March 6, 2024

आज के लाभार्थी, कल के दानदाता कैसे बन सकते हैं?

एफएफई का एल्मनाई एंगेजमेंट मॉडल बताता है कि समाजसेवी संस्थाओं से सहयोग और समर्थन पाने वाले, उनके कार्यक्रमों को लंबे समय तक चलाए रखने वाले फ़ंडिंग मॉडल का हिस्सा कैसे बन सकते हैं।
14 मिनट लंबा लेख

जब हम किसी संभावित समाजसेवी दानकर्ता (नॉन-प्रॉफिट डोनर्स) के बारे में सोचते हैं तो हमारे मन में अनुदान-देने वाले फाउंडेशन, कॉरपोरेशन, और बहुत अधिक संपत्ति वाले लोगों (एचएनआई) की छवि उभर कर आती है। लेकिन क्या किसी समाजसेवी संस्था के कार्यक्रमों से लाभान्वित होने वाले लोग लंबे समय तक चलने वाली फंडिंग प्रक्रिया के लिए प्रेरक शक्ति बन सकते हैं? यदि हां, तो उन्हें अपने हिस्से का योगदान देने के लिए कैसे प्रेरित किया जा सकता है? ऐसे ही प्रश्नों के बारे में गहराई से जानने के लिए यह केस स्टडी, फाउंडेशन फॉर एक्सीलेंस (एफएफई) और उसकी एल्मनाई एंगेजमेंट के बड़े प्रयासों पर नजर डालती है।

एफएफई वित्तीय बाधाओं का सामना करने वाले मेधावी छात्रों को कॉलेज की डिग्री के लिए छात्रवृत्ति प्रदान करता है। इसके लिए आमतौर पर ऐसे छात्रों को चुना जाता है जिनमें इंजीनियरिंग, मेडिकल, फ़ार्मेसी या कानूनी पढ़ाई (भारत में सबसे महंगे उच्च शिक्षा कार्यक्रमों में से कुछ) में आगे बढ़ने की प्रबल संभावना होती है। छात्रवृति के अलावा इन छात्रों को रोज़गार के लिए आवश्यक कौशल प्रशिक्षण और उन क्षेत्रों के विशेषज्ञों द्वारा नियमित रूप से दिशा-निर्देशन भी दिया जाता है। एक बार जब उनकी डिग्री पूरी हो जाती है तब वे एफएफई के पूर्व छात्र (एल्मनाई) बन जाते हैं।

साल 2010–11 में एफएफई को अपने पूर्व छात्रों से कुल 21 लाख रुपये का दान मिला था। तब से, पूर्व छात्रों द्वारा मिलने वाले दान की हिस्सेदारी में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जो 2021-22 में 1538 पूर्व छात्रों से 4.2 करोड़ रुपये (पूर्व छात्रों द्वारा संचालित मिले दान और सीएसआर फंड सहित) तक पहुंच गई।

लेकिन किस बात ने एफएफई को पूर्व छात्र सहभागिता वाले इस दृष्टिकोण को अपनाने के लिए प्रेरित किया? और उन्होंने इसे कैसे कारगर बनाया है?

फेसबुक बैनर_आईडीआर हिन्दी

पूर्व छात्रों को शामिल करने का निर्णय लेने से पहले एफएफई संगठनात्मक रूप से कहां था?

साल 1994 में एफएफई की स्थापना के बाद से, छात्रवृति के लिए चुने गये छात्र इस बात की प्रतिज्ञा लेते हैं कि सक्षम होने के बाद से वे कम से कम दो अन्य छात्रों की शिक्षा का खर्च उठाएंगे। हालांकि, संगठन के शुरुआती दिनों में इसके कार्यकारी निदेशक और बोर्ड अमेरिका में थे। भारत की टीम में बड़े पैमाने पर वॉलंटियर शामिल थे, और उनका ध्यान उन छात्रों की पहचान करने पर था जो छात्रवृति पाने के योग्य थे। नतीजतन, पढ़ाई पूरी कर निकल चुके लोग उनकी प्राथमिकता में शामिल नहीं थे। इसके अलावा, संगठन के पूर्व छात्रों के डाटाबेस की स्थिति भी अच्छी नहीं थी। उनसे पास अपने पूर्व छात्रों से संपर्क का एक मात्र ज़रिया वे चिट्ठियां थीं जो उनमें से कुछ ने संगठन को लिखे थे।

साल 2003 में एफएफई इंडिया ट्रस्ट की स्थापना के बाद, इसने भारत में ऐसी व्यवस्था बनाई ताकि पूर्व छात्र दान कर सकें। शुरुआत में उन्हें एफएफई के वॉलंटियर बेस के माध्यम से ट्रस्ट के बारे में जागरूक किया गया था। छात्रवृत्ति को प्रचारित करने और इसके लिए योग्यता प्राप्त करने वाले छात्रों की पहचान करने के लिए समुदाय के साथ मिलकर काम करने के कारण, इन वॉलंटियरों ने पूर्व छात्रों के साथ एक संबंध विकसित कर लिया, जिसका लाभ उन्होंने दान को प्रोत्साहित करने के लिए उठाया।

