हालिया समय में रोजगार से जुड़े सरकारी आंकड़ों में गिरावट देखी गयी है। साल 2023-24 में बेरोजगारी दर 10.2 प्रतिशत दर्ज की गयी थी। जब इन आंकड़ों को गहराई से देखा जाता है, तो स्थिति और जटिल नजर आती है। वर्तमान में युवाओं की बड़ी संख्या जो काम कर रही है, उन्हें औपचारिक रोजगार की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता। उदाहरण के लिए, बिना वेतन का देखभाल कार्य या कृषि श्रम। इसमें युवा महिलाओं की स्थिति अधिक गंभीर है। लगभग 34 प्रतिशत महिलाएं बिना वेतन घरेलू श्रम करती हैं, जबकि मात्र 5.3 प्रतिशत के पास सवेतन नौकरियां हैं।
इस चुनौती को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने साल 2024 में कॉरपोरेट मामलों के मंत्रालय (एमसीए) के तहत प्रधानमंत्री इंटर्नशिप योजना की घोषणा की। इस महत्वाकांक्षी योजना का लक्ष्य आगामी पांच सालों में 1 करोड़ इंटर्नशिप सृजित करना है। अक्टूबर 2024 में 1.25 लाख छात्रों के साथ इस योजना का पायलट चरण शुरू किया गया। छात्रों की यह संख्या योजना के समूचे लक्ष्य के 1 प्रतिशत से थोड़ी अधिक थी।
वर्तमान में भारत में 42 करोड़ युवा 15 से 29 वर्ष के आयु वर्ग में हैं। सरकारी आंकड़े बताते हैं कि इनमें से करीब 12 करोड़ युवा ऐसे हैं, जो न तो शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं, न नौकरी कर रहे हैं, न व्यवसाय से जुड़े हैं और न ही किसी तकनीकी प्रशिक्षण का हिस्सा हैं (एनईईटी)। यह इंटर्नशिप योजना इसी वर्ग के लिए शुरू की गयी है।
सरकारा द्वारा इस योजना के उद्देश्यों को संतुलित और व्यावहारिक रूप में प्रस्तुत किया गया है। यह देश के विशाल युवा वर्ग को नई दिशा देने की दृष्टि से एक महत्वपूर्ण प्रयास है। फिर भी, कुछ मूलभूत प्रश्न बने हुए हैं- क्या यह योजना वास्तव में उन युवाओं तक पहुंच रही है, जिन्हें इसकी सबसे अधिक आवश्यकता है? क्या इसकी पात्रता शर्तें सभी के लिए समान अवसर प्रदान करती हैं? सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि सरकार इस योजना को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए क्या कदम उठा सकती है?
यह इंटर्नशिप किसके लिए है?
सामाजिक समता को ध्यान में रखकर तैयार की गयी इस योजना में केवल वंचित पृष्ठभूमि के युवा ही आवेदन कर सकते हैं, जिनके परिवार के सदस्यों की वार्षिक आय 8 लाख रुपये से अधिक नहीं है। हालांकि, यहां ‘परिवार’ की परिभाषा केवल माता-पिता या जीवनसाथी तक सीमित है। साथ ही कुल पारिवारिक आय की कोई स्पष्ट सीमा निर्धारित नहीं है। इसका अर्थ यह है कि इसमें ऐसे युवा भी आवेदन कर पाएंगे, जिनके भाई-बहनों की आय अधिक होगी। गौरतलब है कि योजना में इस विसंगति को रोकने के लिए कोई ठोस प्रावधान नहीं किया गया है।

आईएलओ एशिया-पैसिफिक / सीसी बीवाय
