May 8, 2025

समुदाय से संवेदना तक: मानसिक स्वास्थ्य में भागीदारी का सफर

जब कोई कार्यक्रम किसी लोगों के अनुभवों से मिलकर तैयार किया जाए तो वह अधिक मानवीय, नवीन और समानता आधारित होता है।
9 मिनट लंबा लेख

नेशनल मेंटल हेल्थ सर्वे 2015-16 के मुताबिक, भारत में हर छठे व्यक्ति को किसी न किसी तरह की मानसिक स्वास्थ्य सहायता की जरूरत है। लेकिन देश में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच अभी भी सहज नहीं है। अलग-अलग मानसिक स्थितियों के लिए यह कमी 70 से 92 प्रतिशत के बीच देखी गई है। मानसिक स्वास्थ्य के लिए जो वैश्विक उपाय मौजूद हैं, वे अक्सर पश्चिमी देशों की सोच और सामाजिक व्यवस्था पर आधारित होते हैं। इसलिए जरूरी नहीं है कि वे भारत जैसे सांस्कृतिक और सामाजिक रूप से विविध देश के लिए हमेशा उपयुक्त हों।

बुरांस संस्था इसी अंतर को भरने की कोशिश करती है। बुरांस का तरीका पूरी तरह से समुदाय आधारित है। इसमें मानसिक स्वास्थ्य को शारीरिक, मानसिक और सामाजिक तीनों पहलुओं से जोड़कर देखा जाता है। यह संस्था स्थानीय अनुभवों और जानकारी के आधार पर मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े कार्यक्रम, साधन और तरीके तैयार करती है। बुरांस ऐसे लोगों के साथ मिलकर काम करता है जिन्हें अंग्रेजी में “एक्सपर्ट्स बाय एक्सपीरियंस” और हिंदी में अनुभव आधारित विशेषज्ञ कहा जाता है। ये विशेषज्ञ वे लोग होते हैं, जो खुद मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं या किसी ऐसे व्यक्ति की देखभाल कर रहे हैं जो इस स्थिति से गुजरा हो। आमतौर पर ये लोग स्वास्थ्य सेवाओं के केवल उपभोक्ता माने जाते हैं, लेकिन बुरांस इन्हें नीति और कार्यक्रम बनाने की प्रक्रिया में भी शामिल करता है, जिसे को-प्रोडक्शन कहा जाता है।

साल 2014 से हम उत्तराखंड में दूर-दराज के ग्रामीण इलाकों में काम कर रहे हैं, जहां मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच या तो बहुत कम है या बिल्कुल नहीं है। हम जरूरतमंद लोगों के घर जाकर, उनकी सहमति के साथ उनके मानसिक स्वास्थ्य का आकलन करते हैं। साथ ही हम लोगों को सरकारी योजनाओं की जानकारी देते हैं और उन्हें इन योजनाओं का लाभ लेने में मदद करते हैं।

हम अपने समुदाय, स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं और अनुभव आधारित विशेषज्ञों की मदद से लोगों की बातों को ध्यान से सुनते हैं, उनके साथ मिलकर समस्या को समझते हैं और उनका हल ढूंढने की कोशिश करते हैं। अक्सर मानसिक परेशानियों के पीछे सामाजिक और आर्थिक कारण होते हैं, जिन्हें पहचानकर उनके समाधान निकालने की कोशिश की जाती है। साथ ही, अगर समुदाय की जरूरत हो तो उन्हें वित्तीय समझ और रोजगार से जुड़े कौशल भी सिखाए जाते हैं।

फेसबुक बैनर_आईडीआर हिन्दी

कई बार जब संस्थाएं मानसिक स्वास्थ्य पर काम शुरू करती हैं, तो वे पश्चिमी देशों के मॉडल अपनाती हैं। चूंकि वे पहले से स्थापित हैं, इसलिए उनके लिए संसाधन मिल जाते हैं या फंडिंग उनसे जुड़ी होती है। लेकिन अगर ऐसे मॉडल को समुदाय के अनुभवों के साथ जोड़ा जाए और अनुभव आधारित विशेषज्ञों की मदद ली जाए, तो वे जमीनी स्तर पर ज्यादा असरदार बन सकते हैं। मानसिक स्वास्थ्य को जब सामाजिक और आर्थिक असमानताओं से जोड़कर देखा जाता है, तो संस्था के काम करने का तरीका भी बदल सकता है। जैसे स्टाफ की भर्ती, कार्यक्रम का डिजाइन और लोगों की राय को शामिल करने का तरीका।