एफएफई की प्रबंध ट्रस्टी सुधा किदाओ ने कहा कि उन्होंने 2011 में धीरे-धीरे पूर्व छात्रों का डेटाबेस बनाना शुरू किया। ‘उसके पहले, हम इस विश्वास के साथ काम कर रहे थे कि हमें दान के लिए अपने पूर्व छात्रों से संपर्क नहीं करना चाहिए क्योंकि वे जब इसके योग्य होंगे तो स्वयं ही इसकी पहल करेंगे। लेकिन एक बार अपने पूर्व छात्रों से बातचीत शुरू करने के बाद मुझे ऐसा लगा कि इनसे संपर्क करने और दान देने के लिए प्रोत्साहित करना ग़लत नहीं है। अख़िरकार, उनकी अलग-अलग तरह की प्राथमिकताएं हो सकती हैं और संभव है कि एफएफई उनके दायरे में भी ना हो।’

पीले रंग की पृष्ठभूमि पर गियर_फंडरेजिंग
जब अपने निवेश पर रिटर्न पाने की बात आती है तो दानकर्ताओं को लंबी-अवधि वाला दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। | चित्र साभार: कैनवा प्रो

पूर्व छात्रों से संपर्क की चुनौतियां

इस बात को समझने के बाद उनके पास पूर्व छात्रों के रूप में एक ऐसा संसाधन स्रोत है जिसका इस्तेमाल उन्होंने अभी तक दान पाने के लिए नहीं किया, एफएफई ने उनके साथ सक्रिय रूप से संपर्क स्थापित करने और इस काम में अधिक संसाधन के निवेश का फ़ैसला किया। एफएफई के संस्थापक, डॉक्टर प्रभु गोयल का इस दृष्टिकोण में बहुत अधिक विश्वास होने के कारण उन्होंने पूर्व छात्रों से संपर्क स्थापित करने वाले टीम को नियुक्त करने के लिए फंड मुहैया करवाया। उनसे मिले अप्रतिबंधित अनुदान ने उनके पूर्व छात्र कार्यक्रम को कारगर बनाने में ज़रूरी भूमिका निभाई।

शुरुआती कुछ वर्ष चुनौतीपूर्ण थे; एफएफई के डेटाबेस में उपस्थित पूर्व छात्रों की जानकारी अधूरी, पुरानी या ग़लत थी। इसलिए, 2010–11 के दौरान, एफएफई की टीम ने उन वालंटियर और पूर्व छात्रों के परिवारों से संपर्क किया और उनके बारे में जानकारी जुटाई। उस समय, प्रतिक्रिया और दान देने वाले पूर्व छात्रों की संख्या कम थी। साथ ही, एफएफई ने पूर्व छात्रों से यह भी अनुरोध किया कि वे स्थानीय समुदायों में संगठन के कार्यक्रमों के बारे में जागरूकता पैदा करने, अन्य छात्रों की पहचान करने में मदद करने जो उनकी छात्रवृत्ति से लाभान्वित हो सकते हैं, और प्रौद्योगिकी आवश्यकताओं और फ़ंडिंग में सहायता मांगने जैसे कामों में भाग लें। इस सोच के पीछे पूर्व छात्रों के साथ संपर्क को बढ़ाना था और साथ ही यह भी ध्यान में रखना था कि संगठन का ध्यान केवल उनसे दान लेने तक ही सीमित ना रहे। इस प्रकार, एफएफई टीम ने धीरे-धीरे एक व्यापक पूर्व छात्र डेटाबेस बनाना शुरू कर दिया।

“मैंने पूर्व छात्रों के कार्यालयों के साथ बहुत बातचीत की, लेकिन मुझे पता चला कि वे वास्तव में सफल नहीं थे।

