कैसे मेघालय में फुटबॉल बच्चों को स्कूल वापस ला रही है

Location Iconरिभोई जिला, मेघालय

2015 में, युवा लोगों के साथ काम करने वाली एक समाजसेवी संस्था के सदस्य के रूप में, मैं मेघालय के रिभोई जिले में स्थित मावियोंग गांव गया था। इस इलाक़े की सबसे बड़ी समस्या छात्रों का बीच में स्कूली पढ़ाई छोड़ देना बनी हुई थी और समुदाय के लोग इससे निपटने की कोशिश में लगे हुए थे।

गांव के मुखिया की बेटी छात्रों को उनकी पढ़ाई में मदद करने के लिए ट्यूशन पढ़ाती थी। उन्होंने सुझाव दिया कि एक पुस्तकालय से इस समस्या का हल हो सकता है क्योंकि छात्र वहां इकट्ठे होकर पढ़ाई कर सकते हैं। पुस्तकालय का निर्माण हुआ लेकिन इससे पढ़ाई छोड़ देने वाले छात्रों की संख्या में कोई कमी नहीं आई। गांव की लड़कियां अपनी पढ़ाई जारी रख रही थीं लेकिन लड़के 8वीं कक्षा के बाद स्कूल छोड़ रहे थे। पढ़ाई छोड़ने वाले ज़्यादातर लड़कों ने पास की ही एक खदान में दिहाड़ी मज़दूरी करनी शुरू कर दी थी। पढ़ाई में रुचि न रखने वाले लोगों को पुस्तकालय तक कैसे लाया जा सकता था, भला?

हालांकि इसका समाधान जल्द ही मिल गया। गांव के लोगों को फुटबॉल खेलना पसंद था। जहां बुजुर्ग और वयस्क दर्शक की भूमिका में थे, वहीं युवा लड़के केवल खेलने के लिए भी अपनी स्कूल की कक्षाओं से अनुपस्थित रहा करते थे।

हालांकि इसका समाधान जल्द ही मिल गया। गांव के लोगों को फुटबॉल खेलना पसंद था। जहां बुजुर्ग और वयस्क दर्शक की भूमिका में थे, वहीं युवा लड़के केवल खेलने के लिए भी अपनी स्कूल की कक्षाओं से अनुपस्थित रहा करते थे।

इसे देखते हुए स्कूल में लड़कों के फुटबॉल खेलने के लिए बेहतर सुविधाएं और उपकरण उपलब्ध करवाए गए। इसके बदले में उन्हें कुछ नियमों का पालन भर करना था। जैसे कि यदि वे फुटबॉल को बार-बार पंचर करेंगे तो उन्हें खेलने के लिए नई गेंद नहीं दी जाएगी। वे केवल खेलने के लिए स्कूल नहीं जा सकते हैं, उनके लिए कक्षाओं में भी उपस्थित रहना अनिवार्य रखा गया। स्कूल में लड़कों की उपस्थिति बढ़ने लगी क्योंकि वे खेलना चाहते थे। जल्द ही, इस खेल को सभी छात्रों के लिए उपलब्ध करवा दिया गया ताकि लड़के और लड़कियां एक साथ खेल सकें। शुरुआत में लड़कों ने इसका विरोध किया लेकिन जब उन्होंने देखा कि लड़कियां न केवल अधिक पेशेवर तरीके से खेल रही हैं बल्कि गांवों के बीच होने वाले टूर्नामेंटों में भी भाग ले रही हैं तो उन्होंने विरोध छोड़ किया।

जैसे-जैसे स्कूल में छात्रों की उपस्थिति में सुधार आया, वैसे-वैसे पुस्तकालय में पढ़ाई में भागीदारी भी बढ़ी। पुस्तकालय छात्रों को स्कूल तक लेकर नहीं आई बल्कि स्कूल ने फुटबॉल के बहाने छात्रों को पुस्तकालय का रास्ता दिखाया। 

सोनल रोशन यूथ इन्वॉल्व में कोऑर्डिनेटर और एक्सोम स्टेट कलेक्टिव में राज्य प्रबंधक हैं।

इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ें

अधिक जानें: जानें कि अल्टीमेट फ्रिस्बी का खेल असम में दो जनजातियों के बीच की असहमति को दूर करने में किस प्रकार मददगार साबित हो रहा है।

अधिक करें: लेखक के काम को विस्तार से जानने और उन्हें अपना सहयोग देने के लिए उनसे [email protected] पर सम्पर्क करें।


और देखें


दिल्ली की फेरीवालियों को समय की क़िल्लत क्यों है?
Location Icon पश्चिम दिल्ली जिला, दिल्ली

जलवायु परिवर्तन के चलते ख़त्म होती भीलों की कथा परंपरा
Location Icon नंदुरबार जिला, महाराष्ट्र

क्या अंग्रेजी भाषा ही योग्यता और अनुभवों को आंकने का पैमाना है?
Location Icon अमरावती जिला, महाराष्ट्र

राजस्थान की ग्रामीण लड़की यूट्यूब का क्या करेगी?
Location Icon अजमेर जिला, राजस्थान,जयपुर जिला, राजस्थान