कश्मीर की एक कुरीति जो महिलाओं को जलवायु संकट का ज़िम्मेदार बताती है

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जम्मू और कश्मीर के बारामूला और बांदीपोरा जिलों में, हाल के वर्षों में बर्फबारी में भारी कमी आई है। बर्फ़बारी में हुई इस कमी से कृषि प्रभावित हो रही है – बीज समय पर अंकुरित नहीं होते हैं, और सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी नहीं है। इन सबके कारण, कृषि उत्पादन भी कम हुआ है। इसका असर इस इलाके की युवा लड़कियों पर पड़ता है, जिन्हें अपने घरों में इस्तेमाल के लिए पानी लेने के लिए दूर-दूर जाना पड़ता है। इन लड़कियों पर इस बात का दबाव होता है कि वे अपनी शिक्षा की बजाय अपनी घरेलू जिम्मेदारियों को प्राथमिकता दें। इस दबाव में आकर अक्सर ही वे स्कूल या कॉलेज नहीं जा पाती हैं क्योंकि उन्हें अपने घर के लिए पानी का इंतज़ाम करना पड़ता है।

उनकी यह चुनौती कई गुना और भी तब बढ़ जाती है जब ज़िले में होने वाले जलवायु परिवर्तन का दोष भी महिलाओं पर ही मढ़ दिया जाता है।यह मेरे और मेरे सहकर्मियों द्वारा साल 2023 में बांदीपोरा और बारामूला में किए गए सर्वेक्षण का एक महत्वपूर्ण परिणाम था। हम स्काईट्रस्ट नाम के एक समाजसेवी संगठन के साथ काम करते हैं। यह संगठन स्वास्थ्य, लिंग और जलवायु के मुद्दों पर बात करने के लिए युवाओं को सशक्त बनाता है। हम लोग अपने इलाक़े में हो रहे जलवायु परिवर्तन के परिदृश्य को समझना चाहते थे।

इस सर्वेक्षण के अंर्तगत हमने फोकस समूह चर्चा का नेतृत्व किया और विभिन्न सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि और आयु समूहों के 93 लोगों का इंटरव्यू लिया। इस इंटरव्यू में हमने किसानों, महिलाओं और युवाओं से बातचीत की थी। इस प्रक्रिया में हमें रूढ़िवादी समुदाय के नेताओं द्वारा क़ायम की गई एक धारणा का पता चला जो बहुत ही परेशान करने वाली थी। इस धारणा के अनुसार, महिलाओं का ‘आधुनिक’ व्यवहार – उदाहरण के लिए, घर से बाज़ार, स्कूल या कॉलेज जाना – वर्षा की कमी जैसे जलवायु संबंधी संकटों के लिए जिम्मेदार थे। यह पिछड़ी मानसिकता क्षेत्र में महिलाओं और लड़कियों की स्वतंत्रता को और भी अधिक सीमित कर देती है।

इस धारणा को चुनौती देने के लिए अप्रैल 2023 में हमने क्लाइमेट फ्रेंड्स फ़ेलोशिप शुरू की, जिसके तहत जलवायु परिवर्तन, मानसिक स्वास्थ्य, लैंगिक भेदभाव और ऐसे ही मुद्दों पर दस प्रतिभागियों को प्रशिक्षित किया जाता है। इस फ़ेलोशिप में हमने युवा महिलाओं को प्राथमिकता दी थी। उन्होंने अपने गांवों में 10–15 युवा सदस्यों का एक समूह बनाया और पंचायतों और चौपालों में मासिक अड्डे (बैठक) आयोजित किए। इन अड्डों में, महिला साथी क्षेत्र के लोगों के सामने आने वाली विभिन्न चुनौतियों पर चर्चा का नेतृत्व करती हैं। अपने इस प्रयास से महिलाएं इस प्रकार जलवायु परिवर्तन के वास्तविक कारणों और रूढ़िवादी समूहों द्वारा प्रचारित मिथकों को खारिज करने की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित करती हैं। ये अड्डे समुदाय को अप्रत्याशित मौसम परिवर्तन, अधिक तापमान, शुष्क मिट्टी और नदियों और तालाबों में पानी की कमी का सामना करने के लिए वास्तविक हस्तक्षेप के बारे में सोचने के लिए भी प्रोत्साहित करते हैं।

जहां जलवायु परिवर्तन के कारणों को लेकर लोगों में जागरूकता बढ़ी है, वहीं इन युवा समूहों की महिला सदस्यों को लगातार कई तरह के प्रतिबंधों का सामना करना पड़ रहा है।

हाल ही में, उनकी सहमति मिलने के बावजूद हमें स्काई ट्रस्ट के सोशल मीडिया पेज से एक महिला साथी का वीडियो हटाना पड़ा। हमारी इस साथी को इस वीडियो को हटाने का दबाव इसलिए महसूस हुआ क्योंकि उसके भाई को इस वीडियो के बारे में पता लग गया और उसने सोशल मीडिया पर अपनी बहन की उपस्थिति मंज़ूर नहीं थी। मुझे उम्मीद है कि जलवायु संबंधी गलत सूचनाओं से निपटने के अपने प्रयासों में, हम इन लैंगिक रूढ़िवादिता के खिलाफ भी अपनी लड़ाई जारी रख सकेंगे।

अहंगर ज़ाहिदा स्काईट्रस्ट नाम के एक समाजसेवी संगठन की सह-संस्थापक हैं। वे चेंजलूम्स-यूथ लीडर्स फॉर क्लाइमेट एक्शन का भी हिस्सा हैं, जो भारत के युवा नेताओं के लिए जलवायु से जुड़े मामलों से जुड़े क्षेत्रों में प्रवेश का एक अवसर है।

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अधिक जानें: इस लेख को पढ़ें और जानें कि हिमाचल प्रदेश की स्पीती घाटी में महिलाएं पानी का प्रबंधन कैसे करती हैं।

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