मैं भारत के सबसे ठंडे स्थानों में से एक लद्दाख के द्रास जिले का रहने वाला हूं। सर्दियों के महीनों में यहां का तापमान -35°C से भी नीचे चला जाता है। इतने ठंडे मौसम और कठिन भौगोलिक परिस्थितियों के कारण यहां रोजगार के ज्यादा अवसर नहीं हैं। परंपरागत रूप से, इस क्षेत्र के रहवासी रोजगार के लिए सरकारी नौकरियों या सेना पर निर्भर रहते हैं। छात्रों के लिए भी सामान्यत: पारंपरिक करियर जैसे चिकित्सा या कला क्षेत्र को चुनना आम बात है। लेकिन मैंने इस रूढ़ि को तोड़ते हुए होटल प्रबंधन का क्षेत्र चुना।
मैंने साल 2016 में स्नातक किया पर उस समय मेरी रूचि जम्मू और कश्मीर प्रशासनिक सेवा (जेकेएएस), जम्मू और कश्मीर पुलिस सेवा या ऐसी अन्य परीक्षाओं में बैठने में नहीं थी। मैंने एक निजी कंपनी में 4 साल नौकरी की और नए कौशल सीखे। इसी की बदौलत मुझे तुर्की से एक नौकरी का प्रस्ताव मिला।
हालांकि, साल 2019 में घटी दो मुख्य घटनाओं ने मेरी किस्मत बदल दी। पहली घटना, लद्दाख उस समय के जम्मू और कश्मीर राज्य के विभाजन के बाद बने दो केंद्र शासित प्रदेशों (यूटी) में से एक बन गया। इसके बाद अनुच्छेद 370 को हटा दिया गया, जो जम्मू और कश्मीर के सभी स्थायी निवासियों को संपत्ति का अधिकार, सरकारी नौकरियों और छात्रवृत्तियों जैसी विशेष सुविधाएं प्रदान करता था। दूसरी घटना थी कोविड-19 महामारी, जिसने तुर्की के लिए मेरी अंतर्राष्ट्रीय यात्रा को असंभव कर दिया और नौकरी का मौका हाथ से निकल गया।
फिर मैंने इस उम्मीद के साथ सरकारी परीक्षा की तैयारी शुरू कर दी, कि लद्दाख को नए केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा मिलने से अब ज्यादा स्वायत्तता मिलेगी और मेरे जैसे लोगों के लिए नए अवसर पैदा होंगे।
हालांकि, साल 2019 से लद्दाख में उच्च स्तर की सरकारी पदों के लिए कोई प्रतियोगी परीक्षाएं आयोजित नहीं की गई हैं। हजारों दूसरे लद्दाखी उम्मीदवारों की तरह, मैं भी निराश हूं कि केंद्रीय सरकार ने अभी तक लद्दाख लोक सेवा आयोग स्थापित नहीं किया है, जो केंद्र शासित प्रदेश में सिविल सेवा की परीक्षाएं आयोजित कर सके। अब मैं उम्र की सीमा को पार कर चुका हूं और इन परीक्षाओं के लिए आवेदन नहीं कर सकता।
इन हालातों का सामना लद्दाख के बहुत से लोग कर रहे हैं। युवाओं में निराशा बढ़ती जा रही है क्योंकि अवसरों का इंतजार तो है लेकिन यह नहीं पता कि कब तक? अब यहां संविदा आधारित भर्तियां इतनी बढ़ रहीं हैं कि इन्होंने सरकारी नौकरियों की जगह लेना शुरु कर दिया है। हालांकि इनमें न तो रोजगार की सुरक्षा मिल पाती है और न ही बेहतर वेतनमान।
जब लद्दाख जम्मू और कश्मीर का हिस्सा था, तो हर साल कई लद्दाखी युवा जम्मू और कश्मीर प्रशासनिक सेवा में सफलतापूर्वक शामिल होते थे। अब लद्दाख एक केंद्र शासित प्रदेश है, तो ऐसे में स्थानीय अवसर बढ़ने का फायदा होना चाहिए था लेकिन हम अभी भी खुद को हाशिए पर खड़ा महसूस कर रहे हैं। यहां के सलाहकार पदों, जैसे पर्यावरण परामर्शदाता की भूमिका में प्रदेश के बाहरी उम्मीदवारों को मौका दिया जा रहा है। हम स्थानीय लोगों के जनसंख्या और क्षेत्र की गहरी समझ के बाद भी हमें अक्सर इन नौकरियों के लिए दौड़ से बाहर कर दिया जाता है।
वर्तमान हालात काफी निराशाजनक हैं। लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश का दर्जा मिलने से युवाओं के लिए नए अवसर खुलने की जो उम्मीदें थीं, वे अब बढ़ती चुनौतियों की चिंताओं में बदल गई हैं। ऐसा लगता है कि हमें अपनी ही भूमि में हाशिये पर रखा जा रहा है।
अली हुसैन वर्तमान में दिल्ली में काम करते हैं।
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