February 21, 2025

शायर कार्यकर्ता का एक्सक्लूसिव इंटरव्यू

शायर कार्यकर्ता से आईडीआर की काल्पनिक बातचीत, जिसका वास्तविक घटनाओं से भरपूर मेल है।
3 मिनट लंबा लेख

दुनिया में हज़ारों काम हैं – कोई कोडिंग कर रहा है, कोई स्टार्ट-अप चला रहा है, तो कोई ट्रैफिक में फंसा सोच रहा है कि उसने एमबीए क्यों किया? और, फिर आते हैं विकास सेक्टर की नाव में सवार पेशेवर। इसलिए हमने बात की एक ऐसे जमीनी कार्यकर्ता से, जो दिनभर फील्ड में दौड़ते हैं, मीटिंग में सिर धुनते हैं और फिर प्रोग्राम लीड की डांट खाकर सो जाते हैं। ज्यादातर इनके साथ होता यह है कि ये जो बात सचमुच बोलना चाहते हैं, उसके अलावा सब-कुछ बोल सकते हैं। इसलिए इन्होंने बातचीत का एक नया तरीका ईजाद किया है। अब ये हर र सवाल का जवाब सिर्फ़ किसी मशहूर शायर के शेर से देते हैं। पेश है इस शायर कार्यकर्ता से आईडीआर की एक्सक्लूसिव बातचीत के कुछ अंश:

इंटरव्यू के दौरान बैठे दो लोग__जमीनी कार्यकर्ता
चित्र साभार: पिक्साबे

आईडीआर:
कितनी तरह के काम हैं, रोज़गार हैं दुनिया में। लेकिन आपने विकास सेक्टर को ही क्यों चुना?

कार्यकर्ता:
बात है रास्ते पे जाने की
और जाने का रास्ता ही नहीं (जौन एलिया)

आईडीआर: फील्ड में कई बार सुबह से कब शाम हो जाती है, ये पता ही नहीं चलता। इस दौड़-धूप के बारे में क्या कहना चाहेंगे?

फेसबुक बैनर_आईडीआर हिन्दी

कार्यकर्ता:
शाम भी ढल रही है घर भी है दूर
कितनी देर और मैं रुकूं साहब (जावेद अख्तर)

आईडीआर: सारे समीकरणों के बाद जब ज़मीन पर आखिरकार आपका ही आईडिया काम आता है, तो आपको कैसा लगता है?
मशवरा लेने की नौबत ही नहीं आ पाती
एक से एक समझदार पड़ा है मुझ में (अंजुम सलीमी)

आईडीआर: आपका काम जलवायु पर है। समुदाय को जलवायु-परिवर्तन जैसे जटिल मुद्दे कैसे समझाते हैं?

कार्यकर्ता:
मौसम की मनमानी है आंखों-आंखों पानी है
साया-साया लिख डालो दुनिया धूप कहानी है (राहत इंदौरी)

आईडीआर: कैसा लगता है जब पूरे दिन की मेहनत के बाद भी प्रोग्राम लीड से डांट खानी पड़ जाती है?

कार्यकर्ता:
ग़लत बातों को ख़ामोशी से सुनना हामी भर लेना
बहुत हैं फ़ाएदे इस में मगर अच्छा नहीं लगता (जावेद अख्तर)

आईडीआर: आपको कैपेसिटी बिल्डिंग या किसी प्रशिक्षण के लिए शहर भी भेजा जाता है, उसके बारे में कुछ बताइए।

कार्यकर्ता:
जहां कमरों में कैद हो जाती है ज़िंदगी
लोग उसे बड़ा शहर कहते हैं (अज्ञात)

आईडीआर: जब फंड आते हैं और खत्म हो जाते हैं, पर उनकी जरूरत खत्म नहीं होती है, इस पर आपका क्या कहना है?

कार्यकर्ता:
कौन इस घर की देख-भाल करे
रोज इक चीज टूट जाती है (जौन एलिया)

लेखक के बारे में
सृष्टि गुप्ता-Image
सृष्टि गुप्ता

सृष्टि गुप्ता आईडीआर में एडिटोरियल एसोसिएट हैं और लेखन, सम्पादन और अनुवाद से जुड़े काम करती हैं। इससे पहले सृष्टि ने स्प्रिंगर नेचर के साथ संपादकीय काम किया है। उन्होंने राजनीति विज्ञान में एमए किया है और लिंग, सामाजिक न्याय, सुरक्षा और अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर अध्य्यन करने में रुचि रखती हैं।

अंजलि मिश्रा-Image
अंजलि मिश्रा

अंजलि मिश्रा, आईडीआर में हिंदी संपादक हैं। इससे पहले वे आठ सालों तक सत्याग्रह के साथ असिस्टेंट एडिटर की भूमिका में काम कर चुकी हैं। उन्होंने टेलीविजन उद्योग में नॉन-फिक्शन लेखक के तौर पर अपना करियर शुरू किया था। बतौर पत्रकार अंजलि का काम समाज, संस्कृति, स्वास्थ्य और लैंगिक मुद्दों पर केंद्रित रहा है। उन्होंने गणित में स्नातकोत्तर किया है।

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