मैं मूलरूप से हरियाणा के सोनीपत जिले का रहने वाला हूं। मैं पिछले कई वर्षों से एक निजी कंपनी में नौकरी करता हूं। मैं कंपनी के सेल्स विभाग के कामों को देखता हूं इसलिए आमतौर पर मेरा दिन हमेशा ही बहुत व्यस्त रहता है। नौकरी करते हुए, पिछले कई सालों से मेरे दैनिक जीवन में तनाव लगातार बढ़ता जा रहा था। इसका कारण शायद यह था कि जो काम मैं कर रहा था, वह मेरे व्यक्तित्व के अनुरूप नहीं था। लेकिन पारिवारिक जिम्मेदारियों के चलते केवल इसे ही करता चला जा रहा था। उम्र बढ़ने के साथ मेरे पास उतने विकल्प भी नहीं रह गए थे।
ज्यादातर लोगों की तरह, कोविड-19 के दौरान मैंने अपने जीवन को लेकर सोचना शुरू किया। मैंने खुद को टटोला कि आखिर मेरे अंदर ऐसा कौन सा स्किल है जिससे मैं अपने तनाव को कम कर सकता हूं। मुझे लगा कि अगर अब मैं अपनी रुचि से जुड़ी चीजों के लिए समय नहीं दूंगा तो मेरे लिए लंबे समय तक इतने तनाव के साथ काम करना मुश्किल होगा। यही सब सोचते और ऑनलाइन रिसर्च करते हुए मैंने निर्णय लिया कि मैं उन लकड़ियों का कुछ बेहतर इस्तेमाल करूंगा जिन्हें लोग अक्सर बेकार समझकर फेंक देते हैं।
मैंने धीरे-धीरे बेकार पड़ी लकड़ियों से कुछ चीजें बनाना शुरू किया। शुरूआत एक दीवार घड़ी बनाने से हुई। मैं जब भी कस्टमर विजिट पर जाता तो समय मिलते ही वहां आसपास की आरा मशीन पर जाकर देख-ताक करने लगता। मैंने वहां देखा कि आरा मशीन पर लकड़ियों की कटाई के बाद बेकार लकड़ियों को जलाने के लिए फेंक दिया जाता था। मैं वहां से कुछ लकड़ियां मांगकर घर ले आता जिन्हें साफ सुथरा कर मेरी पत्नी और बेटी उन्हें पेंट कर सजाती संवारती थीं।
मैं आज अपने ऑफिस के काम के साथ-साथ जहां भी जाता हूं, वहां के लोकल आरा मशीनों या किसी ढाबा वगैरह से बेकार लकड़ियों को घर लाकर दीवार घड़ी, पेन स्टैन्ड, घर की नेम प्लेट्स, हैंगिंग लाइटस जैसी कई सारी घरेलू चीजें बनाने लगा हूं।
आमतौर पर मैं रविवार के दिन उन लकड़ियों की कटाई, सफाई और वार्निश से जुड़ा काम करता हूं। इन्हें तैयार करने के लिए मैं कुछ मशीनों का इस्तेमाल करता हूं जो आसानी से ऑनलाइन उपलब्ध हो जाती हैं। मैं बता नहीं सकता कि यह सब करके मुझे कितनी खुशी मिलती है। इस पूरे अनुभव से मुझे यह एहसास हुआ है कि भले ही थोड़े समय के लिए सही, लेकिन हमें अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में उन चीजों को जरूर शामिल करना चाहिए जो हमें वास्तव में प्रेरित करती रहें।
निखिल अरोड़ा एक निजी कंपनी में काम करते हैं।
आईडीआर पर इस जमीनी कहानी को आप हमारी टीम के साथी सिद्धार्थ भट्ट से सुन रहे थे।
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