कच्छ के छोटे रण में नमक श्रमिकों से अधिक महत्व गधों को क्यों मिल रहा है?

Location Iconकच्छ जिला, गुजरात
हाथ में नमक के टुकड़े_नमक श्रमिक
अगरिया समुदाय के लोग पारंपरिक नमक श्रमिक हैं जो सैकड़ों वर्षों से कच्छ के छोटे रण में नमक की खेती करते आ रहे हैं। | चित्र साभार: उदिशा विजय

गुजरात में अगरिया समुदाय के लोग पारंपरिक नमक श्रमिक हैं जो सैकड़ों वर्षों से कच्छ के छोटे रण में नमक की खेती करते आ रहे हैं। फरवरी 2023 में, समुदाय के कई सदस्यों को इस क्षेत्र से निकल जाने के नोटिस जारी किए गए थे। नोटिस के अनुसार, समुदाय के वे लोग जिन्होंने आधिकारिक सर्वेक्षण और निपटान (ऑफिशियल सर्वे एंड सेटलमेंट – एसएंडएस) प्रक्रिया के अंतर्गत अपना पंजीकरण नहीं कराया था, उन्हें 1972 के वन्य जीवन संरक्षण अधिनियम के तहत, इस अधिसूचित जंगली गधा अभयारण्य में अवैध अतिक्रमणकारी माना गया है।

अगरिया समुदाय के लगभग 90 प्रतिशत लोगों ने 1997 में शुरू हुई इस प्रक्रिया के लिए आवेदन नहीं किया था। इसके पीछे दो कारण थे – पहला, उन्हें इस प्रक्रिया के तहत पंजीकरण को लेकर कोई जानकारी नहीं थी और दूसरा, अगरिया समुदाय सदियों से यहां के जंगली गधों के बीच रहते आ रहे हैं। इस वजह से उन्हें इस बात का कोई आभास नहीं हुआ कि अभयारण्य क्षेत्र होने की वजह से उन्हें अब जमीन और रोजी-रोटी के अधिकार से भी वंचित किया जा सकता है।

पंजीकरण के लिए आवेदन करने वालों में नमक खनन कंपनियां और ऐसे कुछ लोग थे जो अगरिया समुदाय से संबंध नहीं रखते थे। यह अलग बात है कि वर्तमान में ये लोग अब कच्छ के छोटे रण में नमक निर्माण का पूरा काम देखते हैं तथा अगरिया समुदाय के कई लोग, जो यहां कभी जमीन के स्वतंत्र मालिक हुआ करते थे, वे इन कंपनियों में केवल श्रमिक बनकर रह गए हैं। ऐसा भी पाया गया है कि सर्वेक्षण के दौरान, विभिन्न कारणों से दस्तावेज जमा करने की प्रामाणिकता की जांच भी नहीं की गई थी। स्वतंत्रता के बाद से कच्छ के छोटे रण की ज़मीन का कोई सर्वेक्षण नहीं किया गया था।

सेतु अभियान, एक ऐसा संगठन है जो जमीनी स्तर पर स्थानीय प्रशासन को मजबूत करने पर काम करता है, यह कच्छ के छोटे रण में अगरिया समुदाय के साथ उनकी भूमि और काम के अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए प्रयासरत है। लेकिन नौकरशाही की वजह से यह सब कर पाना इस संगठन के लिए मुश्किल हो गया है। संगठन ने संबंधित अधिकारियों को कई याचिकाएं और आवेदन भेजे ताकि वे अधिकारियों से इन सब मुद्दों को लेकर मिल सकें लेकिन हर थोड़े समय बाद अधिकारी बदल जाता है और बात आगे नहीं बढ़ पाती है।

देवयतभाई जीवनभाई अहीर, नमक के खेतों में काम करने वाले एक मजदूर हैं जिनका नाम सूची में नहीं है। उन्होंने हमें बताया “अगर वे हमें नमक के खेतों में काम करने की अनुमति नहीं देंगे तो हमें मजबूरन किसी और जगह काम ढूंढने के लिए पलायन करना पड़ेगा। आखिरकार, हमें अपना गुजारा चलाने के लिए कम से कम पांच से दस हज़ार रुपये तो कमाने ही पड़ेंगे।”

कई संगठनों ने, सरकारी एजेंसियों के साथ मिलकर रण में अगरिया और खानाबदोश समुदाय के लोगों की मदद करने की कोशिश की है। इसमें पीने के पानी की व्यवस्था, बच्चों के लिए सामयिक छात्रावास, कार्य स्थल पर स्वास्थ्य खतरों के लिए सही उपचार, सुरक्षा किट, सब्सिडी वाले सौर ऊर्जा से चलने वाले पंप और चिकित्सा शिविर प्रदान करने जैसी सुविधाएं देना शामिल हैं।

विडंबना यह है कि एक तरफ राज्य सरकार इस समुदाय के जीवन को बेहतर बनाने की कोशिश कर रही है, वहीं दूसरी तरफ उन्हें उनकी ज़मीन से वंचित भी कर रही है। 2020 की एक रिपोर्ट के अनुसार, यहां के जंगली गधे फल-फूल रहे हैं लेकिन अगरिया समुदाय के लिए यही बात नहीं कही जा सकती है।

महेश ब्राह्मण, सेतु अभियान के साथ कार्यक्रम समन्वयक के रूप में काम करते हैं और कई वर्षों से नमक के खेतों में काम करने वाले श्रमिकों के लिए काम कर रहे हैं। उदिशा विजय एक इंडिया फेलो हैं जो सेतु अभियान के साथ भुज, कच्छ में बेहतर स्थानीय शासन पर काम कर रही हैं।

इस लेख का एक संस्करण इंडिया फेलो पर प्रकाशित हुआ था।

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