यहां पर्यावरण प्रदूषण के सबक बच्चों से सीखिए

Location Iconदक्षिण दिल्ली जिला, दिल्ली
हाथ से बनाया गया एक्यूआई मॉनिटर-जलवायु परिवर्तन
बच्चे पर्यावरण के प्रति जागरूकता फैलाने का माध्यम बन गए हैं। | चित्र साभार: समीर

निज़ामुद्दीन, दिल्ली के एक निम्न आय वाले इलाक़े में स्थित चिंतन लर्निंग सेंटर में बच्चों को ‘हवा हवाई’ शीर्षक वाली एक कॉमिक बुक से जलवायु परिवर्तन के बारे में सिखाया जाता है। किताब में छह साल की छात्रा चमकी और हवा का प्रतिनिधित्व करने वाली हवा हवाई को दिखाया गया है। बच्चे जानते हैं कि हवा की गुणवत्ता में ख़राबी आने से हवा हवाई दुखी हो जाती है। दरअसल गुणवत्ता में कमी आने से उसे सांस लेने में तकलीफ़ होती है। वे हवा हवाई की इस स्थिति से खुद को जोड़ पाते हैं क्योंकि दिल्ली के प्रदूषित वातावरण में बाहर निकल कर खेलने पर उनकी हालत भी कुछ ऐसी ही हो जाती है।

10 साल के समीर और नौ साल की आनंदी के लिए हवा एक स्थान घेरने वाली वास्तविक चीज है जिसका अपना वजन भी है। वे इसका प्रदर्शन गुब्बारे वाले प्रयोग से करते हैं। वे समझते हैं कि हवा एक नेमत है जिसकी अपनी चुनौतियां भी हैं – वे इससे जीवित रहने के लिए सांस ले सकते हैं, अपने कपड़े सुखा सकते हैं और इसके कारण ही अपनी पतंग उड़ा सकते हैं। लेकिन, जब यह प्रदूषित हो जाती है तब इससे उनकी आंखें जलने लगती हैं। चमकी के चाचा साइकल से काम पर जाते हैं और हवा प्रदूषण के स्तर को कम करने में उनकी मदद करते हैं। चमकी के चाचा से प्रभावित होकर स्कूल से वापस लौटने के बाद ये बच्चे अपने माता-पिता को हवा की गुणवत्ता में सुधार लाने के उपाय बताते हैं।

इस इलाक़े में बच्चे पर्यावरण के प्रति जागरूकता फैलाने का माध्यम बन रहे हैं। बच्चों के विकास पर काम करने वाली एक समाजसेवी संस्था, सेसमी वर्कशॉप इंडिया की इस पर्यावरण शिक्षा पहल के तहत ये बच्चे बहुत कुछ सीख रहे हैं और वापस लौटकर अपनी मांओं को बता रहे हैं। उनकी माएं उनके द्वारा दी जाने वाली जानकारियों को सुनती भी हैं। फिर, ये महिलाएं अपने पतियों को घर चलाने में छोटे-मोटे बदलाव लाने के लिए मना लेती हैं।

रानी इस इलाक़े में परचून की दुकान चलाती हैं। उनका बेटा अर्शन भी इन कक्षाओं में जाता है। वे बताती हैं कि ‘मैं पहले चूल्हे पर पानी गर्म करती थी लेकिन बच्चों ने मुझे ऐसा करने से रोका क्योंकि यह पर्यावरण के लिए ठीक नहीं है। हम जानते थे कि इससे भविष्य में हमारे आंखों की रौशनी प्रभावित हो सकती है। गैस बहुत महंगा होने के कारण हम लोग तब भी चूल्हा ही इस्तेमाल करते थे। पर फिर बच्चे कहने लगे तो मैंने सोचा, छोड़ो! एलपीजी अब भी बहुत महंगा है लेकिन हम अपने बच्चों को ना कैसे कह सकते हैं।’

इसी इलाक़े में रहने वाली शहाना बताती हैं कि ‘बच्चे जो भी अपनी क्लास में सीखते हैं उसके बारे में हमें बताते हैं – हम जो कूड़ा जलाते हैं उससे बीमारियां फैलती हैं और हम इससे निकलने वाला धुएं को अपने सांस के रूप में लेते हैं। हमें इन सब के बारे में कुछ नहीं पता था। जो हमें नहीं पता वह बच्चों को पता होता है, बच्चे हमें आके बताते हैं। चूल्हा जला लिया, कूड़ा जला दिया, उससे प्रदूषण तो फैल ही रहा है। पता चला तो हमने बंद कर दिया।’

वे आगे जोड़ती हैं ‘अब सुधार दिख रहा है, बीमारी भी दूर हो गई है इससे। ज़्यादा सफ़ाई रखते हैं, सब बदला है। जैसे बच्चों में आया है बदलाव वैसे हम में भी बदलाव गया है।’

जैसा कि आईडीआर को बताया गया। रानी परवीन निज़ामुद्दीन में परचून की एक दुकान चलाती हैं। शहाना निज़ामुद्दीन में रहने वाली एक घरेलू महिला है।

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