October 24, 2024

फॉस्टर केयर प्रणाली को मजबूत करने के देश में क्या कदम उठाए जाने की जरूरत है

फॉस्टर केयर एक ऐसा सिस्टम है जो उन बच्चों को देखभाल और सुरक्षा प्रदान करता है जिन्हें अपने जैविक माता-पिता के साथ रहने का मौका नहीं मिल रहा हैं।
12 मिनट लंबा लेख

भारत की बाल संरक्षण (फॉस्टर केयर) प्रणाली में एक समस्या है। यह प्रणाली किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और सुरक्षा) अधिनियम, 2015, या जुवेनाइल जस्टिस (जेजे) अधिनियम, 2015 के तहत संचालित होती है। फॉस्टर केयर प्रणाली उन बच्चों की देखभाल, सुरक्षा और पुनर्वास की जरूरतों को पूरा करने के लिए बनाई गई है, जो अनाथ हैं या जो दुर्व्यवहार, परित्याग, उपेक्षा या किसी दूसरे संकट का सामना कर रहे हैं। वर्तमान में, यह प्रणाली बहुत हद तक संस्थागत देखभाल पर निर्भर करती है, यानी बाल देखभाल संस्थानों (चाइल्ड केयर इंस्टीट्यूशन – सीसीआई) पर। लेकिन, ये संस्थान ‘अंतिम विकल्प’ होने चाहिए।

हाल के सालों में, परिवार आधारित देखभाल पर बढ़ता ध्यान उन परिवारों की सहायता के लिए ज्यादा प्रयास कर रहा है, जो वित्तीय संकट का सामना कर रहे हैं या जिनके लिए बच्चों की देखभाल एक वित्तीय बोझ बन गई है। सरकार से आर्थिक सहायता प्राप्त प्रायोजित कार्यक्रमों के जरिए इन्हें सहायता प्रदान की जा रही है। इन पहलों का उद्देश्य परिवारों को अपने बच्चों की देखभाल घर पर करने में मदद करना है, ताकि आर्थिक कठिनाइयों के कारण उन्हें संस्थान में भेजने की आवश्यकता न पड़े।

हालांकि, कई बच्चों के लिए परिवार के साथ रहना कोई विकल्प ही नहीं है क्योंकि परिवार उन्हें पालने की इच्छा नहीं रखते या परिवार को ‘अयोग्य’ माना जाता है। जब ये बच्चे एक बाल देखभाल संस्थान (सीसीआई) में जाते हैं तो उनमें से कई लंबे समय तक संस्थागत देखभाल में रहते हैं और परिवार के माहौल में बड़े होने का अधिकार खो देते हैं। हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने भी इस बात पर चिंता व्यक्त की है। ‘अनाथ, परित्यक्त और समर्पित’ (ऑर्फन्ड अबन्डन्ड सरेंडर्स – ओएएस) श्रेणी में आने वाले छह साल से बड़े बच्चे भी इसी स्थिति का सामना करते हैं। जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, इनके गोद लिए जाने की संभावना भी काफी कम होती जाती है क्योंकि लगभग 80 प्रतिशत गोद लेने वाले माता-पिता दो साल से छोटे बच्चों को ही प्राथमिकता देते हैं। महिला और बाल विकास मंत्रालय की 2018 की रिपोर्ट के अनुसार, देश में 3 लाख 70 हजार बच्चों में से 50,000 से ज्यादा ओएएस श्रेणी के बच्चे 7 से 18 साल की आयु वर्ग में हैं। ऐसे बच्चों के लिए, जेजे अधिनियम, 2015 के तहत फॉस्टर केयर, यानी परिवार आधारित देखभाल, एक संभावित विकल्प बन सकता है।

क्या है फॉस्टर केयर?

फॉस्टर केयर एक ऐसा सिस्टम है जो उन बच्चों को देखभाल और सुरक्षा प्रदान करता है जिन्हें अपने जैविक माता-पिता के साथ रहने का मौका नहीं मिल रहा है और जो छह साल से बड़े हैं। यह बच्चों को परिवार के माहौल में बड़े होने का मौका देता है। यह खास तौर पर उन बच्चों के लिए उपयुक्त है जिन्हें अपने परिवारों से अस्थायी रूप से दूर रहने की जरूरत है और जो बाल देखभाल संस्थानों में इसलिए जाते हैं क्योंकि उनके पास कोई विकल्प नहीं होता। ये बच्चे आमतौर पर उन परिवारों से आते हैं जो अस्थायी संकट का सामना कर रहे होते हैं, जैसे माता-पिता की मृत्यु या अलगाव, वित्तीय कठिनाई, माता-पिता का जेल जाना, गंभीर बीमारी, या काम की तलाश में प्रवास करने की जरूरत। ऐसे कारण बच्चों के माता-पिता की देखभाल और पालन-पोषण की क्षमता को प्रभावित करते हैं।

