीखा कि कैसे अपने लिए एक रास्ता और दृष्टि बनानी है, कैसे वरिष्ठ प्रबंधन टीमों और बोर्डों से संपर्क करना है, और कैसे अमेरिका और भारत के बीच संतुलन बनाए रखना है। 
  • दिल्ली में हमारी वरिष्ठ प्रबंधन टीम ने उन दिनों सब कुछ संभाला था जब मैं यात्राओं में थी। उन्होंने मुझे अपना विवेक बनाए रखने में मदद की थी क्योंकि मैं एक साथ दो स्थानों को संभाल रही थी।
  • मेरे बोर्ड के सदस्यों ने न केवल मुझे समझा और मुझे प्रोत्साहित किया बल्कि मेरी राय भी ली और नई चीजों को सीखने में मेरी मदद भी की। उन्होंने प्रशासन, वित्त और अनुपालन आदि जैसे मसलों पर सहायता लेने के लिए मुझे विशेषज्ञों को नियुक्त करने की अनुमति भी दी। मैं अपनी कमियों को लेकर ईमानदार थी और मेरे सीखने के दौरान वे धैर्य से काम ले रहे थे। मैंने बोर्ड को पेशेवर बनाने के लिए भी उनके साथ काम किया। हमने नए नियम बनाए, उनके साथ विभिन्न मुद्दों पर चर्चा की और नई शर्तों के साथ आए। स्पष्ट निर्णय लेने और संगठनात्मक संरचना तैयार करने के लिए यह सब बहुत महत्वपूर्ण था।

इस यात्रा को शुरू करने वाले लोगों को सलाह

एक सफल नेतृत्व परिवर्तन के पांच वर्षों में मैंने इस प्रक्रिया को बेहतर और सहज करने के लिए यह सीखा।

1. अपने पूर्ववर्ती को अपना मेंटॉर बनाए

पिछले नेता को कम से कम एक वर्ष तक नए नेता के लिए एक आधिकारिक और नियोजित सलाहकार के रूप में काम करना चाहिए। यह दर्शाता है कि दोनों नेताओं के पास संगठन के लिए एक समान दृष्टि और महत्वाकांक्षा है, और यह पूरे संगठन के लिए नए नेता को स्वीकार करना आसान बनाता है। इसके अलावा, इससे टीम को समायोजित होने का समय मिलता है और नेतृत्व परिवर्तन फंडर्स और अन्य बाहरी हितधारकों के सामने एक अचानक हुए परिवर्तन के रूप में सामने नहीं आता है। यह नए नेता को संगठन के तरीकों से प्रशिक्षित करने के लिए बोर्ड पर पड़ने वाले बोझ को भी कम करता है।

2. भविष्य के नेताओं को प्रशिक्षित करने की संस्कृति का निर्माण करें

यदि आप सबसे पहले संगठन के भीतर ही भावी नेता को ढूंढने का प्रयास करते हैं तो नेतृत्व परिवर्तन की प्रक्रिया सहज हो जाती है। उत्तराधिकारी को बनाने और तैयार करने की ज़िम्मेदारी हर वरिष्ठ नेता के काम का हिस्सा होना चाहिए। संगठन के भीतर ही दूसरी पंक्ति का नेतृत्व तैयार करना बहुत ही आवश्यक है और एक आदमी के चले जाने की स्थिति में काम रुकना नहीं चाहिए।

ब्रेकथ्रू में इस काम को करने के लिए 2018 में हमने उभरते हुए नेतृत्व टीम के रूप में 40 सीनियर लीडर्स का एक समूह बनाया। 40 में से हमने 10 लोगों का एक मुख्य समूह बनाया जिन्हें संगठन के लक्ष्य और दृष्टि को पाने के लिए बारी-बारी से इस पद की ज़िम्मेदारी निभानी थी। दो साल बाद 10 लोगों के एक दूसरे समूह ने इस ज़िम्मेदारी को उठाया। इस तरह हमारे पास वरिष्ठ सदस्यों का एक समूह था जो भविष्य में किसी भी प्रकार के परिवर्तन के लिए तैयार था।

