June 12, 2025

हम स्थानीय उद्यमिता को बढ़ावा देने में कहां पिछड़ रहे हैं?

भारत में स्थानीय उद्यमिता, आज भी कई तकनीकी, वित्तीय और संस्थागत बाधाओं के चलते सीमित है लेकिन योजनाओं के साथ-साथ इससे जुड़ी समझ को बढ़ाने पर काम कर स्थिति को बेहतर बनाया जा सकता है।
12 मिनट लंबा लेख

हाल के वर्षों में भारत में स्थानीय उद्यमिता को लेकर लोगों की सोच में तेजी से परिवर्तन आया है। आज सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (एमएसएमई) क्षेत्र भारत की जीडीपी में 30 प्रतिशत से अधिक का योगदान देता है। हिंदी पट्टी के दर्शकों के बीच शार्क टैंक इंडिया जैसे कार्यक्रमों की लोकप्रियता दिखाती है कि अब व्यवसायिक विचारों को मुख्यधारा में स्थान मिल रहा है।​ गांवों और छोटे कस्बों के लोग भी अब नए अवसरों की तलाश में हैं और अपने पारंपरिक एवं गैर-पारंपरिक कौशल को व्यावसायिक रूप देने के लिए आगे बढ़ रहे हैं। ‘मेक इन इंडिया‘ और ‘स्किल इंडिया’ जैसी पहलें भी इस दिशा में सरकार की सकारात्मक मंशा दिखाती हैं। लेकिन, सवाल यह है कि क्या वाकई हमारे छोटे शहरों और गांवों से आने वाले उद्यमी भी उतनी तेजी से आगे बढ़ पा रहे हैं, जितना उद्यमिता को लेकर बनते सकारात्मक वातावरण को देखकर लगता है। 

उत्तर प्रदेश के देवरिया की पूनम देवी, कपूर उद्योग चलाती हैं। वे रोजाना 40 किलो कपूर का उत्पादन कर रही हैं जबकि मांग 70 किलो से अधिक की है। उत्पादन बढ़ाने के लिए उन्हें नई मशीन लगानी होगी और इसके लिए 10 लाख रुपए का निवेश और करना होगा। पूनम कहती हैं कि वे लंबे समय से प्रयास कर रही हैं लेकिन कर्ज से जुड़ी कागजी जटिलताओं ने उनका रास्ता रोक रखा है। एक और उदाहरण, देवरिया की ही अमृता तिवारी का है। अमृता कपड़े की कतरनों से पोटली, टोट बैग, साड़ी जैसे उत्पाद बनाती हैं। लेकिन मार्केटिंग और सरकारी प्रक्रियाओं की जानकारी न होने के चलते ऑनलाइन बिक्री शुरू नहीं कर पा रही हैं। अमृता बताती हैं कि वे इंटरनेट से व्यावसायिक बारीकियां सीखने की कोशिश करती हैं लेकिन अलग-अलग स्रोतों पर अलग-अलग बातें सुनकर और भ्रमित हो जाती हैं। उनकी कई मुश्किलों में एक यह भी है कि ऑनलाइन प्लेटफार्म पर उत्पाद रजिस्टर करने के लिए आर्टिजन कॉर्ड होना जरूरी है, लेकिन ये कहां बनता है, इसकी जानकारी उनके पास नहीं है।

कारखाने में रखी दरियां-स्थानीय उद्यमिता
ग्रामीण क्षेत्रों में स्टार्ट-अप्स को बुनियादी ढांचे की कमी, प्रौद्योगिकी तक सीमित पहुंच और प्रमुख बाजारों से दूरी जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। | चित्र साभार: पिक्सेल्स

इन दो उद्यमियों की कहानी आपको यह अंदाजा देने भर के लिए काफी है कि भारत के कई छोटे शहरों और गांवों में उद्यमियों की क्या स्थिति है। ऐसा होना एक तरफ जहां स्थानीय उपभोक्ताओं को महंगे और बाहरी उत्पाद खरीदने पर मजबूर करता है। वहीं, दूसरी ओर स्थानीय रोजगार और कौशल के खत्म होने और इससे जुड़े लोगों के पलायन जैसी तमाम मुश्किलें पैदा करता है।

स्थानीय उद्यमिता को बढ़ावा देने की दिशा में हम कहां पिछड़ रहे हैं? क्या हम सभी उद्यमों को एक ही चश्मे से देख रहे हैं, या फिर हमें अलग-अलग दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है?