फेसबुक बैनर_आईडीआर हिन्दी

फॉस्टर केयर को भारत की बाल न्याय प्रणाली में पहली बार -किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और सुरक्षा) अधिनियम 2000, यानी जेजे अधिनियम 2000 के जरिए शामिल किया गया था। साल 2015 में जेजे अधिनियम के फिर से लागू होने के साथ इसमें महत्वपूर्ण बदलाव किए गए। फॉस्टर केयर के लिए संचालन और प्रशासनिक प्रक्रियाएं केंद्रीय सरकार की ओर से 2016 में जारी किए गए मॉडल गाइडलाइन्स में स्पष्ट की गई थीं, जिन्हें 2024 में फिर से संशोधित किया गया। फॉस्टर केयर को लागू करने का काम जिला स्तर पर बाल कल्याण अधिकारी करते हैं, जिसमें जिला बाल संरक्षण इकाई (डिस्ट्रिक्ट चाइल्ड प्रोटेक्शन यूनिट – डीसीपीयू) और बाल कल्याण समिति (चाइल्ड वेलफेयर कमेटी – सीडब्लूसी) शामिल होती है।

फॉस्टर केयर और गोद लेने में अंतर है। फॉस्टर केयर एक अस्थायी व्यवस्था है जिसमें एक बच्चे को उसकी आवश्यकता के हिसाब से कुछ समय के लिए रखा जाता है, जो बच्चे की परिस्थितियों के आधार पर कुछ महीनों से लेकर कई सालों तक हो सकता है। फॉस्टर केयर में बच्चे और उसके जैविक परिवार के बीच का कानूनी संबंध बना रहता है और बच्चा फॉस्टर परिवार से विरासत का अधिकार नहीं प्राप्त करता है।

इसके विपरीत, गोद लेना एक स्थायी प्रक्रिया है जिसमें बच्चे को गोद लेने वाले माता-पिता के साथ स्थायी रूप से रखा जाता है। गोद लेने से बच्चे और उसके जैविक परिवार के बीच का कानूनी संबंध समाप्त हो जाता है और गोद लेने वाले माता-पिता के साथ एक नया कानूनी संबंध स्थापित हो जाता है। इस प्रक्रिया में बच्चा गोद लेने वाले परिवार के खुद के बच्चे के समान अधिकार और विशेषाधिकार प्राप्त करता है, जिसमें विरासत का अधिकार भी शामिल होता है।

फोस्टर केयर सोसायटी की तस्वीर_फॉस्टर केयर
फॉस्टर केयर एक अस्थायी व्यवस्था है जिसमें एक बच्चे को उसकी आवश्यकता के हिसाब से कुछ समय के लिए रखा जाता है। | चित्र साभार: फोस्टर केयर सोसायटी, उदयपुर

फॉस्टर केयर के लिए आदर्श दिशानिर्देश 2024

फॉस्टर केयर के आदर्श दिशानिर्देश 2024 ने साल 2016 के दिशानिर्देशों के कई प्रावधानों में संशोधन किया है और कुछ नए उपाय भी पेश किए हैं ताकि फॉस्टर केयर को संभावित फॉस्टर माता-पिता के लिए ज्यादा सुलभ और आकर्षक बनाया जा सके, साथ ही बच्चों के अधिकारों को भी बनाए रखा जा सके।

यह लेख साल 2024 के दिशानिर्देशों के मुख्य पहलुओं की जांच करता है और भारत में फॉस्टर केयर प्रणालियों और प्रथाओं को मजबूत करने के लिए सिफारिशें प्रदान करता है।

आदर्श दिशानिर्देश 2024 के अनुसार, देखभाल और संरक्षण की जरूरत वाले सभी बच्चे, जो छह साल से ज्यादा उम्र के हैं, जैसा कि किशोर न्याय अधिनियम 2015 में परिभाषित किया गया है, फॉस्टर केयर के लिए पात्र हैं। इसके अलावा, यह दिशानिर्देश दो नई परिभाषाएं पेश करता है—‘परिवार के संपर्क में ना रहने वाले बच्चे’ और ‘अयोग्य अभिभावक वाले बच्चे’— जो उन बच्चों के सामान्य परिणामों को उजागर करने के लिए हैं जो लंबे समय तक संस्थागत देखभाल में रहते हैं।

