पिछले 50–60 सालों में राजस्थान के असिंद, करेर और कोटरी इलाक़ों में भूजल का स्तर 10 से 50 फ़ीट तक कम हुआ है। यह एक चिंता का विषय है क्योंकि इस इलाक़े की नब्बे प्रतिशत आबादी खेती करती है और अपने रबी फसलों की सिंचाई के लिए पूरी तरह से भूजल पर ही निर्भर है।
तालाबों, झीलों और झरनों को अमूमन सामुदायिक सम्पत्ति माना जाता है लेकिन भूजल को आमतौर पर लोग निजी सम्पत्ति मानते हैं। लोग अपने-अपने ज़मीनों में कुएँ और बोरवेल गड़वातें हैं और उन्हें ऐसा लगता है कि वे जितना चाहे उतना पानी ज़मीन से निकाल सकते हैं। लोगों को यह मालूम ही नहीं है भूजल एक सार्वजनिक सम्पत्ति है और इसका इस्तेमाल ज़िम्मेदारी से किया जाना चाहिए। हालाँकि ‘पानी का एक खेल’ इस स्थिति को बदल रहा है।
पानी को बचाने वाले इस नए खेल को खेलने के लिए समुदाय के लोग 30 से 50 की संख्या में इकट्ठा होते हैं। इस खेल को गाँव के लोगों को योजनाबद्ध और सामूहिक रूप से भूजल के इस्तेमाल की महत्ता को बताने के लिए तैयार किया गया है। और साथ ही यह खेल लोगों को भूजल के इस्तेमाल और फसलों के पैटर्न के बीच के संबंध के बारे में भी बताता है।
इस खेल में पाँच खिलाड़ियों को एक साल में उपयोग करने के लिए या तो 50 बाल्टी पानी दिया जाता है या फिर उन्हें भूजल की एक इकाई आवंटित की जाती है। साथ ही उन्हें अपनी पसंद के फसलों का एक ऐसा सेट भी चुनना होता है जिसमें एक फसल में कम और दूसरी फसल में ज़्यादा पानी का इस्तेमाल होता है। फिर उन्हें इन फसलों की खेती करने के लिए कहा जाता है। खिलाड़ियों को भूजल के इस्तेमाल का पारस्परिक हिसाब-किताब इस तरीक़े से करना होता है—उन्हें ध्यान रखना पड़ता है कि सबको अपनी फसल की खेती के लिए पर्याप्त मात्रा में पानी मिले, सबको लाभ हो। इन सबके अलावा उन्हें आगे आने वाले कई सालों के लिए पानी की बचत भी करनी होती है। संक्षेप में, उन्हें उपलब्ध भूजल की मांग और आपूर्ति का आकलन करने और सामूहिक रूप से पानी का बजट तैयार करने की ज़रूरत होती है।
खेल का संचालक इस खेल को 22 राउंड में संचालित करता है। पहले दो सत्रों में ग्रामीणों को खेल के नियम समझने में मदद की जाती है। अगले 10 राउंड तक खिलाड़ी दूसरे खिलाड़ियों को बिना अपनी पसंद की फसल की जानकारी दिए खेल को जारी रखते हैं। अंतिम 10 राउंड में खिलाड़ी एक दूसरे से फसलों के चुनाव और पसंद के बारे में बातचीत कर सकते हैं। हर राउंड के अंत में खिलाड़ियों को वर्षा जल का 7 यूनिट दिया जाता है जो इस्तेमाल न करने पर उन्हें अगले राउंड में मिल जाता था। बारिश न होने वाले कारक को ध्यान में रखते हुए दो पासों को फेंटा जाता था और पासों में आने वाली संख्या अगले राउंड में उपलब्ध पानी की इकाई को निर्धारित करता है।
खेल के अंत में खिलाड़ियों और खेल में हिस्सा न लेने वाले लोगों को खेल की जानकारी दी जाती है। संचालक खिलाड़ियों से कहता है कि वे दर्शकों के सामने अपने अनुभव साझा करें। इससे समुदाय के लोगों को अपने स्थानीय, जल से जुड़ी समस्याओं, सिंचाई की रणनीतियों और फसलों के चुनाव के बारे में बातचीत करने का मौका मिलता है।
इस खेल से समुदाय के लोगों ने आपस में जल बचाव के विषय पर बातचीत करनी शुरू कर दी है। लोग अब इस बारे में बात करने लगे हैं कि जल की बचत के लिए कौन से तरीक़े कारगर होते हैं। साथ ही वे अब जल की अधिक खपत वाली फसलों के बजाय कम जल में पैदा होने वाली फसलों (जैसे जौ और चना) की खेती की तरफ़ मुड़ने का विकल्प ढूँढने लगे हैं।
फ़ाउंडेशन फ़ॉर इकोलॉजिकल सिक्योरिटी ग्रामीण भारत में प्रकृति और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के क्षेत्र में काम करने वाली एक स्वयंसेवी संस्था है।
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