गर्मियों में झारखंड के गुमला जिले में पिछले कुछ सालों से औसत तापमान 40-42 डिग्री सेल्सियस रहने लगा है। यह ब्रॉयलर, या मांस उत्पादन के लिए पाले गए चिकन (मुर्ग़ों) के लिए ठीक नहीं है। मुर्ग़ा पालन के लिए आदर्श तापमान 25 डिग्री सेल्सियस होता है। बड़े फार्म तापमान को कम रखने और अपनी पॉल्ट्री के स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए फॉगर्स और कूलरों का उपयोग करते हैं। लेकिन 500-600 मुर्गियों वाले, छोटे पॉल्ट्री किसान इन तकनीकों का खर्च नहीं उठा सकते हैं। उनके लिए न केवल इन्हें खरीदना बल्कि इन्हें चला पाना भी महंगा है, क्योंकि इनमें बहुत अधिक बिजली की खपत होती है।
गुमला ग्रामीण पोल्ट्री एसएस सहकारी समिति लिमिटेड, जिसकी सभी सदस्य महिलाएं हैं, उन्हें कई ऐसे तरीक़ों के बारे में बताया जाता है जिससे वे अपने शेड को ठंडा रख सकते हैं। इन तरीक़ों में शेड की एस्बेस्टस छत और दीवारों पर पुआल या बोरियां रखना और दिन में दो से तीन बार पानी छिड़कना शामिल रहता है। इसमें समस्या यह है कि यदि पुआल को बांधकर न रखा जाए तो वह तेज हवा में उड़ जाता है। इसके अंदरूनी हिस्से को ठंडा करने के लिए पक्षियों और शेड के फर्श पर भी पानी छिड़का जाता है। लेकिन ये उपाय भी तापमान को केवल 2-3 डिग्री तक ही कम कर पाते हैं।
अगर किसान अपने इन शेडों को ठंडा नहीं रखेंगे तो ऐसे में गर्मी बढ़ने के साथ मुर्ग़ियां मरने लगेंगी। हर साल गर्मियों में, औसतन एक फार्म पर लगभग 5-7 प्रतिशत मुर्ग़ियां मर जाती हैं। पहले यह मृत्यु दर 1-2 प्रतिशत थी। इसके अलावा भी कई समस्याएं हैं जैसे मुर्गियों को खाना खाने में बहुत गर्मी लगती है जिस वजह से उनका वजन कम हो जाता है। उनका वजन जो सर्दियों में औसतन 2 किलो होता है, गर्मियों में घटकर 1.8 किलो रह जाता है। कम वजन का मतलब है कम आय। पहले एक पोल्ट्री किसान जहां हर साल 50,000 रुपए कमाता था (उत्पादक शुल्क के रूप में), अब 40,000 रुपए ही कमा पाता है। बहुत गर्म शेड की वजह से हमें ज्यादा मुर्गियों के झुंड को पालने में मुश्किल आती है। बिना ठंडक वाले शेड में, भीड़ और गर्मी के असर से बचते हुए केवल 600 (1.25 वर्ग फुट में एक पक्षी) मुर्ग़ियां ही रखी जा सकती हैं, जबकि एक वातानुकूलित शेड में 800-1,000 मुर्ग़ियां (प्रति वर्ग फुट में एक पक्षी) आ सकती हैं।
मुर्ग़ियों के एक झुंड को मनचाहे वजन तक लाने में भी अधिक समय लगता है क्योंकि उनके वजन बढ़ने की गति धीमी होती है। इससे भी हमारी आय में गिरावट आती है। पहले हमारे पास हर साल, छह से सात प्रजनन चक्र करने का समय होता था और अब हम औसतन पांच ब्रीडिंग चक्र ही कर पाते हैं। हर चक्र में लगभग 40 दिन लगते हैं। प्रत्येक चक्र के बाद, शेड को साफ किया जाता है, सफेदी की जाती है और 15-20 दिनों के लिए उसे ऐसे ही छोड़ दिया जाता है। मुर्गियों के एक झुंड को पालने में जितना अधिक समय लगता है, उन्हें उतना ही अधिक भोजन और पानी देना पड़ता है, जिसमें फिर से अतिरिक्त समय, पैसा और प्रयास लगता है। इस मौसम में पानी पीने के बर्तन को सामान्य दिनों की तुलना में, दिन में तीन की बजाय चार से पांच बार भरना पड़ता है। इससे महिलाओं का काम और भी बढ़ जाता है। इनमें से कुछ को तो पानी भरने के लिए लंबी दूरी तय करनी पड़ती है। यहीं नहीं, पक्षियों में पानी की कमी को पूरा करने के लिए पानी में ग्लूकोज भी मिलाया जाता है।
हममें से कुछ लोगों ने शेड को ठंडा रखने को लेकर सेल्को फाउंडेशन के साथ काम किया है। हमने सोलर एग्ज़ॉस्ट पंखे और लाइटें लगाई हैं और अपनी छतों पर चूने की परत से पुताई की है। लेकिन एग्ज़ॉस्ट पंखे पूरे दिन चलते हैं इसलिए रात में सोलर लाइटें नहीं जल पाती हैं। इन उपायों से कुछ मदद मिली है। इस बार मेरे (सरिता के) फार्म की 600 मुर्गियों में से केवल 20 ही मरी हैं और उनका वज़न भी बहुत कम नहीं हुआ है। एक और हालिया पहल में एस्बेस्टस छतों को ‘ठंडी छतों‘ से बदलना शामिल हुआ है, जो न केवल गर्मी के असर को कम करने में मदद करती है बल्कि सर्दियों के दौरान गर्मी को भी रोकती है।
सरिता देवी ‘गुमला ग्रामीण पोल्ट्री एसएस सहकारी समिति लिमिटेड’ के बोर्ड की सलाहकार है और उनकी इस समिति की सभी सदस्य महिलाएं हैं। अखिलेश कुमार वर्मा ‘झारखंड महिला स्वावलंबी पोल्ट्री सहकारी संघ लिमिटेड’ के प्रबंधक हैं।
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