‘परिवार के संपर्क में ना रहने वाले बच्चे, ’वे बच्चे हैं जिनसे उनके माता-पिता या रिश्तेदारों ने एक साल से ज्यादा समय से मुलाकात नहीं की है। वहीं, ‘अयोग्य अभिभावक वाले बच्चे,’ वे बच्चे हैं जिनके माता-पिता या अभिभावक देखभाल करने में सक्षम या इच्छुक नहीं हैं, या जो परिभाषा में बताए गए मानदंडों के आधार पर पालन-पोषण के लिए अयोग्य माने गए हैं।

अन्य प्रमुख परिवर्तन:

  • अब राज्यवार आवेदन प्रक्रिया से हटकर केंद्रीय ऑनलाइन आवेदन प्रक्रिया को केंद्रीय दत्तक संसाधन प्राधिकरण (सेंट्रल अडॉप्टेशन रिसोर्स अथॉरिटी – सीएआरए) के जरिए पेश किया जा रहा है। पहले फॉस्टर केयर के लिए आवेदन प्रक्रिया राज्य के अनुसार अलग-अलग थी। उदाहरण के लिए, कुछ राज्यों जैसे राजस्थान में डीसीपीयू के जरिए ऑफलाइन आवेदन मांगे जाते थे जबकि महाराष्ट्र जैसे बाकी राज्यों में ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों प्रणालियां थीं।
  • संभावित फॉस्टर माता-पिता की पात्रता का विस्तार किया गया है जिससे अब 35 से 60 वर्ष की उम्र के किसी भी व्यक्ति को, चाहे उनकी वैवाहिक स्थिति कुछ भी हो, बच्चे को फॉस्टर करने की अनुमति दी गई है। जबकि 2016 के दिशानिर्देश केवल विवाहित दंपतियों को ही फॉस्टर केयर की अनुमति देते थे। 2024 के दिशानिर्देशों के अनुसार, अविवाहित महिलाएं किसी भी लिंग के बच्चे को फॉस्टर कर सकती हैं, लेकिन अविवाहित पुरुष केवल पुरुष बच्चों को ही फॉस्टर कर सकते हैं।
  • फॉस्टर केयर को गोद लेने में बदलने के लिए आवश्यक समय को 2016 के दिशानिर्देशों के पांच साल से घटाकर दो साल कर दिया गया है। हालांकि, केवल वे ही बच्चे जिन्हें ‘कानूनी रूप से गोद लेने के लिए स्वतंत्र’ घोषित किया गया है, उन्हें गोद लिया जा सकता है।
  • जो संभावित दत्तक माता-पिता सीएआरए के साथ गोद लेने के लिए पंजीकृत हैं, उन्हें फॉस्टर केयर के लिए अयोग्य बनाया गया है।
  • फॉस्टर परिवारों के चयन में प्राथमिकता देने के लिए निर्देश दिया गया है कि सबसे पहले बच्चे के लिए परिवारिक लोगों (रिश्तेदारों) को प्राथमिकता दी जाए, इसके बाद किसी परिचित असंबंधित परिवार, फिर किसी असंबंधित परिवार और आखिर में समूह फॉस्टर केयर को।
  • पूरी प्रक्रिया के दौरान, विशेष तौर से फॉस्टर माता-पिता के चयन के समय, बच्चे की सहमति को महत्व दिया गया है।
  • फॉस्टर परिवारों के लिए आय मानदंड को समाप्त कर दिया गया है और केवल वित्तीय स्थिरता की जरूरत रखी गई है। इसके साथ ही मिशन वात्सल्य योजना के तहत परिवार को वित्तीय सहायता देने का प्रावधान भी किए गया है।

फॉस्टर केयर को गति पकड़ने में संघर्ष क्यों करना पड़ा है?

