November 8, 2023

दिल्ली के सरकारी स्कूलों में हुए उद्यमिता शिक्षा के प्रयोग से क्या पता चलता है?

स्कूली बच्चों में बुनियादी कौशल और उद्यमी मानसिकता विकसित करना, उनकी रचनात्मकता को बढ़ाने और उन्हें बेहतर करियर विकल्पों की तरफ ले जाने वाला हो सकता है।
7 मिनट लंबा लेख

पूरी दुनिया में टिकाऊ आर्थिक विकास के लिए उद्यमशीलता और स्व-रोजगार के महत्व पर जोर दिया जा रहा है।

स्टार्ट-अप और सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) रोजगार के अवसरों को पैदा कर, क्षेत्रीय असमानताओं को दूर कर और विभिन्न समुदायों के लोगों के जीवन स्तर में सुधार लाते हुए देश की आर्थिक वृद्धि में अपना महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। व्यापक आर्थिक अवसरों और जनसांख्यिकीय लाभांश की विशाल क्षमता को देखते हुए – 2030 तक भारत में कामकाजी लोगों की कुल संख्या 104 करोड़ होने का अनुमान है – भारत सरकार मेक इन इंडिया और स्टार्टअप इंडिया जैसे कार्यक्रमों के जरिए उद्यमिता पर जोर दे रही है। हालांकि, अगर कामकाजी आबादी में उद्यमशीलता कौशल और महत्वाकांक्षाओं की कमी है तो ऐसे में इस तरह के प्रयासों के कम पड़ने की संभावना है। इसलिए, इस बात की तत्काल आवश्यकता है कि भारत की आबादी को ‘उद्यमिता के लिए तैयार’ किया जाए।

एक आंकड़े के मुताबिक, भारत में स्नातक छात्रों के नामांकन की दर लगभग 25–28 फीसद है। इसका मतलब यह है कि प्रत्येक वर्ष, हायर सेकंडरी की पढ़ाई पूरी करने वाले लगभग तीन चौथाई छात्र उच्च शिक्षा के लिए अपना नामांकन नहीं करवाते हैं और इसके बदले उनकी रुचि श्रम बाज़ार में प्रवेश करने में होती है। इनमें से अधिकांश छात्रों के पास रोजगार योग्य कौशल नहीं होता है और कुछ में बुनियादी कौशल का भी अभाव होता है। देश में युवा बेरोजगारी दर 25 प्रतिशत के आसपास है।

भारत की जनसंख्या के इस विशाल आकार को देखते हुए, स्कूलों से अपनी पढ़ाई पूरी करने वाले युवाओं को रोजगार की तलाश करने और स्वयं रोजगार पैदा करने के लिए उन्हें विभिन्न प्रकार के कौशल प्रशिक्षण देने की जरूरत है। यदि विद्यालय से ही युवाओं को उद्यमिता शिक्षा दी जाए तो यह भारतीय समाज के लिए मूल्यवान साबित होगा।

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शुरुआती स्तर पर ही उद्यमिता सिखाने के प्रयोग

वर्तमान में, भारत में उद्यमिता की औपचारिक शिक्षा को बीए और एमए के स्तरों पर और केवल तकनीकी और प्रबंधन संस्थानों में ही शामिल किया गया है। ज्यादातर मामलों में, इन पाठ्यक्रमों को पढ़ाने के लिए शिक्षण के पारंपरिक तरीकों का ही प्रयोग किया जाता है और इसके लिए छात्रों को सक्रिय रूप से इसमें शामिल होने की जरूरत नहीं होती है। इस प्रथा पर सवाल उठाते हुए कि उद्यमिता शिक्षा केवल कॉलेज में पढ़ रहे छात्रों के लिए है, दिल्ली सरकार के स्कूलों में कक्षा 9-12 के लिए उद्यमिता मानसिकता पाठ्यक्रम (ईएमसी) शुरू किया गया था। इस पहल का मूल विचार यह था कि, स्कूल में अनुभव आधारित शिक्षा के जरिए बच्चों में उद्यमशीलता की क्षमताओं और मानसिकता का विकास न केवल रचनात्मकता, नवाचार और कुछ नया बनाने या किसी सामाजिक समस्या को हल करने के जुनून को प्रेरित करेगा, बल्कि इससे छात्रों को सही करियर चुनने में भी सुविधा मिलेगी।

