मैं तमिलनाडु के एक बेहद पिछड़े और कमजोर जनजातीय समूह के इरूलर समुदाय से आता हूं। मैं अपनी पत्नी और तीन बच्चों के साथ डॉक्टर अब्दुल कलाम पुरम में रहता हूं। यह तमिलनाडु सरकार द्वारा तिरुवन्नामलाई जिले के मीसानल्लूर गांव में बसाई गई एक बड़ी सी कॉलोनी है। डॉक्टर अब्दुल कलाम पुरम में इरूलर समुदाय के कुल 143 परिवार रहते हैं जिनमें मेरे जैसे 100 परिवार भी शामिल हैं जो कभी बंधुआ मज़दूरी का शिकार रहे थे।
एक बंधुआ मज़दूर के रूप में मैं तिरुवन्नामलाई में एक ऐसे आदमी के लिए काम करता था जिसका पेड़ों की कटाई का व्यापार था। वह हमारी मज़दूरी तो समय से नहीं देता था लेकिन हमारी दिनचर्या पर उसका पूरा नियंत्रण रहता था। हम कब सोकर उठेंगे, क्या और कब खायेंगे, यह सब वही तय करता था। अपने जीवन पर हमारा अपना किसी तरह का अधिकार नहीं था। 2013 में, सरकारी अधिकारियों ने हमें और दो अन्य परिवारों को बचाया। हमें रिहाई प्रमाणपत्र जारी किए गए जिसने हमें अपने पूर्व मालिक के प्रति किसी भी प्रकार के कर्ज़ या जिम्मेदारी से मुक्त कर दिया और हमें सरकार से मिलने वाले मुआवजे और पुनर्वास के योग्य बना दिया।
अपनी रिहाई के बाद, हम तिरुवन्नामलाई में वंदावसी के पास पेरानामल्लूर गांव में बस गए। 2019 में, तमिलनाडु सरकार ने हमसे संपर्क किया और हमें उनके द्वारा बनाई जा रही नई आवासीय कॉलोनी में बसने का प्रस्ताव दिया। हमें अच्छा घर, नौकरी और प्रति परिवार एक दुधारू पशु देने का वादा किया गया – दूसरे शब्दों में कहें तो हमें एक बेहतर जीवन देने का वादा किया गया। 2020 में, हम डॉक्टर अब्दुल कलाम पुरम में आकर बस गये और तब से यहीं रह रहे हैं।
आज की तारीख़ में मेरे पास पांच गायें हैं और मैं कॉलोनी के भीतर ही चारकोल बनाने वाली यूनिट में काम करता हूं जिसे सरकार ही चलाती है। मैं एक निर्वाचित सामुदायिक नेता भी हूं, और मेरे ऊपर समस्याओं के समाधान और अपने लोगों की जरूरतों और मांगों को स्थानीय सरकारी अधिकारियों तक पहुंचाने की जिम्मेदारी है। इस कॉलोनी में, इरूलर समुदाय से आने वाले हम लोग बंधुआ मजदूरी के अपने साझा इतिहास से जुड़े हुए हैं जो हमें एक बड़े से परिवार का हिस्सा बनाता है।
सुबह 5.00 बजे: मैं सोकर जागने के बाद अपने मवेशियों के पास जाता हूं। पेरानामल्लूर में हम दूसरे लोगों की गायों और बकरियों की देखभाल करते थे और सोचते थे कि क्या कभी हमारे पास अपने मवेशी होंगे। लेकिन यहां, प्रत्येक परिवार को एक गाय दी गई है। सरकार ने मिल्क सोसायटी भी स्थापित की है जिसके माध्यम से हम दूध सहकारी संस्था आविन को सीधे दूध बेच सकते हैं। सुबह का दूध दुहने के बाद मैं उस दूध को सोसायटी पहुंचा देता हूं।
लगभग सुबह 7 बजे, मैं लकड़ी इकट्ठा करने जंगल की तरफ़ जाता हूं। हमें वेलिकाथान को काटने की अनुमति दी गई है जो कंटीली झाड़ियों की एक आक्रामक प्रजाति है। इसे हम चारकोल-बनाने वाली यूनिट तक लेकर जाते हैं और वहां इसे जलाकर चारकोल बनाते हैं। हम मानसून के दिनों को छोड़कर पूरे साल यह काम करते हैं। मानसून में जंगल के इलाक़ों में पानी जम जाता है। एक चक्र में, हम लगभग 10 टन चारकोल का उत्पादन करते हैं। प्रत्येक टन को बेचकर 6,000 रुपये तक की कमाई हो जाती है। यह राशि आसपास के गांवों में लोगों को चारकोल से होने वाली कमाई से 1,000 रुपये ज़्यादा है।
