स्वास्थ्य
August 1, 2023

संतुलित भोजन के लिए दाल और सब्ज़ियों की अदला-बदली

नर्मदा जिला, गुजरात
2 मिनट लंबा लेख

डेडियापाड़ा – वसावा, भील, कोटवालिया और पाडवी जैसी जनजातियों का घर है। यह भारत के सबसे गरीब आदिवासी इलाकों में से एक है। इस तहसील में प्रचुर मात्रा में लेकिन अनियमित वर्षा होती है। पहाड़ी और ऊबड़-ख़ाबड़ इलाक़ा होने के कारण भूजल के दोबारा भरने की प्रक्रिया कठिन हो जाती है। कई जगहों पर, बहुत अधिक भूमि कटाव होने के कारण ऊपरी स्तर की मिट्टी की गुणवत्ता में कमी आई है।

नतीजतन, नर्मदा जिले के तीन अन्य तालुकाओं की तुलना में डेडियापाड़ा की कृषि उत्पादकता कम है। यहां के किसान एक साल में एक ही फसल का उत्पादन कर पाते हैं, जिससे न केवल उनकी आमदनी प्रभावित होती है बल्कि उनके पोषण पर भी असर पड़ता है। अनाज और सब्ज़ियां लोगों की पहुंच से बाहर हैं। डेडियापाड़ा के बेदादा गांव में जैविक खेती करने वाली उर्मिलाबेन वसावा के अनुसार कई परिवारों के पास पर्याप्त भोजन तक नहीं है।

सितम्बर 2022 में, ग्रामीण क्षेत्रों में वित्तीय समावेशन और आजीविका वृद्धि पर काम करने वाली एक समाजसेवी संस्था आगा ख़ान रुरल सपोर्ट प्रोग्राम (इंडिया) [एकेआरएसपी (आई)] की मदद से बेदादा में एक स्थानीय स्वयं-सहायता समूह (एसएचजी) ने अनाज बैंक की शुरुआत की। यह बैंक अनाज का भंडार बनाएगा और इस तरह प्राकृतिक आपदा या कम सामूहिक उत्पादन की अवधि के दौरान गरीब और हाशिए पर रहने वाले परिवारों को भुखमरी से बचाया जा सकेगा। बेदादा अनाज बैंक प्राथमिकता के आधार पर हाशिए पर रहने वाले समुदायों को रियायती दरों पर अनाज और दालें प्रदान करता है। अग्रिम भुगतान करने में असमर्थ परिवार आधी कीमत पर अनाज खरीद सकते हैं और बाकी का भुगतान अगले दो महीनों में कर सकते हैं।

एक बार जब अनाज बैंक चालू हो गया तो एसएचजी सदस्यों के सामने एक समस्या खड़ी हो गई। बैंक में जमा किए गए अनाजों की 13 क़िस्मों में समुदाय के लोग केवल पांच क़िस्में ही लेना पसंद करते थे: जोवर (ज्वार), नगली (उंगली बाजरा), माग (हरा चना), वताना (मटर) और तुवर (कबूतर मटर)। इन अनाजों की खपत इलाक़े में सबसे अधिक होती है। लोग अन्य पौष्टिक दालों के लिए भुगतान नहीं करना चाहते थे। इस समस्या से निपटने के लिए विनिमय (बार्टर) का तरीक़ा अपनाया गया। इस प्रणाली के अंतर्गत कम-आय वाले परिवार आमतौर पर घरों में खाए जाने वाली दालों और अनाजों में से एक किलो ला कर बदले में उतनी ही मात्रा में कोई दूसरा अधिक पौष्टिक अनाज ले जा सकते हैं।

धीरे-धीरे किचेन गार्डेन भी शुरू कर दिया गया ताकि समुदाय के सदस्य अपने घरों में ही सब्ज़ियां उगा सकें। अब स्थिति ऐसी है कि कुछ औरतें लौकी, टमाटर, भिंडी, बैंगन, पत्तागोभी आदि लेकर अनाज बैंक आती हैं और उसके बदले न केवल दाल बल्कि अपने घरों में न उपजने वाली सब्ज़ियां भी लेकर जाती हैं।

क्रिस्टी सैकिया एक विकास पेशेवर हैं और आजकल मॉनिटरिंग और इवैल्यूएशन (एम&ई) विशेषज्ञ के रूप में काम करती हैं।

इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ें

अधिक जानें: इस लेख को पढ़ें और जानें कि कैसे ग्रामीण असम में समुदायों ने कोविड-19 महामारी के दौरान अपनी अन्य ज़रूरतों के लिए भोजन का आदान-प्रदान किया।

अधिक करें: लेखक के काम के बारे में विस्तार से जानने और उन्हें अपना समर्थन देने के लिए उनसे kristysaikia123@gmail.com पर सम्पर्क करें।

आगे पढ़िए
आगे देखें