यह योजना आवेदकों के समूह में विविधता सुनिश्चित करने का प्रयास भी कर रही है। 21 से 24 वर्ष के युवा, जिन्होंने उच्च शिक्षा, उच्च माध्यमिक शिक्षा, व्यावसायिक शिक्षा या स्नातक पूरा कर लिया है, लेकिन इस समय न तो नौकरी कर रहे हैं और न ही पूर्णकालिक शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं, इस इंटर्नशिप के लिए आवेदन कर सकते हैं। इससे कंपनियां उन प्रतिभाओं पर ध्यान दे पाएंगी, जिन्हें आमतौर पर नजरअंदाज कर दिया जाता है। हालांकि, पात्रता मानदंड इतने व्यापक हैं कि चयन प्रक्रिया के स्नातकों की ओर झुके रहने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।
इसके अलावा, योजना की आवेदन प्रक्रिया भी एक स्तर तक उम्मीदवारों को हताश कर सकती है। इसमें केवल पीएम इंटर्नशिप पोर्टल के माध्यम से ही आवेदन किए जा सकते हैं। लेकिन कई छात्रों के लिए इस पोर्टल का उपयोग करना कठिन होता है। ऐसे में वे डिजिटल सेवा केंद्रों का रुख करते हैं, जहां उन्हें पंजीकरण के लिए शुल्क देना पड़ता है। नतीजतन, यह प्रक्रिया डिजिटल रूप से साक्षर युवाओं, खासकर शहरी क्षेत्रों के तकनीकी रूप से सशक्त स्नातकों के पक्ष में झुक जाती है, जो आसानी से ऑनलाइन पोर्टल का उपयोग कर सकते हैं। इस पूरी प्रक्रिया का विरोधाभास यह है कि जो इंटर्नशिप मुख्य रूप से वंचित युवाओं के लिए बनायी गयी है, वही उन्हें अलग-थलग करने का जोखिम भी पैदा कर रही है।
वर्तमान पात्रता मानदंडों पर गौर करें तो एक अहम सवाल उठता है: क्या वे युवा, जिनके लिए यह इंटर्नशिप सबसे अधिक फायदेमंद हो सकती है, वास्तव में इस योजना के बारे में जानते भी हैं? उदाहरण के लिए, एक ऐसा युवा जिसकी परवरिश ग्रामीण भारत में हुई है, जहां उसके माता-पिता असंगठित श्रमिक हैं और उन्होंने अपनी पूरी जमा-पूंजी अपने बच्चे की स्कूली शिक्षा में खर्च दी है, क्या इस योजना से वाकिफ होंगे? यदि उन्हें इसके बारे में पता भी हो, तो क्या उनके पास आवेदन के लिए जरूरी संसाधन मौजूद हैं?
मैं अंतरंग फाउंडेशन नामक एक गैर-लाभकारी संगठन का नेतृत्व करती हूं, जो उन युवाओं के साथ काम करती है, जिनके लिए यह योजना बनायी गयी है। हमारे अनुभव के आधार पर यह स्पष्ट है कि इस योजना के बारे में युवा समुदाय की जागरूकता बेहद सीमित है। जब हमने देखा कि हमारे साथ जुड़े युवा इस इंटर्नशिप योजना के बारे में कोई चर्चा नहीं कर रहे हैं, तो हमने उनकी जागरूकता का आकलन करने के लिए एक संक्षिप्त सर्वेक्षण (डिपस्टिक सर्वे) किया। इससे हमें पता चला कि भले ही राष्ट्रीय समाचार पत्रों में विज्ञापन प्रकाशित किए गए थे, सोशल मीडिया मंचों पर पोस्ट साझा की गयी थी और सरकारी व गैर-सरकारी व्हाट्सएप चैनलों के माध्यम से जानकारी प्रसारित की गयी थी, फिर भी 50 प्रतिशत से कम युवाओं को इस इंटर्नशिप योजना के बारे में कोई ठोस जानकारी थी। वे न केवल इसके पात्रता मानदंडों से अनभिज्ञ थे, बल्कि उन्हें यह भी नहीं पता था कि आवेदन के लिए क्या प्रक्रिया अपनायी जाए और कहां पंजीकरण किया जाए। इसका एक बड़ा कारण यह है कि अधिकांश युवा सरकारी सोशल मीडिया हैंडल को नियमित रूप से फॉलो नहीं करते, क्योंकि उनके लिए ये प्लेटफार्म सूचनाओं के प्राथमिक स्रोत नहीं होते।
एक और अहम सवाल यह है कि क्या यह योजना युवाओं के लिए स्थायी रोजगार का मार्ग प्रशस्त करेगी?