साल 2021 में, पाठ्यक्रम के अनुभावनात्मक घटक को और अधिक बढ़ाने के लिए बिजनेस ब्लास्टर्स नाम के एक बड़े पैमाने वाले कार्यक्रम की घोषणा की गई थी। इसके तहत कक्षा 11 और 12 के छात्रों को ऐसे बिज़नेस आइडियाज पर काम करना होगा जिससे लाभ मिल सके/या सामाजिक प्रभाव पैदा किया जा सके।

कार्यक्रम को उद्यमिता के लिए आवश्यक जागरूकता और कौशल निर्माण करने के लिए डिज़ाइन किया गया था, जिसमें व्यावसायिक कौशल, जिज्ञासा, सहयोग, संचार और विफलता के डर पर काबू पाना शामिल है। 10 छात्रों की प्रत्येक टीम को 2,000 रुपये तक की प्रारंभिक पूंजी आवंटित की गई थी। छात्रों के इन समूहों को ऐसे व्यावसायिक विचारों लाने के लिए कहा गया जो उपयोगी, व्यावहारिक, लाभ कमाने वाले हों, या जो सामाजिक प्रभाव पैदा करते हों और जिनमें विकास की संभावना हो। हर टीम को अपने व्यावसायिक विचार को अंतिम रूप से निवेशकों के सामने पेश करने से पहले उसमें सुधार करने की सलाह दी गई। छह महीने की अवधि वाले इस कार्यक्रम में लगभग तीन लाख छात्रों, 1000 स्कूल नेताओं या प्रधानाध्यापकों, 10,000 से अधिक शिक्षकों, 1000 बिज़नेस कोच और मेंटर और शिक्षा विभाग के विशेष कार्य बल (स्पेशल टास्क फ़ोर्स) को शामिल किया गया था। दिल्ली के शिक्षा मंत्री ने व्यक्तिगत रूप से इस कार्यक्रम की देखरेख की थी। चूंकि यह अपने तरह की एक नई पहल थी, इस कार्यक्रम के दौरान हमने अनुभवात्मक घटक के साथ शिक्षाशास्त्र और उद्यमशीलता शिक्षा के कार्यान्वयन के संबंध में बहुत कुछ सीखा। यहां हम अपने कुछ खास अनुभवों के बारे में बता रहे हैं।

कला की शिक्षा में स्कूल की कुछ ड़कियां_सरकारी स्कूलों में उद्यमिता
इस बात की तत्काल आवश्यकता है कि भारत की आबादी को ‘उद्यमिता के लिए तैयार’ किया जाए। | चित्र साभार: प्लानेटकास्ट मीडिया सर्विसेज लिमिटेड

1. इससे करियर के विकल्प खुलते हैं

अनुभवात्मक उद्यमिता पर शुरू किया गया यह बड़े पैमाने का कार्यक्रम वास्तविक जीवन में करियर चुनने में मदद करने वाली प्रयोगशाला साबित हुआ। इससे छात्रों को अपने परिवेश के प्रति अधिक चौकस और जागरूक बनने में मदद मिली, जिसके परिणामस्वरूप उनके अंदर संभावित अवसरों और संभावनाओं के प्रति जिज्ञासा और आलोचनात्मक सोच की भावना विकसित हुई। छात्रों का कहना था कि उन्हें यह जानकर खुशी हुई कि वे न केवल अपने पर्यावरण की समस्याओं को सुलझा सकते थे बल्कि इस काम को करते हुए अपनी आजीविका भी कमा सकते थे।

