February 27, 2024

क्या बेहतर उद्यमिता और रोज़गार सृजन भारत में गरीबी ख़त्म कर सकता है? 

आर्थिक इतिहास के महान दिग्गजों ने रोज़गार सृजन और गरीबी में कमी के बीच के संबंध को पहचाना है, फिर भी अनिश्चितताएं बनी हुई हैं।
5 मिनट लंबा लेख

भारत अब दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश हो गया है और यहां हर महीने दस लाख से अधिक नए श्रमिक कार्य-बल में शामिल होते हैं – यह स्वीडन की हर साल कार्य-बल में शामिल होने वाली पूरी जनसंख्या के बराबर है (ब्लूम एवं अन्य 2011, ग़नी 2018)। चूंकि यह स्थिति अगले दो दशकों तक जारी रहने की संभावना है, ऐसे में नौकरियों के सृजन की गति ही भविष्य में गरीबी की कमी की गति को निर्धारित करेगी।

हालांकि आर्थिक इतिहास के महान दिग्गजों ने रोज़गार सृजन और गरीबी में कमी के बीच के संबंध को पहचाना है, फिर भी अनिश्चितताएं बनी हुई हैं। क्या नए और छोटे प्रतिष्ठान या बड़ी और स्थापित कम्पनियां रोज़गार सृजन में अधिक योगदान देती हैं? क्या विनिर्माण या सेवा क्षेत्र गरीबी को कम करने में अधिक योगदान देता है? क्यों कुछ शहरों में अधिक नौकरियों का सृजन होता है और वहां गरीबी तेज़ी से कम होती है?

कई शोध अध्ययनों ने उन्नत अर्थव्यवस्थाओं में, रोज़गार सृजन में उद्यमिता की भूमिका की जांच की है। लेकिन भारत के संदर्भ में ऐसे अनुभवजन्य साक्ष्य की बहुत कमी है। इस लेख में (ग़नी एवं अन्य 2011ए) हमने भारत के लगभग 600 जिलों में स्थित विनिर्माण और सेवा क्षेत्र, दोनों में उद्यमिता और नौकरियों के बीच सम्बन्ध की जांच की है।

भारत में उद्यमिता का आर्थिक भूगोल

यद्यपि उद्यमिता और रोज़गार सृजन के लिए भारत का आर्थिक परिवेश अभी भी विकसित हो रहा है, साक्ष्य दर्शाते हैं कि बड़े पैमाने पर नौकरियों का सृजन नए स्टार्ट-अप द्वारा किया जा रहा है, न कि बड़ी और पुरानी कम्पनियों द्वारा। दुर्भाग्य से, विकास के वर्तमान चरण को देखते हुए, भारत में नए स्टार्ट-अप की संख्या और उद्यमिता की दरें कम बनी हुई हैं (ग़नी एवं अन्य 2011बी)। तीन साल से कम पुराने उद्यमों की संख्या में समय के साथ थोड़ी बढ़ोतरी देखी गई है (डेसमेट एवं अन्य 2011), जबकि यह हर साल लाखों अपेक्षित नौकरियों के सृजन के लिए पर्याप्त नहीं है। देश के विभिन्न जिलों और राज्यों में स्टार्ट-अप के स्थानिक वितरण में भी भारी विषमताएं मौजूद हैं।

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फोन पर बात करता एक व्यक्ति_रोजगार
भारत में उद्यमशीलता की क्षमता सुनिश्चित करने, नौकरियों के निर्माण और गरीबी को कम करने में योगदान देने में शहर महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। | सीसी बाय: विक्टर ग्रिगॉस / सीसी बाय

कौन से क्षेत्रीय और स्थानिक लक्षण भारत में नए स्टार्ट-अप और स्थानीय उद्यमिता को बढ़ावा देते हैं? इसका एक सम्भावित स्पष्टीकरण निवेश और उद्यमिता पर अलग-अलग ‘रिटर्न’ का होना है। दूसरा यह है कि नए उद्यमी स्थानीय बुनियादी ढांचे, शिक्षा, जनसंख्या घनत्व, व्यापार के अंतर-संपर्क और यहां तक कि जनसांख्यिकी में अंतर के अनुसार प्रतिक्रिया करते हैं, जबकि उनके पास व्याख्या करने की शक्ति सीमित होती है। कारणों की यह सूची किसी भी तरह से सम्पूर्ण नहीं है, लेकिन यह आर्थिक गतिविधियों के एकत्रीकरण और नए स्टार्ट-अप के विकास के लोकप्रिय स्पष्टीकरणों की सूची के समानांतर है।

हमने पाया कि नए स्टार्ट-अप और उद्यमिता का अनुमान लगाने वाले दो सबसे सुसंगत कारक हैं – स्थानीय शिक्षा का स्तर और स्थानीय भौतिक बुनियादी ढांचे की गुणवत्ता। यह विनिर्माण और सेवा क्षेत्र, दोनों के संदर्भ में सच है। भारत में उद्यमिता और रोज़गार सृजन की गति को धीमा करने में कारक बाज़ार और पारिवारिक बैंकिंग गुणवत्ता भी अपनी भूमिकाएं निभाते हैं। दुर्भाग्य से, भारत में कारक बाज़ार अत्यधिक बिगड़ा हुआ है। भूमि और वित्तीय बाज़ार विशेष रूप से, श्रम बाज़ारों की तुलना में अधिक विकृत हैं (ड्यूरेंटन एवं अन्य 2016)। खराब पारिवारिक बैंकिंग माहौल के साथ ही, भूमि का खराब आवंटन भी स्टार्ट-अप को, खासकर नए और छोटे उद्यमों को, हतोत्साहित करता है।

गरीबी चक्र को तोड़ने के लिए क्या किया जा सकता है?