3. सुपरिभाषित लक्ष्य बनाएं

संगठन के लिए स्पष्ट लक्ष्य, एक संरचना और योजना बनाएं। हम एक साल के लिए अपने संगठनात्मक मील के पत्थर को गतिविधियों के एक सेट के माध्यम से परिभाषित करते हैं। इनमें से 80 प्रतिशत निश्चित और तय होते हैं और 20 प्रतिशत लचीले। यह अच्छी तरह से परिभाषित संरचना और लक्ष्य नए नेता की भी मदद कर सकते हैं। इससे उन्हें शुरुआत से शुरू नहीं करना पड़ता है और उन्हें मालूम होता है कि किस रास्ते पर आगे बढ़ना है।

4. अपने लिए समय निकालें

अंत में, एक ऐसे नेता के रूप में जिसने जिम्मेदारियों को जोड़ा है और जिसे बदलाव की अराजकता से जूझते हुए उम्मीदों पर खरा उतरना है, हर समय काम करने के लिए तैयार रहें। लेकिन अपने लिए भी समय निकालें। गैर-कामकाजी समय में भी ई-मेल की जांच करना और कॉल का जवाब देना हमारे सोच में शामिल है। हालांकि, यह समझना जरूरी है कि काम और जिम्मेदारियां कभी खत्म नहीं होती हैं। काम की मात्रा को पहचानने के बाद अपनी सेहत पर भी ध्यान देने की योजना बनाएं। पूरी तरह से ऊर्जाहीन हो जाने और मानसिक थकान की स्थिति भी होती है और ये कभी भी उत्पादक नहीं हो सकती।

अपने-आप को बेहतर बनाए रखने पर ध्यान केंद्रित करने से आपको अपनी भूमिका को लंबे समय तक बनाए रखने में मदद मिलेगी। मेरी ही तरह की यात्रा पर जाने वाले साथियों को यही कहना है कि अपने परिवार और अपने दोस्तों से जुड़ाव रखें। इस तरह की भूमिकाओं को निभाने के लिए अपने परिवार का साथ होना बहुत आवश्यक है। ताकि वे कई-कई घंटे काम करने और छुट्टियों, पर्व-त्योहार, उत्सवों में उपस्थित न होने के कारण को समझ सकें। स्वयं को सामने आने वाले संकट, आपदा और बुरे समय के लिए ताक़त से भर लें। और अपने आत्म-विश्वास को बढ़ाए रखें क्योंकि निश्चित रूप से ऐसे मौके भी आएंगे जब आपको अपने ऊपर संदेह होगा।

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लेखक के बारे में
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सोहिनी भट्टाचार्य

ब्रेकथ्रू की सीईओ, सोहिनी भट्टाचार्य एक सामाजिक परिवर्तन कार्यकर्ता हैं जिन्हें सामाजिक सेक्टर में 25 वर्षों से अधिक का अनुभव है। ब्रेकथ्रू से पहले, उन्होंने एक जेंडर रिसोर्स सेंटर की सह-स्थापना की; जमीनी समुदायों के साथ सीधे काम किया और एक राष्ट्रीय समाजसेवी संस्था के लिए बाजार-कारीगर इंटरफेस बनाया। सोहिनी ने जनता के लिए अशोका इनोवेटर्स में 10 साल बिताए, और एशियन वेंचर परोपकार नेटवर्क के लॉन्च के पहले तीन महत्वपूर्ण वर्षों में भारत रणनीति सलाहकार के रूप में भी काम किया। वे रीड इंडिया की संस्थापक ट्रस्टी हैं, और दस्तकार, कोलकाता संवेद और आकार सोशल वेंचर्स की बोर्ड सदस्य हैं।

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