April 30, 2024

देश में प्राकृतिक संसाधनों के वास्तविक हक़दार कौन लोग हैं?

प्राकृतिक संसाधनों के खनन को लेकर वर्तमान रवैया, उस इलाक़े के लोगों पर अतिरिक्त बोझ डालता है और साथ ही भावी पीढ़ियों को उनके हिस्से से वंचित करता है।
9 मिनट लंबा लेख

हम एक अजीब समय में जी रहे हैं। जीवाश्म ईंधन के उपयोग को सिलसिलेवार तरीक़े से ख़त्म करने की कॉप28 की प्रतिबद्धता के बावजूद तेल और गैस निकालने की प्रक्रिया पर कोई रोक लगती नहीं दिख रही है। दूसरी तरफ़, हम विकास और ऊर्जा के हस्तांतरण (एनर्जी ट्रांज़िशन) के लिए भी भारी मात्रा में खनिजों का खनन किए जा रहे हैं। 

इस प्रक्रिया में, हम स्थानीय समुदायों, मूल निवासियों और सबसे अधिक पर्यावरण का दोहन कर रहे हैं। वर्तमान व्यवस्था स्पष्ट रूप से अनुचित है और नैतिकता जैसे गहरे विषय से जुड़ी हुई है: हम अपने बच्चों और भावी पीढ़ियों के लिए कैसा समाज और ग्रह छोड़ने वाले हैं?

खनन का प्रतिरोध एवं संसाधनों का राष्ट्रवाद

खनन कैसा भी क्यों ना हो, हर किसी को उस पर कोई न कोई आपत्ति होती ही है। फिर चाहे वह हमारे गांव की खदान हो या दुनिया की सभी कोयला खदानें; महासागरों में होने वाला खनन हो या संरक्षित क्षेत्रों में किया जाने वाला खनन। 

लेकिन फिर भी, कोई दुनिया में अलग-अलग जगहों पर चल रहे इस खनन प्रक्रिया को पूरी तरह से बंद करने की मांग नहीं करता है। ऐसा इसलिए कि इसका सीधा मतलब विकास की किसी गतिविधि का ना होना होगा। यानी कोई फ़ोन नहीं, कार नहीं, ना ही लोहे या सोने जैसी धातुओं का इस्तेमाल और सभी को पेड़ और पौधों से बने घरों में रहना होगा। यह एक ऐसी स्थिति है जिसकी कल्पना करना भी मुश्किल है, और आज भी एक बड़ा तबका ऐसा है जिनका जीवनस्तर सुधारे जाने की ज़रूरत है।

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खनिज पदार्थों की बहुलता वाले देशों में एक साथ दो तरह की सोच वाले लोग होते हैं। स्थानीय स्तर पर, एंटी-एक्सट्रैक्टिविस्ट यानी कि खनन-प्रतिरोधी समुदाय के लोग अपने इलाके में खनन का विरोध करते हैं। वहीं राष्ट्रीय स्तर पर, वे लोग जो इस उम्मीद में जीते हैं कि खनिजों की बिक्री से ग़रीबी हटाने और समृद्धि लाने (संसाधनों का राष्ट्रवाद जिसे रिसोर्स नैशनलिज्म भी कहते हैं।) में मदद मिलेगी। इन दोनों तरह की सोच के बीच किस प्रकार सामंजस्य बैठाया जा सकता है?

एक कोयला मजदूर-प्राकृतिक संसाधन
भावी पीढ़ियों के प्रति हमारा कर्तव्य है कि हम यह सुनिश्चित करें कि हमारी साझा विरासत बनी रहे। | चित्र साभार: इंटरनैशनल एकाउंटेबिलिटी प्रोजेक्ट/सीसी बीवाई

प्राकृतिक संसाधन हमारी साझा विरासत हैं

खनन को अनुमति मिलने की स्थिति में उसके सभी हितधारकों जैसे कि खनन करने वालों, कर्मचारी और ठेकेदार, सरकार, स्थानीय समुदाय और पर्यावरण आदि के साथ न्याय एवं उचित व्यवहार किया जाना चाहिए। लेकिन आमतौर खनन से पहले इन खनिजों के मालिकों को भुला दिया जाता है जो इसका एक मुख्य हितधारक होता है।