कुछ महिलायें_मानसिक स्वास्थ्य
भरोसा कायम करने के लिए कार्यक्रम शुरू करने से पहले कई हफ्तों तक ईबीई सदस्यों से मुलाकात की जाती है। | चित्र साभार: बुरांस

मानसिक स्वास्थ्य के लिए समुदाय आधारित तरीका अपनाना

हम ‘समुदाय’ को दो तरह से देखते हैं और उनके साथ काम करते हैं। एक तो वे इलाके, जहां लोगों के पास जरूरी सुविधाएं नहीं होती हैं। दूसरे, ऐसे समूह जो किसी तरह की मानसिक परेशानी से जूझ रहे लोगों से मिलकर बने होते हैं। हमारे ज्यादातर समूह इन्हीं दो वर्गों से आते हैं और इन्हीं में से हम अनुभव आधारित विशेषज्ञों को चुनते हैं।

आमतौर पर मानसिक और मनो-सामाजिक परेशानी से जूझ रहे लोगों के बारे में ऐसा माना जाता है कि वे समझदारी से फैसले नहीं ले सकते हैं। इसलिए उनके अनुभवों और बातों को अहमियत नहीं दी जाती है। ये लोग पहले से ही हाशिए पर होते हैं और उनके बारे में यह धारणा भी बनायी जाती है कि वे अपनी सेहत के प्रति स्वयं कुछ सोच या कर नहीं सकते हैं। दूसरी तरफ, किसी कॉलेज या यूनिवर्सिटी से प्रशिक्षित बाहरी पेशेवरों के बारे में आम राय है कि वे सही योजनाएं तैयार कर सकते हैं। इसके उलट जिन लोगों ने खुद ये समस्याएं झेली होती हैं, उन्हें नजरअंदाज कर दिया जाता है। इससे समुदाय के लोग खुद को कमजोर महसूस कर सकते हैं।

उदाहरण के लिए, अगर शहर में रहने वाले किसी ऐसे पुरुष समाजसेवी, जिसने कभी मानसिक बीमारी का अनुभव न किया हो, को महिलाओं के लिए योजना बनाने का काम दिया जाए, तो पहले उसके लिए यह समझना जरूरी होगा कि गरीबी, अकेलापन और भेदभाव जैसी बातें मानसिक सेहत को कैसे प्रभावित करती हैं। यह समझ होने पर ही वह एक कारगर योजना बना पाएगा।

अनुभव आधारित विशेषज्ञ, जो खुद मानसिक स्वास्थ्य की चुनौतियों से गुजरे हैं, अपने अनुभव और स्थानीय समझ से यह बता सकते हैं कि जमीन पर क्या हो रहा है और लोगों को किस चीज़ की जरूरत है। इससे योजनाएं ज्यादा सही और असरदार बनती हैं। साथ ही, यह दिखाता है कि लोगों के अंदर भी ज्ञान, समझ और काबिलियत है। इससे धीरे-धीरे उनका आत्मविश्वास बढ़ता है और उन्हें लगता है कि वे भी बदलाव ला सकते हैं। यही सोच एक मजबूत और टिकाऊ पहल की नींव बनती है, जिसे समुदाय खुद आगे बढ़ाता है।

मानसिक स्वास्थ्य के मामले में यह और भी जरूरी हो जाता है, क्योंकि अब भी इस विषय से जुड़ी बहुत सारी गलतफहमियां, चुप्पी और नुकसानदायक तरीके जस-के-तस कायम हैं। ये समस्याएं बहुत गहरी हैं, इसलिए इनके लिए टिकाऊ और स्थानीय समाधान तैयार करना जरूरी है।

कुछ तरीके हैं, जिन्हें अपनाकर समाजसेवी संस्थाएं समुदाय के साथ मिलकर काम कर सकती हैं:

1. विविध पहचान वाले लोगों के साथ अनुभव आधारित विशेषज्ञों का समूह बनाना

अगर हम चाहते हैं कि किसी प्रोग्राम की प्रक्रिया और नतीजे समानता को बढ़ावा दें, तो हमें इसके योजना स्तर पर ही ऐसे लोगों को शामिल करना चाहिए जिन्होंने समाजिक भेदभाव का सामना किया हो और हाशिए पर हों। कई बार संगठन ऐसे लोगों को शामिल करते हैं, जिनके पास जीवन का अनुभव तो होता है, लेकिन वे शिक्षा और आर्थिक स्थिति के मामले में पहले से ही कुछ हद तक साधन सम्पन्न होते हैं। ऐसे लोगों की भूमिका भी जरूरी है, लेकिन इसके साथ-साथ उन लोगों को भी शामिल करना जरूरी है जो कई तरह की सामाजिक और आर्थिक चुनौतियों का सामना कर चुके हैं।

हम जिन समुदायों के साथ काम करते हैं, उनमें ज्यादातर लोग सामाजिक, आर्थिक और स्वास्थ्य संबंधी कई मुश्किलों का सामना कर रहे होते हैं। इनमें से कई लोग प्रवासी होते हैं और अस्थायी या अनधिकृत बस्तियों में रहते हैं, जहां मूलभूत सुविधाएं भी ठीक से उपलब्ध नहीं होती हैं।

बुरांस की कम्युनिटी हेल्थ वर्कर यह कोशिश करती हैं कि जिन लोगों को इस काम में शामिल किया जाए, उनके पास इनमें में से कम से कम दो तरह की पहचान या अनुभव हों: (1) उनका रहवास (जैसे कि अनौपचारिक शहरी बस्ती या दूरस्थ ग्रामीण इलाका) (2) मानसिक बीमारी या समस्या का अनुभव (3) सीमित शिक्षा (4) महिला होने की पहचान (5) परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक ना होना (6) महिला-प्रधान परिवार, जैसे विधवा महिलाएं।

जब हम किसी प्रोग्राम की योजना बनाते हैं और उसे लागू करते हैं, तो हम ऐसे समूह बनाते हैं जिनमें सामाजिक और आर्थिक रूप से अलग-अलग पृष्ठभूमियों से आए लोग शामिल होते हैं। इनमें मानसिक बीमारी और विकलांगता से जुड़े अलग-अलग अनुभव रखने वाले लोग भी होते हैं। इसका मकसद होता है कि समूह में सभी एक-दूसरे के अनुभवों को बेहतर समझ सकें और मिलकर ज्यादा संवेदनशील और रचनात्मक समाधान निकाल सकें।

2. एक सुरक्षित जगह, जहां लोग अपनी बात कह सकें

हम जो समूह बनाते हैं, उनमें हमेशा कुछ सदस्य ज्यादा बोलते हैं तो कुछ कम। अक्सर, जिन लोगों को गंभीर मानसिक समस्याएं होती हैं या जो कम पढ़े-लिखे होते हैं, वे चुप रहते हैं। वे कहते हैं कि उन्हें घर पर भी अपनी राय रखने का अवसर नहीं मिलता है।

यहां पर, समूह को संचालित करने वाले लोग यह सुनिश्चित करते हैं कि हर व्यक्ति अपनी बात रख सके। शुरुआत में, समूह के सदस्य से यह पूछ सकते हैं कि वे कोई ऐसी बात बताएं जिसके लिए वे आभारी हैं। इससे लोगों को बोलने का आत्मविश्वास मिलता है। इसके बाद, धीरे-धीरे कार्यक्रम की रूपरेखा या किसी और जटिल मुद्दे पर अपनी राय देने के लिए प्रेरित किया जा सकता है। किसी सदस्य से यह कहें कि वे किसी ऐसे विषय पर बात करें जिस पर उन्हें विशेष ज्ञान हो। जब सदस्य महसूस करते हैं कि उनकी सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि बाकी सदस्यों से मिलती-जुलती है, तो वे ज्यादा खुलकर और सक्रिय रूप से चर्चा में भाग लेते हैं।