दिल्ली के सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले ज्यादातर छात्र निम्न सामाजिक-आर्थिक परिवेश से आते हैं। इन छात्रों के परिवारों में उनके माता/पिता ही मुख्य रूप से कमाते हैं जो सहायक, सफ़ाईकर्मी, मैकेनिक होते हैं, या फिर क्लेरिकल काम करते हैं। अपनी आर्थिक परिस्थिति को स्वीकार करते हुए, इन छात्रों को अपने परिवारों का सहयोग करने के लिए जल्द से जल्द (स्कूल की पढ़ाई खत्म होने के तुरंत बाद) श्रम बाजारों में प्रवेश करने की जरूरत होती है। इसके कारण उनके पास उच्च शिक्षा के सीमित अवसर रह जाते हैं।

बिजनेस ब्लास्टर्स कार्यक्रम के कारण उन्हें स्कूल समाप्त होने के बाद उद्यमिता को एक कानूनी और बेहतर करियर विकल्प के रूप में देखने में मदद मिली।

2. यह रोजगार योग्यता कौशल और आत्म-प्रभावकारिता को बढ़ाने में मदद करता है

छात्रों के साथ हमारी बातचीत से हमें पता चला कि व्यवसाय चलाने की प्रक्रिया में प्राप्त कौशल और योग्यताएं, परिणाम की परवाह किए बिना एक स्थायी प्रभाव पैदा कर सकती हैं।

विचारों को सोचने, प्रतिक्रिया लेने, विचारों को बेहतर बनाने, टीम के साथ काम करने, पिच तैयार करने, उत्पाद का निर्माण करने और इसे बेचने की गहन व्यावहारिक प्रक्रिया के दौरान छात्रों को अपनी ताकतों, कमज़ोरियों, बढ़े हुए आत्मविश्वास और बेहतर हुई कार्यक्षमता का ज्ञान हुआ। साथ ही उन्होंने जोखिम उठाना सीखा और अपने विचारों को प्रभावी तरीक़े से रखने और समस्याओं का समाधान करने में सक्षम हुए।

कक्षा में सीखने और मॉक गतिविधियों में भाग लेने से उन्हें इस तरह के कौशल विकसित करने में मदद नहीं मिलती। ऐसे छात्र जो टीम लीडर की भूमिका में थे, उन्होंने यह भी बताया कि, पहली बार उन्हें समूह में मिलकर (टीमवर्क) और सहयोग की भावना के साथ काम करने का महत्व समझ में आया। उनका यह भी कहना था कि इसके अलावा प्रक्रिया के दौरान उन्होंने योजना और क्रियान्वयन के दौरान चुनौतियों का सामना करना और असफलताओं से निपटने के तरीके को भी समझा। अनुभवात्मक शिक्षा ने शिक्षण को अधिकांश छात्रों के लिए अपेक्षाकृत अधिक प्रासंगिक और वास्तविक बना दिया है।

3. इससे हितधारकों की मानसिकता में बदलाव आता है

कार्यक्रम में शामिल बिज़नेस कोच, शिक्षक और अफ़सरों ने बताया कि भाग लेने वाले छात्रों को अपने व्यवसायों का निर्माण करते और उसकी ज़िम्मेदारी उठाते हुए देखकर उन्हें यह बात समझ में आई कि इन छात्रों में भी – उनके अपने बच्चों की तरह ही – क्षमता है। कार्यक्रम में शामिल विभिन्न हितधारकों ने हमसे साझा किया कि छात्र तब और अधिक बेहतर स्थिति में आ गये जब उन्हें प्रदान की जाने वाली सहायता को दान और सशक्तिकरण के दायरे से दूर कर दिया गया। इसकी बजाय, ऐसे अवसरों पर ध्यान केंद्रित करना बेहतर होता है जो आमतौर पर छात्रों को उपलब्ध नहीं होते हैं।

