पश्चिम बंगाल के पूर्व मेदिनीपुर जिले का बगुरान जलपाई अपने खूबसूरत समुद्र तट और लाल केकड़ों के लिए जाना जाता है। यह पूर्व मेदिनीपुर में पड़ने वाले कांथी शहर से करीब 15 किमी दूर बंगाल की खाड़ी का तटीय इलाक़ा है। कुछ समय पहले तक यहां केवल स्थानीय लोग ही ज़्यादा दिखाई पड़ते थे लेकिन हाल के सालों में इसने पर्यटन के लिए कुछ नया तलाशने वाले लोगों का ध्यान आकर्षित किया है। लेकिन अब यही बढ़ता पर्यटन यहां के लिए संकट की एक वजह बनता नज़र आ रहा है।
आमतौर पर, यहां तटीय इलाके में मछली के अलावा केकड़े की कुछ प्रजातियां एक प्रमुख जलीय आहार होती हैं। इन सब में लाल केकड़ा इसलिए अनोखा है और इसे खाया नहीं जाता है। लाल केकड़े मनुष्य या किसी अन्य जीव की उपस्थिति को लेकर काफी संवेदनशील होते हैं और आहट पाते ही छिपने के लिए जमीन में बनाए अपने छिद्रों में चले जाते हैं। इसीलिए उनके आस-पास ज़्यादा हलचल होना उनके जीवन के लिए हानिकारक है।
बगुरान जलपाई गांव की निवासी और गांव के आखिरी छोर पर, समुद्र के पास रहने वाली 34 वर्षीया ज्योत्सना बोर लाल केकड़ों को मनुष्य का दोस्त बताती हैं। वे जिस जमीन पर रहते हैं, उसमें छेद करके अपना आवास बनाकर रहते हैं और वहां की मिट्टी व रेत को भुरभुरा कर देते हैं। वे बताती हैं कि इस तरह से रेत को भुरभुरा करने से समुद्र तट पर रेत की परत ऊंची बन जाती है और ऐसे में यह समुद्री हलचल व लहरों के प्रभाव को रोकने के लिए अपेक्षाकृत अधिक बेहतर प्रतिरोधक का काम करती है। स्थानीय वन कर्मी बप्पादित्या नास्कर भी इसमें जोड़ते हैं कि लाल केकड़े द्वारा बालू या रेत को भुरभुरा कर देने से रेत हल्की हो जाती है और उसकी सतह ऊपर हो जाती है तथा इससे हमें पौधे रोपने में भी आसानी होती है।
बगुरान गांव के निवासी देवाशीष श्यामल कहते हैं कि “लाल केकड़े की मौजूदगी से यह पता चलता है कि हमारे गांव के समुद्र तट का स्वास्थ्य ठीक है।” ऐसे फ़ायदों के चलते स्थानीय समुदाय लाल केकड़ों के संरक्षण के लिए काफी संवेदनशील है।
ज्योत्सना बताती हैं कि “पर्यटक लाल केकड़ों को नुकसान पहुंचाते हैं। वे समुद्र के तट पर बाइक व अन्य दूसरी गाड़ियां लेकर पहुंच जाते हैं। इनसे कुचल जाने पर केकड़ों की मौत हो जाती है”। वे बताती हैं कि समुदाय यह ध्यान रखता है कि लोग बाइक व चार पहिया गाड़ी लेकर समुद्र के तट पर न जायें। ज्योत्सना स्वयं मछ्ली पकड़ने का काम करती हैं लेकिन वे या इलाके का कोई भी मछुआरा लाल केकड़े को नहीं पकड़ता।
गांव के 37 वर्षीय किसान शक्ति खुठिया कहते हैं कि “पहले लाल केकड़े को लेकर कोई सख्त नियम नहीं था, कोई भी समुद्र के किनारे गाड़ी लेकर चला जाता था। लेकिन हाल ही में सरकार ने सख्ती की है, जिससे लाल केकड़े को बचाने की कोशिश हो रही है। लोगों की बढ़ती संख्या के कारण लाल केकड़े इस इलाके को छोड़ने पर मजबूर हो सकते हैं और ऐसा नहीं होने देना है।”
साल 2023 में, पश्चिम बंगाल सरकार ने एक अधिसूचना जारी कर, बिरामपुर से बगुरान जलपाई तक के 7.3 किलोमीटर लंबे समुद्र तट को बायोडायवर्सिटी हेरिटेज साइट घोषित कर दिया है। इस अधिसूचना के बाद यहां पर भारत सरकार का जैव विविधता अधिनियम 2002 और पश्चिम बंगाल जैव विविधता नियम, 2005 प्रभावी हो जाता है। अधिसूचना के अनुसार, जिलाधिकारी द्वारा और ब्लॉक स्तर पर अलग-अलग जैव विविधता प्रबंधन समितियां बनाकर यहां की जैव विविधता का संरक्षण करने का प्रावधान है।
इलाके में वन विभाग का एक स्थाई कैंप भी लगाया गया है ताकि स्थानीय समुदाय के सहयोग से यह सुनिश्चित किया जाए कि लाल केकड़ों को कोई नुकसान तो नहीं पहुंच रहा है।
राहुल सिंह एक स्वतंत्र पत्रकार हैं और झारखंड में रहते हैं। वे पूर्वी राज्यों में चल रही गतिविधियों, खासकर पर्यावरण व ग्रामीण विषयों पर लिखते हैं।
इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ें।
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