राजू उत्तर प्रदेश से आया हुआ एक प्रवासी मजदूर है। वह पिछले पाँच सालों से मदुरई में एक बेल्ट बेचने वाले के रूप में काम कर रहा है। वह ‘सेठ’ के लिए काम करने वाले पंद्रह लोगों में से एक है। सेठ नागपुर से छँटे हुए डिज़ाइनर बेल्ट लाने वाला बिचौलिया है जिन्हें मदुरई में बेचा जाता है। राजू हर सुबह 5 बजे जागता है, और हर दिन अपने बैग में चमड़े का सामान भरकर सुबह 7 बजे से दोपहर 12 बजे तक सड़कों पर घूमता है। यही वह समय है जब राजू के मुख्य ग्राहक (पर्यटक) खरीददारी के लिए बाहर निकलते हैं। थोड़ी देर के आराम के बाद मीनाक्षी मंदिर के आसपास शाम 4 बजे के लगभग वह दोबारा अपने काम में लग जाता है।
राजू की कोई तनख्वाह नहीं है, इसके बदले उसकी पूरी कमाई उस कमीशन पर निर्भर है जो वह कमाता है। प्रत्येक बेल्ट की कीमत 90 रुपए होती है, लेकिन राजू उन्हें बड़े ब्रांड के नाम के साथ ऊंची कीमतों पर बेचता है, जिससे उसे फायदा होता है। राजू बताता है कि, उसकी हर दिन की कमाई 500–700 रुपए है जो पीक सीजन में दोगुनी हो जाती है लेकिन गर्मी और बरसात में आधी।
यह पूछे जाने पर कि वह अपने गाँव से यहाँ क्यों चला आया, राजू ने कहा कि, “क्या आपकी शादी हो गई है? जब परिवार की ज़िम्मेदारी आती है तब सबसे आलसी आदमी को भी काम करना पड़ता है। मेरी एक छोटी सी बेटी है और उसके अच्छे भविष्य के लिए मैं काम कर रहा हूँ।”
आगे वह बताता है कि, “यह सिर्फ मेरा जीवन नहीं है बल्कि दूसरे शहरों से आए सभी प्रवासी मजदूरों की हालत एक जैसी है। दक्षिण भारत के बिचौलियों को हिन्दी नहीं आती है। इसलिए वे उत्तर भारत से आए ग्राहकों के लिए हिन्दी बोलने वाले प्रवासी मजदूरों को काम पर रखते हैं। मदुरई के स्थानीय इलाकों के लोग कभी भी इन उत्तर भारत से आए फेरीवालों से अपना सामान नहीं खरीदते हैं। लेकिन पर्यटक कम कीमत वाले ब्रांडेड चीजों के प्रति आकर्षित होते हैं। ‘सेठ लोग’ इस बाजार के मौके का फायदा उठाकर मुनाफा कमाते हैं।”
सास्वतिक त्रिपाठी फ़ाउंडेशन फॉर इकोलॉजिकल सिक्योरिटी में जिला समन्वयक (डिस्ट्रिक्ट कोर्डिनेटर) के रूप में काम करते हैं।
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अधिक जानें: पढ़ें कि प्रवासी मजदूरों के जीवन को समझने से उनकी जरूरतों को बेहतर ढंग से पूरा करने में कैसे मदद मिल सकती है।
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