माघ बिहू: आपसी विवाद निपटाने वाला एक त्यौहार जिसके सूत्रधार युवा हैं

Location Iconबारपेटा ज़िला, असम
गाना गाती हुई महिलायें-माघ बिहू
माघ बिहू एकता और उत्सव का समय है, एरातारी के लोग इस त्यौहार के दौरान शांति और सद्भाव पर जोर देकर इस भावना को मूर्त रूप देते हैं। | चित्र सौजन्य: करीना बोरदोलोई

असम में जनवरी के महीने में, फसल कटाई के मौसम के आखिरी दिन को माघ बिहू के रूप में मनाया जाता है, जिसे भोगली बिहू भी कहा जाता है। इस मौके पर, समुदाय के लोग साथ में मिलकर अच्छी उपज का जश्न मनाते हैं। इस दौरान असम के बरपेटा जिले के एरारतारी गांव में कुछ अनूठी परंपराएं भी निभाई जाती हैं।

त्यौहार की शुरुआत उरूका के साथ होती है, जो माघ बिहू की एक शाम पहले मनाया जाता है। इस रात, पूरा गांव एक आग के अलाव के चारों ओर इकट्ठा होता है और भव्य भोज का आनंद लेता है, जिसे भुज कहते हैं। समुदाय के भोज के लिए बांस, सूखे पत्तों और घास से बने भेलाघर या मेजी बनाई जाती है। भेलाघर एक तरह का अस्थायी ढांचा होता है, जिसमें बैठकर समुदाय के लोग बैठकर भोजन करते हैं। फिर अगली सुबह होते ही इन भेलाघरों को अच्छे और स्वस्थ जीवन की कामना करते हुए अग्नि देवता की प्रतीकात्मक प्रार्थना करते हुए जलाया जाता है।

माघ बिहू एकता और उत्सव का समय होता है, और एरारतारी के लोग इस त्यौहार में शांति और सौहार्द की भावना को शामिल कर इसे मनाते हैं। इसे आगे बढ़ाते हुए पूरे वर्ष, परिवार के बुजुर्ग पुरुषों पर परिवार में शांति बनाए रखने की जिम्मेदारी होती है। लेकिन त्यौहार के दौरान, वे यह जिम्मेदारी युवा पीढ़ी को सौंप देते हैं, जिनका काम एरारतारी के सभी लोगों को एक साथ जोड़ने का होता है। यह इस क्षेत्र की सदियों पुरानी परंपरा है! माघ बिहू के दौरान, आमतौर पर 20 साल की उम्र के युवाओं पर शांति बनाए रखने की जिम्मेदारी होती है जिसमें वे अपने समुदाय के बीच होने वाले झगड़ों को सुलझाने का काम करते हैं।

ये झगड़े आमतौर पर छोटी-मोटी बहसबाजी या गलतफहमियों के कारण हो जाते हैं। एरारतारी के निवासी राजीव दास कहते हैं, “एक बार, कोई अपने पड़ोसी से थोड़ी चीनी उधार लेना चाहता था। जब पड़ोसी उन्हें चीनी नहीं दे पाया, तो वह व्यक्ति नाराज़ हो गया। दूसरी बार, एक परिवार के परिसर में लगे पेड़ की एक बड़ी शाखा दूसरे परिवार के घर में गिर गई। इससे बरामदा टूट गया गया, जिससे उनमें झगड़ा हो गया। इस तरह की छोटी-मोटी बेवकूफी भरी बहसबाजी उनकी रोज़मर्रा की जिंदगी में होती रहती है।”

भुज के बाद, जब रात को सब लोग सो जाते हैं, तो वहां के लड़के भेलाघर से बाहर निकलकर चुपचाप उन घरों में छोटे-छोटे सामान जैसे चप्पल और बर्तन आपस में बदल देते हैं जिनके मालिकों के बीच झगड़ा चल रहा होता है। अगले दिन, घरों में सामान की गुमशुदगी के कारण अफरा-तफरी और हंसी का माहौल बन जाता है , क्योंकि लोग अपने खोए हुए सामान की तलाश कर रहे होते हैं। ये सारी गतिविधियां इसलिए की जाती हैं ताकि लोग आपस के विवादों को भुलाकर फिर से बातचीत शुरू कर पाएं। 

ऐसा ही मामला दो परिवारों के आठ साल के दो लड़कों के बीच हुए झगड़े से जुड़ा है। झगड़े की वजह से उनके माता-पिता ने एक-दूसरे पर बच्चे की खराब परवरिश का आरोप लगाया। इसका नतीजा यह हुआ कि दोनों बच्चों के परिजनों ने लगभग चार महीने तक एक-दूसरे से बात नहीं की। उरुका की रात, युवाओं ने दोनों परिवारों की एक कुर्सी और एक चावल मिल की अदला-बदली कर दी। अगली सुबह, उन्हें किसी से मालूम चल गया कि उनका सामान कहां हैं। इसके लिए जब दोनों माता-पिता आपस में मिले और इस लड़ाई पर खूब हंसे, एक दूसरे से माफ़ी मांगी और जो हो गया उसे भूलकर आगे बढ़ने का फैसला किया। एरारतारी के निवासी दीप दास कहते हैं, “छोटे-मोटे विवादों को सुलझाना और लोगों के बीच सामंजस्य बढ़ाना अच्छा लगता है।” 

करीना बोरदोलोई, प्रोजेक्ट डीईएफवाई में डिजास्टर प्रिपेयर्ड कम्युनिटी स्पेसेज़ (डीआईएसपीईसीएस) कार्यक्रम की प्रोग्राम एसोसिएट हैं।

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