दिल्ली के बेघर लोगों को सड़क पर भी नींद क्यों नहीं मिल पा रही है

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46 साल के बाबुल* को यमुना पुश्ता (नदी किनारे का जलभराव क्षेत्र) के पास रहते हुए क़रीब एक दशक से अधिक हो गया है। मध्य प्रदेश से दिल्ली आने के बाद बाढ़-प्रभावित यह मैदान ही उसका एक मात्र ठिकाना है। बाबुल शादियों और विभिन्न आयोजनों में वेटर का काम करते हैं। अपने काम से वे इतना नहीं कमा पाते हैं कि शहर में एक घर लेकर रह सकें। सड़क पर रहने के कारण उनका जीवन पूरी तरह से असुरक्षित है।

बाबुल का कहना है कि ‘दिनभर चिलचिलाती धूप के कारण ज़मीन बहुत ज़्यादा गर्म हो जाती है और रात तक गर्म ही रहती है। इसके कारण रात में सोना मुश्किल हो जाता है। दिन की चिलचिलाती धूप और गर्मी हम जैसे लोगों (बेघरों) को सुबह जल्दी जागने के लिए मजबूर कर देती है, और फिर दिन भर किसी तरह की राहत नहीं मिलती।’

बाबुल ने अत्यधिक गर्मी से निपटने के लिए दवाओं और नशे पर बढ़ती अपनी निर्भरता की ओर भी इशारा करते हैं। बाबुल क़हते हैं कि ‘शराब पीने से मुझे थोड़ी शांति मिलती है और इससे उमस भरी गर्मी सहने में भी आसानी होती है। एक बार इसका नशा चढ़ जाने के बाद मुझे आसपास की चीजों का पता नहीं चलता है।’

चिराग़ दिल्ली के फ़्लाइओवर के पास रहने वाले मुरली कहते हैं कि ‘सिर को ढंकने के लिए त्रिपाल शीट का इस्तेमाल करना भी हमारे लिए चुनौतीपूर्ण है क्योंकि बहुत अधिक गर्मी में यह फट और टूट जाता है।’

चूंकि दिल्ली में हर साल गर्मियों में उच्च तापमान के नए रिकॉर्ड बन रहे हैं, ऐसे में बाबुल को होने वाला अनुभव अनोखा नहीं है। मैं जिस समाजसेवी संस्था हाउसिंग लैंड राइट्स नेटवर्क के साथ काम करता हूं, उसके द्वारा हाल ही में किए गये एक अध्ययन के अनुसार, दिल्ली में रहने वाले बेघर लोगों में लगभग 99 फ़ीसद लोग अत्यधिक गर्मी के कारण रातों में सो नहीं पाते हैं।

दिल्ली अर्बन शेल्टर इम्प्रूवमेंट बोर्ड (डीयूएसआईबी) द्वारा बेघरों को दिये गये आश्रय गृह भी मददगार साबित नहीं हो रहे हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि ये आश्रय गृह टीन की चादरों से बने होते हैं जो दिन के समय तेज धूप के कारण बहुत अधिक गर्म हो जाते हैं और जिससे कमरे का तापमान बढ़ जाता है। इसके अलावा, तापमान को कम करने और कमरे को ठंडा करने वाले तरीक़ों और साधनों का ना होना या अक्षम होना पहले से ही चुनौतीपूर्ण स्थितियों में इजाफ़ा ही करती है। यमुना बाज़ार हनुमान मंदिर आश्रय गृह में रहने वाले 50 साल के मूलचंद कहते हैं कि ‘आश्रय गृह में लगे पंखों से गर्म हवा निकलती है। कमरे में भीषण गर्मी के कारण हम लोग रात भर नहीं सो पाते हैं।’

अनिद्रा, अत्यधिक गर्मी के कारण बेघरों पर पड़ने वाले प्रभावों में से एक है। उन्होंने ने सांस लेने में कठिनाई, मतली, चक्कर आना, निर्जलीकरण और भूख न लगना जैसी स्वास्थ्य समस्याओं के बारे में भी बताया है।

एक बेघर आदमी की औसत मासिक आमदनी लगभग 8 हज़ार रुपये होती है, जिसके कारण वे पंखों और कूलर का इस्तेमाल नहीं कर पाते हैं। उचित आश्रय, भोजन, पानी और दवाओं का खर्च उठाने की अक्षमता और सरकार से पर्याप्त मदद ना मिलने जैसे कारकों ने इस मामले को और भी बदतर बना दिया है। जैसा कि निज़ामुद्दीन की सड़कों पर रहने वाली सुधा* कहती हैं ‘गर्मी के कारण हम बार-बार बीमार पड़ते हैं, लेकिन दवाओं की बढ़ती क़ीमत के कारण हमारे लिए पूरी खुराक लेना मुश्किल होता है।’

पूर्वी दिल्ली के चांद सिनेमा के पास रहने वाले ललित* बताते हैं कि ‘चक्कर आना शुरू हो जाता है और प्यास असहनीय हो जाती है। कभी-कभी मतली आती है, बुखार बढ़ता है, शरीर में दर्द होता है और बेचैनी बढ़ जाती है।’

*गोपनीयता के लिए नामों को बदल दिया गया है।

अनुज बहल एक शहरी रिसर्चर और स्वतंत्र पत्रकार हैं।

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