कोई भी नौकरी आपको एक दिशा देती है। यह किसी गोले की परिधि में आपको सीमित करती है। बात यह भी है कि नौकरियों की संख्या सीमित है। वहीं, दूसरी तरफ़ व्यापार सूरज की रौशनी की तरह है जो हर दिशा में फैलती है। एक खेतिहर किसान के रूप में जैविक तरीक़ों से खेती शुरू करने के पहले ही साल में मुझे लगभग 70,000 रुपए की आमदनी हुई थी। आज 13 वर्षों बाद, मेरे पास 4.5 एकड़ ज़मीन और खेती से जुड़े पांच व्यापार हैं जिनमें वर्मीकम्पोस्ट, मुर्गीपालन और गाय तथा बकरी जैसे मवेशियों का पालन शामिल है। मेरी वार्षिक आमदनी 10 लाख रुपए है।
खेती एवं खेती से जुड़े व्यापारों ने मुझे और मुझ जैसी कई महिला किसानों को समृद्धि, स्वास्थ्य, भोजन तथा जल सुरक्षा हासिल करने में मदद की है। इसने हमारे बच्चों का भविष्य भी सुरक्षित किया है। यह रासायनिक खेती से कम महंगा है। हालांकि यह सच है कि शुरू करने के बाद लाभ कमाने में थोड़ा समय लगता है लेकिन लम्बे समय में इससे होने वाला लाभ अधिक है।
मेरे माता-पिता भी किसान थे और उनकी चुनौतियों को देखकर मैं खेती-किसानी के काम में नहीं जाना चाहती थी। उनके पास किसी प्रकार की औपचारिक शिक्षा नहीं थी और लोगों ने इसका बहुत फ़ायदा उठाया। उन्हें अपने ही एक रिश्तेदार से अपनी ज़मीन वापस लेने के लिए 12 साल तक अदालत में मुक़दमा लड़ना पड़ा जिससे उनकी हालत ख़स्ता हो गई। उनके पास 2.5 एकड़ वाली ज़मीन का एक टुकड़ा था जो हमारे गांव से बहुत दूर था और इस ज़मीन का लगभग आधा एकड़ हिस्सा पूरी तरह से बंजर था।
स्वयं शिक्षण प्रयोग (एसएसपी) के साथ प्रशिक्षण लेने के बाद ही मुझे ज़मीन और जानवरों के मालिक होने की क्षमता का एहसास हुआ। महिलाएं खेत में काम करते समय बहुत अधिक समय और मेहनत लगाती हैं। फिर, उन्हें भी किसान और उद्यमी की पहचान क्यों नहीं मिलनी चाहिए? एसएसपी के साथ किसानों के लिए एक सखी और मेंटॉर के रूप में मैंने लगभग 50 गांवों की अनगिनत महिलाओं को उनके परिवार से एक एकड़ ज़मीन का मालिकाना हक़ प्राप्त करने के लिए की जाने वाली बातचीत में मदद की है। जब उनके पास अपनी कोई जमीन नहीं होती है, तो हम उन्हें पैसे के लिए या अन्य किसानों से फसल के बंटवारे के लिए जमीन पट्टे पर देने में मदद करते हैं। अगर उन्हें खेती के लिए जमीन नहीं मिलती है, तो मैं उन्हें मुर्गीपालन, पशुपालन, वर्मीकम्पोस्ट या एजोला जैसे जैविक कीटनाशकों जैसे विविध कृषि-व्यवसाय शुरू करने के लिए तैयार करती हूं।
इस मॉडल से हमें प्रवास को रोकने में भी मदद मिली। सखी गोदावरी डांगे के बेटे के पास कृषि में स्नातक की डिग्री है और उसे एक सरकारी नौकरी मिल सकती है। लेकिन उसने खेती करना चुना क्योंकि उसे इसके फ़ायदे दिखाई दे रहे हैं। प्रशिक्षक एवं किसान वैशाली बालासाहेब घूघे ने शहर में नर्सरी की अपनी नौकरी छोड़ दी ताकि वह अपनी बॉस खुद बन सके। अब उसके पास अपना खुद का खेती से जुड़ा व्यापार है और अपने प्रशिक्षण के सत्रों के लिए खुद के दो कमरे भी हैं। उसके पति और बेटे उसके व्यापार को बढ़ाने में उसकी मदद करते हैं। महामारी के दौरान जब प्रवासी अपने गांवों को वापस लौट रहे थे तब उसने कइयों को अपने खेत के उत्पादों की पैकेजिंग और ट्रांसपोर्टिंग का काम दिया था।
खेती और उससे जुड़े व्यवसाय शुरू करने से न केवल महिलाओं को फायदा हुआ है बल्कि उनके आसपास का पूरा समुदाय लाभान्वित हुआ है।
अर्चना माने स्वयं शिक्षण प्रयोग में कृषि की मेंटर-ट्रेनर हैं।
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