मैं चेन्नई में जैव विविधता संरक्षण पर काम करने वाले केयर अर्थ ट्रस्ट के साथ वरिष्ठ शोधकर्ता के तौर पर काम करती हूं। मेरे काम का एक हिस्सा तमिलनाडु के अलग-अलग जिलों के बच्चों और युवाओं को पारिस्थितिकी और पर्यावरण शिक्षा में शामिल करना है। मैंने अपनी टीम के साथ शहरी, कस्बाई और ग्रामीण क्षेत्रों के अलग-अलग आयु-वर्ग और पृष्ठभूमि के बच्चों के साथ प्रकृति भ्रमण और पर्यारवरण शिक्षा के कई सत्र आयोजित किए हैं। इसमें मुझे सबसे अलग बात यह देखने को मिली कि अलग-अलग समूह पर्यावरण को कैसे अलग-अलग नज़रिए से देखता और समझता है।
पर्यावरण के बारे में यह अंतर तब महसूस हुआ जब हम एक निजी स्कूल के बच्चों के साथ पल्लिकरनई आर्द्रभूमि (वेटलैंड) में प्रकृति भ्रमण पर गए। हालांकि ये बच्चे रोजाना इस क्षेत्र से गुजरते थे लेकिन जब हमने उनसे इसके बारे में पूछा तो ज्यादातर बच्चों का कहना था कि वे पहली बार इसके बारे में सुन रहे हैं। रोचक बात यह थी कि ये छात्र दुनिया भर के पर्यावरणीय मुद्दों पर अच्छे से बात कर सकते थे और सवाना और प्रेरी जैसे पारिस्थितिकी क्षेत्रों के नाम भी जानते थे। लेकिन स्थानीय पर्यावरण के बारे में उनका ज्ञान कम था। पेड़ पहचानने की एक गतिविधि के दौरान एक छात्र नारियल के पेड़ तक को पहचान नहीं सका था।
तिरुनेलवेली जिले के एक छोटे सरकारी स्कूल के बच्चों के साथ हमारा अनुभव पूरी तरह से अलग था। थामिराबरानी नदी के पास सुत्थमल्लि चेक डेम पर ‘वर्ल्ड रिवर्स डे’ कार्यक्रम के दौरान, 9-10 साल के बच्चों ने अपने आसपास के पर्यावरण के बारे में बहुत अच्छा ज्ञान दिखाया। हमारे सत्र में बच्चों को एक्टिविटी शीट्स दी गईं जिन पर वे पत्तियों के आकार और प्रकार पहचानने के लिए बिंगो खेल सकते थे। हमने उन्हें चेक डेम्स के पानी के बारे में भी समझाया।
जब हम वहां पहुंचे तो बच्चों ने खुद ही बिंगो शीट पर दिए गए सभी पेड़ों की पहचान कर ली थी। उन्होंने आत्मविश्वास से कहा, “हम रोज नदी में नहाते हैं, इसलिए हमें पता है कि यहां कौन से पेड़ उगते हैं।” इन बच्चों का अपने आसपास के पेड़ों, नदी और गांवों के बारे में ज्ञान, उन शहरी बच्चों के मुकाबले बहुत अलग था जो अपने प्राकृतिक वातावरण से काफी हद तक अनजान होते हैं।
यह फर्क तब भी दिखा जब हमने चेन्नई के एक निजी स्कूल में कक्षा 6-8 के छात्रों के साथ शहरी जैव विविधता पर एक सत्र किया। सत्र से पहले, हमने छात्रों से पूछा कि जब वे ‘जंगल’ और ‘शहर’ के बारे में सोचते हैं तो उनका पहला शब्द क्या होता है। जंगल के लिए सभी ने ‘हरा’, ‘पेड़’, और ‘जानवर’ लिखा। वहीं, शहर के लिए 30 में से 22 छात्रों ने ‘इमारतें’ लिखा जबकि बाकियों ने शहरों को ‘सड़कें’, ‘प्रदूषित’, ‘भूरा’ और ‘भीड़भाड़ वाला’ बताया।
यह इस बात को दिखाता है कि बच्चे शहरी जैव विविधता को कैसे देखते हैं और समझते हैं। कई बार ट्रैकिंग और बर्डवॉचिंग जैसी गतिविधियों को सिर्फ दूर-दराज के जंगलों से जोड़ा जाता है। इससे यह लगता है कि प्रकृति से जुड़ने के लिए यात्रा करना जरूरी है। स्कूलों में जहां नवीकरणीय ऊर्जा जैसे बड़े विषयों पर जोर दिया जाता है, बच्चों को अपने आस-पास के पर्यावरण से भी जोड़ने के लिए मौके मिलने चाहिए। आर्द्रभूमि, पार्क और अन्य शहरी पारिस्थितिकी तंत्र बच्चों को अपने आसपास के नीले-हरे स्थानों से परिचित करवाने के अच्छे तरीके हो सकते हैं। शहरी इलाकों में बड़े हो रहे बच्चों को अपनी स्थानीय पारिस्थितिकी के बारे में जानने के लिए ज्यादा मौके मिलने चाहिए।
अंजना वेंकटेशन केयर अर्थ ट्रस्ट में नीति अनुसंधान की कार्यक्रम प्रमुख हैं।
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