महामारी की परछाई: मुंबई की झुग्गी-बस्तियों में स्वास्थ्य सुविधाओं की स्थिति

Location Iconमुंबई सिटी जिला, महाराष्ट्र

कोविड-19 महामारी ने मुंबई की अनौपचारिक बस्तियों में स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच से जुड़ी वास्तविकताओं को उजागर किया था, जो अभी भी उसी हालत में बनी हुई हैं। आज भी लोग महंगी स्वास्थ्य सुविधाओं और लंबी दूरी जैसी बाधाओं से जूझ रहे हैं। और इसीलिए, अब उनका एलोपैथी और सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं से भरोसा कम हो गया है।

महामारी को ध्यान में रखते हुए, हमने अनौपचारिक बस्तियों में स्वास्थ्य सुविधाओं से जुड़ी निर्णय प्रक्रियाओं में आए बदलावों पर एक शोध किया। शोध में हमने पाया कि महामारी के दौरान लोगों को बहुत आर्थिक नुक़सान झेलना पड़ा है जिसके चलते अब वे अपनी स्वास्थ्य जरूरतों को टालते रहते हैं। अब लोग स्थानीय वैद्य-हकीम या घरेलू उपचारों को अपनाने लगे हैं जो उनके लिए ज्यादा सुलभ और किफायती विकल्प हैं। स्वास्थ्य सेवाओं के प्रति इस रवैये ने सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली पर लोगों की निर्भरता को लगभग समाप्त कर दिया है।

कमला नगर की निवासी 27 वर्षीय सरस्वती कडकाओ कहती हैं, “हमारे लिए क्लिनिक की दूरी और पैसा बड़ी समस्या बन गए थे। इलाज के लिए क्लीनिक पहुंच से बाहर होने और पैसों की तंगी के कारण, मैंने लंबे समय से अपनी खांसी, सांस लेने से जुड़े संक्रमण और बुखार जैसी बीमारियों के लिए आयुर्वेद और घरेलू इलाज का सहारा लिया।” गोलीबार के निवासी, 61 वर्षीय धर्मेंद्र बताते हैं, “मुझे डॉक्टर को दिखाने जाने के लिए बहुत दूर जाना पड़ता था, लेकिन बहुत इंतज़ार करने के बावजूद मेरी बारी नहीं आती थी क्योंकि तब तक डॉक्टर से मिलने का तय समय भी खत्म हो जाता था। उस समय अस्पताल में भी कोई बिस्तर खाली नहीं था। इस वजह से हमें एक स्थानीय डॉक्टर से सलाह लेनी पड़ी।”

पहले हर बस्ती में आमतौर पर कम से कम एक स्थानीय वैद्य-हकीम होता था। हालांकि, इनकी विश्वसनीयता आज भी एक चिंता का विषय बनी हुई है। अपनी विज़िट के दौरान हम कमला नगर के एक ऐसे ही क्लीनिक में गए जिसके बारे में कई स्थानीय लोगों ने बताया था कि वे कम खर्च में अपना इलाज करवाने के लिए वहां जाते हैं। हमने देखा कि वहां किसी भी तरह के प्रमाणपत्र या डिग्री की जानकारी न के बराबर थी। यह नजारा इस तरह के स्वास्थ्य संस्थानों में आम बात है। हमने डॉक्टर की योग्यता के बारे में भी पूछताछ की जिसके बारे में हमें कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला। वहां की रिसेप्शनिस्ट ने हमें डॉक्टर से मिलने की अनुमति नहीं दी और बात करने से भी बच रही थी।  ऐसा लग रहा था कि वह हमारे आने से असहज हो गई है। पारदर्शिता की इस कमी ने गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर हमारी चिंताओं को और बढ़ा दिया।

महामारी के बाद से सोशल मीडिया और लोगों के बीच फैली बातें भी स्वास्थ्य संबंधी जानकारियों का प्राथमिक स्रोत बन गई हैं। यहां तक कि लोग अब समुदाय के कुछ भरोसेमंद सदस्यों से भी सलाह लेने लगे हैं। नेहरू नगर के रमेश कहते हैं कि “मेरे पड़ोसी एक आयुर्वेदिक डॉक्टर हैं, स्वास्थ्य संबंधी सलाह के लिए हम उनके पास ही जाते हैं। वे हमें काढ़ा (पारंपरिक हर्बल ड्रिंक) बनाने की विधियां बताते थे। हमने लोकल व्हाट्सएप ग्रुप में शेयर किए गए इस तरह काढ़ों को भी आजमाया।”

अदिति देसाई, ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर न्यू इकोनॉमिक स्टडीज में वरिष्ठ शोध विश्लेषक हैं।

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