क्या अस्थाई आंगनबाड़ी ग्रामीण स्वास्थ्य संकट का कोई हल हो सकती है?

Location Icon सागर जिला, मध्य प्रदेश
सागर जिले की आंगनबाड़ी_अस्थाई आंगनबाड़ी
सागर से लगभग 30 किलोमीटर दूर बरखुआ तिवारी नाम का एक गांव है जो ऐसी ही विकास से जुड़ी कई चुनौतियों का सामना करता है। | चित्र साभार: सतीश भारतीय

मैं मध्य प्रदेश के सागर जिले का निवासी हूं और सामाजिक न्याय तथा मानवाधिकार के मुद्दों पर स्वतंत्र पत्रकारिता करता हूं। सागर जिला, जो मेरे कार्यक्षेत्र का हिस्सा है, आज भी पिछड़ेपन का सामना कर रहा है। यहां के ग्रामीण क्षेत्रों में संसाधनों की कमी, सूखा, पलायन और स्वास्थ्य संबंधित कई समस्याएं गहराई तक फैली हुई हैं।

सागर से लगभग 30 किलोमीटर दूर बरखुआ तिवारी नाम का एक गांव है जो ऐसी ही विकास से जुड़ी कई चुनौतियों का सामना करता है। यहां ज्यादातर घर कच्चे मिट्टी के बने हैं, गांव में पक्की सड़कें नहीं हैं और इलाका अभी भी खुले में शौच से मुक्त नहीं है। लगभग 400 की आबादी वाले इस गांव में सबसे बड़ी समस्या कच्ची और अस्थाई आंगनबाड़ी की है। आंगनबाड़ी बच्चों के पोषण और महिलाओं की स्वास्थ्य सेवाओं का एक महत्वपूर्ण केंद्र होती है, लेकिन यहां अस्थाई आंगनबाड़ी के कारण गर्भवती महिलाएं, छोटे बच्चे और यहां तक कि कार्यकर्ता भी लगातार कई समस्याओं का सामना कर रहे हैं।

लीलावती आदिवासी यहां की आंगनबाड़ी कार्यकर्ता हैं जो साल 2009 से इस केंद्र का संचालन कर रही हैं। वे बताती हैं कि बरसात के मौसम में छप्पर से पानी टपकने लगता है जिससे आंगनबाड़ी का सामान गीला हो जाता है। जगह की कमी के कारण बच्चों को केंद्र में बैठाने में दिक्कत होती है और कई बच्चे बीच में ही घर वापस चले जाते हैं। लीलावती कहती हैं कि ऐसे में उन्हें बच्चों के भोजन की व्यवस्था अपने घर पर करनी पड़ती है जिससे उनके स्वास्थ्य और पोषण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

गांव की आशा कार्यकर्ता नीलम पटेल का अनुभव भी ऐसा ही है। वे बताती हैं कि आंगनबाड़ी केंद्र गांव के एक से दूसरे घर में स्थानांतरित होता रहता है। गांव में ज्यादातर लोगों के पास छोटे और कच्चे घर हैं, इसलिए कोई भी लंबे समय तक आंगनबाड़ी के लिए जगह देने को तैयार नहीं होता है। इस कारण महिलाओं के टीकाकरण और अन्य स्वास्थ्य सेवाओं के लिए नीलम को अपने घर पर व्यवस्था करनी पड़ती है। गर्भवती महिलाओं की जांच के लिए सुरखी या सागर के जिला अस्पताल जाना पड़ता है और वहां तक पहुंचने के लिए कोई परिवहन सुविधा उपलब्ध नहीं है। आंगनबाड़ी की इस स्थिति को लेकर कई बार पंचायत, प्रशासन और नेताओं तक बात पहुंचाई गई है। डॉक्टरों और कार्यकर्ताओं ने भी पक्की आंगनबाड़ी की मांग करते हुए कई पत्र लिखे हैं, लेकिन अब तक कोई समाधान नहीं निकला है।

इस गांव की स्थिति यह न केवल प्रशासन की उपेक्षा को दिखाती है बल्कि यह भी बताती है कि बच्चों और महिलाओं के स्वास्थ्य के अधिकारों के साथ, किस तरह उनके जीवन जीने के मौलिक अधिकार का भी हनन हो रहा है। ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी सुविधाओं की कमी, विकास के दावों पर गंभीर सवाल उठाती है। यह एक बड़ा सवाल है कि कब तक ऐसे गांव विकास की मुख्यधारा से वंचित रहेंगे?

सतीश भारतीय एक स्वतंत्र पत्रकार है और वे सामाजिक न्याय और मानवाधिकार के मुद्दों पर लिखते हैं।

अधिक जानें: आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं पर पोषण की एक और जिम्मेदारी कैसे है?

अधिक करें: लेखक के काम के बारे में अधिक जानने और उसका समर्थन करने के लिए [email protected] पर उनसे जुड़ें।


और देखें


दिल्ली की फेरीवालियों को समय की क़िल्लत क्यों है?
Location Icon दिल्ली

जलवायु परिवर्तन के चलते ख़त्म होती भीलों की कथा परंपरा
Location Icon महाराष्ट्र

क्या अंग्रेजी भाषा ही योग्यता और अनुभवों को आंकने का पैमाना है?
Location Icon महाराष्ट्र

राजस्थान की ग्रामीण लड़की यूट्यूब का क्या करेगी?
Location Icon राजस्थान