इसके अलावा, चूंकि एफएफई के कई बोर्ड सदस्य प्रमुख शैक्षणिक संस्थानों से जुड़े थे, इसलिए वे यह देख पाने में सक्षम थे कि इन संस्थानों के एलुमनाई नेटवर्क कैसे काम करते हैं। नज़दीक से इस मामले को देखने के बाद उनके सामने एक चुनौती उभर कर आई। सुधा कहती हैं कि ‘मैंने पूर्व छात्रों के कार्यालयों के साथ बहुत बातचीत की, लेकिन मुझे पता चला कि वे वास्तव में सफल नहीं थे। बल्कि विभिन्न बैचों के कुछ लोग ही थे जो लगे रहे और अपने साथी बैचमेट्स को संस्थान के लिए कुछ करने के लिए प्रोत्साहित किया। लेकिन इन छात्रों में एक बात समान थी – वे उस कैंपस के थे और ज़्यादातर एक-दूसरे के सहपाठी थे। हमारे छात्रों के साथ यह बात नहीं थी। उन सभी की पढ़ाई दो सौ से अधिक, विभिन्न कॉलेज में हुई थी और उनका या तो आपस में कभी किसी तरह का संपर्क नहीं हुआ था या फिर एक दूसरे को बहुत कम जानते थे। एकमात्र समानता उनकी एफएफई छात्रवृत्ति थी।’ इस प्रकार, पूर्व छात्रों को अपने साथी बैचमेट को संस्था को कुछ वापस देने के लिए प्रोत्साहित करने वाला संस्थागत मॉडल एफएफई के लिए कारगर नहीं था।

परिणाम स्वरूप, एफएफई ने यह सोचकर अपने पूर्व छात्रों के लिए एक वेब पोर्टल विकसित करने की योजना बनाई ताकि इससे वे एक-दूसरे के साथ बातचीत कर सकें  और उनके भीतर समुदाय की भावना पैदा हो सके। एक उदार अप्रतिबंधित अनुदान के माध्यम से, एफएफई ने एक छात्र संघ वेब पोर्टल लॉन्च किया, लेकिन आशा के विपरीत इससे अनुदान या संपर्क दर में बहुत अधिक वृद्धि नहीं आई। तब तक फ़ेसबुक, लिंक्डइन और अन्य सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म लोकप्रिय होने शुरू हो गये थे। और, एफएफई और पूर्व छात्रों से जुड़ी जानकारियों को हासिल करने के लिए अलग से एक दूसरे पोर्टल पर जाने का विचार लोगों के लिए आकर्षक और प्रभावशाली नहीं रह गया था। इसलिए, एफएफई ने पूर्व छात्रों से संपर्क को बढ़ाने के लिए वैकल्पिक मॉडल पर काम करना शुरू कर दिया।

सफलता की राह पर धीरेधीरे आगे बढ़ना

1. अंतरराष्ट्रीय संस्थानों से सीखना

प्रभु ने बाद में सुधा को स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र कार्यालय से जोड़ा। वे अपेक्षाकृत अधिक व्यक्तिगत बातचीत को बढ़ावा देने के लिए अपने पूर्व छात्रों से नियमित संपर्क के महत्व पर जोर देते हैं। सबसे महत्वपूर्ण बात यह थी कि, स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय की टीम के साथ अपनी बातचीत के दौरान सुधा ने यह सीखा कि कुछ पूर्व छात्र शायद इसलिए भी दान नहीं देना चाहेंगे क्योंकि उन्हें लगता है कि – भले ही उनके लिए उनका दान महत्वपूर्ण है – लेकिन अधिक धनी पूर्व छात्रों द्वारा दिये जाने वाले दान के सामने उनका दान छोटा या कम लगेगा। इस सोच से एफएफई को यह समझने में मदद मिली कि पूर्व छात्रों से संपर्क करते समय उन्हें दान (इसके आर्थिक मूल्य से परे) के महत्व को रेखांकित करना चाहिए।

परिणामस्वरूप एफएफई ने वह मॉडल अपनाया जहां वे अपने पूर्व छात्रों को नियमित कॉल करते थे। हालांकि इस मॉडल में संसाधन के साथ-साथ पूरे साल नियमित रूप से संपर्क को बनाए रखने की ज़रूरत थी, यह मॉडल एफएफई द्वारा अपनाई गई सभी रणनीतियों में सबसे अधिक प्रभावशाली थी। शुरुआत में संगठन ने 1.5 लोगों की टीम के साथ इसकी शुरुआत की जिनका मुख्य काम टेलीफ़ोनिक कॉल, व्हाट्सऐप संदेशों, दान अभियानों आदि के माध्यम से पूर्व छात्रों से संपर्क स्थापित करना था। वर्तमान में इस टीम में कुल पांच लोग हैं जो पूरे समय इसी काम में लगे रहते हैं।

रणनीति बहुत ही साधारण थी लेकिन साथ ही उनके लिए अपने पूर्व छात्रों के पेशेवर यात्रा से जुड़ी नई से नई जानकारी जुटाना आवश्यक था। एफएफई उनसे संपर्क करता था, उनकी सफलता पर उन्हें बधाई देता था और उन्हें उनके द्वारा ली गई प्रतिज्ञा की याद दिलाता था। हालांकि, इस तरीक़े की अपनी चुनौतियां थीं। जहां एक तरफ़ कुछ पूर्व छात्र पूरी तरह से उनके कॉल और संदेशों को नज़रअन्दाज़ कर देते थे, वहीं कुछ की प्रतिक्रिया या तो ग़ुस्से वाली होती थी या फिर बातचीत के दौरान वे इस बात का संकेत देते थे कि वे दान के लिए तैयार नहीं हैं। हमारा सौभाग्य था कि एफएफई से मिलने वाले संदेशों और कॉल से खुश होने वाले पूर्व छात्रों की संख्या लगातार बढ़ रही थी और वे दान भी देने के इच्छुक थे।

