आपदा के समय वॉलंटियरिंग अपने चरम पर होती है। आपदा की तात्कालिकता, समाचार कवरेज की अधिकता, और मदद के लिए व्यापक रूप से लगाई जाने वाली गुहार के कारण लोग तुरंत अपनी इच्छा से धन और सेवाओं के साथ मदद के लिए आगे आते हैं। और, फिर भी भारत लगातार ऐसे नागरिक, सामाजिक और पर्यावरणीय संकटों से जूझ रहा है, जिन्हें कई सालों तक ध्यान और समर्थन की जरूरत होती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि लंबे समय से चली आ रही समस्याओं – गरीबी, मानव तस्करी और मानसिक स्वास्थ्य संकट- को नागरिक सहयोग की ज़रूरत लगातार बनी रहती है।
यह विकास सेक्टर ही है जो इस काम के एक बड़े हिस्से को अपने कंधों पर उठाए हुए है। विभिन्न प्रकार की उभरती समस्याओं का हल निकालने के प्रयास के क्रम में यह सेक्टर उनके लिए फंड और मानव संसाधन जुटाने से लेकर उन्हें सही जगह पहुंचाने का काम करता है। लेकिन, समाजसेवी संसाधन अक्सर सीमित होने के साथ ही कई तरह की पाबंदियों के दायरे में भी आते हैं। भारत के सामाजिक सेक्टर में 10 लाख से कम नागरिक समाज संगठन (सीएसओ) हैं, और इनमें से केवल 11–12 फीसद ही (सेंटर फॉर सोशल एंड इकोनॉमिक प्रोग्रेस द्वारा प्रकाशित पिछले साल की बिटवीन बाइनरीज नाम रिपोर्ट के अनुसार) सक्रिय हैं। इसका सीधा मतलब यह है कि 11,000–12,000 लोगों के लिए केवल एक सक्रिय सीएसओ है। सबसे गरीब जिलों में, यह अनुपात घटकर 25,000–50,000 की आबादी पर एक संगठन तक का भी हो सकता है। स्थिति और बदतर हो जाती है जब हम विदेशी अंशदान विनियमन अधिनियम (एफसीआरए) में विधायी परिवर्तनों के कारण इस क्षेत्र में फंडिंग की कमी देखते हैं, जिसके परिणाम स्वरूप, कर्मचारियों की संख्या में कमी और उन्हें काम से निकाल देने जैसे अनगिनत मामले भी सामने आये हैं, जिसका वितरण सेवा पर भी गंभीर प्रभाव देखने को मिला है। इन बाधाओं को देखते हुए क्या भारत की समाजसेवी संस्थाएं अपने कार्यक्रमों को स्थायी रूप से चलाए रखने के वैकल्पिक तरीके खोज सकती हैं? क्या प्रतिबद्ध वॉलंटियरों का एक मज़बूत आधार कार्यक्रमों की इस गाड़ी को चलाए रख सकता है?
वॉलंटियर कहां फिट बैठते हैं
हालांकि, वॉलंटियर सामाजिक क्षेत्र के प्रशिक्षित कार्यकर्ताओं की जगह नहीं ले सकते हैं और न ही क्षेत्र में वर्षों से विकसित उनके कौशल का मुकाबला कर सकते हैं, वे एक समाजसेवी संस्था में – कई बार अप्रत्याशित तरीकों से – अपना योगदान दे सकते हैं। लेकिन समाजसेवी संस्थाएं इसे हमेशा इस तरह से नहीं देखती हैं। वे अपने काम में वॉलंटियर को सार्थक रूप से जोड़ पाने में विफल रहती हैं, या फिर अगर जोड़ भी लें तो बहुत अधिक समय तक जोड़े नहीं रख पाती हैं, और यह संगठन में एक वॉलंटियर द्वारा निभाई जा सकने वाली भूमिका को लेकर स्पष्ट सोच की कमी के कारण हो सकता है।