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स्थानीय उद्यमों की स्थिति और संभावनाएं

स्थानीय उद्यमिता को सही दिशा में आगे बढ़ाने के लिए सबसे पहले समझना जरूरी है कि आखिर ये उद्यम होते क्या हैं और किन क्षेत्रों में इनका अधिक विकास संभव है। स्थानीय स्तर पर होने वाले उद्यम ज्यादातर बार कृषि और उससे जुड़े व्यवसायों से संबंधित होते हैं। ये उद्यम स्थानीय जरूरतों को पूरा करते हैं। उत्तर प्रदेश का पूर्वांचल क्षेत्र, जहां मैं काम करती हूं, इसका एक उदाहरण है। यहां धान, गेहूं, गन्ना और दलहन उत्पादन से लेकर खाद्य प्रसंस्करण, कोल्ड स्टोरेज, जैविक खेती और हस्तशिल्प से जुड़े तमाम उद्यम प्रमुखता से दिखते हैं।

कुछ और उदाहरण देखें तो हथकरघा उद्योग, मूंझ से चीजों का निर्माण, पारंपरिक कपड़ा उद्योग और बांस से बनी वस्तुओं का व्यापार भी अब बढ़ने लगा है। इसके अलावा, उद्यमों में धीरे-धीरे तकनीक का भी समावेश हो रहा है। जैसे कि ‘ड्रोन दीदी’ नाम की एक पहल के तहत महिलाएं ड्रोन के जरिए खेतों में कीटनाशक छिड़काव का काम कर रही हैं।

स्थानीय उद्यमों की चुनौतियां अलग-अलग हैं

ग्रामीण, छोटे शहरों के और महानगरीय उद्यमों के बीच कई बुनियादी अंतर होते हैं। उदाहरण के लिए, ग्रामीण और छोटे शहरी क्षेत्रों में स्टार्ट-अप्स को बुनियादी ढांचे की कमी, प्रौद्योगिकी तक सीमित पहुंच और प्रमुख बाजारों से दूरी जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इसके विपरीत, महानगरों में स्टार्ट-अप्स को तीव्र प्रतिस्पर्धा और उच्च व्यापार लागत जैसी समस्याओं से जूझना पड़ता है।

1. तकनीक एवं दस्तावेजीकरण की अधूरी समझ

भारतीय युवा शक्ति ट्रस्ट (बीवायएसटी) द्वारा किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि भारत के 12 राज्यों में करीब 13,000 ग्रामीण और अर्ध-शहरी उद्यमियों में से 60% डिजिटल पेमेंट को अपनाते हैं, लेकिन केवल 26% ही ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स का लाभ उठा पाते हैं। इससे पता चलता है कि तकनीक को अपनाने में अभी भी बड़ा अंतर है। उद्यमियों को बिजनेस टैक्स भरने, जीएसटी फाइल करने और अन्य सरकारी प्रक्रियाओं को समझने में कठिनाई होती है। इसके चलते वे अक्सर अपने व्यवसाय के आधिकारिक विस्तार में पीछे रह जाते हैं। बैंकों और वित्तीय संस्थानों से ऋण प्राप्त करने में भी स्थानीय उद्यमियों को दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। प्रोपराइटरशिप, पार्टनरशिप और प्राइवेट लिमिटेड कंपनियों के बीच का अंतर न समझ पाने की वजह से वे सही तरीके से अपने व्यापार का पंजीकरण भी नहीं कर पाते हैं।

