पेंच अभयारण्य की महिला गाइड्स को एक बेहतर रोस्टर सिस्टम की ज़रूरत क्यों है?

Location Iconसिवनी जिला, मध्य प्रदेश

मैं मध्य प्रदेश के सिवनी जिले के पेंच बाघ अभयारण्य (टाइगर रिजर्व) में सात साल से जंगल गाइड के रूप में काम कर रही हूं। मेरे पति भी अभयारण्य में सफ़ारी जीप ड्राइवर का काम करते हैं। जंगल गाइड की नौकरी में मुझे दिन में दो बार, सुबह 6 बजे और दोपहर 2.30 बजे की सफ़ारी के लिए तुरिया गेट पर रिपोर्ट करना होता है। तुरिया गेट, अभयारण्य के उन तीन गेटों में से एक है जो मध्य प्रदेश राज्य की सीमा में पड़ते हैं जबकि अभयारण्य का बाक़ी हिस्सा महाराष्ट्र राज्य में आता है।

हर सफ़ारी के लिए हमेशा जरूरत से ज्यादा गाइड और जीप उपलब्ध रहती हैं। इसके लिए वन विभाग एक रात पहले ही सभी जीप के लिए रोस्टर बना देता है। इसमें स्पष्ट होता है कि किस दिन कौन से ड्राइवर का नंबर आएगा। एक बार जब सभी ड्राइवरों को उनका समय (स्लॉट) मिल जाता है तो उनकी जीप के लिए गाइड भी दे दिए जाते हैं। यह क्रमानुसार चलने वाला तरीका है। मान लीजिए कि अगर 1-10 नंबर की बारी सुबह आती है तो दोपहर में 11 नंबर से शुरुआत होगी। इसी तरह, अगली सुबह जिसका नंबर होगा उससे शुरुआत होगी।

एक पूरे सफारी चक्र में लगभग 30-35 जीप होती हैं। हालांकि सभी जीपों की सूची पहले से तैयार कर ली जाती है, लेकिन जब तक सफारी शुरू होने का सही समय नहीं आ जाता, तब तक यह सटीक रूप से अनुमान लगाना मुश्किल होता है कि वास्तव में उसमें कितनी जीपों और गाइडों की आवश्यकता होगी। उदाहरण के लिए, दोपहर की सफारी का समय तीन बजे है लेकिन मांग के अनुसार जीप शाम चार बजे तक चलती रहती हैं। इसलिए गाइड को शाम 4-4:15 बजे तक इंतजार करना पड़ता है। कई बार ऐसा भी होता कि कभी कोई ड्राइवर और गाइड किसी काम से कहीं बाहर या फिर बीमार होते हैं। ऐसे में, अगले वाले व्यक्ति का नंबर आगे बढ़ जाता है। यही वजह है कि ड्राइवर और गाइड को हमेशा स्टैंडबाय रखा जाता है।

गाइड प्रति सफारी 500 रुपए कमाते हैं। जब उन्हें टिप मिलती है तो यह उनकी अतिरिक्त आय होती है, इसलिए हम इस तरह का कोई मौक़ा नहीं खोना चाहते हैं। लेकिन अगर गाइड की ज़रुरत न हो तो उन्हें घर वापिस जाना पड़ता है। ऐसा अक्सर होता है। हम एक घंटे तक  गेट पर खड़े रहकर देखते रहते हैं कि शायद लास्ट-मिनट बुकिंग के चलते किसी को गाइड या जीप की ज़रुरत पड़े।

सभी ड्राइवरों के लिए एक व्हाट्सएप ग्रुप है जो उन्हें रोस्टर की जानकारी देता है और बताता है किसी शिफ़्ट में कितने ड्राइवरों की जरूरत है। ज़्यादातर ड्राइवर तुरिया के पास ही रहते हैं, इसलिए उन्हें गेट तक पहुंचने में बहुत समय नहीं लगता है। लेकिन गाइड के लिए ऐसा कोई  व्हाट्सएप ग्रुप नहीं है जिससे यह पता चल सके कि उन्हें जाना चाहिए या नहीं। वन विभाग भी उनके लिए कोई रोस्टर नहीं बनाता है। अगर वे ना जाएं और किसी गाइड की ज़रुरत पड़ जाए तो वे अपनी बारी और कमाई, दोनों खो देते हैं। वहीं, गेट तक जाकर ज़रूरत न होने की स्थिति में घर लौटने में समय और मेहनत दोनों बरबाद होते हैं, ख़ासतौर पर महिलाओं के लिए जिन्हें घर के काम भी करने होते हैं।

अगर हमें इस बात का मोटा-मोटा अंदाजा मिल जाए कि किस शिफ्ट में कितने गाइड चाहिए, तो हमारा काम आसान हो सकता है। वन विभाग, कुछ समय का बुकिंग पैटर्न देखकर हमें एक संख्या बता सकता है। इस तरह गेट तक सिर्फ यह जानने के लिए आने-जाने में हमारा समय बरबाद नहीं होगा कि हमारे लिए कोई काम है या नहीं।

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