बात यह नहीं थी कि कोई इलाज नहीं था या कोई विकल्प नहीं था। बात असल में पैसे की थी जो कि पलक (पहचान छिपाने के लिए नाम बदला गया है) को बचाने के लिए काफी नहीं थे। पलक की उम्र सिर्फ आठ साल थी और हमेशा उमंग से भरी हुई मुस्कुराहट उसके चेहरे पर रहती। खुशी से उछलती मधुर बाल गीत गाती थी और ताली बजा-बजा के खेलती थी।
एक दिन अचानक पता चला उसे खून का कैंसर हो गया है। इस कैंसर का इलाज हो सकता था। पलक की नसों में जो ख़राब खून बन रहा था उसे रोक कर, उनसे अच्छा खून निकल सकता था, एक बोन-मेरो ट्रांसप्लांट के जरिये। आजकल दवाइयों से खून के कैंसर के अलावा अन्य कई गंभीर रोगों का इलाज संभव है – लेकिन बात इलाज की नहीं, पैसों की थी। पलक के परिवार वालों को बताया गया कि उसके इलाज के लिए पूरे 15 लाख रुपए लगेंगे। इतने पैसों में शायद मुंबई में एक कमरा भी ना मिले, लेकिन फिर भी यह रकम 95 प्रतिशत भारतीयों की पहुँच से बाहर है। यही समस्या पलक के परिवार की भी थी।
स्वाथ्य बीमा
इतनी बडी धन राशि का इंतजाम करना एक साधारण परिवार की जिम्मेदारी होनी ही नहीं चाहिए। यह काम स्वास्थ्य बीमा का है। इसी उद्देश्य से तो ये बीमा योजनाएं बनाई जाती हैं।
बीमा महायोद्धा कर्ण के कवच की तरह है। रोज-रोज शायद उसकी जरूरत भले ही ना पड़े परन्तु जब जीवन-मृत्यु के युद्ध में किसी भी कारण उतरना पड़े तो कवच रक्षा करता है। उसे पहने रहने से किसी चीज़ का भय महसूस नहीं होता है। इसी तरह स्वास्थ्य बीमा रोज उपयोग में नहीं आते हुए भी हर परिवार को आश्वस्त रखता है।
स्वास्थ्य बीमा का मूल सिद्धांत होता है कि बहुत सारे लोग एक बड़ा समूह बनाकर, थोड़ा-थोड़ा पैसा इकट्ठा करें, तो एक बड़ी पूंजी बन सकती है। इस जमा पूंजी से पैसा मरीजों को आराम से दिया जा सकता है। लेकिन अगर कोई परिवार इस तरह के बीमा के साथ जुड़ना चाहे तो उन्हें अपने जैसे लाखों परिवारों को ढूंढना पड़ेगा और उनके साथ मिलकर इस तरह की बीमा योजना बनानी पड़ेगी। यह बहुत मुश्किल काम है और अपने आप नहीं हो सकता है। इसके लिए आवश्यक है कि सरकार पहल करे।
मौजूदा योजनाएं
भारत में बिहार, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और अन्य कई राज्यों में निशुल्क स्वास्थ्य बीमा की योजनाएं लागू की गई हैं, जिनका टैक्स के पैसों से भुगतान होता है। इनसे बहुत से अस्पताल जुड़े हुए हैं और इलाज का पैसा इन योजनाओं के अंतर्गत दिया जाता है। परंतु इसमें दो तरह की समस्या है:
(क) इन योजनाओं से कई तरह की बीमारीओं का इलाज होता है लेकिन सरकारी पैसों की तंगी के कारण इनकी पहुंच सिर्फ 3० से 4० प्रतिशत लोगों तक ही है।
(ख) इन योजनाओं तक पहुंचने वालों के लिए भी, इनमें मिलने वाली राशि गंभीर बीमारीओं का पूरा खर्च उठाने के लिए पर्याप्त नहीं है।
इसके परिणाम स्वरूप इन योजनाओं के अंतर्गत, आधा से ज्यादा पैसा 5-7 हजार रुपए प्रति बीमारी की तरह से बांटा जा रहा है जिससे कुछ खास फर्क नहीं पड़ रहा है। एक लाख रुपए से ज्यादा राशि, इनमें से सिर्फ 4 प्रतिशत लोगों को ही मिल पा रही है। यह विचार करने की बात है कि सरकारी बजट की तंगी को देखते हुए, क्या यह पैसे का सदुपयोग है? यह तो ऐसी बात हुई कि नाव के डूबने से लोगों को बचाने के लिए सबको तैरना सिखाया जा रहा है। थोड़ा बहुत फायदा हुआ तो भी जब बाढ़ में नाव उलट जाएगी कौन कितना तैर पाएगा?
