पर्यावरण
April 13, 2022

जलवायु परिवर्तन ने ख़त्म किया आपसी बातचीत का माहौल

नौगाँव जिला, असम
2 मिनट लंबा लेख

असम के नौगाँव जिले में अनुसूचित जाति के काईबरता समुदाय की मछुआरिनें हर दिन शाम में आसपास के जल स्त्रोतों के पास समूहों में इकट्ठा होती हैं और रात के खाने के लिए मछली पकड़ती हैं। वे इस समय का उपयोग आपस में मेलजोल बढ़ाने, अपनी समस्याओं के बारे में बात करने और गप करने में करती हैं। दिन भर में यही वह समय होता था जो इनका अपना होता था—यह उनके ‘आराम’ का समय था। और इसके बाद वे रात के खाने का इंतजाम करके अपने घर वापस लौट जाति थीं। 

सामुदायिक रूप से मछ्ली पकड़ना लंबे समय से इन लोगों की संस्कृति का हिस्सा रहा है। बचपन से ही इन औरतों ने अपनी माँओं को घर का काम खत्म करने के बाद दूसरी औरतों के साथ मछली पकड़ने के लिए जाते देखा है। मछुआरिनों की काई पीढ़ियों के लिए मछली पकड़ने का काम न सिर्फ मुक्ति देने वाला था बल्कि सशक्त बनाने वाला भी था। ऐसा इसलिए था क्योंकि उच्च वर्ग की इनकी समकक्षों को घर से बाहर तक निकलने की आज़ादी नहीं थी और वहीं काईबरता समुदाय की औरतें बाहर जा सकती थीं और परिवार की आय में अपना योगदान दे सकती थीं। 

समय के साथ इलाके की बिगड़ती परिस्थितिकी के कारण आसपास के जल स्त्रोत या तो ख़त्म हो गए या प्रदूषित हो गए। नतीजतन, इन मछुआरिनों का सामाजिक जीवन धीरे-धीरे गायब हो गया। अब उनके पास सामुदायिक रूप से मछली पकड़ने और दूसरी औरतों के साथ आराम के कुछ पल बिताने के लिए कोई जगह नहीं बची है। अब वे एक दूसरे से सिर्फ स्वयं-सहायता समूह (एसएचजी) की बैठकों में ही मिल सकती हैं। स्थानीय जलवायु में आए परिवर्तनों ने उनके जीवन के महत्वपूर्ण हिस्से और सदियों की उनकी परंपरा को मौलिक रूप से बदल दिया है। 

जब मैं 2015 में उस समुदाय में गई थी तब मैंने देखा था कि कई एसएचजी इनकी परंपरा के पुनर्जन्म के उद्देश्य से आसपास के कुछ जल स्त्रोतों के कायाकल्प का काम कर रहे थे। वे पैसे इकट्ठा कर रहे थे और सफाई अभियानों का आयोजन कर रहे थे। लेकिन यह केवल एक शुरुआत भर है और उन्हें उम्मीद है कि जल्द ही सरकार उनकी मदद करेगी। 

सरमिस्ठा दास 2010 से तेजपुर विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग में अध्यापन का काम कर रही हैं। 

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