बड़े पैमाने पर एक नई तरह परियोजना का संचालन करना

परियोजना की समयबद्ध प्रकृति, पहली बार लागू किए जाने के कारण होने वाली अनिश्चितता, और इसमें शामिल नाबालिगों की सुरक्षा की चिंताओं से हमें नए विचारों के बड़े पैमाने पर परियोजना प्रबंधन के बारे में सीखने में मदद मिली। कार्यक्रम के संचालन के तरीके के हमारे विश्लेषण के आधार पर, यह स्पष्ट था कि जहां नीतिनिर्माता दृष्टिकोण प्रदान कर सकते हैं, वहीं इस दृष्टिकोण को क्रियान्वित करने के लिए सहयोग और समर्पण की भावना से काम करने वाले लोगों की एक टीम की आवश्यकता होती है। परियोजन के निम्नलिखित दृष्टिकोणों से काम कर रही टीम (ऑन-ग्राउंड टीम) को लाभ मिला:

 1. सख्त समयसीमा

परियोजन को लागू करने की ज़िम्मेदारी जिन लोगों पर थी, उन्होंने साझा किया कि उन्हें प्रक्रिया के दौरान कड़ी निगरानी और समय सीमा का विचार पसंद आया। इससे उन्हें ऐसे कामों को करने में मदद मिली जो उनकी ज़िम्मेदारी और विशेषज्ञता से बाहर के दायरे के थे। उन्होंने यह भी कहा कि संभव है कि समयसीमा की अनुपस्थिति में, टीम का प्रदर्शन इतना अच्छा नहीं होता।

2. स्वायत्ता

उन्होंने आगे स्वीकार किया कि बड़े पैमाने की परियोजना को क्रियान्वित करने की चुनौती ने उन्हें कुछ नया करने और काम पूरा करने के लिए अपने स्वयं के संसाधन खोजने के लिए प्रेरित किया। यह न केवल निगरानी के कारण हुआ, बल्कि शीर्ष टीम द्वारा विभिन्न स्तरों पर ज़मीन पर काम कर रहे (ऑन-ग्राउंड) टीमों को दी गई परिचालन स्वायत्तता (स्थितिजन्य और परियोजना बाधाओं के भीतर) भी एक कारक था, जिसके कारण परियोजना का सफल कार्यान्वयन संभव हो सका। स्कूल टीमों ने अपने स्कूल की छात्र टीमों की इस यात्राओं को आकार देने में मिली स्वतंत्रता की भी सराहना की।

3. साझा सबक़

स्कूलों में चिंताओं और समाधानों को साझा करने में सक्षम होने से, सलाहकारों को ढूंढने और छात्र सुरक्षा सुनिश्चित करने जैसे जटिल मुद्दों के लिए जल्दी से सीखना और समाधान ढूंढना संभव हो गया है।

ना तो सभी समस्याओं की परिकल्पना केंद्रीय टीम द्वारा की जा सकी और ना ही कार्यान्वयन टीमों के भीतर ही सभी समस्याओं का हल मिल सका। सभी दिशाओं में होने वाले मुक्त संवाद से परियोजन को खत्म करने और रास्ते में आने वाली चुनौतियों का सामना करने में मदद मिली।

हमारे सामने आई प्रमुख चुनौतियों में से एक व्यावसायिक प्रशिक्षकों, निवेशकों और अन्य लोगों के नेटवर्क से संबंधित थी जिन्होंने छात्रों के लिए एक सहायक वातावरण बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

कई स्थानीय उद्यमी और बीबीए/एमबीए छात्र निःशुल्क आधार पर व्यावसायिक प्रशिक्षकों की भूमिका निभाने के लिए तैयार हुए। हालांकि, पीछे मुड़कर देखने पर हमें लगता है कि काम की निस्वार्थ प्रकृति पर दोबारा सोचने की और सलाहकारों के बेहतर प्रबंधन की जरूरत है क्योंकि कार्यक्रम के दौरान उन्हें विभिन्न प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ा।