एक नई सोच
सरकार अपने सीमित संसाधनों को देखते हुए और सुरक्षा की प्राथमिकता समझते हुए, एक नए स्वास्थ्य बीमा की दिशा में सोच सकती है। ऐसा स्वास्थ्य बीमा जिसमें पूरी आबादी गरीब-अमीर सभी आ जाएं। इसमें सिर्फ कैंसर, लिवर ट्रांसप्लांट, मल्टीपल बाईपास सर्जरी जैसी अत्यधिक खर्च वाली बीमारियां शामिल हों। इससे जनसाधारण को आश्वासन मिलेगा कि अगर उनके परिवार का कोई भी सदस्य ऐसी भीषण बीमारी से ग्रस्त हो गया तो उन्हें कम से कम पैसों की चिंता तो नहीं करनी पड़ेगी, उन्हें बड़ा सुकून मिलेगा, चाहे वे इस बीमा का कभी इस्तेमाल न करें। भीषण बीमारियां बहुत कम लोगों को होती हैं, और एक व्यक्ति के लिए बीमारी का खर्चा लाखों में होने के बावजूद भी कुल बजट की निर्धारित राशि की सीमा के अंदर ही होगा।
इस बीमा योजना के तहत सभी लोग शामिल होने से सरकार के कई काम अपने आप हो जायेंगे।
इस तरह की योजनाओं से राज्य सरकारें बाकी सब बीमारियों के लिए और अधिक मजबूत स्वास्थ्य सेवाओं को उपलब्ध कराने के बारे में आश्वस्त होकर सोच सकती हैं। अपने प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों से जरूरी सेवाओं को (जैसे डेंगू, रक्तचाप, और मधुमेह का इलाज) भी निशुल्क देने का प्रबंध कर सकती है। इन सबको उपलब्ध कराने में शायद समय लग सकता है। इस परिस्थिति में, इस तरह के स्वास्थ्य बीमा से सरकार एक बड़ी समस्या के बारे में निशंक रह सकती है – अगर किसी परिवार को ऐसी विकट स्थिति का सामना करना पड़े तो उनकी नौका डूबेगी नहीं। और, जानें सिर्फ पैसों के अभाव में नहीं गंवाईं जाएंगी।
इस बीमा योजना के तहत सभी लोग शामिल होने से सरकार के कई काम अपने आप हो जायेंगे – जैसे, बार-बार व्यक्ति की पहचान, उसकी आर्थिक स्थिति, वगैरह चेक करना। एक और फायदा गंभीर और खर्चीली बीमारियों के बीमा योजना में पूरी आबादी को शामिल करने का यह होगा कि पूरे राज्य में सबसे महंगे अस्पतालों को अपने दाम कम करने पड़ेंगे। इससे सभी छोटे-बड़े अस्पतालों पर दबाव पड़ेगा कि वे भी अपनी कीमतें कम करें। इससे आगे चलकर, सरकार के लिए सभी स्वास्थ्य सेवाओं को उपलब्ध कराने का खर्चा भी काफी कम हो जायेगा।
दूर की जा सकने वाली तकलीफ
जब पलक के परिवार को इस गहरे सदमे से गुजरना पड़ा तब सिर्फ पैसों की कमी के चलते, उसको और उसके साथ परिवार की पूरी ख़ुशी को खो देने के अलावा कोई रास्ता नहीं था। दुख की बात यह है कि पलक को बचाया जा सकता था। इसके लिए आवश्यक इलाज सामने नज़र आ रहा था। सब कुछ होते हुए भी सिर्फ पैसों की कमी थी। इस तरह के काम को बीमा योजनाएं आसानी से कर सकती हैं और दुखद मौतों से बचा जा सकता है ताकि पलक की तरह किसी और को इससे न गुजरना पड़े।
यह विचार करने का विषय है। ऐसी बीमारियां प्रियजनों के बिछड़ने की पीड़ा, मानसिक तनाव, और आर्थिक भय का मिलाजुला बोझ साथ लाती हैं और लोगों को पूरी तरह कुचल देती है। इस विनाशकारी समस्या का समाधान स्वास्थ्य बीमा द्वारा ही करना होगा। बड़ा बोझ कम होने से हम बाकी समस्याओं पर भी ठीक से ध्यान दे सकते हैं। उन कारणों की भी अवहेलना नहीं की जा सकती जिनसे मृत्यु हो सकती है और परिवार तकलीफ में आ सकता है। इस समस्या का समाधान निकालने के लिए इन दोनों मूलभूत समस्याओं को पृथक करके देखना जरूरी है। यदि दोनों को अलग-अलग समझकर ठीक ढंग से नियंत्रित नहीं किया जाएगा तो पैसों की कमी से लोग मृत्यु की तरफ जाते रहेंगे। यह बहुत दुख का विषय है। सब मिलकर इस पर विचार करें तो इस विषम समस्या का समाधान हो सकता है।
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