हालांकि पूरे देश में फॉस्टर केयर के सफल मामले दर्ज किए गए हैं, लेकिन साल 2000 से किशोर न्याय कानून का हिस्सा होने के बावजूद यह प्रथा ज्यादा लोकप्रियता हासिल नहीं कर पाई है। इसके पीछे कई कारण हैं, जिनमें से एक प्रमुख कारण सार्वजनिक जागरूकता की कमी है, जिसके परिणामस्वरूप बहुत कम लोग फॉस्टर माता-पिता के रूप में पंजीकरण कराने में रुचि दिखाते हैं। इसके अलावा, और भी चुनौतियां शामिल हैं:

आवेदन प्रक्रिया लंबी और जटिल होती है, और इसे पार करने के लिए पर्याप्त मदद नहीं मिलती है।

  • फॉस्टर माता-पिता की ओर से यह चिंता व्यक्त की गई है कि बच्चे के लिए स्थानांतरण के बाद सहायता नहीं मिल रही है, जिसमें जरूरत के अनुसार परामर्श और स्कूल में प्रवेश जैसी महत्वपूर्ण प्रक्रिया के लिए दस्तावेजों में मदद शामिल है।
  • जैविक माता-पिता की ओर से बच्चे को वापिस मांगने की चिंता भी है, जिससे फॉस्टर केयर समाप्त हो सकता है।
  • फॉस्टर केयर को गोद लेने में बदलने के लिए लंबी अवधि-2024 के दिशानिर्देशों के नोटिफिकेशन से पहले पांच साल—विशेष रूप से बड़े बच्चों के लिए चुनौतीपूर्ण होती थी। उदाहरण के लिए, एक 14 साल का बच्चा फॉस्टर केयर में हो सकता है, लेकिन इस प्रक्रिया के पूरा होने से पहले ही वह वयस्क हो जाएगा।
  • इसके अलावा, कुछ राज्य-विशिष्ट मानदंड भी थे, जैसे कि दिल्ली में माता-पिता के लिए घर का मालिक होना अनिवार्य था, जबकि महाराष्ट्र में न्यूनतम घरेलू आय 45,000 रुपये होनी चाहिए और शहरी क्षेत्रों में निवास करना जरूरी था।

फॉस्टर केयर के परिणामों में सुधार

साल 2024 के दिशा-निर्देश सही दिशा में एक कदम हैं, लेकिन निम्नलिखित अनुशंसाओं के लिए जगह बनाकर फॉस्टर केयर में और भी बेहतर परिणाम हासिल हो सकते हैं:

1. फॉस्टर केयर के लिए बच्चे की उपयुक्तता का आंकलन

फॉस्टर केयर के लिए बच्चों की पहचान करते समय केवल पात्रता मानदंडों पर ध्यान देना काफी नहीं है, क्योंकि सभी पात्र बच्चे (यानी, छह साल से ऊपर के बच्चे जो देखभाल और सुरक्षा की आवश्यकता में हैं) इस व्यवस्था के लिए उपयुक्त नहीं हो सकते। बच्चे की उम्र, उन्हें सीसीआई में रखने के कारण, बच्चे की इच्छाशक्ति, और फॉस्टर केयर में रखने के लिए परिवार की सहमति जैसे कारकों पर ध्यान देना जरूरी है। फॉस्टर केयर के लिए बच्चे की उपयुक्तता निर्धारित करने में प्रशिक्षित पेशेवर की ओर से एक विस्तृत मूल्यांकन बेहद अहम है।

2. फॉस्टर माता-पिता का मूल्यांकन

संभावित फॉस्टर माता-पिता के चयन के दौरान, यह देखा गया है कि ध्यान अक्सर माता-पिता बच्चे को पाने की इच्छा की ओर बढ़ जाते हैं। इसमें ऐसे मामलों को शामिल किया जा सकता है जहां एक दंपति फॉस्टर करना चाहता है क्योंकि वे जैविक बच्चे नहीं पैदा कर पा रहे हैं, और गोद लेने की प्रक्रिया लंबी और समय लेने वाली होती है। या उनके अपने बच्चे बड़े हो चुके हैं और घर छोड़ चुके हैं, जिससे उनके पास किसी अन्य बच्चे की देखभाल करने के लिए समय और संसाधन हैं। ये धारणाएं मान्य हैं बशर्ते बच्चे की जरूरतों को प्राथमिकता दी जाए। मूल्यांकन को इस बात पर केंद्रित करना चाहिए कि क्या संभावित माता-पिता उस भावनात्मक समर्थन को देने में सक्षम हैं जिसकी जरूरत एक बच्चे को होती है, जिसने शायद आघात और उपेक्षा का अनुभव किया हो। इसके अलावा, परिवार के सामाजिक-सांस्कृतिक पृष्ठभूमि पर भी विचार किया जाना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि यह बच्चे की पृष्ठभूमि के साथ मेल खाता है, या माता-पिता बच्चों की जरूरत के हिसाब से बदलाव करने के लिए तैयार और सक्षम हैं, जिससे बच्चे के लिए किसी भी संभावित बदलाव के मसले को हल किया जा सके।