3. विश्वास आधारित रिश्ता बनाना

हर समूह में विश्वास की भूमिका बहुत जरूरी है। इसका मतलब है कि हम समूह के काम शुरू करने से पहले चार से आठ हफ्तों तक अनुभव आधारित विशेषज्ञों से कई बार मिलते हैं। इन शुरूआती कुछ बैठकों में, हम मिलकर अपने जीवन के अनुभवों को शेयर करते हैं, खेल खेलते हैं और रोल प्ले करते हैं। अगर समूह के संचालक अपनी मुश्किलों या मानसिक तनाव के अनुभवों को शेयर करते हैं तो इससे समूह के लोग उनके साथ जुड़ाव महसूस करते हैं। फिर वे भी अपने अनुभवों को खुलकर साझा करते हैं जिससे विश्वास और संबंध बनते हैं।

कार्यक्रम की रूपरेखा में लोकतांत्रिक सिद्धांतों को लागू करना एक धीमी और विचारणीय प्रक्रिया है।

समुदाय स्वास्थ्य कार्यकर्ता—जो खुद अनुभव आधारित विशेषज्ञ होते हैं—जब सह-संयोजक बनते हैं तो इससे समूह में सुरक्षा का अहसास होता है। इसकी वजह उनका इलाके की सामाजिक और सांस्कृतिक स्थिति को अच्छी तरह समझना है। हम मानसिक स्वास्थ्य देखभाल की योजना बनाने के लिए प्रशिक्षण देते हैं और स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को अपने अनुभवों को संगठन के अंदर और बाहर साझा करने के लिए प्रेरित करते हैं। इससे उनकी विशेषज्ञता को पहचाना और स्वीकार्यता मिलती है। लगातार और नियमित तरीके से किए गए कार्य सभी सदस्यों में सहानुभूति, सक्रिय सुनवाई, समझ बनाने और बिना किसी निर्णय के बातचीत करने की भावना को बढ़ावा देते हैं।

4. विशेषज्ञों में आत्मविश्वास बनाए रखना

समूह के जो सदस्य कई तरह के सामाजिक भेदभाव का सामना करते हैं, उन्हें अपनी विशेषज्ञता पहचानने में मुश्किल होती है। खासकर तब जब उन्हें पहले कभी सार्वजनिक रूप से अपनी राय साझा करने का अवसर नहीं मिला हो।

उनकी विशेषज्ञता को स्पष्ट करना जरूरी है ताकि वे अपने विचार रखते समय सहज रहें और आत्मविश्वास महसूस करें। एक तरीका यह हो सकता है कि उन्हें एक ठोस काम दिया जाए जिसमें गहरे संदर्भ ज्ञान यानी सोच विचार की जरूरत हो। जैसे, एक चित्र दिखाकर उनसे पूछा जाए कि इसे उनके समुदाय के लिए और अधिक प्रासंगिक कैसे बनाया जा सकता है। एक और उदाहरण यह हो सकता है कि कोई व्यक्ति, जो स्थानीय शासन संस्थाओं से विकलांगता प्रमाणपत्र पाने गया हो, उसे यह एक सामान्य जीवन अनुभव लगे। वहीं, जब उससे पूछा जाता है कि उसने यह प्रमाणपत्र पाने के लिए क्या किया और इस प्रक्रिया को दूसरों के साथ साझा करे तो उसे अपनी विशेषज्ञता का अहसास होता है।

अलग-अलग तरीकों से भागीदारी करने से समूह के सदस्यों के लिए एक सुरक्षित स्थान तैयार होता है, जहां वे अपनी बात रख सकते हैं और आपस में बातचीत कर सकते हैं। हो सकता है कि वे समूह में सबके सामने बोलने में घबराते हों, इसलिए हमने उनके विशेषज्ञता को पहचानने और उसे स्वीकार करने के लिए रचनात्मक तरीके अपनाएं। हमारे एक समूह ने जिले में “वर्ल्ड मानसिक स्वास्थ्य दिवस” का आयोजन किया, और समूह के सदस्यों को अपनी समुदाय के सामने बोलने का अवसर मिला, जिससे उनकी विशेषज्ञता की पहचान और सम्मान हुआ।

उनकी विशेषज्ञता को पहचानने का एक और तरीका यह है कि समूह के सदस्यों के समय के लिए वित्तीय सम्मान दिया जाए। इससे महिलाओं को बैठकों में शामिल होने के लिए अनुमति लेना आसान होता है और यह भी दिखाता है कि वे प्रोजेक्ट में मूल्य जोड़ रही हैं, जिसके लिए उन्हें भुगतान किया जा रहा है।

