लाल चींटियों की चटनी महाराष्ट्र के गढ़चिरौली ज़िले के लोगों का एक लोकप्रिय व्यंजन है। जंगलों में रहने वाले माडिया जनजाति के लोग अपने खाने में खट्टेपन का स्वाद लाने के लिए चींटियों की चटनी खाते हैं। इस चटनी को मछली, तरी वाली सब्ज़ियों, अंबादी (हरे पत्तों वाली सब्ज़ी) के साथ खाया जाता है। फ़ॉलिक एसिड की बहुत मात्रा होने के कारण यह चटनी बहुत ही गर्म होती है। इसे प्रोटीन का भी एक अच्छा स्त्रोत माना जाता है। चटनी बनाने के लिए माडिया जनजाति के लोग अक्सर इन चींटियों को घर की छतों पर कड़ी धूप में सुखाते हैं। धूप में सुखाने से इसे कई महीनों तक संरक्षित रखने में मदद मिलती है। इससे वे ज़रूरत के अनुसार महीनों तक अपने खाने में इस्तेमाल करते हैं।
लेकिन चटनी के लिए चींटियाँ पकड़ना बहुत कठिन काम है। माडिया जनजाति के पुरुषों को चींटियों के घोंसलों को पकड़ने के लिए घने जंगलों में अंदर बहुत दूर तक चलकर जाना पड़ता है। माडिया जनजाति के एक आदमी ने हमें बताया कि “लाल चींटियाँ आमतौर पर पेड़ की सबसे ऊँची डाली पर होती हैं। इनके घोंसलों को पकड़ने के लिए दो लोगों की ज़रूरत होती है। घोंसले वाली डाल को काटने के लिए हमें पेड़ पर चढ़ना पड़ता है। इससे पहले कि वे चींटियाँ इधर-उधर ग़ायब हो जाएँ या हमें काटना शुरू कर दें डाल के नीचे गिरते ही हम चींटियों को पकड़कर जल्दी-जल्दी उन्हें मारना शुरू कर देते हैं।”
लाल चींटियों के काटने पर दर्द बहुत ज़्यादा होता है। एक साथ कई चींटियों के काटने लेने से शरीर में सूजन तक आ जाती है। लेकिन माडिया जनजाति के लोग चींटी पकड़ने में माहिर हैं। उनका मानना है कि अच्छे स्वाद के लिए इतना ख़तरा तो उठाया जा सकता है।
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सिमित भगत एक सामाजिक विकास कार्यकर्ता हैं और साथ ही एक फ़िल्म निर्माता भी हैं।
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