समाजसेवी संस्थाएं अक्सर ही वॉलंटियर को किसी कार्यक्रम या सर्वे आयोजित करने जैसे छोटे-मोटे कामों में मदद करने वाले अस्थायी संसाधन के रूप में देखती हैं – एक ऐसा स्टॉपगैप जिसे आसानी से बदला जा सकता है। कभी-कभी, वॉलंटियरों को उनके प्रयासों के लिए पर्याप्त महत्व नहीं दिया जाता है या उनके साथ बुरा व्यवहार किया जाता है। संभव है कि ऐसे में वे निराश होकर किसी संगठन के लिए दोबारा वॉलंटियरिंग ना करने का फ़ैसला ले लें, जिससे संगठन को लंबे समय के लिए सहयोगियों की एक सेना बनाने का अवसर खोना पड़ सकता है (एक समर्पित वॉलंटियर भविष्य में अपने परिवार और दोस्तों को भी साथ ला सकता है)।
वॉलंटियर सहभागिता के लिए समर्पित प्रयास, रचनात्मक सोच, सशक्त नेटवर्किंग और रणनीतिक योजना की आवश्यकता होती है।
तस्करी विरोधी अभियानों या किशोर पुनर्वास में शामिल, अत्यधिक विशिष्ट और कभी-कभी जोखिम भरा काम करने वाले कुछ समाजसेवी संगठनों को विशिष्ट कौशल और लंबे समय की प्रतिबद्धता की जरूरत होती है। इन संगठनों को वॉलंटियरों की भी जरूरत होती है, लेकिन उन्हें इस बात का भय होता है कि वॉलंटियर की अनियमितता या सीमित ज़िम्मेदारियां उठाना से संगठन के काम को खतरे में डाल सकती है। उदाहरण के लिए, एक तस्करी-विरोधी समाजसेवी संस्था को किसी ऐसे व्यक्ति ( जो तस्करी और पुलिस व्यवस्था से अपरिचित है और क्षेत्र के लोगों से अनजान है।) की जरूरत हो सकती है जो तस्कर को फंसाने के लिए नक़ली ग्राहक की भूमिका निभा सके – यह एक ऐसा काम जिसके लिए लंबे और कठोर प्रशिक्षण की आवश्यकता होगी। समाजसेवी संस्थाओं को अक्सर इस बात की जानकारी नहीं होती है कि इस तरह के मिशन के लिए उन्हें वॉलंटियर कहां से मिलेंगे।
हमारा अनुभव कहता है कि समाजसेवी संस्थाएं अभी तक वॉलंटियर द्वारा किए जा सकने वाले काम के वास्तविक मूल्य को समझ नहीं पाई हैं। वॉलंटियर की सहभागिता के लिए समर्पित प्रयास, रचनात्मक सोच, सशक्त नेटवर्किंग और रणनीतिक योजना की आवश्यकता होती है। इन संसाधनों के उपयोग और समाजसेवी संस्थाओं को नए और टिकाऊ तरीकों से स्वयंसेवकों से जोड़ने के लिए 2017 में द मूवमेंट इंडिया की स्थापना की गई थी। हम एक ऐसे प्लेटफ़ॉर्म हैं जो नागरिकों को तीन सामाजिक सेक्टर में वॉलंटियरिंग के अवसर प्रदान करते हैं- शिक्षा, सामाजिक स्वास्थ्य और मानव-तस्करी विरोधी कार्यक्रम। हमारा लक्ष्य समाजसेवी संगठनों को उनके लघु – और दीर्घकालिक लक्ष्यों को पूरा करने में उनकी मदद करना और वॉलंटियर को समृद्ध अनुभवों के माध्यम से उद्देश्य की भावना खोजने में सक्षम बनाना है।
यहां हम अपने द्वारा अपनाये जाने वाले कुछ तकनीकों और दृष्टिकोणों के बारे में बता रहे हैं।
1. मौजूदा वॉलंटियर निकायों से संबद्ध वॉलंटियर को शामिल करें
वॉलंटियर की तलाश करने वाले समाजसेवी संगठन नैशनल सर्विस स्कीम (एनएसएस) पर विचार कर सकते हैं, जो एक केंद्रीय सेक्टर योजना है जो स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालयों के छात्रों को सामुदायिक सेवा में भाग लेने में सक्षम बनाती है। प्रत्येक छात्र सदस्य को एक साल में 120 घंटे सेवा देने के लिए प्रमाण पत्र दिया जाता है। इसमें से लगभग 10–30 घंटे के समय को समाजसेवी कार्यों के लिए आरक्षित किया जा सकता है; बाकी बचे समय को केंद्रीय और राजकीय स्तर के सामाजिक पहलों के लिए रखा जाता है।