एक और अहम सवाल यह है कि क्या यह योजना युवाओं के लिए स्थायी रोजगार का मार्ग प्रशस्त करेगी? 12 महीने की इस इंटर्नशिप के तहत, सरकार डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (डीबीटी) के माध्यम से इंटर्नशिप मिलने के बाद इंटर्न को एकमुश्त 6,000 रुपये प्रदान करेगी। इसके बाद उसे एक वर्ष तक हर महीने 5,000 रुपये मिलेंगे। इसमें से 4,500 रुपये सरकार देगी और शेष 500 रुपये उस कंपनी द्वारा दिए जाएंगे (कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व फंड), जो इंटर्न को प्रशिक्षण दे रही है। हालांकि, यह राशि पूर्णकालिक रोजगार के लिए निर्धारित न्यूनतम वेतन से भी कम है।
दूसरी ओर, कंपनियों के लिए यह योजना फायदे का सौदा है, क्योंकि उन्हें युवाओं को नियुक्त करने के लिए कोई अतिरिक्त बजट आवंटित नहीं करना पड़ेगा। यदि यह योजना न होती तो अधिकतर कंपनियां इसमें भाग लेने से भी कतराती, क्योंकि उनका प्राथमिक लक्ष्य मुनाफा होता है, न कि बेरोजगारी की समस्या को दूर करना। इसके अलावा, इंटर्नशिप पूरी होने के बाद कंपनियों के लिए इन युवाओं को स्थायी रूप से नियुक्त करने की कोई अनिवार्यता नहीं है। इसका अर्थ यह है कि इंटर्नशिप की अवधि समाप्त होते ही वे अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ सकती हैं, जिससे युवा एक बार फिर रोजगार की अनिश्चितता में फंस सकते हैं। इसलिए यदि हम सच में अपने युवाओं के भविष्य को सुरक्षित करना चाहते हैं, तो हमें इन चुनौतियों का समाधान निकालना होगा और इस योजना को अधिक प्रभावी बनाने के उपाय सोचने होंगे।
ज्ञान, संवर्धन और सरलता का संगम
यह भारत की पहली इंटर्नशिप योजना नहीं है। इससे पहले भी कई समान प्रयास किए गए हैं, जैसे 2019 में अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई) द्वारा लागू की गयी इंटर्नशिप नीति और 2015 की नेशनल करियर सर्विस (एनसीएस)। हालांकि, इन योजनाओं की प्रभावशीलता का मूल्यांकन करने के लिए पर्याप्त डाटा उपलब्ध नहीं है, जिससे यह आकलन कर पाना कठिन हो जाता है कि वे कितनी कारगर साबित हुई हैं। यदि सरकार एक नई योजना शुरू करने से पहले पुरानी योजनाओं की खामियों का विश्लेषण करती, तो यह उन लोगों के लिए अधिक उपयोगी होता जो शिक्षा, प्रशिक्षण और आजीविका के क्षेत्र में काम कर रहे हैं। इसके अलावा, हमें यह भी ज्ञात है कि नेशनल करियर सर्विस (एनसीएस) मॉडल ब्रिटेन में काफी सफल रहा है, जहां इसके तहत बेहतरीन करियर परामर्श, मार्गदर्शन, एप्रेंटिसशिप और इंटर्नशिप के अवसर मुहैया कराए जाते हैं। सवाल यह उठता है कि क्या भारत इस मॉडल से सीख लेकर अपने युवाओं की क्षमता का बेहतर उपयोग कर सकता है?
