कम राशि, ज़्यादा प्रभाव

Location Iconहज़ारीबाग़ जिला, झारखंड

“हमें थोड़ा सा ही मुफ़्त राशन मिलता हैं—5 किलो चावल या 5 किलो आटा प्रति व्यक्ति। केवल इतना ही। हमें किसी अन्य प्रकार की मदद या दूसरे प्रावधानों के तहत लाभ नहीं मिलता हैं।” अपने परिवार को पिछले साल जून से मिल रही सहायता के बारे में झारखंड के हज़ारीबाग़ की एक प्रवासी कार्यकर्ता रौनक परवीन का ऐसा कहना है।

रौनक उन प्रवासी कामगारों में से हैं जो 2020 के लॉकडाउन के दौरान अपने गाँव लौटने के लिए मजबूर हो गए थे और बाद में कोविड-19 महामारी के चलते उनकी नौकरी को नुकसान पहुंचा था। रौनक के परिवार के सदस्यों के पास उनका राशन कार्ड था पर उन्होंने देखा कि बहुत सी महिलाओं के पास राशन कार्ड नहीं होने के कारण उन्हें राशन सहायता नहीं मिल पाती थी।

रौनक ने यह भी देखा कि कई महिलाएँ बेरोज़गार थीं। आजीविका के लिए किसी भी तरह का अवसर न होने के कारण वे अपने जीवन यापन और अपना घर चलाने के लिए संघर्ष कर रही थीं। रोज़गार का एकमात्र प्रमुख स्रोत मौसमी खेतिहर मज़दूर के रूप में काम करना था—एक ऐसा पेशा जहाँ फसल की पैदावार अच्छी न होने या प्राकृतिक आपदा का मतलब हो सकता है किसी भी तरह के काम न होना। ऐसी स्थिति बावजूद इसके है कि रौनक सहित कुछ महिलाएँ शिक्षित हैं और पढ़ाने का काम कर सकती हैं।

यह अनिश्चितता महामारी के दौरान और ज्यादा बढ़ गई जिसके कारण गाँव की महिलाएँ आय के सुरक्षित स्रोतों पर ज़ोर दे रही हैं। रौनक ने अपने गाँव की अन्य महिलाओं के साथ एक अनौपचारिक बचत समूह शुरू करने का फैसला किया। समूह के लगभग 150 सदस्य प्रत्येक रविवार को मिलते हैं, और हर सप्ताह अपने सामूहिक बचत बॉक्स में 100 रुपये जोड़ते हैं। इस समूह के सदस्य इस राशि को किसी भी समय उधार के रूप में ले सकते हैं। अधिकतम निकासी सीमा 5,200 रुपये की है और प्रत्येक सदस्य ज़्यादा से ज़्यादा हर वर्ष इतनी ही राशि की बचत कर पाएगा। पिछले कुछ महीनों से बचत की इस राशि को घटाकर 10 रुपये प्रति व्यक्ति कर दिया गया है। रोज़गार के अवसरों की कमी और कुछ मामलों में मानसून की शुरुआत के चलते काम के नुकसान के कारण महिलाएँ उस अनुपात में बचत नहीं कर पाई हैं।

रौनक एक औपचारिक स्व-सहायता समूह को स्थापित करने के लिए भी काम कर रही हैं जो सरकारी लाभ और योजनाओं का लाभ उठाने में सक्षम होगा। तब तक यह बचत समूह अपने सदस्यों को उनके परिवार के स्वास्थ्य और त्योहार के खर्च जैसी तात्कालिक जरूरतों को पूरा करने में उनकी मदद कर रहा है और साथ ही उन्हें सामूहिकता की शक्ति के बारे में भी सिखा रहा है।

जैसा कि आईडीआर को बताया गया।

रौनक परवीन ने झारखंड के हज़ारीबाग से स्नातक की पढ़ाई की है।

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अधिक जानें: एक ऐसे स्वयंसेवक के काम के बारे में पढ़ें जो प्रवासी मज़दूरों को राहत मुहैया करवाने और व्यवस्थागत परिवर्तन की वकालत करती है।


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