नीति-निर्माताओं को रोज़गार सृजन और गरीबी में कमी के बीच के मज़बूत सम्बन्ध को पहचानने की ज़रूरत है। यह चिंताजनक है कि भारत में विकास के वर्तमान स्तर के अनुसार बहुत कम उद्यमी हैं। यदि भारत उद्यमियों को समर्थन देने के लिए कारक बाज़ार की विकृतियों को कम करने, भौतिक व मानव बुनियादी ढांचों दोनों को, विकसित करने और नेटवर्किंग तथा समूह अर्थव्यवस्थाओं को बढ़ावा देने के साथ-साथ, कुछ बुनियादी नीतिगत कदम उठाना जारी रखता है तो इन उपायों में व्यापार सृजन, नौकरी वृद्धि और गरीबी में कमी लाने की क्षमता है।

जिस गति से देश भौतिक पूंजी और भौतिक बुनियादी ढांचे को जमा कर सकते हैं, उसकी परिभाषित सीमाएं हैं, लेकिन जिस गति से मानव-बुनियादी-ढांचे और शिक्षा को बढ़ाया जा सकता है, और फिर ज्ञान में अंतर को समाप्त किया जा सकता है, उसकी सीमाएं कम स्पष्ट हैं। चूंकि शिक्षा, स्टार्ट-अप और नौकरियों के बीच मज़बूत आपसी सम्बन्ध हैं, नीति-निर्माताओं को चाहिए कि वे स्थानीय कॉलेजों और शैक्षणिक संस्थानों की गुणवत्ता और वृद्धि को रोकने वाली सभी बाधाओं को दूर करें।

नीति-निर्माताओं को फर्मों के पीछे लगने (अर्थात अन्य स्थानों से बड़ी परिपक्व फर्मों को आकर्षित करने) में व्यस्त रहने की बजाय अपने समुदायों में उद्यमशीलता को प्रोत्साहित करने पर अधिक ध्यान केन्द्रित करना चाहिए। छोटा भी सुंदर और दमदार होता है, इसलिए रोज़गार सृजन में ‘नए और छोटे उद्यमों’ पर ज़ोर दिया जाना चाहिए। भारत के अनुभवों से पता चलता है कि नई और छोटी कम्पनियों के प्रारंभिक स्तर और उसके बाद नौकरी में वृद्धि और गरीबी में कमी के बीच एक मज़बूत आपसी सम्बन्ध है।

भारत में उद्यमशीलता की क्षमता सुनिश्चित करने, नौकरियों के निर्माण और गरीबी को कम करने में योगदान देने में शहर महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि शहरों में अधिकांश नई नौकरियां सृजित करने और प्रति व्यक्ति आय में चार गुना वृद्धि लाने की क्षमता है (ग़नी एवं अन्य 2014)। ऐसे प्रतिस्पर्धी शहर जो रहने योग्य हों, जिनमें अच्छा बुनियादी ढांचा हो, ज्ञान सृजन और क्षमता निर्माण में व्यापक रूप से निवेश करते हों, अच्छी तरह से शासित हों, मज़बूत राष्ट्रीय शहरी नीति ढांचे का समर्थन करते हों और स्थानीय, राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मज़बूत सार्वजनिक और निजी भागीदारी के माध्यम से काम करते हों, उद्यमियों को भी आकर्षित करते हैं।

आर्थिक विकास के लिए उद्यमिता भी महत्वपूर्ण है। भारत में ऐतिहासिक रूप से उद्यमिता दर कम रही है, फिर भी स्थिति में सुधार हो रहा है और इस कमज़ोरी पर काबू पाना तेज़ आर्थिक और नौकरी वृद्धि के लिए एक महत्वपूर्ण कदम होगा। भारत का आर्थिक परिवेश अभी भी विनियमन से पहले मौजूद स्थितियों को समायोजित कर रहा है और संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे देशों की तुलना में, यहां के स्थानिक परिणामों में बहुत अधिक भिन्नता मौजूद है। यह स्थानीय क्षेत्रों के समूहीकरण और शहरी अर्थव्यवस्थाओं से लाभ उठाने के लिए प्रभावी नीति डिज़ाइन के महत्व को भी रेखांकित करता है। 

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यह आलेख मूलरूप से आइडिया फ़ॉर इंडिया पर प्रकाशित हुआ था जिसे आप यहां पढ़ सकते हैं।

लेखक के बारे में
एजाज़ ग़नी-Image
एजाज़ ग़नी

एजाज़ ग़नी, वर्तमान में पुणे इंटरनेशनल सेंटर में सीनियर फेलो हैं। वे पहले विश्व बैंक में प्रमुख अर्थशास्त्री थे और उन्होंने अफ्रीका, पूर्वी एशिया, दक्षिण एशिया, कॉर्पोरेट रणनीति और स्वतंत्र मूल्यांकन इकाई पर काम किया है।

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