वर्तमान में देश भर में 39 लाख छात्र एनएसएस के विभिन्न इकाइयों में नामांकित हैं। यह मानव संसाधन का एक बड़ा स्रोत है जिसका उपयोग समाजसेवी संस्थाएं कर सकती हैं। सीएसओ के साथ काम करने से छात्रों को समुद्र तट की सफ़ाई और पौधारोपण जैसे अनिवार्य अभियानों के अलावा विभिन्न प्रकार की उत्साहवर्धक परियोजनाओं से भी जुड़ने का अवसर मिलता है। जब युवा वॉलंटियर अपनी पसंद की गतिविधियों से जुड़ते हैं तो उनका काम केवल प्रमाणपत्र-केंद्रित नहीं रह जाता है, बल्कि इससे उनके अंदर उद्देश्य का भाव पैदा होता है और सामाजिक चेतना को बढ़ावा देता है। ये उद्देश्य एनएसएस की भावना से भी मेल खाते हैं, जिसका उद्देश्य देश में सामाजिक रूप से जिम्मेदार नागरिकों की संख्या बढ़ाना है।
वॉलंटियर बड़े आवासीय समाजों, स्कूलों, रोटरी, राष्ट्रीय कैडेट कोर जैसे क्लबों और धार्मिक संस्थानों में भी पाए जा सकते हैं। समाजसेवी संस्थाओं को केवल उन तक पहुंचने की जरूरत है। वे वैकल्पिक रूप से द मूवमेंट इंडिया, चेज़ुबा, गुडेरा, कनेक्टफॉर और दोज़इननीड जैसे वॉलंटियर एकत्रीकरण प्लेटफार्मों का रुख भी कर सकते हैं जो इन्हीं संसाधनों पर आधारित हैं, जिससे समाजसेवी संस्थाओं को वॉलंटियर से सीधे संपर्क करने और उनके साथ स्वैच्छिक शर्तों पर बातचीत करने की परेशानी से बचाया जा सकता है।
2. एक मजबूत पिच तैयार करना
साल 2018 में- जब केरल भीषण बाढ़ से प्रभावित था – हमारी टीम मुंबई में सेंट एंड्रयू कॉलेज में वॉलंटियरों की भर्ती कर रही थी। वहां के प्रिंसिपल ने हमें बताया कि यह एक मुश्किल काम होने वाला है। उन्होंने हमें आगाह करते हुए कहा कि, ‘मुझे नहीं लगता है कि किसी की भी इसमें रुचि होगी; वे पहले से ही अपनी पढ़ाई और इंटर्नशिप को लेकर बहुत व्यस्त हैं।’ हमें अक्सर ही इस तरह की स्थितियों का सामना करना पड़ता है जब लोग रुचि नहीं दिखाते हैं, और इसे दूर करने का सबसे बेहतर तरीका यह है कि अपने उद्देश्य के लिए एक मजबूत पिच तैयार की जाए।
और इसलिए, हमने छात्रों से अपनी बातचीत को एक सरल प्रश्न के साथ शुरू किया: सभी लोग आजकल किस बारे में बात कर रहे हैं? उन्होंने ज़ोरदार आवाज़ में जवाब दिया, ‘केरल की बाढ़ के बारे में।’ उसके बाद हमने उनसे पूछा, ‘इस बाढ़ से कितने लोग प्रभावित हुए हैं?’ सभी ने अपने-अपने अनुमान से एक संख्या बताई। हमने उन्हें सही उत्तर देते हुए बताया लगभग दस लाख लोग। इसके बाद हम आगे बढ़े, ‘क्या आप उस एक समस्या के बारे में जानते हैं जो इससे आठ गुना बड़ी है लेकिन कोई भी इसके बारे में बात नहीं कर रहा?’ हमारे इस सवाल ने तुरंत उनका ध्यान आकर्षित किया। वे सभी उस समस्या के बारे में जानना चाहते थे। हमने उनसे कहा कि अगर वे इसके बारे में जानना चाहते हैं तो उन्हें उस सेमिनार में शामिल होना चाहिए जो हम उनके कॉलेज में आयोजित करने वाले हैं। हमारी उम्मीद से तीन गुना अधिक छात्रों ने उस सेमिनार में हिस्सा लिया। हम उस सेमीनार में मानव तस्करी के विषय पर बात करने वाले थे। लोगों का ध्यान आकर्षित करने भर से आपका आधा काम हो जाता है।
