बांसवाड़ा की महिला किसानों के बीज संरक्षण के प्रयास क्यों महत्वपूर्ण हैं?

Location Iconबांसवाड़ा जिला, राजस्थान

राजस्थान के बांसवाड़ा जिले के कुशलगढ़ ब्लॉक के गांवों में आदिवासी किसान महिलाएं परंपरागत ज्ञान का प्रयोग कर खेती के साथ-साथ परंपरागत बीजों के संरक्षण और उन्हें बढ़ावा देने के लिए भी कर रही हैं। इन बीजों के जरिए महिलाएं परिवार की पोषण की जरूरतों को पूरा करने के साथ-साथ इलाके में खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित कर, ग्रामीण विकास में अपना योगदान दे रही हैं।

ये महिलाएं उन बीजों का सरंक्षण करती हैं जो पहले आमतौर पर खाए जाने वाले स्थानीय अनाज (जैसे रागी, कांगनी) थे। बीज इकट्ठा करने से लेकर उनके सरंक्षण का तरीका, पुरानी परंपराओं, स्थानीय समझ और इनके नवाचारों पर आधारित है। फसल में सबसे अच्छे और पहले आने वाले बीजों को चुनकर महिलाएं उन्हें राखी बांध देती हैं या एक रुमाल में बांधकर सुरक्षित रख लेती हैं। इससे कटाई के समय ये अलग से दिखाई देते हैं और उन्हें ही बीजों के रूप में संरक्षित किया जाता है।

मुख्य रूप से, यहां देसी मक्का, बाजरा, और कोदरा जैसे बीजों को प्राथमिकता दी जाती है और महिलाएं माइनर मिलेट्स या छोटे अनाजों (जैसे रागी, कंगनी) को भी सहेजकर रखती हैं। इस तरह लुप्त होते बीजों को बचाने  के इन प्रयासों से जैव विविधता भी संरक्षित होती है और आने वाली पीढ़ियों के लिए परंपरागत फसलों की उपलब्धता भी।

इन बीजों को वे रक्षाबंधन जैसे त्योहारों पर अन्य महिलाओं को भी उपहार के रूप में देती हैं। इसे वे ‘बीज-बंध’ कहती हैं, महिलाएं साल दर साल ये बीज समुदाय में बांटकर अपनी संस्कृति और परंपरा को जीवित रख पा रही हैं, और समुदाय में अपनी पहचान भी बना रही हैं। बीजों को अगली फसल तक बचाए रखना भी एक खास तकनीक है जो हर बीज के लिए अलग तरीके से काम करती है। कुछ को फल के भीतर रखकर सुखाना होता है, कुछ के लिए राख और नीम के पत्तों का उपयोग करना होता है तो कुछ को बाहर सुखाना पड़ता है।

ये महिलाएं एक साथ कई फसलों की खेती करती हैं, जिसे स्थानीय भाषा में ‘हंगनी खेती’ कहा जाता है। यह प्रणाली मिट्टी की गुणवत्ता सुधारने और जल संरक्षण में भी मददगार है क्योंकि अलग-अलग फसलों की जड़ें मिट्टी में नमी को बनाए रखने में मदद करती हैं और वाष्पीकरण को कम करती हैं। हालांकि, बड़ी कंपनियों द्वारा हाइब्रिड बीजों का बढ़ता दबाव और बाजार की मजबूरी जैसी चुनौतियां हैं लेकिन महिलाएं अपने बीजों पर भरोसा करती हैं। लोग हाइब्रिड बीज ज्यादा खरीदते हैं क्योंकि उनकी मार्केटिंग बहुत अच्छी होती है। ये एक बार इस्तेमाल के बाद बेकार हो जाते हैं जबकि महिलाओं द्वारा तैयार देसी बीज कई पीढ़ियों तक चल सकते हैं। अगर सरकार स्थानीय बीजों को खरीदने और पीडीएस के तहत वितरित करने की पहल करे तो महिला किसानों को एक स्थायी बाजार मिलेगा और उनका बीज संरक्षण कार्य भी मजबूत होगा।

सोहन नाथ वाग्धारा संस्था में यूनिट लीडर के तौर पर काम करते हैं।

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