2. मिलतेजुलते अनुदान लागू करना

सुधा ने भी बताया कि एफएफई के लिए मिलते-जुलते अनुदान (मैचिंग ग्रांट) भी एक महत्वपूर्ण स्रोत हैं। ‘मैंने अमित (चंद्रा) से बात की, जो हमारे इस पूर्व छात्र कार्यक्रम से बहुत अधिक प्रभावित थे, और वे जानना चाहते थे कि आप अपने अनुदान को आगे कैसे ले जा सकते हैं।’ परिणाम स्वरूप, एफएफई ने अमित और प्रभु जैसे फंडरों को इस बात के लिए प्रोत्साहित करना शुरू किया कि वे पूर्व छात्रों के दान से मैच करें। पूर्व छात्रों को यह मैचिंग अनुदान विशेष रूप से आकर्षक लगा और यह जानते हुए कि उनके दान को प्रभावी ढंग से कई गुना बढ़ाया जा रहा था, वे अधिक मात्रा में दान करने को तैयार थे।

अनुदान-मिलान प्रयास की सफलता ने उन्हें कॉग्निजेंट से संपर्क करने के लिए प्रेरित किया, जिसने हर साल 50 लाख रुपये तक दान देने का वादा किया। एफएफई-कॉग्निजेंट साझेदारी की शुरुआती पुनरावृत्ति ने 250 छात्रों के एक बैच को वित्त पोषित किया (जहां छात्रवृत्ति राशि का 50 प्रतिशत एफएफई पूर्व छात्रों से और 50 प्रतिशत कॉग्निजेंट से आया था), और तब से अधिक बैचों को मैचिंग अनुदान से फंड किया गया है।

2016-17 में, एफएफई ने अपने पूर्व छात्रों के साथ यह जांचने के लिए बातचीत शुरू की थी कि क्या जिन कंपनियों में उन्होंने काम किया है, वे भी अनुदान मैचिंग से जुड़े हुए हैं। ऐसा करने वाली कंपनियों की संख्या बहुत कम थी, क्योंकि अधिक छात्रों ने स्नातक की उपाधि प्राप्त की और विभिन्न क्षेत्रों को कवर करने वाली विविध कंपनियों में रोजगार प्राप्त किया, एफएफई की हालिया जानकारी (वित्त वर्ष 2020-21 से) से पता चला कि कई बहुराष्ट्रीय कंपनियां अपने कर्मचारियों द्वारा प्रदान किए गए दान के बराबर दान करने के लिए तैयार थीं।

3. सोशल मीडिया का अधिकतम उपयोग करना

एफएफई पूर्व छात्रों तक पहुंचने, उनके योगदान की खुशी मनाने, कार्यक्रमों का प्रचार करने, पूर्व छात्रों को साथियों और विद्वानों से जोड़ने और अभियान चलाने के लिए सोशल मीडिया का लाभ उठाता है। लिंक्डइन ने विशेष रूप से संगठन को उन पूर्व छात्रों तक पहुंचने में मदद की है जिनसे उनका संपर्क टूट गया था। इससे  उनकी पेशेवर यात्राओं पर नज़र रखने में भी मदद मिली है। पूर्व छात्रों द्वारा एफएफई के कॉल या ईमेल का जवाब नहीं देने की स्थिति में अब वे अपने डेटाबेस का उपयोग ऐसे अन्य छात्रों की पहचान के लिए कर सकने में सक्षम होते हैं जो उसी समय में समान विश्वविद्यालय में पढ़ाई कर रहे थे। ऐसे छात्रों की पहचान के बाद वे उनसे एफएफई के पूर्व छात्रों से संगठन की ओर से संपर्क करने का अनुरोध करते हैं।

एफएफई ने अपने छात्रों के लिए प्रशिक्षण, वेबिनार और बहुत कुछ आयोजित करने के लिए कंपनियों के साथ बातचीत को सक्षम करने के लिए सोशल मीडिया का भी लाभ उठाया है। इसके अलावा वह सोशल मीडिया का लाभ अपने छात्रों तथा पूर्व छात्रों के लिए नई नौकरियों की जानकारी देने; वॉलंटियर बनकर मेंटर और फ़ेसिलिटेटर (पूर्व छात्र हैं जो एफएफई को छात्रवृत्ति आवेदकों के लिए सत्यापन प्रक्रिया को पूरा करने में मदद करते हैं) के रूप में अपनी सेवाएं देने वालों को सूचीबद्ध करने की प्रक्रिया में भी उठाता है।