मेंटर और कोच को विभिन्न टीमों से मिलने के लिए समय निकालने और यात्रा करने में परेशानी का सामना करना पड़ा और अंत में उनमें से कइयों ने स्वयं को इस परियोजना से बाहर कर लिया। कोचों को थोड़ी बहुत छूट मिली थी कि वे अपने सत्रों को अपने अनुसार निर्धारित कर सकें, क्योंकि छात्रों (जो नाबालिग हैं) के साथ बैठकें स्कूल के घंटों के दौरान स्कूल शिक्षक की उपस्थिति में आयोजित की जानी थीं।

मेंटरशिप के लिए किसी भी तरह का शुल्क नहीं है इसलिए छात्रों के साथ हर महीने प्रति सप्ताह दो से तीन घंटे बिताने वाले बिजनेस प्रशिक्षकों को प्रोत्साहित करने के लिए नए तरीके खोजने की जरूरत है। दूरी और यात्रा के मुद्दों पर काम करने के तरीके के रूप में निरंतर समर्थन देने के उद्देश्य से ग्रुप चैट और वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग का उपयोग किया जा सकता है। लेकिन भविष्य में बजट बनाते समय कुछ आमने-सामने की बैठकों को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए।

जैसे-जैसे कार्यक्रम आगे बढ़ेगा, व्यावसायिक प्रशिक्षकों की दीर्घकालिक संलग्नता के लिए, उन्हें समर्थन और पुरस्कृत करने के तरीके निकालना अधिक व्यावहारिक बन जाएगा। इसके अतिरिक्त, स्कूली शिक्षकों-जिनमें से कई पहली बार व्यावसायिक विचारों पर छात्रों को सलाह दे रहे थे-को प्रशिक्षित करने की आवश्यकता है।

बिजनेस ब्लास्टर्स कार्यक्रम जैसे और प्रयोगों के लिए, स्कूल प्रणाली और नौकरशाही की संपूर्ण भागीदारी पर बहुत अधिक जोर नहीं दिया जा सकता है।उच्च शिक्षा के वर्तमान संकट और बेरोजगारी के उच्च दर को ध्यान में रखते हुए, हमारा मानना ​​है कि ऐसे प्रयोग अनुकरणीय हैं। प्रयोग की सफलता का एक व्यवस्थित विश्लेषण ऐसे कार्यक्रम के अगले संस्करण के बेहतर कार्यान्वयन में मदद करेगा।

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लेखक के बारे में
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चयनिका भयाना

चयनिका भयाना भारतीय प्रबंधन संस्थान, कोलकाता में संगठनात्मक व्यवहार के विषय की सहायक प्रोफ़ेसर हैं। उन्होंने भारतीय प्रबंधन संस्थान, अहमदाबाद से पीएचडी और दिल्ली विश्वविद्यालय से मनोविज्ञान में एमए की पढ़ाई की है। चयनिका की शोध रुचि उद्यमशीलता और समकालीन करियर एवं कार्य नीति निहितार्थ जैसे क्षेत्रों में है।

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नेहारिका वोहरा

नेहारिका वोहरा भारतीय प्रबंधन संस्थान, कोलकाता में संगठनात्मक व्यवहार के विषय की प्रोफ़ेसर हैं। उनके लेख प्रकाशित होते रहते हैं और वह तीन पुस्तकों की सह-लेखक भी हैं। नेहारिका शैक्षणिक संस्थानों के बोर्ड और दो सूचीबद्ध कंपनियों के स्वतंत्र सदस्य के रूप में कार्य करती हैं। उन्होंने दो साल तक दिल्ली कौशल और उद्यमिता विश्वविद्यालय के संस्थापक कुलपति के रूप में भी काम किया है।

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