3. तैयारी और अपेक्षा स्थापित करना

संभावित फॉस्टर माता-पिता के उचित प्रशिक्षण को सफल फॉस्टर केयर के लिए सबसे प्राथमिक अपेक्षाओं में से एक माना जा सकता है। दुर्भाग्यवश, साल 2024 के आदर्श दिशानिर्देश माता-पिता के लिए विशेष पूर्व-फॉस्टर केयर प्रशिक्षण को अनिवार्य नहीं करते हैं। यह जरूरी है कि संभावित फॉस्टर माता-पिता को फॉस्टर केयर व्यवस्था के बारे में साफ और सही जानकारी दी जाए, उन्हें समझाया जाए कि उनसे क्या अपेक्षा की जा रही है, और यह भी प्रशिक्षण दिया जाए कि जब बच्चे को उनकी देखभाल में रखा जाए तो वे आने वाली परिस्थितियों को कैसे संभालें? इसमें यह जानना और मानना शामिल है कि फॉस्टर केयर एक अस्थायी व्यवस्था है, जिसे समाप्त किया जा सकता है यदि जैविक माता-पिता या परिवार (यदि मौजूद हैं) सीडब्ल्यूसी की अनुमति से अपने बच्चे को वापिस पाना चाहते हैं। फॉस्टर माता-पिता को इसके लिए भी तैयार रहना चाहिए कि वे बच्चे और उनके जैविक माता-पिता या रिश्तेदारों के बीच संपर्क को आसान बनाएं। साथ ही, समझें कि बच्चे का व्यवहार और आदतें उनकी अपेक्षाओं से अलग हो सकती हैं क्योंकि यह बच्चे के पिछले अनुभवों से प्रभावित हो सकती हैं।

बच्चों के लिए तैयारी उतनी ही महत्वपूर्ण है। एक बार पहचान लेने के बाद, बच्चों—विशेष रूप से उन बच्चों के लिए जिन्होंने संस्थागत देखभाल में काफी समय बिताया है और जो इसकी दिनचर्याओं के आदी हो चुके हैं—को परामर्श और पारिवारिक जीवन के मानदंडों से परिचित कराने की जरूरत है। फॉस्टर माता-पिता के साथ बच्चे का परिचय कराने से पहले उनकी पहचान कराना भी बहुत अहम है।

फॉस्टर परिवार में पहुंचने के बाद बच्चों की मदद

आदर्श दिशानिर्देश 2024 में सीडब्ल्यूसी को बच्चों की भलाई की निगरानी के लिए फॉस्टर परिवारों का मासिक निरीक्षण करने की जरूरत है। चूंकि परिवारों को आने वाली किसी भी चुनौती को प्रभावी ढंग से हल करने के लिए ज्यादा आर्थिक मदद की जरूरत हो सकती है। यह मदद रोज़मर्रा के कामों में उपयोग होती है। जैसे कि बच्चे को स्कूल में नामांकित करना, खासतौर से यदि बच्चे के पास जरूरी दस्तावेज नहीं हैं, या स्वास्थ देखभाल, बीमा, स्कूल शिक्षा, और यात्रा के लिए उन्हें फॉस्टर माता-पिता के रूप में पहचानने वाले दस्तावेज़ दिलवाना। इसके अलावा, यदि बच्चे में व्यवहार संबंधी दिक्कतें होती हैं, तो परिवारों को परामर्श या मनो-सामाजिक मदद की जरूरत हो सकती है। डीसीपीयू के लिए यह जरूरी है कि वह बच्चे के फॉस्टर परिवार को सभी जरूरी मदद देना सुनिश्चित करे।

परिवार को सशक्त बनाना

फॉस्टर केयर का मुख्य उद्देश्य उन बच्चों को अस्थायी देखभाल प्रदान करना है जिनका परिवार संकट में है, और इसका अंतिम लक्ष्य जैविक परिवार के साथ बच्चे को फिर से मिलवाना है। इसलिए, यह अहम है कि बाल कल्याण अधिकारी फॉस्टर केयर के दौरान जैविक परिवार के साथ मिलकर काम करें ताकि उनकी क्षमता को विकसित किया जा सके और उन चुनौतियों का सामना किया जा सके जो बच्चे के अलग होने का कारण बनीं। हालांकि, आदर्श दिशानिर्देश 2024 में परिवार को सशक्त बनाने के लिए आवश्यक प्रयासों का जिक्र नहीं किया गया है।

