साल 2015 में शुरू हुई प्रधानमंत्री आवास योजना का लक्ष्य था कि साल 2022 तक भारत के शहरी और ग्रामीण इलाके के हर एक गरीब और झुग्गी-झोपड़ी में रह रहे परिवारों के पास अपना पक्का मकान होगा। लेकिन मध्य प्रदेश के भोपाल जिले के नगर निगम में लाखों लोग आज भी झुग्गी, झोपड़ियों में रहने के लिए मजबूर हैं।
भोपाल के विश्वकर्मा नगर झुग्गी बस्ती में बसे ज़्यादातर लोग दूसरे शहर से पलायन करके आए मजदूर हैं। आवास न होने के कारण उन्होंने खुद ही झुग्गियां बना ली हैं और अब इनमें रह रहे हैं। यहां के रहवासी मोहम्मद कासिम बताते हैं कि “हम यहां पिछले 20 सालों से रह रहे हैं। हमारी बस्ती में पानी, बिजली की समस्या है। दिन में बिजली की कटौती होती है और सिर्फ रात को ही बिजली मिलती है। किसी भी घर में शौचालय नहीं हैं। पिछले कई सालों से कहा जा रहा है कि सभी को पक्के मकान मिलेंगे। लेकिन अब तक कुछ नहीं हुआ। हमें सरकार के वादों पर भरोसा नहीं है।”
ऐसी ही स्थिति, बस्ती में रह रहे करीब एक हज़ार से भी ज़्यादा परिवारों की है। बस्ती के आसपास साफ-सफाई न होने के कारण भी उनका यहां रुकना मुश्किल है। घर में शौचालय न होने से रहवासी सार्वजनिक शौचालय का उपयोग करते हैं। इसके लिए उन्हें 80 रुपये प्रतिमाह का शुल्क देना होता है। सार्वजनिक शौचालयों में फैली गंदगी के कारण भी परेशानी होती है।
झुग्गी की निवासी ज्योति पंडित कहती हैं कि “यहां इतने छोटे घर हैं कि परिवार के साथ गुजर-बसर करने में परेशानी होती है। यदि रात को बच्चों को शौचालय की जरूरत पड़े तो पास के रेलवे स्टेशन रानी कमलापति जाकर शौचालय उपयोग करते हैं क्योंकि रात नौ बजे के बाद सार्वजनिक शौचालय बंद हो जाता है।”
नगर निगम के इलाके में करीब दो दर्जन झुग्गियां हैं, जो ज्यादातर 20 से 30 साल पुरानी हैं। इसके अलावा, जिले के बागमुगालिया क्षेत्र में नई झुग्गियां बनती जा रही हैं। कुछ झुग्गी परिवारों को नगर निगम ने प्रधानमंत्री आवास योजना के अंतर्गत मल्टियों (बहुमंज़िला इमारतों) में शिफ्ट किया गया है। लेकिन उनकी कंस्ट्रक्शन गुणवत्ता खराब है। 2015 में बनी इंद्रा नगर स्थित एक मल्टी की हालत इतनी खराब है कि महज नौ वर्षों के भीतर ही बिल्डिंग का सीमेंट जगह-जगह से झड़ रहा है।
इंद्रानगर मल्टी की रहवासी संतोषी ने बताया कि, “यहां निगम के द्वारा साफ-सफाई का ध्यान नहीं रखा जा रहा जबकि आगे वाली कॉलोनियों में नियमित सफाई की जाती है। पिछले छह महीने से हमारा चेम्बर टूटा पड़ा है, पानी बाहर निकलने की शिकायत नगर निगम के अधिकारियों से करते चले आ रहे हैं, लेकिन कोई सुनने को तैयार ही नहीं हैं। हमारे साथ निगम प्रशासन भेदभाव कर रहा है।”
अंकित पचौरी, द मूकनायक की संपादकीय टीम का हिस्सा हैं।
यह एक लेख का संपादित अंश है जो मूलरूप से द मूकनायक पर प्रकाशित हुआ था।
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