मछलियों की घटती संख्या

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लकड़ी के खंभे से बंधी हुई मछलियाँ-मछुआरा समुदाय महाराष्ट्र

मुंबई के बाहरी इलाके में दहानु खाड़ी से लगे धकती दहानु नाम का एक छोटा सा गाँव है। आदिवासी बहुल इस गाँव के लोगों की आमदनी का मुख्य स्त्रोत मछली पकड़ना है। हर सप्ताह वे अपनी मछलियों को दहानु के शहरी इलाकों में बेचते हैं। मुंबई तक बेहतर रेल-संपर्क होने के कारण इस इलाके की आबादी तेजी से बढ़ रही है। लगभग एक दशक पहले तक इस इलाके के लोगों को खाड़ी में उपलब्ध मछलियों की प्रचूर मात्रा पर गर्व था। समुदाय की एक बुजुर्ग महिला अनघा* का कहना है कि, “उन दिनों में हम लोग एक ही समय में ढेर सारी मछलियाँ पकड़ लेते थे…अब हम बहुत ही कम मात्रा में मछली पकड़ पाते हैं।”

तेजी से हो रहे शहरीकरण के कारण समुद्रस्तर में कमी आई है जिसके कारण खाड़ी में मछलियों की संख्या कम हो गई है। गाँव की महिलाएं शिकायत करते हुए बताती हैं कि गैर-स्थानीय मछुआरे अपनी बड़ी-बड़ी जालें और विकसित औज़ार लेकर आते हैं और एक ही बार में ढेरों मछलियाँ पकड़ लेते हैं। उनके ऐसा करने से खाड़ी की प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र बिगड़ रही है। इसके अलावा उद्योगों से निकले अपशिष्ट (जैसे नजदीकी थर्मल पावर प्लांट से निकलने वाला फ़्लाई ऐश) खाड़ी में ही बहा दिये जाते हैं। इससे समुद्र का पानी प्रदूषित हो जाता है और समुद्री जीवन और पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान पहुंचता है। इसके अलावा सरकार ने क्षेत्र में विकास को तेज करने के लिए वाधवन परियोजना का प्रस्ताव दिया है। इस परियोजना का उद्देश्य विकास के लिए क्षेत्र में बन्दरगाह का निर्माण करना है।  

यह पूछे जाने पर कि वह कभी-कभार ही मछली पकड़ने क्यों जाती है और आमदनी के लिए अन्य छोटे कामों पर क्यों निर्भर रहती है, गौरी* ने कहा, “और कहाँ से पैसे आएंगे? हम बड़ी मुश्किल से थोड़ी सी मछलियाँ पकड़ पाते हैं।”

गौरी अकेली नहीं है। गाँव की ही एक दूसरे मछुआरिन ने बताया कि आमदनी के लिए वह और उसके पति अब पुताई का काम, गाड़ी चलाना और ऐसे ही दूसरे काम ढूँढने लगे हैं। मछली पकड़ने से होने वाली आमदनी में आई कमी के कारण माता-पिता अब अपने बच्चों को मछली पकड़ने के पेशे के बजाय निजी या सरकारी नौकरियों में भेजना चाहते हैं। हालांकि मछली पकड़ने से होने वाली कम आमदनी का बुरा प्रभाव उनके बच्चों के लिए उपलब्ध शिक्षा के अवसरों पर भी पड़ रहा है। कॉलेज जाने के इच्छुक होने के बावजूद भी युवा पीढ़ी एक ऐसे चक्र में फंसी है जिससे निकलने में वह असमर्थ हैं। नतीजतन भविष्य में आजीविका के अवसर सीमित हो जाते हैं। 

* गोपनीयता बनाए रखने के लिए नाम बदल दिये गए हैं। 

अस्मा साएद वर्तमान में ट्रान्स्फ़ोर्मिंग इंडिया इनिशिएटिव, एक्सेस लाइवलीहुड्स से पोस्ट ग्रेजुएट डिप्लोमा इन सोशल एंटरप्रेन्योरशिप की पढ़ाई कर रही हैं।  

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अधिक जानें: भारत के मछली पकड़ने के उद्योग में मौजूद कमियों और उन कमियों को दूर करने के तरीकों के बारे में यहाँ पढ़ें। 

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