4. तकनीक का उपयोग एक साधन के रूप में करना

साल 2016 के आसपास, संगठन को यह महसूस हुआ कि उन्हें अपने रोज़मर्रा के संचालन के लिए किए गये तकनीक के उपयोग में बेहतरी लाने की ज़रूरत है। सुधा कहती हैं कि ‘यह बहुत स्पष्ट था कि हमारे द्वारा इस्तेमाल की जा रही प्रबंधन सूचना प्रणाली (मैनेजमेंट इनफार्मेशन सिस्टम) मज़बूत नहीं थी, और हमारे बहुत सारे आंकड़े या तो दोहराव वाले थे या फिर ग़लत। हमें यह महसूस हुआ कि अगर हम अपना विस्तार चाहते हैं तो हमें तुरंत ही तकनीक में निवेश करने की ज़रूरत है। उस समय हमारे सीओओ ने हमारी प्रणाली का मूल्यांकन किया और सेल्सफोर्स (एक सीआरएम सॉफ्टवेयर) में निवेश का सुझाव दिया। सौभाग्य से हमारा बोर्ड इसके लिए तैयार हो गया। वर्तमान में, हमारे सभी सिस्टम सेल्सफ़ोर्स में एकीकृत हो गये हैं।’

विशेष रूप से अपने विस्तार को सक्षम बनाने के संदर्भ में तकनीक में निवेश हमारे संगठन के लिए बहुत अधिक लाभदायक साबित हुआ।

एफएफई के सभी छात्रवृत्ति कार्यक्रम और परामर्श/प्रशिक्षण कार्यक्रम को सेल्सफोर्स में एकीकृत किया गया है। इसके अलावा, इसका उपयोग पढ़ाई पूरी होने की बाद पूर्व छात्रों की सूची में शामिल होने वाले छात्रों और पूर्व छात्र रिपोर्ट (एल्मनाई रिपोर्ट) पर नज़र रखने के लिए भी किया जाता है। इसलिए, तकनीक में निवेश करना संगठन के लिए बहुत अधिक लाभदायक साबित हुआ है, विशेष रूप से संगठन के विस्तार के संदर्भ में। सुधा कहती हैं ‘अगर हमें 25 हज़ार छात्रों को छात्रवृति देने के लिए कोई बहुत बड़ा अनुदान मिलता है तो मैं जानती हूं कि हम ऐसा कर पाने में सक्षम हैं। सेल्सफोर्स पर अपनी मौजूदा सुविधाओं को बढ़ाने के लिए हमें कुछ पैसों का निवेश करना पड़ सकता है, लेकिन मैं विश्वास के साथ कह सकती हूं कि सिस्टम काम करेगा और हम संतोषजनक परिणाम दे सकते हैं।’ हालांकि इस मामले में एफएफई बड़ा सौभाग्यशाली है कि उसके पास कुछ ऐसे इंजीनियर थे जो सेल्सफोर्स के संचालन में कुशल थे, उन्हें सॉफ्टवेयर की क्षमताओं का पूरी तरह से उपयोग करने के लिए अधिक इंजीनियरिंग भागीदारों और विशेषज्ञता की आवश्यकता थी। इसी चरण में कोग्निजेंट की भूमिका प्रबल हुई। कॉग्निजेंट ने सेल्सफोर्स के उपयोग को अनुकूलित करने में मदद करने के लिए अपनी वरिष्ठ टीम से एफएफई को मुफ्त समय की पेशकश की – जिसकी कीमत अन्यथा 50 लाख रुपये होती। (इससे काफी मदद मिली कि 75 से अधिक एफएफई पूर्व छात्र कॉग्निजेंट में कार्यरत थे।)

कागज़ का कूड़ा और एक कूड़ादान_फंडरेजिंग
शुरुआती कुछ साल चुनौतीपूर्ण थे, एफएफई के डेटाबेस में पूर्व छात्रों की जानकारी अक्सर अधूरी, पुरानी या गलत थी। | चित्र साभार: पेक्सेल्स

यह याद रखना कि प्रत्येक व्यक्ति एक फ़ंडर हो सकता है

ज़्यादातर अन्य समाजसेवी संस्थान की तरह एफएफई के पास फंडरेजिंग के लिए एक समर्पित टीम नहीं है। लेकिन पूर्ण रूप से समर्पित कर्मचारियों की कमी से इसे मिलने वाले दान के आकार और गुणवत्ता पर किसी तरह का प्रभाव नहीं पड़ता है।

