तुलसी राम शर्मा हिमाचल प्रदेश के ठियोग ज़िले में सेब की खेती करते हैं। उन्होंने हमें बताया कि “इस समय हम दोहरी मार झेल रहे हैं। ख़राब मौसम और खाद की कमी ने हम किसानों और बागवानों की कमर तोड़ दी है।” हिमाचल प्रदेश में मुख्य रूप से सब्ज़ियों और सेब की खेती होती है। लेकिन पिछले दिनों खाद की उपलब्धता में आई भारी कमी ने कई किसानों की आजीविका पर बुरा असर डाला है। यह मामला भारत और चीन के बीच बिगड़ते संबंधों से जुड़ा है और चल रहे रुस-यूक्रेन युद्ध का भी असर इस पर पड़ा है। प्रसिद्ध कृषि विशेषज्ञ देवेंद्र सिंह का कहना है कि यह आपदा युद्धग्रस्त यूक्रेन से होने वाली आपूर्ति में आई बाधा का परिणाम है जो यूरिया उर्वरकों का दुनिया का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है।
हालांकि हिमाचल प्रदेश स्टेट कोऑपरेटिव मार्केटिंग एंड कंज्यूमर्स फेडरेशन (हिमफेड) ने किसानों एवं बागवानों को राज्य के कृषि एवं बाग़वानी विश्वविद्यालयों द्वारा विकसित किए गए जैविक खाद उपलब्ध करवाने की मुहिम शुरू की है। लेकिन इस बढ़ते संकट के सामने ये सभी प्रयास अपर्याप्त साबित हो रहे हैं।
राज्य की कुल आबादी का लगभग 69 प्रतिशत हिस्सा कृषि एवं बाग़वानी का काम करता है। जिसका मतलब यह है कि इस कमी से लगभग 9.61 लाख किसान और 2.5 लाख बागवान सीधे रूप से प्रभावित हो रहे हैं। फूल आने से पहले सेब के पौधों को नाईट्रोजन की ज़रूरत होती है। इस ज़रूरत को खाद से पूरा कर दिया जाता है वहीं गेहूं की अच्छी फसल के लिए यूरिया उर्वरक आवश्यक है। दोनों की भारी कमी का मतलब है गेहूं की कमजोर फसल और गर्मी के कारण सेब के फूलों का समय से पहले तैयार हो जाना।
बागवानी विशेषज्ञ डॉ एस पी भारद्वाज ने हमें बताया कि सर्दियों के मौसम में निष्क्रिय पौधे वसंत में दोबारा जीवंत हो जाते हैं। आमतौर पर इसी समय खाद के माध्यम से इन पौधों को पोषक तत्व दिए जाते हैं। ऐसा करके पौधों को अगले फसल चक्र के लिए तैयार किया जाता है। हालांकि उर्वरकों की कमी से पूरा का पूरा फसल चक्र बाधित हो गया है।
बढ़ते तापमान और अपर्याप्त बारिश साथ-साथ लम्बे समय तक शुष्क रहने वाले मौसम भी हिमाचल के किसानों के इस दुख का कारण हैं। मौसम ब्यूरो के डेटा के मुताबिक, मार्च 2022 पिछली सदी का सबसे गर्म मार्च रहा। फलने-फूलने के लिए कम तापमान की आवश्यकता वाली सेब की फसलों को ऐसे कठोर मौसम में बहुत नुकसान होता है। हिमाचल में सेब का सालाना कारोबार 4,500 करोड़ रुपये से अधिक है। लेकिन यदि परिस्थितियां ऐसी ही प्रतिकूल बनी रहीं तो इससे राज्य की आर्थिक सेहत पर असर पड़ना तय है।
रमन कांत एक फ्रीलांस पत्रकार, कॉलमनिस्ट और लेखक हैं और शिमला में रहते हैं।
यह एक लेख का संपादित अंश है जो मूल रूप से 101 रिपोर्टर्स पर प्रकाशित हुआ था।
इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ें।
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