5. प्रतीकात्मक प्रतिनिधित्व से बचें

को-प्रोडक्शन में अक्सर प्रतीकात्मक प्रतिनिधित्व दिए जाने का खतरा रहता है। उदाहरण के लिए, चूंकि कानूनन एक मानसिक चिकित्सक के लिए यह पूछना अनिवार्य किया गया है कि “आपके लिए क्या महत्वपूर्ण है?”, तो वे यह सवाल सिर्फ बतौर डॉक्टर अपने दायित्व को पूरा करने के लिए पूछ सकते हैं। यह खासतौर पर उन लोगों के लिए मुश्किल हो सकता है, जो हाशिए पर हैं या जिनकी मानसिक स्वास्थ्य समस्याएं गंभीर हैं। वे ऐसे सवाल का जवाब देने के लिए दबाव महसूस कर सकते हैं जो डॉक्टर को खुश करें,  या फिर वे इस सवाल को सुनकर चौंक सकते हैं या मानसिक तनाव महसूस कर सकते हैं। कम साक्षरता और डॉक्टर-मरीज के बीच की औपचारिकता और सामाजिक असमानता भी बातचीत को जटिल बना देती है, जिससे यह सवाल केवल एक दिखावे का कदम बनकर रह जाता है, न कि यह एक सच्ची कोशिश कि इलाज को बेहतर किया जाए।

यह चिकित्सक और समुदाय स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारी है कि वे अपनी स्थिति और अपने मरीजों के बीच शक्ति के असंतुलन को सही तरीके से समझें और इसे संतुलित तरीके से निपटने की कोशिश करें।

ऑफिस में चर्चा करते लोग_मानसिक स्वास्थ्य
कार्यक्रम की रूपरेखा पर समूह के सदस्य बारी-बारी से अपनी राय साझा करते हैं—इससे आत्मविश्वास, भरोसा और जिम्मेदारी की भावना विकसित होती है। | चित्र साभार: बुरांस

धैर्य और विनम्रता की आवश्यकता

कार्यक्रम की रूपरेखा में लोकतांत्रिक सिद्धांतों को लागू करना एक धीमी और विचारणीय प्रक्रिया है।

1. आंतरिक प्रक्रियाओं को सुलभ और समान बनाना

लोकतांत्रिक कार्यक्रमों को बनाने और लागू करने के लिए, हमें पहले अपनी आंतरिक प्रक्रियाओं को इस तरह बदलना पड़ा कि वे समावेशी और समान हों। उदाहरण के तौर पर, इसमें हम अपने संगठन के उपकरण जैसे जटिल प्रोजेक्ट प्रबंधन उपकरण से दूर हटकर ऐसे तरीकों की ओर बढ़े, जो हमारे अनुभव आधारित विशेषज्ञों के लिए ज्यादा सहज थे। हमने यह सुनिश्चित करने के लिए भी जागरूक कदम उठाए कि सफाई करने या चाय बनाने जैसी ज़िम्मेदारियां सभी के बीच एक रजिस्टर प्रणाली के जरिए बांटी जाएं।

हमने यह भी कोशिश की कि लोग एक-दूसरे को संबोधित करने के तरीके को बदलें, जैसे ‘सर’ और ‘मैम’ जैसे शब्दों को हटाकर ‘भाई’ या ‘दीदी’ जैसे शब्दों का उपयोग किया जाए। हमारा उद्देश्य है कि टीम में कम औपचारिक संबोधनों का इस्तेमाल किया जाए, ताकि यह समुदायों के साथ हमारे काम को भी मजबूत कर सके।

समाज और शक्ति की पुरातन और जुड़ी हुई संरचनाएं जल्दी नहीं बदलती हैं। इन्हें बदलने के लिए ध्यान और अभ्यास की जरूरत होती है। जो लोग हाशिए पर हैं या वंचित समुदायों से हैं, वे अपनी राय देने में संकोच कर सकते हैं। यह जिम्मेदारी मेजबान संस्थाओं की है कि वे यह सुनिश्चित करें कि हर कोई पूरी तरह से शामिल हो सके।