इस पूरी प्रक्रिया को अधिक जटिल बना देने वाला एक और पहलू यह है, कि शिक्षा और रोजगार के तंत्र में एक और मंत्रालय को शामिल कर दिया गया है। यह नई इंटर्नशिप योजना कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्रालय (एमएसडीई) या शिक्षा मंत्रालय (एमओई) के बजाय कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय (एमसीए) के अधीन रखी गयी है। यह फैसला तर्कसंगत प्रतीत होता है, क्योंकि यह योजना कॉर्पोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (सीएसआर) खर्च के आधार पर देश की शीर्ष 500 कंपनियों के माध्यम से इंटर्नशिप उपलब्ध कराने की बात करती है। लेकिन साथ ही विभिन्न मंत्रालयों के बीच समन्वय की कमी एक गंभीर चिंता का विषय बन सकती है। योजना का प्रशासन कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय (एमसीए) के अंतर्गत होगा, लेकिन इसके लिए वित्तीय संसाधन कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्रालय (एमएसडीई) के स्किलिंग बजट से आवंटित किए जाएंगे।
इस इंटर्नशिप जैसी दूरगामी पहल को सफल बनाना है, तो संबंधित विभागों के बीच स्पष्ट संवाद और तालमेल बहुत जरूरी है।
शिक्षा और रोजगार पर केंद्रित एक संगठन के रूप में अंतरंग विभिन्न सरकारी मंत्रालयों के साथ मिलकर काम करता है, जिनमें युवा कार्यक्रम एवं खेल मंत्रालय, शिक्षा मंत्रालय, कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्रालय तथा श्रम एवं रोजगार मंत्रालय शामिल हैं। अब इस सूची में कॉर्पोरेट मामलों का मंत्रालय भी जुड़ गया है। इन सभी मंत्रालयों की प्राथमिकताओं, लक्ष्यों और कार्यप्रणालियों में काफी अंतर है, जिससे सभी के साथ समन्वय स्थापित करना बेहद चुनौतीपूर्ण हो जाता है। इससे भी अहम यह है कि यदि इस इंटर्नशिप जैसी दूरगामी पहल को सफल बनाना है, तो संबंधित विभागों के बीच स्पष्ट संवाद और तालमेल बहुत जरूरी है। उन्हें आपस में और नागरिकों के साथ एक ही भाषा में संवाद करने की जरूरत है। लेकिन वर्तमान में दुर्भाग्यवश ऐसा नहीं हो रहा है।
इसलिए, भारत के युवाओं के उज्जवल भविष्य के लिए एक दीर्घकालिक दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है। अब समय आ गया है कि हम इस दिशा में कदम उठायें और चंद अहम सवालों पर विचार करें:
- हम कैसे सुनिश्चित करें कि वंचित तबके के युवाओं को इस योजना का लाभ मिले? क्या पोर्टल की सुविधा को कुछ चयनित स्कूलों और कॉलेजों तक सीमित किया जा सकता है, जहां सरकारी विद्यालयों से स्नातक हुए छात्रों को प्राथमिकता दी जा सके?
- क्या हम सरकारी विद्यालयों को इंटर्नशिप पंजीकरण केंद्र बना सकते हैं, जिसके लिए उनकी कंप्यूटर लैब का उपयोग किया जाए? इससे न केवल स्कूल प्रक्रिया का हिस्सा बनेंगे, बल्कि उन्हें करियर विकास केंद्र के रूप में भी बढ़ावा मिलेगा।
- स्थानीय उद्योगों और उच्च माध्यमिक विद्यालयों के बीच मजबूत संबंध कैसे स्थापित करें, जिससे स्थानीय युवाओं को अपने ही क्षेत्र में इंटर्नशिप मिल सके।
- क्या यह अनिवार्य हो सकता है कि कंपनियां अपनी कुल इंटर्न संख्या के एक तय प्रतिशत हिस्से को पक्के कर्मचारियों के रूप में नियुक्त करें? इससे युवा अनौपचारिक क्षेत्र से निकलकर संगठित उद्योगों में रोजगार ढूंढ पाएंगे।
- क्या सभी योजनाओं को एक साझा मंच- नेशनल करियर सर्विस (एनसीएस)- के तहत एकीकृत किया जा सकता है? इससे एक सुलभ, केंद्रीकृत मंच तैयार होगा, जहां कौशल विकास, करियर मार्गदर्शन, इंटर्नशिप और एप्रेंटिसशिप से जुड़ी सभी सेवाएं एक ही स्थान पर उपलब्ध होंगी। यह मंच भारत के युवाओं के लिए एक करियर जीपीएस की भूमिका निभाएगा, जिससे उन्हें सही दिशा में मार्गदर्शन मिलेगा। इसके साथ ही देश को युवाओं के रोजगार में किए गए निवेश का ठोस लाभ भी मिलेगा।
यदि हम सच में अपने युवाओं का सशक्तिकरण करना चाहते हैं और उनकी क्षमताओं को निखारना चाहते हैं, तो इंटर्नशिप योजनाओं को इस तरह तैयार किया जाना चाहिए कि वे बेरोजगारी की समस्या का स्थायी समाधान बनें, न कि केवल एक अस्थायी राहत देकर इसे आने वाले कल पर टाल दें।
इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ें।
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