फैक्ट्री में काम करती महिलाएं-स्थानीय उद्यमिता
अमृता बताती हैं कि वे इंटरनेट से व्यावसायिक बारीकियां सीखने की कोशिश करती हैं लेकिन अलग-अलग स्रोतों पर अलग-अलग बातें सुनकर और भ्रमित हो जाती हैं। | चित्र साभार: जागृति उद्यम केंद्र-पूर्वांचल

2. बाजारों तक मुश्किल पहुंच

स्थानीय उद्यमों को बड़े बाजारों तक पहुंच बनाने में दिक्कत होती है। सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों के मंत्रालय (एमएसएमई) की 2022-23 की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2020 की शुरुआत में आई कोविड-19 महामारी के प्रसार ने इस क्षेत्र के लिए और कई कठिनाइयां उत्पन्न कर दीं हैं। उनके उत्पादों की मार्केटिंग और ब्रांडिंग पर व्यक्तिगत ध्यान दिया जाता रहा है, जिससे कोविड-19 के समय वे बाजार के साथ सतत संबंध बनाए रखने में कठिनाई महसूस करने लगे। इसके विपरीत, महानगरीय ब्रांड्स ने तकनीकी साधनों का उपयोग करके अपने बाजार संबंधों को मजबूत बनाए रखा। इन्होंने तकनीकी बदलाव, उपभोक्ता मांगों में परिवर्तन, नए बाजारों के उभरने जैसी चुनौतियों का सामना करने के लिए खुद को तैयार रखा। 

3. बड़े ऑर्डर लेने में हिचक

स्थानीय उद्यमी अक्सर बड़े ऑर्डर लेने से अपने हाथ खींचते हैं जिससे वे अपने काम को पूर्ण क्षमता पर ले जाने और आगे बढ़ाने में पीछे रह जाते हैं। कुछ समय पहले, हमारे साथ काम करने वाले एक उद्यमी द्वारा काले गेंहू के एक बड़े ऑर्डर को हासिल किए जाने और पूरा किए जाने में हम कामयाब रहे। लेकिन इसमें हमें उनके और वेंडर के बीच तकनीकी एवं दस्तावेजीकरण की मदद करनी पड़ी। वे एक बड़ा किसान उत्पादक संगठन (एफपीओ) चलाते हैं। इसलिए वे शायद बड़े स्तर पर उत्पाद को इकट्ठा करने में और जागृति के तकनीकी सहयोग से इस मांग पूरा करने में सक्षम हुए। लेकिन कई उद्यमी ऐसे भी हैं जो बड़े ऑर्डर को इसलिए भी पूरा नहीं कर पाते क्योंकि उनके पास आवश्यक वित्तीय सहयोग के ऑप्शन नहीं होते हैं।

4. निवेशक की नजर सिर्फ लाभ निकालने पर 

निवेशकों के लिए किसी भी व्यवसाय में निवेश का मुख्य उद्देश्य मुनाफा कमाना होता है। वहीं, छोटे शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों से उभरने वाले स्टार्ट-अप्स अक्सर स्थानीय मांग, सीमित संसाधनों और बुनियादी ढांचे की समस्याओं से प्रभावित होते हैं। इससे उनका विकास धीमा हो सकता है। निवेशकों को यह संदेह रहता है कि क्या ये व्यवसाय लंबे समय तक टिक पाएंगे? ऐसे में उद्यमियों के पास भारी ब्याज वाले ऋण या सरकारी योजनाओं जैसे परंपरागत विकल्प ही रह जाते हैं।

5. उलझी सरकारी योजनाएं

छोटे उद्यमियों के लिए सरकारी योजनाओं का लाभ उठाना कई बार जटिल प्रक्रियाओं और पेचीदगियों के कारण कठिन हो जाता है। पूर्वांचल के उद्यमी साहसी और मेहनती है लेकिन छोटे-छोटे उद्योग जैसे डेयरी फार्म, बुटीक जैसे काम करने की इच्छा करने वाले लोग प्रोजेक्ट रिपोर्ट, तकनीकी दस्तावेज की लंबी सूची और बार-बार की भागदौड़ से हतोत्साहित हो रहे हैं।