देशों का अपने प्राकृतिक संसाधनों पर स्थायी मालिकाना हक होता है। खनिजों का स्वामित्व आमतौर पर किसी सामूहिक (राज्य/प्रांत, जनजाति आदि) का प्रतिनिधित्व करने वाली सरकार के किसी स्तर को सौंपा जाता है। इसकी प्रतिक्रिया में, खनिज उन लोगों की ओर से रखे जाते हैं जिनसे समूह बनता है। और चूंकि, सामूहिकता एक शाश्वत, बहु-पीढ़ी इकाई है, इसलिए प्राकृतिक संसाधनों पर भविष्य की सभी पीढ़ियों का भी अधिकार है।

अगर हम प्राकृतिक संसाधनों को एक साझी विरासत मानते हैं, तो खनिज मालिकों की सोच के अनुसार, खनन वास्तव में एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें खनिज संपदा को संपत्ति के अन्य रूपों में बदला जाता है। पीढ़ीगत समानता और स्थिरता के लिए हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि आने वाली पीढ़ियों को कम से कम उतना ही विरासत में मिले जितना हमें मिला है। ऐसी स्थिति में हमारे पास दो विकल्प होते हैं।

या तो खनन-प्रतिरोधी तरीक़ा: खनिजों को यथास्थिति छोड़ देना जहां वे हैं, हमारे बच्चों को वे उसी अवस्था में मिलेंगे जैसे हमें मिले थे, पीढ़िगत- समानता को हासिल करने का यह एक मात्र तरीक़ा है।

या संसाधन राष्ट्रवादियों का तरीक़ा: यह सुनिश्चित करने के लिए खनन और निवेश करना कि हमारे बच्चों को विरासत में मिलने वाली कुल संपत्ति उतनी ही मूल्यवान हो जितना कि ये खनिज।

लोग प्राकृतिक संसाधनों से वर्तमान और भविष्य में लाभ कैसे उठा सकते हैं?

अगर खनन का अर्थ संपत्ति का रूपांतरण है तब ऐसी स्थिति में खनन करने वाली इकाई (व्यक्ति/ कंपनी/ संस्था/संगठन) केवल एक आउटसोर्स धन प्रबंधन सेवा प्रदाता है, जिसे प्रबंधित, विनियमित किया जाना चाहिए और उनकी सेवा के अनुपात में उन्हें भुगतान किया जाना चाहिए।

खनिज स्वामित्व वाली प्रतिनिधि सरकार का लक्ष्य यह होना चाहिए कि रूपांतरण की इस प्रक्रिया में मूल्यों के संदर्भ में हानि की दर शून्य हो। दुर्भाग्य से, भारी नुकसान आम बात है, और जो प्राप्त होता है उसे आय मानकर उसका उपभोग किया जाता है
खनन करने वाले, राजनेताओं और उनके साथियों के बीच, धन और सत्ता बनाए रखने की इच्छा, खनन प्रक्रिया के दौरान होने वाले अधिकांश मानवाधिकारों और पर्यावरण के दुरुपयोग को प्रेरित करती है। 

वर्तमान और भावी पीढ़ियों को धोखा दिया जा रहा है, और उनसे चुराई जा रही संपत्ति का उपयोग भ्रष्ट व्यवस्था को बनाए रखने के लिए किया जा रहा है।

निष्पक्ष खनन की स्थिति को हासिल करने के लिए खनिज संपदा बेचते समय ज़ीरो लॉस की स्थिति से परे जाकर संपूर्ण खनिज बिक्री से होने वाली आय का निवेश ऐसी संपत्तियों में किया जाना चाहिए जिनका मूल्य पीढ़ी दर पीढ़ी बना रहता है। ज़मीन, क़ीमती धातु और पत्थर ऐसी संपत्ति के परंपरागत उदाहरण थे। आज के समय में, नॉर्वे के तेल फंड को मुद्रास्फीति-प्रूफ़िंग के साथ एक बंदोबस्ती निधि (इंडॉन्मेंट फंड) के रूप में, भविष्य की पीढ़ियों के लिए बचत करने का सबसे कारगर तरीक़ा माना जाता है। 

फंड से होने वाली आय को सामान्य आबादी में एक समान रूप से वितरित की जाना चाहिए। भावी पीढ़ियों को यह निधि विरासत में मिलेगी और वे इसका लाभ उठा सकेंगे। 