संगठन, नागरिकों को मुद्दे के बारे में अधिक प्रभावी ढंग से समझाने का काम कर सकते हैं।
वर्तमान में सेंट एंड्रयू कॉलेज हमारे वॉलंटियरों का सबसे बड़ा आधार है। हमें वहां और मुंबई में मीठीबाई जैसे दूसरे कॉलेज में नए बैच के इंडक्शन और ओरिएंटेशन के दौरान मेंटल वेलबीइंग एक्सरसाइज़ के लिए वॉलंटियरिंग पिच के लिए भी आमंत्रित किया गया।
किसी अभियान या किसी उद्देश्य के लिए समर्थन जुटाने की चाहत रखने वाले समाजसेवी संगठनों को अक्सर हतोत्साहित किया जाता है और कहा जाता है, ‘लोगों को परवाह नहीं है; इस बारे में आप क्या करने जा रहे हैं?’ संगठन, नागरिकों को मुद्दे के बारे में अधिक प्रभावी ढंग से समझाने का काम कर सकते हैं।
दुर्भाग्यवश, कई समाजसेवी संगठन अपने मूल्य प्रस्ताव (वैल्यू प्रीपोजीशन) या कभी-कभी समस्या को स्पष्ट करने के लिए ही संघर्ष करते हैं। यहां मूल्य प्रस्ताव का अर्थ एक समाजसेवी संस्था के कार्यों के महत्व को उजागर करना है और यह बताना है कि नागरिकों को इसकी परवाह क्यों करनी चाहिए। उदाहरण के लिए, शैक्षणिक समाजसेवी संस्था का मूल्य प्रस्ताव तब अधिक प्रभावी होगा जब वे यह कहने के बजाय कि वे झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले समुदायों के बच्चों को शिक्षा प्रदान करते हैं उसे इस तरह से कहें कि, ‘हम बच्चों को शिक्षा से जोड़कर उन्हें शोषण से मुक्त कराते हैं।’
समाजसेवी संस्थाओं के लिए वॉलंटियर को यह बताना भी कठिन होता है कि जमीनी स्तर पर क्या हो रहा है और उनसे क्या उम्मीद की जा रही है। वॉलंटियर को एक प्रभावी अपील की ज़रूरत होती है, जैसे कि ‘इस गर्मी में एक बच्चे को स्कूल भेजने में हमारी मदद करें। मिशन एडमिशन स्क्वॉड से जुड़ें!’ या फिर ‘आज आपके द्वारा भरा जाने वाला प्रत्येक फॉर्म एक बच्चे के भविष्य को बदल सकता है।’ आप लोगों से क्या करवाना चाहते हैं इसके लिए आपकी ‘मांग’ स्पष्ट और विशिष्ट होनी चाहिए।
एक अच्छी बातचीत विशेष रूप से अनिवार्य होती है जब ऐसे कारणों की बात आती है जिससे जुड़ने से लोग झिझकते हैं। एक बार हमने जुवेनाइल होम में कॉर्पोरेट कर्मचारियों के लिए वॉलंटियरिंग सत्र का आयोजन करने की कोशिश की थी, लेकिन कई लोग इससे कतराने लगे क्योंकि वे ऐसे लोगों के साथ नहीं जुड़ना चाहते थे जिनका क़ानून के साथ संघर्ष चल रहा था। ऐसे मामलों में, वॉलंटियरों को मिशन के संदर्भ से परिचित कराना, स्थान का निर्धारण करना और उन्हें सुरक्षा प्रोटोकॉल के बारे में आश्वस्त करना मददगार साबित हो सकता है।
3. वॉलंटियर के लिए सेवा करना आसान बनाएं
बहुत सारे लोग किसी अच्छे कारण के लिए अपने कौशल का योगदान देना चाहते हैं, लेकिन प्रत्येक व्यक्ति के पास लम्बे समय की प्रतिबद्धता के लिए ना तो समय होता है ना ही संसाधन इसलिए, वॉलंटियरिंग को जितना संभव हो सके उतना लचीला और व्यावहारिक होना चाहिए। लोगों को सप्ताह या महीने में शायद कुछ घंटों के लिए अपने घरों से स्वेच्छा से काम करने की सुविधा दें, और अपनी तरफ़ से लंबे समय वाली प्रतिबद्धता मांगने से बचें।
