मेरा नाम सरिता है। मैं राजस्थान के चुरू जिले के एक छोटे से गांव में रहती हूं। मैं जिस इलाके से हूं, वहां तीन जिलों- चुरू, झुंझुनू और सीकर की साझी लोक संस्कृति है। इस इलाके को शेखावाटी के नाम से जाना जाता है। कहा जाता है कि राजस्थान के किसी भी अन्य हिस्से की तुलना में यहां के लोगों की सरकारी नौकरियों में सबसे अधिक संख्या है। यह अपने आप में एक उपलब्धि है, लेकिन यह एक नई समस्या को भी जन्म दे रही है।
अब हमारे इलाके में हर घर को अपनी लड़की के लिए सरकारी नौकरी वाला दूल्हा चाहिए। जो सरकारी नौकरी में हैं, उनके लिए रिश्तों की लाइन लगी रहती है। वहीं प्राइवेट सेक्टर में अच्छा कमाने वालों तक से कोई विवाह नहीं करना चाहता। ऐसा लगता है कि एक बार सरकारी नौकरी लग गयी, तो इंसान के और कोई गुण मायने ही नहीं रखते।
इससे कई लड़कियों की शादी में माता-पिता को भारी खर्च करना पड़ रहा है। समाज में यह धारणा व्याप्त है कि अगर लड़की के लिए सरकारी नौकरी वाला दूल्हा तलाशना है, तो दहेज में भारी रकम देना जरूरी होता है। लोग मानते हैं कि ऐसा न करने पर समाज उन्हें तिरस्कार की नजर से देखेगा। भले ही लड़के के परिवार वाले खुलकर अपनी मांग न रखें, लेकिन लड़की के माता-पिता खुद इसे अपनी जिम्मेदारी समझते हैं और अधिक से अधिक दहेज देने का प्रयास करते हैं।
मेरी जानकारी में कुछ अविवाहित लड़कियों की उम्र 30 साल से ज्यादा है। हालांकि 4-5 साल से रिश्ते आ रहे हैं, लेकिन उनके माता पिता सरकारी नौकरी वाले लड़के की तलाश कर रहे हैं।
यह सोच सिर्फ लड़कियों की शादियों में ही अड़चन नहीं डाल रही, बल्कि प्राइवेट सेक्टर में काम करने वाले लड़कों के लिए भी मुश्किलें बढ़ा रही है। मेरे अपने परिवार का ही उदाहरण लें तो मेरे छोटे देवर की हाल ही में सरकारी नौकरी लगी है। अभी उनकी शादी लायक उम्र भी नहीं है, लेकिन फिर भी उनके लिए हर दूसरे दिन रिश्ते आ रहे हैं। वहीं मेरे दूसरे देवर, जो एक प्रतिष्ठित प्राइवेट स्कूल में शिक्षक हैं और अच्छी तनख्वाह कमा रहे हैं, उनके लिए रिश्ते ढूंढना मुश्किल हो रहा है।
सरकारी नौकरी की चाहत इस हद तक बढ़ गयी है कि अच्छे-खासे होनहार और कमाऊ लड़कों को भी रिश्ते नहीं मिल रहे हैं। दूसरी ओर सरकारी नौकरी मिलते ही लड़कों की ‘मार्केट वैल्यू’ इतनी बढ़ जाती है, कि लड़की की मंजूरी भी मायने नहीं रखती।
परिजनों का मानना है कि सरकारी नौकरी सुरक्षा देती है और यह कुछ हद तक सच भी है। हालांकि, शादी केवल आर्थिक सुरक्षा के आधार पर तय नहीं की जा सकती। इस प्रक्रिया में इंसान की सोच और समझदारी भी निर्णायक भूमिका निभाते हैं।
सरकारी नौकरी अच्छी होती है, लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि अन्य क्षेत्रों में कार्यरत लोग कम योग्य होते हैं। मेरे पति, जो प्राइवेट सेक्टर में हैं, अधिक मेहनतकश और खुले विचारों के हैं। लेकिन अमूमन रिश्ते तय करते समय इन एक व्यक्ति के इन पहलुओं की उपेक्षा की जाती है।
इस क्षेत्र में सरकारी नौकरी को शादी की गारंटी मान लिया गया है। इससे तेजी से यह धारणा प्रबल हो रही है कि एक व्यक्ति की काबिलियत सिर्फ उसकी नौकरी से आंकी जानी चाहिए।
लेखक आईडीआर टीम के एक सदस्य के परिजन हैं।
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