जब हम भारत में फॉस्टर केयर को मजबूत करने के लिए काम कर रहे हैं तो हमें उन देशों के अनुभवों से सीखना चाहिए जहां यह प्रणाली कभी-कभी बच्चों की सुरक्षा करने में विफल रही है।

परिवार को सशक्त बनाना एक प्राथमिकता होनी चाहिए ताकि बच्चे के जैविक परिवार से संबंध बनाए रखे जा सकें और माता-पिता के लिए एक बार फिर अपने बच्चे के साथ होने की कोशिश की जा सके। नियमित फॉलो-अप की जरूरत है ताकि जो आर्थिक मदद दी जा रही है उसकी निगरानी की जा सके, परिवार की परिस्थितियों में बदलाव को दर्ज किया जा सके, और समय पर फिर से एक होने की प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाने के लिए जरूरी किसी भी अतिरिक्त सहायता को समझा जा सके। यह मानना चाहिए कि माता-पिता की अपने बच्चे की देखभाल करने में असमर्थता या अनिच्छा, जो अलगाव का कारण बन सकती है, उनके हालात के सुधार के साथ बदल सकती है। परिवार को सशक्त बनाने के उपायों को डीसीपीयू की ओर से सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के साथ परिवार को जोड़कर लागू किया जाना चाहिए लेकिन वास्तव में, ये प्रयास गैर-लाभकारी संगठनों की ओर से किए जाते हैं।

फॉस्टर केयर एक ऐसे सिद्धांत की तरह लगता है जो पश्चिम से आया है, लेकिन इसका भारतीय समाज में गहरा आधार है। भारत में अक्सर इसे रिश्तेदारी की देखभाल के तौर पर अनौपचारिक तरीके से मान्य किया गया है, जहां परिवार और समुदाय हमेशा जरूरतमंद बच्चों की मदद के लिए आगे आए हैं। पौराणिक संदर्भ और ऐतिहासिक प्रथाएं विस्तारित परिवारों (रिश्तेदार के घरों) में बच्चों की देखभाल की पुरानी परंपरा प्रमाण रही हैं। जब हम भारत में फॉस्टर केयर को मजबूत करने के लिए काम कर रहे हैं तो हमें उन देशों के अनुभवों से सीखना चाहिए जहां यह प्रणाली कभी-कभी बच्चों की सुरक्षा करने में विफल रही है। आखिर में, फॉस्टर केयर के सफल होने के लिए सरकार और नागरिक समाज के बीच सहयोग सबसे अहम है। यह सहयोग मिलकर, एक ऐसा सिस्टम बना सकता हैं जो न केवल बच्चों की सुरक्षा करे, बल्कि हर जरूरतमंद बच्चे को पोषण भी प्रदान करे।

इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ें।

अधिक जानें

  • जानिए क्यों हर बच्चे को एक परिवार मिलना चाहिए।
  • क्यों बच्चों की देखभाल पिता की भी जिम्मेदारी है!
  • मातृत्व लाभ का विस्तार अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने वाले श्रमिकों को भी क्यों मिलना चाहिए।

अधिक करें

  • फॉस्टर परिजन बनने के लिए यहां पंजीयन करें।

लेखक के बारे में
सत्यजीत मजूमदार-Image
सत्यजीत मजूमदार

सत्यजीत मजूमदार ने कानून की शिक्षा ली है और विकास क्षेत्र में काम कर रहे हैं। वे वर्तमान में कैटालिस्ट्स फॉर सोशल एक्शन (सीएसए) में निदेशक-कानून सलाहकार के तौर पर काम कर रहे हैं। उनका काम संगठन के शोध, क्षमता निर्माण और प्रणाली सुधार पहलों पर केंद्रित है। सीएसए सरकार और गैर-सरकारी भागीदारों के साथ मिलकर पांच राज्यों में बच्चों के पुनर्वास के परिणामों को सुधारने के लिए काम कर रहा है, खासतौर से संस्थागत देखभाल में और जो बच्चे देखभाल से बाहर निकल रहे हैं। वर्तमान में, वे महाराष्ट्र में फॉस्टर केयर प्रणालियों को बेहतर बनाने पर भी काम कर रहे हैं।

टिप्पणी

गोपनीयता बनाए रखने के लिए आपके ईमेल का पता सार्वजनिक नहीं किया जाएगा। आवश्यक फ़ील्ड चिह्नित हैं *