चारकोल बनाना कॉलोनी के व्यवसायों में से एक है; हम ईंट भट्टे, सैनिटरी पैड और पेपर बैग बनाने वाली यूनिट इत्यादि में भी काम कर सकते हैं। हम लोगों ने प्रत्येक व्यवसाय के लिए सदस्यों की एक निश्चित संख्या के साथ आम आजीविका समूह (सीएलजी) का गठन किया है। उदाहरण के लिए, चारकोल यूनिट में 16 लोग हैं। सरकार द्वारा हमारे काम की निगरानी की जाती है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि सभी यूनिट सुचारू रूप से काम कर रहे हैं या नहीं।
अगर काम पसंद नहीं आता है तो लोगों को दूसरी यूनिट में जाकर काम करने की आज़ादी है। प्रत्येक सीएलजी एक व्यक्ति द्वारा किए गये काम के दिनों की संख्या का रिकॉर्ड रखता है और उसी अनुसार उन्हें भुगतान करता है। और काम छोड़कर जाने की स्थिति में भी उन्हें बचत पर ब्याज से मिलने वाला लाभ भी प्राप्त होता है। व्यवसाय की प्रगति और आगे की योजना बनाने के लिए सीएलजी के सदस्य मासिक बैठक करते हैं।
मुझे इस कार्य व्यवस्था की सबसे अच्छी बात यह लगती है कि अपने समय का मालिक मैं खुद हूं। अब मुझे यह बताने वाला कोई नहीं है कि मुझे अपना जीवन कैसे जीना है। इतना ही नहीं, मैंने अपने परिवार, बच्चों और हमारे भविष्य के लिए पैसे बचाने में भी सफल रहा हूं, जो मैं पहले नहीं कर सका था।
सुबह 10.00 बजे: जिस दिन मैं चारकोल बनाने वाली यूनिट में काम पर नहीं जाता हूं, उस दिन मैं अपने समुदाय के लिए काम करता हूं और उनकी समस्याओं को सुलझाता हूं। डॉक्टर अब्दुल कलाम पुरम में रहने वाले परिवार अलग-अलग गांवों से आते हैं, और शुरुआत में हमारे बीच अच्छा खासा लड़ाई-झगड़ा हुआ और कई तरह की असहमतियां भी थीं। लेकिन हम समाधान ढूंढ़ने में हमेशा ही कामयाब रहे।
मुझे एक घटना याद है जिसमें दो परिवार एकदम से मार-काट पर उतर गये थे। उनमें से एक परिवार के पास बकरियां थीं और दूसरे के पास पौधे। बकरियां पौधे चर गई थीं, और इसके कारण दोनों परिवारों के बीच झगड़ा शुरू हो गया, जो बाद में इतना बढ़ गया था कि समुदाय के नेताओं द्वारा बीचबचाव करने की स्थिति आ गई। हमने दोनों परिवारों को अपने-अपने घर के चारों ओर बाड़ बनाने का सुझाव दिया। घर के चारों ओर बाड़ लगाना अब यहां एक आम बात हो गई है।
जीवन अब पहले से बहुत बेहतर है, लेकिन यह सोचना हमारी ज़िम्मेदारी है कि इसे और बेहतर कैसे बनाया जा सकता है।
कॉलोनी में कुल 13 नेता हैं – सभी को कम्युनिटी हॉल में होने वाले चुनाव में समुदाय ने स्वयं चुना है। ये नेता लगातार उस नागरिक समाज संगठन के संपर्क में हैं जो हमारे सामने आने वाली चुनौतियों का समाधान ढूंढ़ने के लिए यहां कॉलोनी में और स्थानीय सरकार के साथ मिलकर काम करती है।