सुधा ने इस बात का ज़िक्र किया कि संगठन ने इस सिद्धांत को ठोस करने के लिए अतिरिक्त प्रयास किये कि सभी कर्मचारी फ़ंडिंग का काम कर सकते हैं। ‘मुझसे अक्सर यह प्रश्न किया जाता है कि एफएफई की फंडरेजिंग टीम में कितने लोग हैं। हमारे पास ऐसी कोई टीम नहीं है। मैं हमेशा यह कहती हूं कि हमारी टीम इतना अच्छा काम करती है कि हमें अलग से कुछ बताने की ज़रूरत नहीं है।’ संगठन इस प्रकार टीम के प्रदर्शन करने की क्षमता पर भरोसा करता है, और अपने कार्यक्रमों को चलाने में उनकी निरंतर सफलता ने एक अलग धन उगाहने वाली टीम पर भरोसा किए बिना उनके धन जुटाने के प्रयासों पर सकारात्मक प्रभाव डाला है।

भारत और अमेरिका में एफएफई के बोर्ड सदस्यों ने – अपनी प्रबंधन टीम, डोनर रिलेशन टीम और एल्मनाई टीम के साथ-साथ – धन जुटाने में मदद की है। धन जुटाने के लिए ठोस और सहयोगात्मक दृष्टिकोण के परिणाम मिले हैं। जब संगठन एफएफई को उनके प्रभाव के लिए बधाई देने या धन्यवाद देने के लिए संपर्क करते हैं, तो संगठन इसे उनके द्वारा किए जा रहे काम के बारे में दूसरों को बताने के लिए प्रोत्साहित करने के अवसर के रूप में उपयोग करता है। इससे फंडिंग या सहयोग के अतिरिक्त अवसर भी खुलते हैं।

दूसरी तरफ, जब एफएफई मदद के लिए अपने पूर्व छात्रों से संपर्क करता है तब वह उन्हें ऐसे पांच या अधिक तरीक़ों का सुझाव भी देता है जिससे वे अपना योगदान दे सकते हैं। सीधे दान करने के अलावा, वे इस बात का भी पता लगाते हैं कि क्या उनके पूर्व छात्र सीएसआर फंड/ मैचिंग अनुदानों के माध्यम से अपने नियोक्ताओं से दान करने की बात पूछ सकते हैं। इसके अलावा, वे यह भी पता लगाते हैं कि क्या ये पूर्व छात्र अपने दोस्तों या सहकर्मियों के नेटवर्क में दान की बात प्रस्तावित कर सकते हैं। एफएफई उनसे छात्रवृति कार्यक्रम के लिए छात्रों की पहचान करने, फ़ेलिसीटेटर के रूप में बैकग्राउंड सत्यापन प्रणाली में मदद करने और वर्तमान में छात्रवृति कार्यक्रम में शामिल छात्रों का दिशा निर्देशन करने के लिए भी कहता है। सुधा का कहना है कि यह दृष्टिकोण पूर्व छात्रों को उस तरीके से मदद करने का अवसर प्रदान करता है जो उनके जीवन के उस विशेष चरण में उनके लिए सबसे उपयुक्त हो। सुधा कहती हैं कि ‘आप हर चीज़ के लिए ना कैसे कह सकते हैं?’

समाजसेवी संस्थाओं के लिए सुझाव

1. अपने कार्यक्रम से लाभ पाने वालों को संभावित दाताओं के रूप में देखें

एफएफई टीम इस समझ के साथ काम करती है कि आज वे जिस प्रतिभाशाली छात्र की सहायता करते हैं, वह कल संगठन के लिए दाता बन सकता है। अपनी छात्रवृत्ति के प्राप्तकर्ताओं को चेंजमेकर्स और दाताओं के रूप में देखकर, संगठन उन्हें वह सम्मान प्रदान करता है जो अक्सर गायब होता है जब समाजसेवी संस्थाएं समुदायों को केवल एक लाभ हासिल करने वाले के रूप में देखती हैं। इस प्रकार संगठन अपने छात्रों के बीच देने की संस्कृति भी विकसित करना चाहता है। सुधा ने इस बात पर जोर दिया कि छात्रों को देने के महत्व को समझाना बहुत महत्वपूर्ण है। वे कहती हैं कि ‘मैं हमेशा उन्हें (छात्रों को) कहती हूं कि कोई ऐसा जो आपको नहीं जानता था उसने आप पर भरोसा किया और वह आप में निवेश करना चाहता है। क्या आप भी किसी के लिए ऐसा कर सकते हैं?’ यह विचार कि जो लोग सहायता प्राप्त करते हैं वे संभावित दाता हो सकते हैं, केवल विशिष्ट प्रकार के कार्यक्रमों और उन समूहों के साथ काम करने वाले समाजसेवी संस्थाओं के लिए व्यवहारिक होगा जिनके पास भविष्य में देने की क्षमता होगी। फिर भी आजीविका और शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वाले समाजसेवी संस्थाओं के लिए यह एक बड़ी सलाह है।

