2009 में जब भूतपूर्व मुक्केबाज़ मिजिंग नरज़री खोमलैने (पारंपरिक बोडो कुश्ती) के कोच बने थे तब इस खेल को खेलने वाले लोगों की संख्या बहुत अधिक नहीं थी। वह सिमलगुरी गांव के लोगों में इसके प्रति आकर्षण पैदा करने के लिए वहां के स्कूलों और खुले मैदानों में खोमलैने करके दिखाते थे। लेकिन गांव के ज़्यादातर लोग इस बात को समझ नहीं पा रहे थे कि उनके बच्चों को एक ऐसे खेल में अपने हाथ-पैर तुड़वाने की क्या ज़रूरत है जिससे स्थाई कमाई भी नहीं होगी।
मिजिंग कहते हैं “मुझे आज भी याद है जब एक महिला ने मुझसे पूछा था कि “पिछली बार कब किसी ने पारंपरिक बोडो पोशाक में खेल खेलकर अपना जीवन चलाया था?” तब मेरे पास इस सवाल का कोई जवाब नहीं था।”
तब से अब तक खोमलैने ने लम्बी दूरी तय की है। सिमलागुरी के कई युवाओं को इस खेल के अनुशासन और शारीरिक फ़िटनेस के कारण भारतीय सेना और पुलिस बल में नौकरी मिली है।हालांकि गांव में खोमलैने का केवल इतना ही महत्व नहीं है। पारम्परिक रूप से शराब बनाने वाले बोडो जनजाति के घरों में भी पहले ऐसी स्थिति नहीं थी। मिजिंग कहते हैं “शराब हमेशा से हमारी संस्कृति का हिस्सा रही है और हम इसका इस्तेमाल पूजा से लेकर अंत्येष्टि तक में करते हैं। लेकिन ऐसे अवसरों पर बच्चों को शराब पीने की अनुमति नहीं होती थी। इनमें से कुछ आयोजन विशेष रूप से व्यस्क लोगों के लिए होते थे। हालांकि चीज़ें धीरे-धीरे बदलने लगीं। व्यस्क लोगों के साथ बच्चे भी शामिल होने लगे और उन्होंने भी शराब पीना शुरू कर दिया।”
इस बदलाव के लिए आंशिक रूप से उपभोक्तावाद में वृद्धि को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। चिरांग जिले ने अब पूरी तरह से ‘पिकनिक स्पॉट’ का रूप ले लिया है और यहां किराए पर रहने की जगह मिल जाती है। यह जिला शराब पीने का अड्डा बन चुका है। दूसरा कारण सिमलागुरी की भूटान से निकटता है, जहां शराब भारत की तुलना में सस्ती है। जश्न मनाने के किसी भी अवसर पर लोग केवल 30 मिनट की दूरी पर स्थित नेपाल-भूटान सीमा के दूसरी ओर चले जाते हैं।
ऐसी स्थिति में, खेल अनुशासन के हिस्से के रूप में धूम्रपान और शराब पीने पर प्रतिबंध लगाने वाला खोमलैनै एक उपयोगी हस्तक्षेप है। यह खेल उन माता-पिताओं को अपनी ओर आकर्षित कर रहा है जो शराब के नशे की लत से लड़ने के लिए बेचैन हैं और उन बच्चों को अपनी ओर खींच रहा है जिन्हें अपने हमउम्रों का जीवन बेहतर दिखाई पड़ता है। हालांकि ऐसा बहुत कुछ है जो यह खेल सिमलागुरी और असम के लोगों के लिए कर सकता है। लेकिन इसके लिए इसे सरकारी सहयोग और समर्थन की ज़रूरत है।
मिजिंग का कहना है कि “भारतीय खेल प्राधिकरण (एसएआई) अब हमारे गाँव के बोडो बच्चों को खेल उपकरण प्रदान करके उनका समर्थन करता है। वे हमारे बच्चों को हॉस्टल भी मुहैया करवाते हैं। यह सब कुछ बहुत अच्छा है लेकिन मुझे लगता है कि हमारे केंद्रों की तरह ही समुदाय द्वारा संचालित केंद्रों के लिए भी हमारे पास फंड होता तो बहुत अच्छा होता। एसएआई केवल प्रतिभा के आधार पर ही गांव के बच्चों का चुनाव करती है। उनके लिए सभी एक बराबर हैं। हम समझते हैं कि परिवार की आय आदि भी एक खिलाड़ी के जीवन को सींचने में अपना योगदान देने वाले कई कारकों में से एक है। मैं एक ऐसा हॉस्टल बनवाना चाहता हूं जहां बोडो जनजाति के गरीब परिवारों के बच्चे रह सकें, अभ्यास कर सकें और अपने उस समय का उपयोग पढ़ाई में लगा सकें जिसे वे अभी घर के कामों में लगाते हैं। इस दिनचर्या से उन्हें शराब से दूर रहने में भी मदद मिलेगी।”
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मिज़िंग नरज़री ट्राइबल लीडरशीप प्रोग्राम 2022 में फ़ेलो हैं और असम में चिरांग स्पोर्ट्स सेंटर के संस्थापक हैं।
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अधिक जानें: जानें कि कश्मीर के एक गांव में लोग सड़क के बदले कुश्ती का एक मैदान क्यों चाहते थे।
अधिक करें: अधिक जानने और इनका समर्थन करने के लिए मिजिंग नरज़री से [email protected] पर सम्पर्क करें।