महत्वपूर्ण बात यह है कि, लाभांश पूरी आबादी और उनके फंड और खनिज विरासत के बीच एक प्रकार का संबंध बनाता है, जिससे जीरो लॉस की स्थिति को व्यावहारिक रूप से हासिल करने की संभावना अधिक हो जाती है। आर्थिक नज़रिए से देखा जाए तो यह दिखाना आसान है कि यह, वर्तमान में अपनाए जा रहे तरीके से बेहतर है। और इससे बढ़कर, यह उचित है। लेकिन इतना पर्याप्त नहीं है। खनन, विरासत के अन्य रूपों को भी प्रभावित करता है और निष्पक्ष खनन के लिए उन पर भी उचित तरीक़े से बात किए जाने की ज़रूरत है:

1. पर्यावरण और स्थानीय समुदायों की सुरक्षा के लिए, एहतियाती सिद्धांत के तहत, हमें निषिद्ध क्षेत्र बनाने चाहिए। हमें स्थानीय समुदायों की निशुल्क, पूर्व और जानकारीपूर्ण सहमति (एफपीआईसी) की गारंटी देनी चाहिए, पर्यावरण से जुड़े मजबूत नियमों को सुनिश्चित करना चाहिए और संभावित उच्च जोखिम वाली प्रथाओं पर रोक लगानी चाहिए। हमें तेज़ी से बढ़ते जा रहे नुक़सान को सीमित करने के लिए कई परियोजनाओं में खनन को सीमित करना चाहिए। पॉल्यूटर पेज प्रिंसिपल (प्रदूषक भुगतान सिद्धांत) के तहत, हमें बचाव, पुनर्भंडारण, क्षतिपूर्ति और प्रतिपूर्ति करने की मिटिगेशन हेरार्की की ज़रूरत है। हमें अपनी भावी पीढ़ियों के लिए अधिक से अधिक जंगल, पानी के साफ़ स्रोत आदि छोड़ने चाहिए। खनन परियोजनाओं से पर्यावरण और समुदायों का जीवन बेहतर होना चाहिए ना कि केवल नुक़सान से बचने के प्रयास करने चाहिए। जीवाश्म ईंधन जैसे कुछ खनिजों का अंतरराष्ट्रीय प्रभाव पड़ता है, और इसके लिए वैश्विक स्तर पर सीमित खनन के साथ-साथ नुकसान और क्षति की भरपाई की भी आवश्यकता होती है।

2. खनन परियोजनाओं के कारण पैदा होने वाली नौकरियां और आय भी विरासत में मिले अवसर हैं जो निष्कर्षण के साथ ख़त्म हो जाते हैं। यह समझ स्थानीय सामग्री, स्थानीय खरीद और स्थानीय रोजगार की व्यापक मांगों को प्रेरित करती है। इसके अलावा, यह सुनिश्चित करने के लिए खनन की सीमा तय की जानी चाहिए कि भावी पीढ़ियां भी खनन से होने वाली आय से लाभान्वित हो सकें।

3. इसी तरह, उपयोगी चीजों (तलवारें या हल के फाल) के लिए खनिज का उपयोग करने का अवसर एक बार मिलने वाली मूल्यवान विरासत है। यह समझ कुछ देशों को इस बात के लिए प्रेरित करती है कि वे अपनी वर्तमान जरूरतों के लिए खनिजों का आयात करते समय भविष्य की पीढ़ियों के उपयोग के लिए अपने कुछ खनिजों का रणनीतिक भंडार करें। 

4. एक अन्य विरासत समाज के अन्य पहलुओं को विकसित करने के लिए खनन का उपयोग करने का अवसर है। कुछ देशों ने अपेक्षाकृत कम लागत पर साझा-उपयोग वाले ढांचों के निर्माण के लिए जानबूझकर नई खदानों का उपयोग किया है। अन्य देश मुख्य दक्षताओं का निर्माण करने के अंतिम लक्ष्य के साथ घरेलू मूल्य संवर्धन पर जोर देते हैं। ये सभी दुर्लभ अवसर हैं इसलिए उनका लाभ उठाना ज़रूरी है।

खनन के पांच सिद्धांत-प्राकृतिक संसाधन
स्रोत: द फ़्यूचर वी नीड

नागरिक समाज के लिए इसका क्या मतलब हो सकता है?