सुधा कहती हैं कि ‘बहुत सारे संगठन कहते हैं कि उन्होंने 25 हज़ार लोगों को कुशल बनाया है, लेकिन क्या वे जानते हैं कि वे लोग आज कहां हैं? वे क्या कर रहे हैं?’ पिछले पांच वर्षों में, एफएफई पूरे वर्ष छात्रों के साथ जुड़ा रहा है (कौशल प्रशिक्षण, नेतृत्व और तकनीकी प्रशिक्षण, सेमिनार/वेबिनार और सलाह के माध्यम से)। इसके परिणामस्वरूप पिछले वर्षों की तुलना में छात्रों के साथ अधिक मजबूत संबंध बने हैं। पूर्व छात्रों के साथ संबंध ने उनके लिए वित्त पोषण का एक स्थायी स्रोत खोल दिया है और वे अपने वर्तमान छात्रों को प्रदान करने में सक्षम समर्थन को बढ़ाते हैं।

इसके अलावा, कुछ पूर्व छात्रों को विशेष आमंत्रित सदस्य के रूप में एफएफई के बोर्ड में शामिल किया गया है। जो लोग अपने कार्यक्रमों के माध्यम से नेतृत्व की भूमिकाओं में हैं, उन्हें स्थान देकर, संगठन यह सुनिश्चित करता है कि जिस समुदाय की हम सेवा करते हैं, उसका प्रतिनिधित्व निर्णय लेने के स्तर पर हो।

2. मदद मांगने से डरे नहीं

चूंकि एफएफई पहले से ही छात्रों के बीच देने की संस्कृति को विकसित करने का काम करता है, इसलिए वे पूर्व छात्र बनने के बाद छात्रों की वापस देने की इच्छा को प्रभावी ढंग से पूरा करने में सक्षम हैं। लेकिन मदद करने की इच्छा रखने के बावजूद ज़रूरी नहीं है कि प्रत्येक व्यक्ति हमेशा वापस देने के प्रति सक्रिय हो ही। यह कई कारणों में से एक है कि उनसे पूछने की प्रक्रिया एफएफई के मॉडल का एक अभिन्न अंग है।

सुधा कहती हैं कि ‘शुरुआत के कुछ वर्षों में पूर्व छात्र कार्यक्रम प्रभावी ढंग से काम नहीं कर सका क्योंकि हमने उनसे कभी मदद नहीं मांगी।’ सुधा यह भी कहती हैं कि अस्वीकृति स्पष्ट रूप से एक अलग संभावना है, उन्होंने कहा, ‘मुझे लगातार अस्वीकृति का सामना करना पड़ता है (दान के संबंध में), लेकिन मैं आसानी से हार मानने वालों में से नहीं हूं। पहले, मैं अस्वीकृति को व्यक्तिगत रूप से लेती थी, लेकिन अब मैं खुद को याद दिलाती हूं कि यह मेरे लिए नहीं बल्कि संगठन के लिए है। इसलिए मुझे मदद मांगने में कोई झिझक नहीं होती है।’

ऐसे कई तरीकों की रूपरेखा तैयार करना महत्वपूर्ण है जिनसे व्यक्ति/संगठन मदद कर सकते हैं।

ऐसे कई तरीकों की रूपरेखा तैयार करना भी महत्वपूर्ण है जिनसे व्यक्ति/संगठन मदद कर सकते हैं। जैसा कि पहले भी बताया गया है, एफएफई विभिन्न प्रकार का समर्थन प्राप्त करने में सक्षम है क्योंकि वे मदद के लिए पूर्व छात्रों या संगठनों से संपर्क करते समय केवल दान नहीं मांगते हैं। जब पूर्व छात्र या संगठन परामर्श या प्रशिक्षण में सहायता करते हैं, तो यह एफएफई को लागत-गहन प्रयासों को बचाने में मदद करता है और साथ ही उस पक्ष की पेशकश करता है जो एफएफई के छात्रों के जीवन को सकारात्मक रूप से प्रभावित करने के अवसर के साथ सहायता प्रदान करता है।

दाताओं के लिए सुझाव

1. समझें कि प्रभाव पड़ने में समय लगता है

जब अपने निवेश पर रिटर्न पाने की बात आती है तो दानकर्ताओं को दीर्घकालिक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए। यह देखते हुए कि कई संगठन लंबे समय से अपने समुदायों की स्थितियों में सुधार लाने पर काम कर रहे हैं, दानदाताओं के लिए तत्काल परिणाम की उम्मीद करना अव्यावहारिक है। सुधा कहती हैं कि ‘यदि आप संगठन और उद्देश्य में विश्वास करते हैं तो आपको उन पर भरोसा करना चाहिए कि वे अपने लिए बेहतर ही करेंगे।’

