राजस्थान के चुरु जिले के सुजानगढ़ ब्लॉक में स्थित गोपालपुरा पंचायत अपने गांवों के पर्यावरण को प्रदूषण मुक्त करने के लिए जाना जाने लगा है। दरअसल, आसपास के इलाक़ों में तेज़ी से हो रहे खनन के कारण इस क्षेत्र की जलवायु बुरी तरह से प्रभावित होने लगी थी। अपने इलाक़े को प्रदूषण मुक्त करने और खनन से होने वाले नुक़सान को कम के लिए यहां की पंचायत ने स्थानीय लोगों के साथ मिलकर एक अनूठे प्रयास की शुरुआत की।
इस प्रयास के तहत गोपालपुरा पंचायत के लोगों ने अपने यहां पर्यटन की संभावनाओं को देखते हुए कुछ साल पहले तक डंपिंग ग्राउंड बन कर रह गई 144 बीघा सरकारी ज़मीन पर पेड़ लगाने का काम शुरू किया। इस पहल के तहत उन्होंने कुल तीस हज़ार पौधे लगाए। आज की तारीख़ में उन तीस हज़ार पौधे में से क़रीब बीस हज़ार पौधे जीवित हैं। हरीतिमा ढाणी नामक इस पहल की शुरुआत के बारे में बताते हुए गोपालपुरा पंचायत की सरपंच कहती हैं कि ‘हमारे यहां चार सौ साल पुराना डुंगरबाला जी मंदिर है, जिसके आसपास बहुत सुंदर-सुंदर पहाड़ियां भी हैं। यहां पर्यटन को विकसित करने की पूरी संभावना थी, लेकिन क्षेत्र का प्रदूषण एक बड़ी बाधा था। इसके लिए ज़रूरी था कि हम अपने क्षेत्र में हरियाली को विकसित करें। इसी लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए हमने पेड़ लगाने शुरू किए।’
पेड़ लगाने से शुरू होने वाले इस प्रयास को, यहां की महिलाएं एक कदम आगे लेकर गईं और उन्होंने सब्जियां भी उगानी शुरू कर दी। गोपालपुरा में पानी आसपास की पहाड़ियों से आता है जो कि बहुत मीठा होता है। मीठे पानी के कारण यहां उगाई जाने वाली सब्ज़ियां बहुत स्वादिष्ट होती हैं। अपने अच्छे स्वाद के लिए मशहूर गोपालपुरा की सब्जियां आसपास के गांवों में हरीतिमा ढाणी नाम के ब्रांड के रूप में लोकप्रिय हो गई हैं।
गांव की महिलाओं ने अपने इसी ब्रांड के अंर्तगत एग्रो-टूरिज़्म को विकसित करने के लिए प्रयास शुरू कर दिया है। इसके लिए उन्होंने यहां झोपड़ियां बनाई हैं जहां बाहर से आने वाले लोग आकर रहते हैं और इन सब्ज़ियों का आनंद उठाते हैं। यहां आकर रहने वालों के लिए खाने-पीने की व्यवस्था भी यही महिलाएं करती हैं। इसके अलावा, महिलाओं को बाहर से भी ऑर्डर मिलने लगे हैं। सब्जियां उगाने के साथ-साथ इस हरीतिमा ढाणी की महिलाएं बाजरे के बिस्किट, काचर की कैंडी जैसी चीजें बनाने का प्रशिक्षण भी ले रही हैं। शहर की भाग-दौड़ और प्रदूषित हवा-पानी से कुछ दिनों के लिए बचने के उद्देश्य से शहरी लोग यहां आते हैं। आने के बाद वे यहां की प्राकृतिक रूप से उगाई गई सब्ज़ियों और खाने की अन्य चीजों का भरपूर आनंद उठाते हैं।
इस गांव की पंचायत अब मनरेगा के तहत काम करने वाली महिलाओं को भी इस पहल से जोड़ने का प्रयास कर रही है। ऐसा करने के पीछे का उद्देश्य उन्हें आर्थिक रूप से आत्म-निर्भर, सशक्त और पर्यावरण से जुड़े मुद्दों के प्रति जागरूक बनाना है।
क्षेत्र में हो रहे खनन के कारण यहां के लोगों को कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। गोपालपुरा की सरपंच बताती हैं कि, ‘हालांकि, हम मनरेगा के तहत काम कर रहे हैं लेकिन हमारे पास फंड की बहुत कमी है। पहले खनन पर लगने वाले टैक्स का एक फ़ीसद पंचायतों को दिया जाता था। लेकिन अब उस राशि को भी डीएमएफ़टी (डिस्ट्रिक्ट मिनरल फ़ाउंडेशन ट्रस्ट) में बदल दिया गया है। इसके बाद माननीय ज़िला कलेक्टर की अध्यक्षता में उनकी समिति तय करती है कि उस राशि को कहां और कैसे खर्च करना है। हमारी मांग है कि डीएमएफ़टी की राशि को उसी जगह पर खर्च किया जाना चाहिए जहां कि खनन से नुक़सान हो रहा है।’
जैसा कि आईडीआर को बताया गया।
सविता राठी पेशे से वकील हैं और राजस्थान के चुरू जिले में पड़ने वाली गोपालपुरा पंचायत में तीसरी बार सरपंच के पद पर हैं।
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