2. विशेषज्ञों का जरूरतों के प्रति संवेदनशील होना

अनुभव आधारित विशेषज्ञों का मानसिक स्वास्थ्य अनुभव उनके काम करने की क्षमता पर असर डाल सकता है, जिससे उन्हें ब्रेक लेना पड़ सकता है और समय के साथ उनकी भागीदारी में बदलाव आ सकता है। समाजसेवी संस्थाओं को ऐसे विशेषज्ञों के लिए प्रभावी स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच बनाने और उन्हें समर्थन देने का रास्ता बनाना चाहिए। बैठकों को ऐसे समय और जगह पर रखा जाना चाहिए जो समुदाय के सदस्यों के लिए सुविधाजनक हों। हमने देखा है कि इन समूहों में पलायन दर ज्यादा होती है, और हमें यह समझने और स्वीकार करने के लिए तैयार रहना चाहिए कि लोग कभी-कभी इस भूमिका को कुछ समय के लिए या लंबी अवधि के लिए छोड़ सकते हैं।

3. फंडिंग करने वालों के बीच जागरूकता बनाना

हमने यह समझाने की कोशिश की है कि को-प्रोड्यूस्ड परिणाम के लिए धीमी गति और लंबे समय की आवश्यकता होती है। हम अपने फंडर्स से बात करते हैं और उन्हें यह बताते हैं कि एक अधिक लचीली और लंबे समय की अवधि वाले अनुबंधों की जरूरत है, ताकि एक सहभागी प्रक्रिया का पालन किया जा सके। यह अधिकांश फंडर्स के साथ अच्छा काम किया है, हालांकि कुछ ने अपनी समय-सीमा को सख्त बनाए रखा है।

मानसिक स्वास्थ्य देखभाल में को-प्रोडक्शन सिर्फ समावेशन के बारे में नहीं है—यह शक्ति के असंतुलन को बदलने के बारे में है। जब हम अनुभव आधारित विशेषज्ञता रखने वाले लोगों को पहचानते हैं और ऐसे सिस्टम बनाते हैं जो उन्हें जमीनी स्तर से कार्यक्रमों को आकार देने की अनुमति देते हैं तो संगठन अधिक प्रासंगिक, सुलभ और समान मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं बना सकते हैं।

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  • मानसिक स्वास्थ्य क्या है और इस पर बात किए जाने की जरूरत क्यों है?
  • मानसिक स्वास्थ्य में कैसे बढ़ रही है तकनीक की भूमिका?
  • नशे की लत और मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों पर राह दिखता एक प्रयास।

लेखक के बारे में
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काकुल साईराम

काकुल साईराम, बुरांस के साथ बतौर मानसिक स्वास्थ्य सलाहकार काम करती हैं और वंस ऑल ट्रस्ट में फंडरेजर और फिलैन्थ्रॉपी को-ऑर्डिनेटर हैं। मानसिक स्वास्थ्य पेशेवर होने के साथ-साथ वे खुद भी मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी चुनौतियों का अनुभव कर चुकी हैं। उनका काम मानसिक स्वास्थ्य, रेजिलिएंस और जेंडर पर केंद्रित है। काकुल समावेशी मानसिक स्वास्थ्य सेवाएं तैयार करने और साथियों के सहयोग लोगों के सशक्त करने में विशेष रुचि रखती हैं। उन्होंने इससे पहले टिक मुंबई, महिला समख्या उत्तराखंड, बीएएलएम और पीआरआईए के साथ काम किया है।

कारेन मैथियास-Image
कारेन मैथियास

कारेन मैथियास यूनिवर्सिटी ऑफ कैंटरबरी, न्यूज़ीलैंड में जन स्वास्थ्य की एसोसिएट प्रोफेसर और उत्तराखंड स्थित संस्था बुरांस में वरिष्ठ सलाहकार हैं। एक जन-स्वास्थ्य चिकित्सक के तौर पर वह सामुदायिक स्वास्थ्य प्रणालियों, सामाजिक न्याय और मानसिक स्वास्थ्य के साझा मुद्दों पर काम करती हैं। कारेन को कंबोडिया, कोलंबिया और भारत जैसे देशों में काम करने का 20 से अधिक वर्षों का अनुभव है और वह मेडिसिन्स सैंस फ्रंटियर्स (एमएसएफ) जैसी कई संस्थाओं के साथ जुड़ी रही हैं।

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