प्रधानमंत्री मुद्रा योजना (पीएमएमवाय), प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम (पीएमईजीपी), एवं कई राज्य स्थानीय उद्यमों के प्रोत्साहन हेतु योजनाएं चलाते हैं लेकिन कई मामलों में ऋण का अंतिम फैसला करना बैंकों पर होता है। हाल ही में, प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम लाया गया है जो कि क्रेडिट-लिंक्ड सब्सिडी योजना है। यह बेरोजगार युवाओं तथा पारंपरिक कारीगरों को स्वरोजगार के अवसर प्रदान करने के लिए है। लेकिन, इन योजनाओं के तहत नए स्टार्ट-अप की जरूरतें कम ही पूरी हो पाती हैं। हमारे अनुभवों में ज्यादातर मामलों में बैंकों की उदासीनता, भ्रष्टाचार और असहयोग वाला रवैया सामने आता है।

फैक्ट्री में काम करती महिला-स्थानीय उद्यमिता
पूनम देवी लंबे समय से उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रयास कर रही हैं लेकिन कर्ज से जुड़ी कागजी जटिलताओं ने उनका रास्ता रोक रखा है। | चित्र साभार: जागृति उद्यम केंद्र-पूर्वांचल

स्थानीय उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए क्या किया जाए?

अगर हमें स्थानीय उद्यमिता को सशक्त बनाना है तो हमें निम्नलिखित रणनीतियां अपनानी होंगी—

1. डिजिटल प्रशिक्षण और ई-कॉमर्स तक पहुंच

आज के समय में डिजिटल तकनीक व्यवसाय की सफलता में अहम भूमिका निभाती हैं। छोटे उद्यमियों के लिए डिजिटल भुगतान, सोशल मीडिया मार्केटिंग और ई-कॉमर्स प्लेटफार्मों (एमेजॉन, फ्लिकपकार्ट, उड़ान, मीशो) पर कारोबार करना सीखना बेहद जरूरी हो गया है। सरकार और निजी संगठनों को मिलकर डिजिटल प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाने चाहिए। इनमें ऑनलाइन विज्ञापन, एसईओ, डिजिटल लेन-देन और ग्राहक प्रबंधन जैसे विषय शामिल हों। इससे छोटे व्यापारियों को अपने उत्पादों को न केवल स्थानीय बल्कि राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बाजारों तक पहुंचाने का अवसर भी मिले सकेगा।

2. ऋण और निवेश तक सहज पहुंच

ग्रामीण और छोटे उद्यमियों के लिए पूंजी की उपलब्धता सबसे बड़ी चुनौती होती है। कई बार बड़े बैंकों की सख्त शर्तों और लंबी प्रक्रियाओं के कारण छोटे उद्यमी वित्तीय सहायता से वंचित रह जाते हैं। स्थानीय उद्यमियों को सस्ती ब्याज दर पर ऋण, उद्यम पूंजी और कार्यशील पूंजी तक सहज पहुंच मिलनी चाहिए। इसके लिए सहकारी बैंकों और क्षेत्रीय ग्रामीण बैंकों को प्रशिक्षण देकर उनकी कार्यशैली को उद्यमी के लिए सहज बनाया जा सकता है। इसके अलावा, ‘इंपैक्ट इन्वेस्टमेंट’ या सीएसआर निवेश को भी इन उद्यमों की ओर मोड़ने की रणनीति विकसित की जा सकती है।

