ओडिशा में जंगल की सैर के बहाने अगली पीढ़ी तक पहुंचता पारंपरिक ज्ञान

Location Icon ढेंकनाल जिला, ओडिशा
ओडिशा के वन_जंगल
हम बच्चों को अलग-अलग तरह के पौधों और जानवरों को पहचानना और मौसम का अंदाजा लगाना सिखाते हैं। | चित्र साभार: शांतिलता देहुरी

दानापासी, हदगारी और कंटोल गांव ओडिशा के ढेंकनाल जिले में आते हैं जो जंगलों और पहाड़ों से घिरे हुए हैं। जंगल हमारे लिए बहुत जरूरी हैं; उनके बिना हमारा गुजारा नहीं हो सकता है। हम अपना घर बनाने के कच्चे माल से लेकर भोजन और दवा तक के लिए उन पर निर्भर हैं। हमारी आजीविका भी उन्हीं से आती है। उदाहरण के लिए, जंगलों में पाई जाने वाली साल की पत्तियों का उपयोग खाने के पत्तल बनाने में किया जाता है, जिन्हें बाद में बाजार में बेचा जाता है। इन तमाम फायदों के चलते जंगलों का संरक्षण हमारे लिए जरूरी हो जाता है।

हालांकि, पिछले कुछ सालों से, हमारे गांव के युवा निर्माण कार्य, औद्योगिक मजदूरी और होटल सेवा जैसी बेहतर नौकरियों के लिए बाहर जा रहे हैं। नतीजतन, हम जंगलों से जुड़ा हमारा पारंपरिक ज्ञान उन तक पहुंचा नहीं पा रहे हैं और इसलिए इस ज्ञान के लुप्त होने का खतरा पैदा हो गया है।

इसे रोकने के लिए, समुदाय के कुछ बुजुर्गों ने गांव के बच्चों को हर सप्ताहांत ‘विज्डम वॉक’ पर जंगल में ले जाना शुरू कर दिया। इन बुजुर्गों को जंगल मास्टर कहा जाता है। सैर के दौरान, हम बच्चों को दिखाते हैं कि रोजमर्रा के जीवन में जंगल से मिले संसाधनों का उपयोग कैसे करते हैं। उदाहरण के लिए, इंद्रजाल और महाकालरे जैसे पौधों का उपयोग लोग सिरदर्द को ठीक करने के लिए करते हैं। अर्जुन के पेड़ की छाल का उपयोग मधुमेह और पेट की समस्याओं के इलाज के लिए किया जाता है। महासिंदु का उपयोग हर तरह के दर्द से राहत के लिए किया जाता है, और जयसंदा चकत्ते और त्वचा की चोटों को ठीक करता है।

हम बच्चों को अलग-अलग प्रकार के पौधों और जानवरों की पहचान करना और उन्हें मौसम का अंदाजा लगाना भी सिखाते हैं। उदाहरण के लिए, हमें पता है कि अगर बारिश होने वाली होती है तो दीमक पेड़ों से उतरना शुरू कर देते हैं। सूखे मौसम में अर्जुन के पेड़ की पत्तियों से पानी का टपकना भी बारिश के आने का संकेत देता है। हम बच्चों को दिखाते हैं कि पीने के पानी के लिए किन पेड़ों का उपयोग किया जा सकता है और कैसे? उदाहरण के लिए, पलाश पेड़ की छाल में बने वी-आकार का कट लगाकर और अटांडी लता के तने के सबसे मोटे हिस्से में एक सीधा कट लगाने से पानी निकलता है, जिसे इकट्ठा किया जा सकता है। खजूर, बांस और सियाली झाड़ी भी पानी देने वाले पौधे हैं।

बच्चे हर सैर पर कुछ नया खोजते हैं जो इसे दिलचस्प बनाता है। हम उन्हें बताते हैं कि फल और अन्य खाद्य पौधे कहां मिलेंगे और हम छोटे-छोटे खेल खेलते हैं, जैसे पत्तियों को ढूंढना और उन्हें मालाओं में पिरोना। 

किशोरों और युवा वयस्कों को जंगल के बारे में जानने में उतनी दिलचस्पी नहीं है जितनी बच्चों को होती है। युवाओं में शराब की लत एक बढ़ती हुई समस्या है जो अपनी कमाई शराब पर खर्च कर देते हैं। यह एक और कारण है कि हमें लगा कि ये पदयात्राएं महत्वपूर्ण थीं। वे न केवल हमारे ज्ञान को अगली पीढ़ी तक पहुंचाने में हमारी मदद करती हैं, बल्कि यह भी सुनिश्चित करती हैं कि हमारे बच्चों में कम उम्र से ही जंगल के प्रति रुचि विकसित हो। ऐसा होने से, उनके जंगलों का संरक्षण करने की संभावना बढ़ जाती है।

सात साल पहले जब हमने ये पदयात्रा शुरू की थी तब से चीजें बहुत बदल गई हैं। बच्चे अब जंगल जाने को लेकर काफी उत्साहित रहते हैं। उनमें से कई खुद ही जंगल में चले जाते हैं, और कुछ ने तो अपने आंगन में पेड़ उगाना भी शुरू कर दिया है। हम अपने वनों में रुचि लौटती देखकर उत्साहित हैं।

शरत चंद्र देहुरी एक जंगल मास्टर और कंटोल ग्राम विकास समिति के अध्यक्ष हैं।

पिताबासा पधान, छाया पधान और प्रमिला पधान ने भी इस लेख में योगदान दिया।

इस लेख को अंग्रेजी में पढ़ें

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