लोगों के लिए अपने समय और कौशल के योगदान को सुविधाजनक बनाना वॉलंटियरिंग को बढ़ाने का एक तरीका है।
सभी संगठनों में ऐसे कामों की सूची होती है जिसे आसानी से घर पर रहते हुए किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, वॉलंटियर तकनीकी सामग्री तैयार करने और बच्चों के लिए कहानियां रिकॉर्ड करने का काम अपने मोबाइल फोन या लैपटॉप से कर सकते हैं। उन्हें धन जुटाने और स्लाइड डेक बनाने, जिंगल बनाने, डेटा एनालिटिक्स चलाने, प्रस्ताव लिखने (प्रत्येक समाजसेवी संस्था के पास एक अच्छा प्रस्ताव लेखन या फंडरेजिंग वाली टीम नहीं होती है) या समाजसेवी उत्पादों के लिए रूपांकनों (मोटिफ़) को डिजाइन करने के लिए शामिल किया जा सकता है – यह सब उनकी अपनी सुविधा से वे अपने घर से ही कर सकते हैं। लोगों के लिए अपने समय और कौशल के योगदान को सुविधाजनक बनाना वॉलंटियरिंग को बढ़ाने का एक तरीका है। जैसे तकनीकी मंचों ने खुदरा दान को लाभान्वित किया है, वैसे ही तकनीक का उपयोग वॉलंटियरिंग को मजबूत करने के लिए किया जा सकता है।
समाजसेवी संस्थाएं इस तरह से अतिरिक्त सेवाओं का उपयोग कर सकती हैं और अपने सीमित संसाधनों को खर्च किए बिना क्षमता निर्माण कर सकती हैं। एक गैर-लाभकारी संस्था जो महिलाओं के स्वयं सहायता समूहों के साथ काम करती है, सोशल मीडिया मार्केटर को नियुक्त किए बिना सोशल मीडिया पर अपने उत्पादों का प्रचार-प्रसार कर सकती है। फैशन डिज़ाइन के छात्र कमजोर महिलाओं द्वारा संचालित छोटे पैमाने की सिलाई इकाई में डिज़ाइन का योगदान दे सकते हैं।
सेवा में विशेष कौशल का प्रयोग किए बिना भी बहुत कुछ किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, महामारी के दौरान, हमारे पास फोन ड्यूटी पर ऐसे वॉलंटियर थे, जो पूर्व कैदियों और यौन तस्करी से बचाई गई महिलाओं को फोन करके उनकी जांच करते थे और उन्हें कोविड-19 प्रोटोकॉल की याद दिलाते थे। इस तरह की एक सरल पहल ने न केवल जागरूकता फैलाने में मदद की, बल्कि इन कॉलों को प्राप्त करने वालों को विशेष और महत्वपूर्ण महसूस कराया।
4. कॉर्पोरेट कर्मचारियों के साथ जुड़ें
सभी समाजसेवी संस्थाओं के पास सीएसआर फंड की उपलब्धता नहीं होती है। संभव है कि वे अनुदान के लिए कंपनी के मानदंडों पर खरा ना उतर रहे हों, या उनके प्रस्ताव कॉर्पोरेट निर्णय निर्माताओं को प्रभावित करने में विफल हो सकते हैं। फिर भी, यदि पैसा नहीं, तो कंपनियां सीएसओ आउटरीच कार्यक्रमों के जरिए अपने कर्मचारियों के कौशल और प्रतिभा को स्वेच्छा से दे सकती हैं। वे कौशल विकास कार्यक्रमों में महिलाओं के लिए व्यावसायिक कौशल प्रशिक्षण आयोजित कर सकते हैं, बड़े पैमाने पर कार्यक्रमों का प्रबंधन कर सकते हैं, ऑनलाइन बोली जाने वाली अंग्रेजी या सामग्री निर्माण कक्षाएं संचालित कर सकते हैं, या नौकरी के उम्मीदवारों को उनके साक्षात्कार कौशल को निखारने में मदद कर सकते हैं।