3. क्षेत्रीय ब्रांडिंग और मार्केटिंग

स्थानीय उत्पादों की पहचान और उनकी मार्केटिंग को मजबूत करने के लिए क्षेत्रीय ब्रांडिंग एक कारगर रणनीति हो सकती है। उदाहरण के लिए, ‘मेड इन गांव’, ‘देसी हैंडमेड’, या ‘इको-फ्रेंडली प्रोडक्ट्स’ जैसी टैगलाइन का उपयोग किया जा सकता है। इससे ग्राहकों का स्थानीय उत्पादों पर भरोसा बढ़ेगा, और उद्यमियों को अपने ब्रांड की अलग पहचान बनाने में सहायता मिल सकेगी। सरकार और निजी कंपनियों को भी इस दिशा में सहायता करनी चाहिए ताकि इन उत्पादों को सही बाजार मिल सके। 

4. स्थानीय इनक्यूबेशन और बिजनेस सलाह केंद्र

हर जिले में ‘स्थानीय इनक्यूबेशन सेंटर’ की जरूरत है, जो न केवल नए विचारों को व्यवसाय में बदलने में मदद करें, बल्कि उत्पाद की पैकेजिंग, ब्रांडिंग, तकनीकी सहायता, दस्तावेजीकरण और बाजार से जोड़ने जैसे कार्यों में भी सहायता दें। जागृति का अनुभव रहा है कि जब सही मार्गदर्शन और नेटवर्किंग मिलती है तो ग्रामीण उद्यम भी स्थाई और लाभकारी बनते हैं।

5. उद्यमिता में महिलाओं की भागीदारी

अक्सर महिलाओं के पास कौशल होते हुए भी शहर से बाहर जाकर काम करना उनके लिए मुश्किल होता है। इसलिए उनके लिए उपयुक्त अवसर पैदा करने के लिये विशेष योजनाएं बनाई जानी चाहिए। हमारे इलाके में ‘ड्रोन दीदी’ जैसी योजनाएं महिलाओं को तकनीकी और वित्तीय रूप से सक्षम बना रही हैं। इसी तरह, हस्तशिल्प, जैविक उत्पाद, फूड प्रोसेसिंग, और सिलाई-कढ़ाई जैसे व्यवसायों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए प्रशिक्षण और वित्तीय सहायता दी जा सकती है। इसके अलावा, महिलाओं के नेतृत्व वाले स्टार्ट-अप्स को विशेष अनुदान और सब्सिडी उपलब्ध कराई जानी चाहिए।

छोटे उद्यमों की सफलता के लिए सिर्फ योजनाएं पर्याप्त नहीं हैं बल्कि अनुकूल वातावरण तैयार करना जरूरी है। सरकारी प्रक्रियाओं को सरल बनाकर, स्थानीय स्तर पर सूचना केंद्र स्थापित कर और उद्यमिता को करियर विकल्प के रूप में प्रोत्साहित कर इसे संभव बनाया जा सकता है। 

साथ ही, अगर हम वास्तव में स्थानीय उद्यमिता को बढ़ावा देना चाहते हैं तो यह मान लेना कि सभी उद्यम एक ही तरह के होते हैं, एक बड़ी भूल होगी। हमें एकीकृत दृष्टिकोण अपनाने की बजाय, प्रत्येक क्षेत्र की आवश्यकताओं के अनुसार अलग-अलग रणनीतियां बनानी होंगी। तभी हम ‘लोकल को ग्लोबल’ बनाने के अपने सपने को साकार कर सकेंगे। 

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लेखक के बारे में
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वीणा हनमसागर

वीणा हनमसागर, जागृति उद्यम केंद्र-पूर्वांचल के साथ बतौर इन्क्यूबेशन डायरेक्टर काम करती हैं। उनके पास स्टार्ट-अप इकोसिस्टम में 15 से अधिक वर्षों का अनुभव है। इस दौरान उन्होंने नवाचार और ग्रामीण उद्यमिता को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। कर्नाटक, राजस्थान, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश और पंजाब में उनके काम का प्रभाव देखा जा सकता है। उनकी विशेषज्ञताओं में महिलाओं के उद्यम और छोटे-मझौले व्यवसायों को समर्थन देना शामिल है।

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