हमारे सामने वाली कई चुनौतियों में से एक है सबसे नज़दीकी अस्पताल तक पहुंचना जो यहां से पांच किमी दूरी पर है। हमने ज़िला कलेक्टर को चिट्ठी लिखकर सार्वजनिक परिवहन सेवाओं के अनियमित होने से होने वाली असुविधा की जानकारी दी। अब ज़िला प्रशासन कॉलोनी में ही समय-समय पर चिकित्सा कैंप का आयोजन करता है। हमारे यहां राशन की दुकानें भी नहीं थीं लेकिन एक बार हमने कलेक्टर का ध्यान इस ओर दिलवाया और कॉलोनी का एक खाली पड़ा कमरा राशन की दुकान में बदल गया।
हम अब एक ऐसी बस सेवा चाहते हैं जो हमारे बच्चों को हाई स्कूल तक ले जाए। छोटे बच्चे कॉलोनी के भीतर ही आंगनबाड़ी में पढ़ने जाते हैं और पहली से आठवीं क्लास के बच्चों को ऑटो-रिक्शा में पास के गांव वाले स्कूल में जाना पड़ता है।
हालांकि, दूसरे बड़े बच्चे अगर आठवीं से आगे की पढ़ाई करना चाहते हैं तो उन्हें हाई स्कूल जाने के लिए पांच किमी की यात्रा करनी पड़ती है। सबसे नज़दीकी कॉलेज यहां से लगभग 10 किमी दूर है। मैं सरकार से विनती करता हूं कि वे यहां कॉलोनी में ही एक आवासीय स्कूल और एक कॉलेज बनाने के बारे सोचें।
हमें बेहतर सड़क और परिवहन व्यवस्था से भी लाभ मिलेगा क्योंकि हम शहर से दूर रहते हैं। पहले हम, अपने पैतृक गांवों में गंदी परिस्थितियों में रहते थे। हमारे घर जर्जर थे और हम सभी प्रकार की बीमारियों से ग्रस्त थे। जीवन अब काफी बेहतर है, लेकिन यह सोचना हमारी ज़िम्मेदारी है कि इसे और बेहतर कैसे बनाया जा सकता है।
शाम 6.00 बजे: घर वापस लौटकर रात का खाना खाने से पहले 8 बजे तक मैं अपने बच्चों के साथ समय बिताता हूं। मेरा बेटा अब सातवीं क्लास में है। जब वह छोटा था तो उसे आईपीएस अधिकारी बनने की इच्छा थी। हम जहां रहते थे उसके पास में ही एक पुलिस स्टेशन था और उसने देखा था कि अधिकारियों को कितना मान-सम्मान मिलता है। अब, इस कॉलोनी में आने और कलेक्टर को काम पर देखने के बाद वह एक आईएएस अधिकारी बनना चाहता है और समुदाय की सेवा करना चाहता है। मेरी बड़ी बेटी चौथी क्लास में है और डॉक्टर बनना चाहती है। छोटी बेटी अभी केवल तीन साल की ही है। मैं उनके लिए एक अच्छा और उज्ज्वल भविष्य चाहता हूं। वे एक ऐसी दुनिया में बड़े होंगे जहां वे पूरी आज़ादी के साथ अपने आप को अभिव्यक्त कर सकते हैं। वे यात्रा कर सकते हैं, अपने रिश्तेदारों से मिलने जा सकते हैं और जो चाहें वह सब कर सकते हैं – उन्हें रोकने वाला कोई नहीं होगा।
हम जल्द ही कॉलोनी में अपना त्योहार मासी मागम आयोजित करने की योजना बना रहे हैं। यह इरुलर लोगों के लिए एक महत्वपूर्ण त्योहार है और देवी कन्नियम्मा के सम्मान में मनाया जाता है। हम वर्तमान में यहां अपना मंदिर बनाने के लिए धन जुटा रहे हैं। बंधुआ मजदूर के रूप में, हमें कभी भी एक परिवार के रूप में किसी भी उत्सव में शामिल होने की अनुमति नहीं थी; हममें से कुछ को हमेशा पीछे रहना पड़ता था ताकि दूसरों को जगह मिल सके। मुझे अपने पुराने जीवन की बिलकुल भी याद नहीं आती है और मैं सुनिश्चित करूंगा कि मेरे बच्चों को वैसे जीवन का अनुभव कभी नहीं करना पड़े।
जैसा कि आईडीआर को बताया गया।
इस लेख को अंग्रेज़ी में पढ़ें।
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