स्कूल में वापसी

Location Iconगोलाघाट ज़िला, असम

असम के सरकारी स्कूलों में न्यूट्रीशन गार्डेन कई सालों से लोकप्रिय हैं। छात्रों को स्कूल परिसर में ही ज़मीन का छोटा सा टुकड़ा दिया जाता है जहां उन्हें जड़ी-बूटी और सब्ज़ियों की जैविक खेती करना सिखाया जाता है। इनमें से कुछ क़िस्म जैसे वेदई लता, मणि मुनि और ढेकिया हाक राज्य में विलुप्त होने की कगार पर पहुँच चुके हैं। इन सब्ज़ियों को बाद में स्कूल द्वारा दिए जाने वाले मध्याह्न भोजन (मिडडे मील) में शामिल कर लिया जाता है। असम के गोलाघाट ज़िले के एक सरकारी स्कूल में आठवीं कक्षा में पढ़ने वाली अनुष्का समप्रीति बोरा कहती हैं, “चूँकि अब हम बाज़ार से लाई गई सब्ज़ियों के बदले घरों में उगाई गई सब्ज़ियाँ खाने लगे हैं इसलिए हमारा स्वास्थ्य बेहतर हो गया है। अब मैं पहले से कम बीमार होती हूँ। मुझे देख कर और भी लोगों ने किचन गार्डनिंग शुरू कर दिया है।”

बच्चों को पोषक तत्व देने के अलावा ये बगीचे समुदाय के लोगों को विद्यालय के वातावरण और माहौल का हिस्सा बनने के लिए भी प्रोत्साहित करते हैं। यह काम कई तरीक़ों से हुआ है। 2011 में जब कृषि उद्यम के क्षेत्र में काम करने वाली एक स्वयंसेवी संस्था फार्म2फ़ूड ने न्यूट्रीशन गार्डेन कार्यक्रम शुरू किया था तब उनकी सबसे बड़ी चुनौती इन फसलों के लिए अच्छे बीज के स्त्रोत खोजना थी। हालाँकि बहुत जल्द इस समस्या का समाधान कुछ उत्साही छात्रों द्वारा कर दिया गया जिनका कहना था कि बीज इकट्ठा करने के लिए वे गाँव में घर-घर घूमेंगे। उन बच्चों के प्रति समुदाय के लोगों के प्रेम के कारण बच्चों को बहुत अच्छी गुणवत्ता वाले बीज मिल गए। इसके अलावा ये लोग अक्सर उसी विद्यालय में पढ़ने वाले दूसरे बच्चों को जानते थे जिससे बीज के दान ने एक तरह से निजी निवेश का रूप ले लिया। 

समुदाय के लोग अपनी आँखों से विद्यालय के इन बगीचों को विकसित होता देख सकते थे जिससे उन्हें इस परियोजना और स्कूल दोनों से एक तरह का लगाव हो गया। फार्म2फ़ूड के सह-संस्थापक और कार्यकारी निदेशक दीप ज्योति सोनू ब्रह्मा का कहना है कि, “जब बच्चे नहीं होते हैं तब समुदाय के बड़े बुज़ुर्ग इन बगीचों की देखभाल करते हैं।” अभिभावक-शिक्षक बैठकों को डरावनी चीज़ मानने वाले माता-पिता अब स्कूल को जवाबदेह ठहराते हैं। वे अब पूछ सकते हैं कि, “हमनें इतनी बीजें दी थीं; उनका क्या हुआ? हम लोगों ने आपके बगीचे में पैदा होने वाली कई सब्ज़ियाँ देखी थीं; क्या आप मध्याह्न भोजन में हमारे बच्चों को वही सब्ज़ियाँ खिला रहे हैं?”

कोविड-19 के कारण जब कई विद्यालय अस्थाई रूप से बंद हो गए थे तब अभिभावकों ने अपने बच्चों के लिए घर में ही किचन गार्डनिंग शुरू कर दिया था। उन्होंने अपने बच्चों के इस उद्यम में न केवल अपना श्रम योगदान किया बल्कि उन्हें खेती के देसी तरीक़ों के बारे में भी सिखाया। 

बोरा कहती है कि, “पहले हम लोग वर्मीकम्पोस्ट के लिए केंचुआ ख़रीदने बाज़ार जाते थे। लेकिन अब हम जानते हैं कि हमें गाँव के केले के पेड़ों के नीचे ये केंचुए मिल जाएँगे। इससे हमारा पैसा भी बचता है।”

जैसा कि आईडीआर को बताया गया है।

अनुष्का समप्रिति बोरा असम के गोलघाट ज़िले में एक स्कूल की छात्रा हैं और दीप ज्योति सोनू ब्रह्मा फार्म2फ़ूड के सह-संस्थापक और कार्यकारी निदेशक हैं।

लोचदार आजीविका निर्माण पर सबक और दृष्टि को उजागर करने वाली 14-भाग वाली शृंखला में यह आठवाँ लेख है। लाईवलीहूड्स फॉर ऑल, आईकेईए फ़ाउंडेशन के साथ साझेदारी में दक्षिण एशिया में अशोक के लिए रणनीतिक केंद्र बिन्दु वाले क्षेत्रों में से एक है।  

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अधिक जानें: जानें कि ओड़िशा में काम करने वाली एक कृषि मित्र कैसे किसानों को जैविक खेती के लिए प्रोत्साहित करती है।


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