विरासत में मिली मूल्यवान संपत्ति को चोरी, हानि या बर्बादी से बचाने के लिए प्रबंधन की मानसिकता की आवश्यकता होती है। ऐसा इसलिए है ताकि हम अपने कर्तव्य को पूरा करते हुए यह सुनिश्चित कर सकें कि आने वाली पीढ़ियों को कम से कम उतना ही विरासत में मिले जितना हमें मिला। यह नागरिक समाज के लिए संभावित वैश्विक अभियानों का सुझाव देता है:

1. खनन प्रक्रिया के दौरान चोरी को रोकने के लिए, ट्रस्टी/प्रबंधक को प्रथम श्रेणी नियंत्रण प्रणाली लागू करनी होगी। इसमें एक उच्च सुरक्षा खनिज आपूर्ति श्रृंखला प्रणाली, आउटसोर्सिंग अनुबंधों से सर्वोत्तम प्रथाएं, सिस्टम ऑडिटर, एक व्हिसिल-ब्लोअर इनाम और सुरक्षा योजना आदि शामिल हैं।

2. चोरों को मानव जाति की संपत्ति नहीं सौंपी जानी चाहिए। इसके अलावा, खनिज मनी लॉन्डरिंग/टेररिज़्म फायनेंस का एक नियमित हिस्सा हैं। हमारे धन को संभालने में शामिल सभी लोगों के लिए फिट एंड प्रॉपर पर्सन टेस्ट (और आमतौर पर सत्यनिष्ठा उचित परिश्रम) आवश्यक हैं।

3. भावी पीढ़ियों के प्रति हम सभी का यह कर्तव्य है कि हम यह सुनिश्चित करें कि हमारी साझा विरासत बरकरार रहे। इसलिए, वास्तविक मालिकों के रूप में लोगों को यह सत्यापित करने का अधिकार दिया जाना चाहिए कि भावी पीढ़ियों के प्रति उनका कर्तव्य पूरा हो गया है। इसके लिए बिना किसी लागत के वास्तविक समय में सभी डेटा तक जनता की खुली पहुंच सहित मौलिक पारदर्शिता की आवश्यकता है। क़ानून में इसका प्रावधान होना चाहिए कि खनन करने वाली इकाई बिना किसी अपवाद के खनन से जुड़ी सभी जानकारियों को पारदर्शिता के साथ सार्वजनिक करे। इसका दायरा ईआईटीआई के मानकों से परे है। 

अगर ये सभी शर्तें पूरी होती हैं तभी हम वास्तविक अर्थों में पीढ़िगत समानता और स्थिरता को प्राप्त कर सकते हैं। इससे थोड़ा भी कम होने पर विरासत को लेकर हम भावी पीढ़ियों के साथ धोखा कर रहे हैं – उनकी इच्छा यही होगी कि हम खनिजों को ज़मीन में ही छोड़ दें। हम इस बात की उम्मीद करते हैं कि खनिज संपदा और खनन के लिए साझा विरासत वाली सोच की वकालत करने के लिए नागरिक समाज के दूसरे लोग हमारे साथ जुड़ेंगे। एकजुट होकर हम बड़े-बड़े बदलाव ला सकते हैं!

लेखकों ने आईडीआर पर इस लेख के प्रकाशन के लिए इसमें थोड़े-बहुत बदलाव किए हैं। यह लेख मूलरूप से पब्लिश व्हाट यू पे पर प्रकाशित हुआ है।

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लेखक के बारे में
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साइमन टेलर

साइमन टेलर पॉलीक्राइसिस पर काम करने वाली एक समाजसेवी संस्था हॉकमोथ के सह-संस्थापक हैं। वह ग्लोबल विटनेस के सह-संस्थापक और बोर्ड सदस्य के अतिरिक्त पब्लिश व्हाट यू पे के सह-संस्थापक भी हैं।

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सास्वती स्वेतलाना

सास्वती स्वेतलना मिनरल इनहेरिटर्स राइट्स एसोसिएशन, भारत की राष्ट्रीय कॉर्डिनेटर हैं।

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माइक मैककोरमैक

माइक मैककॉर्मैक गुयाना ह्यूमन राइट्स एसोसिएशन और पॉलिसी फोरम गुयाना के सह-संस्थापक हैं।

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पैट्रिक बॉन्ड

पैट्रिक बॉन्ड जोहान्सबर्ग विश्वविद्यालय में सेंटर फॉर सोशल चेंज के प्रतिष्ठित प्रोफेसर और निदेशक हैं।

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राहुल बसु

राहुल बसु गोवा फाउंडेशन, भारत के रिसर्च डायरेक्टर हैं।

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