2. लोगों, प्रणालियों और तकनीक में निवेश करें

दानकर्ता आमतौर पर किसी कार्यक्रम विशेष की लागत के लिए दान देना चाहते हैं, लेकिन संगठनों को प्रतिभाओं को नियुक्त करने और प्रशिक्षित करने के लिए भी धन की आवश्यकता होती है। सुधा बताती हैं कि ‘कोई भी संगठन सही लोगों के बिना यह काम नहीं कर सकता। और यदि आप महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं तो आपको वेतन में कटौती क्यों करनी पड़ेगी?’ अपने बोर्ड पर प्रतिभाशाली लोगों को शामिल करने के अलावा, संगठनों को अपनी प्रक्रियाओं को सबसे कारगर बनाने की भी आवश्यकता होती है, जिसमें उपयुक्त तकनीक में निवेश भी शामिल हो सकता है। एफएफई द्वारा अपनाए गए पूर्व छात्र जुड़ाव मॉडल के लिए उन्हें एक व्यापक पूर्व छात्र डेटाबेस बनाने और उन्हें नियमित कॉल करने की आवश्यकता थी। संचालन को और बेहतर बनाने के लिए पूर्व छात्रों के जुड़ाव कार्यक्रम को सेल्सफोर्स में एकीकृत किया गया। पूर्व छात्र टीम का समर्थन करने के लिए अनुदान के बिना, पूर्व छात्र सहभागिता मॉडल काम नहीं कर पाता। अच्छे परिणाम प्राप्त करने के लिए लोगों, प्रक्रियाओं, तकनीक और समय की आवश्यकता होती है।

3. अप्रतिबंधित अनुदान प्रदान करें और इसके प्रभावी उपयोग के लिए संगठन पर भरोसा रखें

किसी संगठन के विकास और लचीलेपन और मानव पूंजी के निर्माण के लिए अप्रतिबंधित अनुदान आवश्यक होता है। साथ ही, जैसा कि एफएफई के पूर्व छात्र कार्यक्रम में देखा गया है, यह लचीलेपन को प्रयोग करने की अनुमति भी देता है। सख्ती से प्रोग्रामेटिक फंडों ने एफएफई की इन प्रक्रियाओं को विकसित करने और सही रणनीति और तकनीक को अपनाने की संभावनाओं में बाधा उत्पन्न कर सकती थी। यहीं पर अप्रतिबंधित अनुदान से उन्हें काफी मदद मिली। दूरदर्शी दाताओं के पास समाजसेवी संस्थाओं को अप्रतिबंधित धन प्रदान करने की क्षमता होने के कारण सार्थक तरीकों से बड़े पैमाने पर प्रभाव डालने में मदद मिल सकती है। अन्य समाजसेवी संस्थाएं भी अप्रतिबंधित अनुदान द्वारा प्रदान किए गए लचीलेपन से लाभान्वित हो सकती हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि यह उन्हें दीर्घकालिक रणनीति तैयार करने के लिए सुरक्षा प्रदान करेगा जो उनके संगठन को उनकी बेहतरी के लिए एक स्थायी ताकत के रूप में विकसित होने में मदद कर सकता है।

सुधा किदाओ फरवरी 2011 से फाउंडेशन फॉर एक्सीलेंस (एफएफई) इंडिया ट्रस्ट की मानद प्रबंध ट्रस्टी हैं। वे एफएफई-यूएसए की बोर्ड सदस्य भी हैं और 2005 से संगठन से जुड़ी हुई हैं जब उन्होंने कैलिफोर्निया में एफएफई के फंडिंग प्रयासों के लिए अपना समय स्वेच्छा से देना शुरू किया। सुधा ने टेक्सास विश्वविद्यालय से जीवविज्ञान (इम्यूनोलॉजी में विशेषज्ञता) में पीएचडी और मद्रास विश्वविद्यालय से प्राणीशास्त्र में बीएससी और एमएससी की पढ़ाई की है।

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अधिक जानें

  • इस लेख में जानें कि कैसे समाजसेवी संगठन डिजिटल परिवर्तन के लिए तकनीकी क्षमता का निर्माण कर सकते हैं।
  • जानें कि समाजसेवी संस्थाओं के लिए तकनीक से संबंधित कौन से ज़रूरी सुझाव हैं।

लेखक के बारे में
डेरेक ज़ेवियर-Image
डेरेक ज़ेवियर

डेरेक ज़ेवियर आईडीआर में सहायक सम्पादक हैं और लेख लिखने, सम्पादन और प्रकाशन से जुड़े काम देखते हैं। इससे पहले डेरेक ने कैक्टस कम्यूनिकेशन्स और फ़र्स्टपोस्ट में सम्पादक की हैसियत से काम किया है। उन्होंने यूनिवर्सिटी ऑफ़ ऐम्स्टर्डैम से मीडिया स्टडीज़ में एम और मुंबई के सेंट जेवियर कॉलेज से समाजशास्त्र और मानवविज्ञान में बीए की पढ़ाई की है।

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