अपने साथियों को किसी अच्छे उद्देश्य के लिए आगे आने के लिए मनाने के लिए केवल एक कर्मचारी की आवश्यकता होती है
कॉर्पोरेट वॉलंटियर अपनी कंपनी के सीएसआर दायरे के बाहर, समाजसेवी संस्थाओं के लिए धन जुटाने में मदद कर सकते हैं।
एक बार हम मानव तस्करी से बचे लोगों के लिए एक कॉर्पोरेट टीम को लेकर आये थे। कर्मचारियों द्वारा बच्चों के साथ बातचीत के बाद, हमने उनसे लिंक्डइन पर संगठन के पेज को फॉलो करके और उस पर आये हुए पोस्ट पर प्रतिक्रिया देकर उसकी दृश्यता को बढ़ाने का आग्रह किया। यह एक सरल काम था जिससे उनकी सोशल मीडिया से जुड़े लोगों की नज़र संगठन पर पड़ती। इससे आश्रय के अपने नेटवर्क को बढ़ने में मदद मिलेगी और लंबे समय में धन प्राप्त करने की संभावना में सुधार होगा।
कभी-कभी, कॉर्पोरेट वॉलंटियर अपनी कंपनी के सीएसआर दायरे के बाहर, समाजसेवी संस्थाओं के लिए धन जुटाने में मदद कर सकते हैं। समाजसेवी संस्था और उसके काम से उनका परिचय कर्मचारियों को औपचारिक सीएसआर चैनलों के माध्यम से भविष्य के वित्तपोषण के लिए संगठन की सिफारिश करने के लिए प्रेरित कर सकता है।
यदि उन्हें औपचारिक सीएसआर मार्ग से सफलता नहीं मिली है तो कॉर्पोरेट वॉलंटियर की तलाश करते समय, सीएसओ किसी कंपनी के भीतर अलग-अलग विभागों से संपर्क करने पर भी विचार कर सकते हैं।
हमने अनुभव किया है कि टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज जैसे बड़े संगठनों में, टीमों के पास अपनी सामाजिक प्रभाव परियोजनाओं को लेने के लिए पर्याप्त स्वायत्तता है; इस तरह के निर्णय हमेशा उच्च अधिकारियों पर निर्भर नहीं होते हैं। समाजसेवी संस्थाएं सीधे कर्मचारियों के साथ अवसर की तलाश सकती हैं। अपने साथियों को किसी अच्छे उद्देश्य के लिए आगे आने के लिए मनाने के लिए केवल एक कर्मचारी की आवश्यकता होती है।
5. आत्म–चिंतन के अवसर स्थापित करें
प्रत्येक वॉलंटियरिंग काम के अंत में हम वॉलंटियर से दो सरल सवाल पूछते हैं: ‘आपने क्या किया?’ और ‘आपने वास्तव में क्या किया?’ पहले प्रश्न का तुरंत जवाब आता है जिसमें वे एक वॉलंटियर के रूप में अपने द्वारा किए गये काम कि गिनती करवाते हैं। एक आदमी कह सकता है कि वह एक निम्न-आय वाले समुदाय के पास गया और वहां उसने 15 परिवारों का सर्वे किया। दूसरे प्रश्न के पूछे जाने पर वे इस बात पर सोचना शुरू करते हैं कि उन ‘वास्तव’ में क्या किया। उसके बाद वे अपने काम के गहरे प्रभाव की सराहना करनी शुरू करते हैं: ‘मैंने केवल सर्वे ही नहीं किया, मैंने एक बच्चों को शिक्षा तक पहुंचने में उसकी मदद की।’
जब वॉलंटियर को इस बात के लिए प्रेरित किया जाता है कि वे अपनी भूमिका को परिवर्तनकारी भूमिका के रूप में देखें तो इससे उनके अंदर कारण से जुड़ने का भाव गहरा होता है और उन्हें संगठन से अपने जुड़ाव को विस्तृत करने के लिए प्रेरित करता है। सच्चाई यह है कि वॉलंटियरिंग का जितना मतलब दूसरों की सेवा करना है उतना ही हमारे कौशल और प्रतिभा को नये नज़रिए देखने और अपने महत्व को समझने में सक्षम होना भी है।
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